जैव विविधता और पर्यावरण
अंतरसरकारी वार्ता समिति का चौथा सत्र
- 02 May 2024
- 20 min read
प्रिलिम्स के लिये:अंतरसरकारी वार्ता समिति (INC-4), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एजेंसी, प्लास्टिक, कार्बन उत्सर्जन, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व मेन्स के लिये:अंतरसरकारी वार्ता समिति, एकल-उपयोग प्लास्टिक और संबंधित चिंताएँ, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, संरक्षण। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एजेंसी (UNEA) की अंतरसरकारी वार्ता समिति (INC-4) का चौथा सत्र कनाडा के ओटावा में आयोजित किया गया, जिसमें 170 से अधिक सदस्य देशों की भागीदारी हुई।
- यह सत्र UNEA के तहत 2024 के अंत तक प्लास्टिक प्रदूषण पर कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि करने के लिये चल रही वार्ता का हिस्सा है।
- वैश्विक प्लास्टिक संधि के लिये INC-4 किसी समझौते पर पहुँचने में विफल रहा। वार्ताकारों का लक्ष्य 2024 के अंत तक INC-5 में आम सहमति तक पहुँचना है, जो नवंबर 2024 में दक्षिण कोरिया में होने वाली है।
अंतरसरकारी वार्ता समिति (INC):
- INC प्लास्टिक प्रदूषण पर एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता विकसित करने के लिये मार्च 2022 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा स्थापित एक समिति है।
- INC का अधिदेश एक ऐसा उपकरण विकसित करना है जो समुद्री पर्यावरण सहित प्लास्टिक के संपूर्ण जीवन चक्र को संबोधित करता है और इसमें स्वैच्छिक और बाध्यकारी दोनों दृष्टिकोण शामिल हो सकते हैं।
- INC-1 की शुरुआत नवंबर 2022 में पुंटा डेल एस्टे, उरुग्वे में हुई। INC-2, मई-जून 2023 में पेरिस, फ्राँस में हुआ। INC-3 दिसंबर, 2023 में नैरोबी में संयोजित की गई।
वैश्विक प्लास्टिक संधि की आवश्यकता क्यों है?
- प्लास्टिक उत्पादन का तीव्र विस्तार:
- 1950 के दशक के बाद से, विश्व में प्लास्टिक का उत्पादन काफी बढ़ गया है। यह वर्ष 1950 में केवल 2 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2019 में 450 मिलियन टन से अधिक हो गया।
- यदि अनियंत्रित छोड़ दिया गया, तो उत्पादन वर्ष 2050 तक दोगुना और वर्ष 2060 तक तीन गुना हो जाएगा।
- 1950 के दशक के बाद से, विश्व में प्लास्टिक का उत्पादन काफी बढ़ गया है। यह वर्ष 1950 में केवल 2 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2019 में 450 मिलियन टन से अधिक हो गया।
- प्लास्टिक अपशिष्ट और भार:
- हालाँकि प्लास्टिक एक सस्ती और बहुपयोगी सामग्री है, जिसके कई प्रकार के अनुप्रयोग हैं, लेकिन इसके व्यापक उपयोग ने पर्यावरणीय संकट उत्पन्न कर दिया है।
- वर्ष 2023 में द लैंसेट द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, प्लास्टिक को विघटित होने में 20 से 500 साल तक का समय लगता है, और अब तक 10% से भी कम का पुनर्चक्रण किया गया है जिससे शेष लगभग 6 बिलियन टन के कारण वर्तमान में पृथ्वी के प्रदूषण स्तर में वृद्धि हुई है।
- विश्व में सालाना लगभग 400 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है, वर्ष 2024 और 2050 के मध्य यह आँकड़ा 62% तक बढ़ने की उम्मीद है।
- इस प्लास्टिक अपशिष्ट का अधिकांश भाग पर्यावरण में, विशेषकर नदियों और महासागरों में बह जाता है, जहाँ यह छोटे कणों (माइक्रोप्लास्टिक या नैनोप्लास्टिक) में विघटित हो जाता है।
- इनमें 16,000 से अधिक रसायन होते हैं जो पारिस्थितिक तंत्र और मनुष्यों सहित जीवित जीवों को हानि पहुँचा सकते हैं, ये रसायन शरीर के हार्मोन सिस्टम खराब करने, कैंसर, मधुमेह, प्रजनन संबंधी विकार आदि का कारण बनने के लिये प्रभावी होते हैं।
- हालाँकि प्लास्टिक एक सस्ती और बहुपयोगी सामग्री है, जिसके कई प्रकार के अनुप्रयोग हैं, लेकिन इसके व्यापक उपयोग ने पर्यावरणीय संकट उत्पन्न कर दिया है।
- जलवायु परिवर्तन:
- प्लास्टिक उत्पादन और निपटान भी जलवायु परिवर्तन में योगदान दे रहे हैं। ऑर्गनाइज़ेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में प्लास्टिक ने 1.8 बिलियन टन GHG उत्सर्जन (वैश्विक उत्सर्जन का 3.4%) किया।
- इनमें से लगभग 90% उत्सर्जन प्लास्टिक उत्पादन से आता है, जो कच्चे माल के रूप में जीवाश्म ईंधन का उपयोग करता है। यदि ऐसा ही जारी रहता है, तो वर्ष 2050 तक उत्सर्जन 20% तक बढ़ सकता है।
- प्लास्टिक उत्पादन और निपटान भी जलवायु परिवर्तन में योगदान दे रहे हैं। ऑर्गनाइज़ेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में प्लास्टिक ने 1.8 बिलियन टन GHG उत्सर्जन (वैश्विक उत्सर्जन का 3.4%) किया।
वैश्विक प्लास्टिक संधि में क्या शामिल हो सकता है?
- वैश्विक उद्देश्य: संधि का उद्देश्य प्लास्टिक के कारण होने वाले समुद्री और अन्य प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण को संबोधित करना है।
- यह प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने और पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके प्रभाव का आकलन करने के लिये वैश्विक उद्देश्यों को स्थापित करने पर केंद्रित है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये दिशानिर्देश: संधि यह रेखांकित करती है कि कैसे धनी राष्ट्र अपने प्लास्टिक कटौती लक्ष्यों को प्राप्त करने में आर्थिक रूप से कमज़ोर राष्ट्रों का समर्थन कर सकते हैं।
- निषेध और लक्ष्यः इसमें उपभोक्ता वस्तुओं में पुनर्चक्रण और पुनर्नवीनीकरण सामग्री के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्यों के साथ-साथ विशिष्ट प्लास्टिक, उत्पादों एवं रासायनिक योजकों पर प्रतिबंध शामिल हो सकते हैं।
- रासायनिक परीक्षण अधिदेश: संधि के तहत सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये प्लास्टिक में मौज़ूद कुछ रसायनों के परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है।
- सुभेद्द श्रमिकों के लिये विचार: आजीविका के लिये प्लास्टिक उद्योग पर निर्भर विकासशील देशों में अपशिष्ट एकत्रित करने वालों और श्रमिकों के लिये उचित उपाय शामिल किये जा सकते हैं।
- प्रगति का आकलन: संधि में प्लास्टिक प्रदूषण कटौती उपायों को लागू करने में सदस्य राज्यों की प्रगति का आकलन करने के प्रावधान शामिल होंगे।
- नियमित मूल्यांकन से जवाबदेही सुनिश्चित होगी और प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के वैश्विक प्रयासों में निरंतर सुधार होगा।
संधि को आगे बढ़ाने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- तेल और गैस दिग्गज़ों से प्रतिरोधः
- कुछ प्रमुख तेल एवं गैस उत्पादक राष्ट्र, जीवाश्म ईंधन और रासायनिक उद्योग समूहों के साथ संधि के उद्देश्य को पूरी तरह से प्लास्टिक कचरे तथा पुनर्चक्रण पर सीमित करने का लक्ष्य रखते हैं।
- ध्रुवीकरण वार्ताएँः
- नवंबर 2022 में उरुग्वे में उद्घाटन वार्ता के बाद से, सऊदी अरब, रूस और ईरान जैसे तेल उत्पादक देशों ने उत्पादक चर्चाओं में बाधा डालने के लिये प्रक्रियात्मक विवादों जैसे विभिन्न विलंब रणनीति का सहारा लेते हुए प्लास्टिक उत्पादन सीमा का कड़ा विरोध किया है।
- संधि के लिये निर्णय लेने की प्रक्रिया विवादास्पद बनी हुई है, राष्ट्रों अभी भी इस बात पर सहमत नहीं हैं कि सर्वसम्मति या बहुमत मतदान से इसे अपनाने का निर्धारण किया जाना चाहिये अथवा नहीं।
- उच्च-महत्त्वाकांक्षा गठबंधन बनाम अमेरिकी रुखः
- "प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिये उच्च महत्त्वाकांक्षा गठबंधन (HAC)", जिसमें अफ्रीकी राष्ट्रों और अधिकांश यूरोपीय संघ सहित लगभग 65 राष्ट्र शामिल हैं, 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने तथा समस्याग्रस्त एकल-उपयोग प्लास्टिक एवं हानिकारक रासायनिक योजकों को समाप्त करने जैसे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों की वकालत करता है।
- यद्यपि अमेरिका 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने की इच्छा व्यक्त कर रहा है, लेकिन इसका दृष्टिकोण बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं के बजाय स्वैच्छिक उपायों को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण से अलग है।
- "प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिये उच्च महत्त्वाकांक्षा गठबंधन (HAC)", जिसमें अफ्रीकी राष्ट्रों और अधिकांश यूरोपीय संघ सहित लगभग 65 राष्ट्र शामिल हैं, 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने तथा समस्याग्रस्त एकल-उपयोग प्लास्टिक एवं हानिकारक रासायनिक योजकों को समाप्त करने जैसे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों की वकालत करता है।
- औद्योगिक हितों का प्रभावः
- जीवाश्म ईंधन और रासायनिक संगठन सक्रिय रूप से संधि की प्रभावशीलता को कम करने के लिये काम कर रहे हैं, जैसा कि पैरवीकारों की रिकॉर्ड संख्या से पता चलता है।
- ये उद्योग, जो जीवाश्म ईंधन से प्राप्त प्लास्टिक से अत्यधिक लाभ अर्जित करते हैं, उत्पादन में कटौती का विरोध करते हैं और प्लास्टिक उत्पादन की मूलभूत समस्या को स्वीकार करने के बजाय यह झूठा दावा करते हैं कि प्लास्टिक संकट पूरी तरह से अपशिष्ट प्रबंधन का मुद्दा है।
- जीवाश्म ईंधन और रासायनिक संगठन सक्रिय रूप से संधि की प्रभावशीलता को कम करने के लिये काम कर रहे हैं, जैसा कि पैरवीकारों की रिकॉर्ड संख्या से पता चलता है।
INC-4 पर भारत का दृष्टिकोण क्या है?
- प्रस्तावना और उद्देश्य:
- भारत ने " सतत् विकास के लिये राज्यों के संप्रभु अधिकारों" की पुनः पुष्टि के लिये प्रस्तावना की वकालत की।
- प्रस्तावित उद्देश्य " सतत् विकास सुनिश्चित करते हुए समुद्री वातावरण सहित प्लास्टिक प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा करना" है।
- भारत ने समानता, सतत् विकास और सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों जैसे सिद्धांतों को शामिल करने पर ज़ोर दिया।
- हालाँकि, सूची में मौलिक मानवाधिकार सिद्धांत शामिल नहीं हैं, जैसे स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार और सूचना तक पहुँचने का अधिकार।
- भारत ने " सतत् विकास के लिये राज्यों के संप्रभु अधिकारों" की पुनः पुष्टि के लिये प्रस्तावना की वकालत की।
- प्लास्टिक उत्पादन पर प्रतिबंध:
- भारत प्राथमिक प्लास्टिक पॉलिमर या वर्जिन प्लास्टिक पर किसी भी सीमा का विरोध करता है, यह तर्क देते हुए कि उत्पादन में कटौती UNEA संकल्प 5/14 के दायरे से अधिक है।
- भारत इस बात पर प्रकाश डालता है कि प्लास्टिक निर्माण में उपयोग किये जाने वाले कुछ रसायन पहले से ही विभिन्न सम्मेलनों के तहत निषेध या विनियमन के अधीन हैं।
- भारत प्राथमिक प्लास्टिक पॉलिमर या वर्जिन प्लास्टिक पर किसी भी सीमा का विरोध करता है, यह तर्क देते हुए कि उत्पादन में कटौती UNEA संकल्प 5/14 के दायरे से अधिक है।
- रसायन और पॉलिमर संबंधी व्यापार
- भारत रसायनों के संबंध में निर्णय लेने के लिये वैज्ञानिक साक्ष्य द्वारा सूचित पारदर्शी और समावेशी प्रक्रिया की वकालत करता है।
- मध्यधारा उपाय:
- उत्पाद की आयु बढ़ाने के लिये बेहतर डिज़ाइन का समर्थन करते हुए टिकाऊ और कुशल प्लास्टिक उपयोग की भूमिका पर ज़ोर दिया गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखलाओं के अतिरिक्त, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) जैसे निम्नधारा उपायों के लिये राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- उत्सर्जन और विमोचन:
- भारत विनिर्माण या पुनर्चक्रण के समय उत्सर्जन और अपशिष्टों के अतिरिक्त, पर्यावरण में प्लास्टिक कचरे के रिसाव को समाप्त करने को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
- अपशिष्ट प्रबंधन को प्राथमिकता देना:
- विनिर्माण और पुनर्चक्रण चरणों के समय हुए उत्सर्जन के अतिरिक्त, हस्तक्षेप के प्राथमिक क्षेत्र के रूप में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को प्राथमिकता देने का समर्थन।
- भारत, व्यापार एवं वित्तपोषण जैसे उलझे हुये मुद्दों के विषय में चिंता व्यक्त करता है, साथ ही प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ-साथ व्यापक वित्तीय और तकनीकी सहायता पर ज़ोर देता है।
प्लास्टिक से संबंधित पहल कौन-सी हैं?
- वैश्विक:
- UNEP प्लास्टिक पहल:
- इसका उद्देश्य प्लास्टिक के प्रवाह को कम करके और एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तन को बढ़ावा देकर वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना है।
- यह प्लास्टिक के नवाचार, कटौती और पुन: उपयोग पर केंद्रित है। इसके लक्ष्यों में इस समस्या के आकार को कम करना, प्लास्टिक पुनर्चक्रण के लिये डिज़ाइन करना, पुनर्चक्रण को व्यवहार में लाना तथा प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन करना शामिल है।
- वर्ष 2027 तक, इस पहल का लक्ष्य 45 देशों में प्लास्टिक नीतियों में सुधार करना, 500 निजी क्षेत्र के कर्मियों को पुनर्चक्रण समाधानों में सम्मिलित करना तथा इस परिवर्तन का सहयोग करने के लिये 50 वित्तीय संस्थानों को सम्मिलित करना है।
- वैश्विक पर्यटन प्लास्टिक पहल:
- इसका उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण से बचने के लिये पर्यटन हितधारकों को एकजुट करना है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) के नेतृत्व में यह पहल प्लास्टिक कचरे को कम करने और उनके संचालन में प्लास्टिक के उपयोग में सुधार करने में संगठनों का समर्थन करती है।
- यह वर्ष 2025 तक इस पहल को निजी क्षेत्र, पर्यटन स्थलों तथा संगठनों में लागू करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- सर्कुलर प्लास्टिक इकोनॉमी:
- 2015 में, EU ने एक सर्कुलर इकोनॉमी एक्शन प्लान बनाया, जिसमें बाद में एक सर्कुलर इकोनॉमी में प्लास्टिक प्रबंधन के लिये यूरोपीय रणनीति शामिल थी।
- यह पहल प्लास्टिक उत्पादों के पुन: उपयोग की अधिक उपयोगी विधि बनाकर तथा एकल-प्रयोग प्लास्टिक से हटकर प्लास्टिक कचरे की मात्रा को सीमित करने में सहायता करता है।
- 2015 में, EU ने एक सर्कुलर इकोनॉमी एक्शन प्लान बनाया, जिसमें बाद में एक सर्कुलर इकोनॉमी में प्लास्टिक प्रबंधन के लिये यूरोपीय रणनीति शामिल थी।
- प्लास्टिक पर प्रतिबंध:
- कई देशों ने प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लागू कर दिया है।
- वर्ष 2002 में बांग्लादेश पतली प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश था।
- चीन ने वर्ष 2020 में चरणबद्ध कार्यान्वयन के साथ प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लागू किया।
- अमेरिका में 12 राज्यों ने एकल-उपयोग प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- यूरोपीय संघ ने जुलाई 2021 में एकल-उपयोग प्लास्टिक पर निर्देश लागू किया, जो कुछ एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाता है जिसके लिये कई विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें प्लेट, कटलरी, स्ट्रॉ, बैलून स्टिक, कॉटन बड्स, विस्तारित पॉलीस्टाइन कंटेनर और ऑक्सो-डिग्रेडेबल प्लास्टिक उत्पाद शामिल हैं।
- कई देशों ने प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लागू कर दिया है।
- UNEP प्लास्टिक पहल:
- भारत:
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024
- प्लास्टिक निर्माण और उपयोग (संशोधन) नियम (2003)
- UNDP भारत का प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्यक्रम (2018-2024)
- प्राकृत पहल
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा EPR पोर्टल
- भारत प्लास्टिक समझौता
- प्रोजेक्ट रीप्लान
- स्वच्छ भारत मिशन
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में UNEP प्लास्टिक इनिशिएटिव और सर्कुलर प्लास्टिक इकोनॉमी जैसी मौजूदा वैश्विक पहलों की प्रभावशीलता का आकलन कीजिये, उनकी मज़बूती तथा सीमाओं पर प्रकाश डालिये। |
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