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जैव विविधता और पर्यावरण

गंगा डॉल्फिन

  • 11 Oct 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

गंगा डॉल्फिन, यह कहाँ पाई जाती है, कितने प्रकार की होती है आदि और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया

मुख्य परीक्षा के लिये:

पर्यावरण संरक्षण, डॉल्फिन के लिये खतरे के कारण, संरक्षण के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर प्रदेश वन विभाग के सहयोग से वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (World Wide Fund for Nature-India) द्वारा गंगा डॉल्फिन की वार्षिक जनगणना शुरू की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • इस गणना को ऊपरी गंगा के लगभग 250 किलोमीटर तक के क्षेत्र यानी हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य और नारायण रामसर साइट के बीच बिजनौर से शुरू किया गया।
  • डॉल्फिन की गणना के लिये प्रत्येक वर्ष जहाँ प्रत्यक्ष गणना पद्धति (Direct Counting Method) का उपयोग किया जाता था, वहीं इस वर्ष अग्रानुक्रम नाव सर्वेक्षण (Tandem Boat Survey) पद्धति का उपयोग किया जा रहा है।
    • इस पद्धति से लुप्तप्राय प्रजातियों की अधिक सटीक गणना हो सकेगी।

गंगा नदी डॉल्फिन

  • गंगा डॉल्फिन गंगा-ब्रह्मपुत्र-सिंधु-मेघना नदी अपवाह तंत्र जिसमे भारत, नेपाल और बांग्लादेश शामिल हैं में पाई जाती है।
  • भारत में ये असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल राज्यों में पाई जाती है।
  • गंगा, चम्बल, घाघरा, गण्डक, सोन, कोसी, ब्रह्मपुत्र इनकी पसंदीदा अधिवास नदियाँ हैं।
  • अलग-अलग स्थानों पर सामान्यतः इसे गंगा नदी डॉल्फ़िन, ब्लाइंड डॉल्फ़िन, गंगा ससु, हिहु, साइड-स्विमिंग डॉल्फिन, दक्षिण एशियाई नदी डॉल्फिन, आदि नामों से जाना जाता है।
  • इसका वैज्ञानिक नाम प्लैटनिस्टा गैंगेटिका (Platanista gangetica) है।
  • भारत सरकार ने इसे भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया है।
  • यह CITES के परिशिष्ट 1 में सूचीबद्ध है तथा IUCN की लुप्तप्राय (Endangered) सूची में शामिल है।

वर्ल्ड वाइल्डलाईफ फंड

  • वर्ल्ड वाइल्डलाईफ फंड फॉर नेचर एक अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है।
  • इसका स्थापना वर्ष 1961 में स्विट्ज़रलैंड में एक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में हुई थी।
  • यह विश्व का सबसे बड़ा स्वतंत्र संगठन है जो पर्यावरण के संरक्षण शोध एवं पुनर्स्थापना के लिये कार्य करता है।
  • भारत में भी वर्ल्ड वाइल्डलाईफ फंड इंडिया (World WildLife Fund india) कार्यरत है।

डॉल्फिन के लिये खतरे

  • जल प्रदूषण के रूप में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक, औद्योगिक प्रदूषण, मछली पकड़ने वाले जाल, नदियों में गाद का जमा होना, तेल प्राप्त करने के लिये इनका शिकार करना, आदि इनकी उपस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक है।
  • नदियों पर बने बैराज और बांधों की संख्या में वृद्धि भी इनकी वृद्धि को प्रभावित कर रही है क्योंकि ये संरचनाएँ पानी के प्रवाह को बाधित करती हैं।

सरंक्षण के प्रयास

  • गुवाहाटी शहरी प्रशासन द्वारा इसे शहर पशु घोषित किया गया है।
  • बिहार के भागलपुर ज़िले में स्थित विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन अभयारण्य को लुप्तप्राय गंगेटिक डॉल्फ़िन के लिये संरक्षित क्षेत्र के रूप में नामित किया गया था।
  • कई संगठन इन्हें फिर से इनके स्वच्छ आवास क्षेत्र में बसाने के लिये नदियों का विकल्प तैयार कर रहें हैं जिनमे इन्हें प्रतिस्थापित करके इन्हें प्रदूषण से बचाया जा सके।
  • वर्ल्ड वाइल्डलाईफ फंड (World WildLife Fund) द्वारा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में डॉल्फिन संरक्षण एवं उनके आवास में उन्हे फिर से प्रतिस्थापित करने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

CITES (वन्यजीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन)

  • CITES (The Convention of International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) एक अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन है।
  • इसका उद्देश्य वन्यजीवों और पौधों के प्रतिरूप को किसी भी प्रकार के खतरे से बचाना है तथा इनके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को रोकना है।

स्रोत: द हिंदू

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