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सामाजिक न्याय

मानव तस्करी

  • 15 Dec 2023
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ऑपरेशन स्टॉर्म मेकर्स II, इंटरपोल, मानव तस्करी के रूप, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम, 1956, अनुच्छेद 23, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012, अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, तस्करी पर सार्क अभिसमय।

मेन्स के लिये:

भारत में मानव तस्करी की स्थिति

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इंटरपोल ने ऑपरेशन स्टॉर्म मेकर्स II का संचालन किया जिसमें मानव तस्करी के शिकार लोगों का उपयोग करते हुए चलाये जा रहे धोखाधड़ी योजनाओं के बढ़ते नेटवर्क को उजागर किया गया है।

  • इसने 27 एशियाई और अन्य देशों में मानव तस्करी तथा प्रवासी तस्करी से निपटने के लिये कानून प्रवर्तन को संगठित किया।

ऑपरेशन स्टॉर्म मेकर्स II के प्रमुख बिंदु क्या हैं? 

  • गिरफ्तारियाँ और आरोप: ऑपरेशन के फलस्वरूप मानव तस्करी, पासपोर्ट जालसाज़ी, भ्रष्टाचार, दूरसंचार धोखाधड़ी और यौन शोषण जैसे आरोपों में विभिन्न देशों में 281 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया।
  • बचाव कार्य और जाँच: इस ऑपरेशन द्वारा मानव तस्करी पीड़ित 149 लोगों को बचाया गया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा मानव तस्करी से पीड़ितों हेतु खोज कार्य शुरू किया गया।
  • तेलंगाना मामला: इंटरपोल के अनुसार, तेलंगाना पुलिस ने भारत में इस प्रकार का पहला मामला दर्ज किया है मानव तस्करी के शिकार लोगों का उपयोग करते हुए धोखाधड़ी योजनाओं का संचालन किया जा रहा था
    • इसमें दक्षिण पूर्व एशियाई देश में प्रलोभन देकर लाए गए एक अकाउंटेंट को अमानवीय परिस्थितियों में ऑनलाइन धोखाधड़ी योजनाओं में भाग लेने के लिये बाध्य किया गया।
    • प्राप्त सूचनाओं के अनुसार, फिरौती भुगतान करके अकाउंटेंट को सुरक्षित बचा लिया गया है।

नोट: इंटरपोल, जिसे अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (ICPO) के नाम से भी जाना जाता है, विश्व का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय पुलिस संगठन है। इंटरपोल का मिशन विश्व को सुरक्षित बनाने के लिये पूरे विश्व की पुलिस के साथ मिलकर एक शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिये कार्य करने में सहायता करना है।

  • इसमें 196 सदस्य देश हैं। वर्ष 1949 से शामिल भारत इंटरपोल के सबसे पुराने सदस्यों में से एक है।
  • यह एक सुरक्षित नेटवर्क की सहायता से देशों को एक-दूसरे से और एक सामान्य सचिवालय से संपर्क बनाने में सहायता करता है। यह उन्हें वास्तविक समय में इंटरपोल के डेटाबेस एवं सेवाओं तक पहुँच भी प्रदान करता है।

भारत में मानव तस्करी की स्थिति क्या है?

  • मानव तस्करी: 
    • मानव तस्करी से आशय लोगों के अवैध व्यापार व शोषण से है, जिसमें जबरन लोगों को श्रम कार्य, यौन शोषण अथवा अनैच्छिक दासता के लिये बाध्य किया जाता है।
    • इसमें व्यक्तियों का शोषण करने के उद्देश्य से धमकी, बलप्रयोग, ज़बरदस्ती, अपहरण, धोखाधड़ी अथवा धोखे के माध्यम से किसी प्रकार की भर्ती, स्थानांतरण, शरण देने के प्रलोभन आदि का उपयोग शामिल है।
  • भारत में स्थिति: 
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau -NCRB) के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 में 6,500 से अधिक मानव तस्करी पीड़ितों की पहचान की गई, जिनमें से 60% महिलाएँ और लड़कियाँ थीं।
  • भारत में तस्करी से संबंधित संवैधानिक एवं विधायी प्रावधान: 
    • संवैधानिक निषेध: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और बेगार (बिना भुगतान के जबरन श्रम) पर प्रतिबंध लगाता है।
    • अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम, 1956 [Immoral Traffic (Prevention) Act- ITPA]: यह कानून विशेष रूप से व्यावसायिक यौन शोषण के लिये तस्करी को रोकने के उद्देश्य से प्राथमिक कानून के रूप में कार्य करता है।
    • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012: 14 नवंबर, 2012 को अधिनियमित यह अधिनियम बच्चों को यौन दुर्व्यवहार व शोषण से सुरक्षित करने हेतु समर्पित है। 
      • इसमें यौन शोषण के विभिन्न रूपों को स्पष्ट तौर पर परिभाषित किया गया है, जिसमें पेनीट्रेटिभ और नॉन-पेनीट्रेटिभ मामलों के साथ-साथ यौन उत्पीड़न भी शामिल है।
    • अन्य विशिष्ट कानून: महिलाओं और बच्चों की तस्करी से संबंधित मामलों की रोकथाम के लिये कई अन्य कानून बनाए गए हैं, जिनमें बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006, बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 1986 शामिल हैं। मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 और भारतीय दंड संहिता की प्रासंगिक 372 व 373 जैसी धाराएँ वेश्यावृत्ति के लिये लड़कियों की बिक्री तथा खरीद संबंधी मामलों का निपटान करती हैं।
    • राज्य-विशिष्ट विधान: राज्यों में भी मानव तस्करी के निपटान के लिये विशिष्ट कानून बनाए गए हैं। उदाहरण के लिये; पंजाब मानव तस्करी रोकथाम अधिनियम, 2012
  • संबंधित अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय:
    • संयुक्त राष्ट्र अभिसमय: भारत ने अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UN Convention on Transnational Organized Crime- UNCTOC) की पुष्टि की है जिसमें विशेष रूप से व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की तस्करी की रोकथाम, शोषण एवं सज़ा से संबंधित प्रोटोकॉल शामिल हैं।
      • विधायी कार्रवाई: उपर्युक्त प्रोटोकॉल के प्रावधानों के साथ संरेखित करने के लिये आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 को अधिनियमित किया गया था, यह मानव तस्करी को सटीकता से परिभाषित करता है।
    • तस्करी पर SAARC अभिसमय: वेश्यावृत्ति के उद्देश्य महिलाओं और बच्चों की तस्करी की रोकथाम तथा निपटान के लिये भारत ने SAARC अभिसमय पर हस्ताक्षर किया है।
    • महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women- CEDAW): इसे महिलाओं के अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय विधेयक के रूप में भी जाना जाता है। इसे वर्ष 1979 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा अपनाया गया था।
      • भारत द्वारा वर्ष 1993 में CEDAW का अनुमोदन किया गया था।

मानव तस्करी के प्रमुख कारण और प्रभाव क्या हैं? 

  • कारण:
    • निर्धनता और आर्थिक असमानताएँ: मनुष्य की आर्थिक कठिनाइयाँ उसे विभिन्न परिस्थितियों के प्रति सुभेद्य बनाती हैं, जिससे वह बेहतर अवसरों के वादों के प्रति संवेदनशील हो जाता है, ऐसे में तस्करी से जुड़े लोग इसका लाभ उठाते हैं।
    • शिक्षा और जागरूकता का अभाव: तस्करी के जोखिमों के बारे में शिक्षा और जागरूकता की सीमितता के कारण व्यक्ति तस्करों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति से अनजान होता है तथा आसानी से उनके प्रलोभनों की ओर आकर्षित हो जाता है।
    • संघर्ष, अस्थिरता और विस्थापन: देश में अथवा दूसरे देशों के साथ होने वाले संघर्ष, राजनीतिक अस्थिरता अथवा प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों के ऐसे लोग जो कहीं और शरण या स्थिरता की तलाश कर रहे होते हैं, इस प्रकार के शोषण का शिकार होते हैं।
    • सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव: महिलाओं, बच्चों, प्रवासियों और अल्पसंख्यकों सहित सामाजिक तौर पर बहिष्कृत समूह अक्सर सामाजिक भेदभाव तथा संरचनागत समर्थन की कमी के कारण अधिक असुरक्षित होते हैं।
    • सस्ते श्रम और सेवाओं की मांग: कम लागत वाले श्रम अथवा सेवाओं की तलाश करने वाले उद्योग कभी-कभी शोषणकारी प्रथाओं को अनदेखा कर देते हैं, जिससे श्रम शोषण की प्रथा बनी रहती है।
    • ऑनलाइन शोषण और प्रौद्योगिकी: तकनीकी प्रगति के कारण ऑनलाइन भर्ती की प्रक्रिया सुविधाजनक हो गयी है, साथ ही इसने तस्करों के लिये विभिन्न भ्रामक तरीकों से पीड़ितों को लुभाना आसान बना दिया है।
  • प्रभाव:
    • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: इसके पीड़ितों पर गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव देखे जा सकते हैं, जिसमें अवसाद, चिंता व विश्वासघात की भावना शामिल है, ये सभी दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देती हैं।
    • शारीरिक स्वास्थ्य जटिलताएँ: पीड़ितों को अक्सर शारीरिक शोषण, उपेक्षा और अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल का सामना करना पड़ता है, जिससे विभिन्न स्वास्थ्य जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • स्वतंत्रता और अधिकारों की क्षति: तस्करी से पीड़ित व्यक्ति अपनी स्वायत्तता और मूल मानवाधिकारों से वंचित होता है और निरंतर भय में रहता हैं।
    • सामाजिक कलंक की भावना और अलगाव: जीवित बचे लोगों को सामाजिक कलंक की भावना और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, ऐसे में शोषण से बच जाने के बाद भी समाज एक नई चुनौती प्रस्तुत करता है।
    • वैश्विक परिणाम: मानव तस्करी आपराधिक नेटवर्क के वैश्विक विस्तार को बढ़ावा देती है, जो देशों के सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करती है तथा मानवाधिकार के सुदृढ़ीकरण के प्रयासों को कमज़ोर करती है।

आगे की राह

  • शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से रोकथाम: समुदायों, विशेष रूप से कमज़ोर समूहों को तस्करों के जोखिमों और रणनीति के बारे में सूचित व जागरूक करने के लिये व्यापक शिक्षा कार्यक्रयों का क्रियान्वयन आवश्यक है।
    • तस्करी के प्रति सतर्कता को बढ़ावा देने और व्यक्तियों में इसकी समझ में वृद्धि करने तथा इसके बारे में रिपोर्ट करने के लिये सशक्त बनाने हेतु विभिन्न अभियानों, कार्यशालाओं व मीडिया के माध्यम से जागरूक किया जाना चाहिये।
  • कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना: पीड़ितों को बेहतर सुरक्षा और तस्करों के लिये कठोर दंड का प्रावधान करने के लिये कानूनी ढाँचे को मज़बूत बनाते हुए मौजूदा कानूनों को अधिक प्रभावी बनाना एवं आवश्यक सुधार किया जाना आवश्यक है।
    • तस्करी के निपटान और पीड़ित मामलों के संवेदनपूर्वक प्रबंधन के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों को पर्याप्त संसाधन व प्रशिक्षण प्रदान किये जाना चाहिये।
  • पीड़ितों के लिये सहायता और पुनर्वास: बचे हुए लोगों के लिये आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल, परामर्श और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने वाली व्यापक पीड़ित-केंद्रित सहायता प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये।
    • पुन:एकीकरण कार्यक्रम की सहायता से बचे लोगों को अपने जीवन को पुनर्व्यवस्थित करने और बिना किसी कलंक के समाज का हिस्सा बनने मदद करना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सहयोग: सीमा पार सहयोग के लिये सूचना, खुफिया जानकारी और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिये देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
    • मानव तस्करी के निपटान के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और प्रोटोकॉल को अनुमोदित एवं कार्यान्वित करना।
  • मूल कारणों पर ध्यान केंद्रित करना: समाज के कमज़ोर व सुभेद्य लोगों के लिये आजीविका के स्थायी  अवसर के निर्माण और आर्थिक सशक्तीकरण कार्यक्रम तैयार करके गरीबी व आर्थिक असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
    • समावेशिता, समानता एवं सामाजिक समर्थन संरचनाओं को बढ़ावा देकर सामाजिक भेदभाव व बहिष्कार का निपटान किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. संसार के दो सबसे बड़े अवैध अफ़ीम उगाने वाले राज्यों से भारत की निकटता ने हार्ट की आतंरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन विदेश भेजने और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या प्रतिरोधी उपाय किये जाने चाहिये। (2018)

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