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जैव विविधता और पर्यावरण

इंडिया प्लास्टिक पैक्ट

  • 10 Aug 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

इंडिया प्लास्टिक पैक्ट, भारतीय उद्योग परिसंघ, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर, स्वच्छ भारत अभियान

मेन्स के लिये:

इंडिया प्लास्टिक पैक्ट एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

इंडिया प्लास्टिक पैक्ट, भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के सहयोग से एशिया में पहली बार सितंबर में लॉन्च किया जाएगा।

  • हाल ही में प्लास्टिक सर्कुलर गैप को बंद करने पर प्रकाशित एक रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन हेतु बड़े पैमाने पर वैश्विक हस्तक्षेप करने की सख्त आवश्यकता है।

प्लास्टिक पैक्ट:

  • प्लास्टिक समझौते, व्यवसाय के नेतृत्त्व वाली पहलें हैं और सभी प्रारूपों एवं उत्पादों के लिये प्लास्टिक पैकेजिंग मूल्य शृंखला को बदलते हैं।
  • समझौते व्यावहारिक समाधानों को लागू करने के लिये प्लास्टिक मूल्यशृंखला से संबंधित सभी लोगों को एक साथ लाते हैं।
  • सभी समझौतों के चार साझा लक्ष्य हैं:
    • रिडिज़ाइन और इनोवेशन के ज़रिये अनावश्यक और समस्याग्रस्त प्लास्टिक पैकेजिंग को खत्म करना;
    • यह सुनिश्चित करना कि सभी प्लास्टिक पैकेजिंग पुन: प्रयोज्य हों,
    • प्लास्टिक पैकेजिंग के पुन: उपयोग, संग्रह और पुनर्चक्रण को बढ़ाना,
    • प्लास्टिक पैकेजिंग में पुनर्नवीनीकरण सामग्री को बढ़ाना।
  • पहला प्लास्टिक समझौता वर्ष 2018 में यूके में लॉन्च किया गया था।

प्रमुख बिंदु

परिचय:

  • इंडिया प्लास्टिक पैक्ट एक महत्त्वाकांक्षी, सहयोगात्मक पहल है जिसका उद्देश्य संपूर्ण मूल्य शृंखला में व्यवसायों, सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों को एक साथ लाना है ताकि प्लास्टिक को कम करने के लिये समयबद्ध प्रतिबद्धताएँ निर्धारित की जा सकें।
  • जब इंडिया प्लास्टिक पैक्ट भारत में सक्रिय होगा तो यह विश्व स्तर पर अन्य प्लास्टिक संधियों के साथ जुड़ जाएगा।
  • यह समझौता मार्गदर्शन हेतु एक रोडमैप विकसित करेगा, जिसके आधार पर सदस्यों के साथ मिलकर एक्शन ग्रुप बनाया जाएगा और इनोवेशन प्रोजेक्ट शुरू होगा।
    • इसके तहत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों और वार्षिक डेटा रिपोर्टिंग के माध्यम से सदस्यों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है।
  • इंडिया प्लास्टिक पैक्ट का विज़न, लक्ष्य और महत्त्वाकांक्षा ‘एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन’ की ‘न्यू प्लास्टिक इकाॅनमी’ के ‘सर्कुलर इकाॅनमी’ सिद्धांतों के अनुरूप है।

लक्ष्य:

  • संधि का उद्देश्य वर्तमान रैखिक प्लास्टिक प्रणाली को एक सर्कुलर प्लास्टिक अर्थव्यवस्था में बदलना है, अन्य उद्देश्य हैं:
    • समस्याग्रस्त प्लास्टिक का उपयोग कम करना,
    • अन्य उत्पादों में उपयोग के लिये अर्थव्यवस्था में मूल्यवान सामग्री को बनाए रखना,
    • भारत में प्लास्टिक प्रणाली में रोज़गार, निवेश और अवसर पैदा करना।
  • इसका उद्देश्य सार्वजनिक-निजी सहयोग को बढ़ावा देना है जो प्लास्टिक को खत्म करने वाले समाधानों को सक्षम बनाता है, पैकेजिंग डिज़ाइन में नवाचार लाता है और हमारे द्वारा उपयोग किये जाने वाले प्लास्टिक मूल्यों को ग्रहण करता है।

प्लास्टिक समझौते की आवश्यकता:

  • भारतीय परिदृश्य:
    • भारत वार्षिक तौर पर 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है।
    • 40% प्लास्टिक कचरा बिना संग्रहण के चला जाता है।
    • भारत में उत्पादित सभी प्लास्टिक का 43% पैकेजिंग के लिये उपयोग किया जाता है, उनमें से अधिकांश का एकल उपयोग होता  है।
    • हालाँकि आजीविका के दृष्टिकोण से देखा जाए तो उपभोक्ता के बाद के अलगाव, प्लास्टिक का संग्रह और निपटान भारत में 1.5-4 मिलियन कचरा बीनने वालों की आय का लगभग आधा है।
  • वैश्विक परिदृश्य:
    • अगले 20 वर्षों में वैश्विक स्तर पर 7.7 बिलियन मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक कचरे के कुप्रबंधन की संभावना है, जो मानव आबादी के वज़न के 16 गुना के बराबर है।
      • प्लास्टिक के कई अनुप्रयोगों में प्लास्टिक पैकेजिंग सबसे बड़ा है।
    • सेंटर फॉर इंटरनेशनल एन्वायरनमेंटल लॉ ( Center for International Environmental Law) की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2050 तक प्लास्टिक से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 56 गीगाटन से अधिक हो सकता है, शेष कार्बन बजट का 10-13%।

 अपेक्षित परिणाम:

  • इसके चलते पुनर्नवीनीकरण सामग्री की मांग को बढ़ावा देने, पुनर्चक्रण बुनियादी ढाँचे में निवेश, अपशिष्ट क्षेत्र में नौकरियों और उससे अधिक की उम्मीद की जा सकती है।
  • यह फ्रेमवर्क सरकार के विस्‍तारित उत्‍पादक जवाबदेहिता ढाँचे का समर्थन करेगा और स्वच्छ भारत अभियान में परिकल्पित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करेगा।
  • समझौते के फ्रेमवर्क का अभिन्न अंग अनौपचारिक अपशिष्ट क्षेत्र की भागीदारी है जो उपभोक्ता के बाद के अलगाव, प्लास्टिक कचरे के संग्रह और प्रसंस्करण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • समाज और अर्थव्यवस्था को लाभ के अलावा, लक्ष्यों को पूरा करने से प्लास्टिक के पुर्नचक्रण में वृद्धि होगी और प्रदूषण से निपटने में मदद मिलेगी।
  • वे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी करेंगे।

चक्रीय अर्थव्यवस्था

  • चक्रीय अर्थव्यवस्था उत्पादन और उपभोग का वह मॉडल है, जिसमें यथासंभव वर्तमान सामग्रियों और उत्पादों को साझा करना, पट्टे पर देना, पुन: उपयोग करना, मरम्मत करना, नवीनीकरण और पुनर्चक्रण करना शामिल है। इस प्रकार उत्पादों का जीवन चक्र बढ़ाया जाता है।
  • व्यावहारिक रूप में इसका तात्पर्य कचरे को न्यूनतम करना है। जब कोई उत्पाद अपने जीवन के अंत तक पहुँच जाता है, तो उसकी सामग्री को जहाँ भी संभव हो अर्थव्यवस्था के भीतर रखा जाता है। इन्हें बार-बार उत्पादक द्वारा उपयोग किया जा सकता है, जिससे आगे मूल्य अर्जित किया जा सके।

एलेन मैकआर्थर (Ellen MacArthur) फाउंडेशन की नई प्लास्टिक अर्थव्यवस्था का सिद्धांत:

  • यह तीन सिद्धांतों पर आधारित है:
    • कचरे और प्रदूषण को डिज़ाइन करें।
    • उत्पादों और सामग्रियों को उपयोग में रखें।
    • प्राकृतिक प्रणालियों को पुनर्जीवित करें।

स्रोत : द हिंदू

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