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डेली न्यूज़

  • 13 Jun, 2024
  • 85 min read
शासन व्यवस्था

भारत में विकासात्मक समूह

और पढ़ें: SHG के माध्यम से महिला-सशक्तीकरण पर SBI का अध्ययनNGO का FCRA पंजीकरण रद्द करनाभारत का सहकारी क्षेत्र


भारतीय राजनीति

पंचायतों को अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

पंचायती राज संस्थाएँ (PRIs), 73वाँ संशोधन अधिनियम, 1992, ग्राम सभाएँ, पंचायत समितियाँ, जिला परिषदें, अनुच्छेद 243G, अनुच्छेद 243H, अनुच्छेद 243-I।

मेन्स के लिये:

पंचायती राज संस्थाओं का वित्तीय सशक्तीकरण, राजकोषीय विकेंद्रीकरण, अंतर-राज्यीय असमानताएँ, महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) की भूमिका

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक के एक कार्यपत्र, ‘टू हंड्रेड एंड फिफ्टी-थाउजेंड्स डेमोक्रेसीज़: अ रिव्यु ऑफ विलेज गवर्नमेंट इन इंडिया में प्रभावी स्थानीय शासन सुनिश्चित करने के लिये स्थानीय राजकोषीय क्षमता को मज़बूत करते हुए पंचायतों को विशेष अधिकार प्रदान करने का निर्णय लिया गया है।

पंचायती राज संस्थाएँ (PRI) क्या हैं?

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 
    • भारत में ग्राम शासन का इतिहास बहुत लंबा, विविधतापूर्ण और गतिशील रहा है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र, शासन पर लिखित एक ग्रंथ है जो लगभग 200 ईसा पूर्व का है, इसमें शासन की एक विकेंद्रीकृत प्रणाली का वर्णन किया गया है, जहाँ गाँवों पर गाँव के मुखिया का शासन होता था, जिन्हें ग्रामिक, ग्रामकूट या अध्यक्ष जैसे विभिन्न नामों से संबोधित किया जाता था।
    • ऋग्वेद, एक वैदिक ग्रंथ है जोकि 3,000 वर्ष से अधिक पुराना है, यह तीन प्रकार के संस्थानों अर्थात् विधाता, सभा और समिति को संदर्भित करता है, जो सभी वयस्कों की सभाएँ थीं जो अपने विचारों को आवाज़ देने तथा निर्णय लेने में भाग लेने के लिये एकत्रित होती हैं। 
  • PRI पर गांधीवादी और आंबेडकरवादी विचार:
    • डॉ. बी. आर. आंबेडकर ने भारतीय संविधान सभा में पंचायती राज के विरुद्ध प्रसिद्ध तर्क दिया। उनका कहना था कि गाँव कुछ भी नहीं हैं, बल्कि स्थानीयता का एक सिंक, अज्ञानता, संकीर्ण मानसिकता और सांप्रदायिकता का केंद्र हैं
    • हालाँकि, गांधी के लिये गाँव ही स्वतंत्र भारत के उनके विचार का आधार थे। उन्होंने प्रसिद्ध रूप से घोषणा की थी कि "भारत अपने शहरों में नहीं बल्कि इसके 700,000 गाँवों में बसता है।" 
    • गांधी ने तीन प्रमुख सिद्धांतों अर्थात् आत्मनिर्भरता एवं मितव्ययिता, विचारशील और प्रतिनिधि लोकतंत्र तथा सामुदायिक भावना के इर्द-गिर्द केंद्रित एक गाँव जीवन की कल्पना की।
  • स्वतंत्रता के बाद:
    • गाँवों के नेतृत्व वाले स्वतंत्र लोकतांत्रिक भारत के गांधीवादी विचार को स्वतंत्रता के बाद के भारत के प्रमुख निर्माताओं ने अस्वीकार कर दिया था।
    • डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा को पंचायती राज संस्थाओं को निर्देशक सिद्धांतों में गैर-अनिवार्य दिशा-निर्देशों के रूप में शामिल करने के लिये राज़ी किया, जिसमें क्षेत्रीय सरकारों द्वारा उनके निर्माण का सुझाव दिया गया था, लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं थी। 
    • 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के पारित होने के साथ ही पंचायतों को औपचारिक शक्ति का हस्तांतरण शुरू हुआ।
  • 73वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992:
    • 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्ज़ा दिया और एक समान संरचना, चुनाव, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण व पंचायती राज संस्थाओं को निधि, कार्य एवं पदाधिकारियों के हस्तांतरण की व्यवस्था स्थापित की।
    • संशोधन ने राज्यों में स्थानीय सरकार की तीन स्तरीय प्रणाली को अनिवार्य बना दिया, जिसमें गाँव (ग्राम पंचायत), मध्यवर्ती (ब्लॉक पंचायत) और ज़िला (ज़िला पंचायत) स्तर शामिल हैं।
    • प्रावधान:
      • भारत के संविधान का अनुच्छेद 243G राज्य विधानसभाओं के लिये पंचायतों को स्व-शासी संस्थानों के रूप में कार्य करने का अधिकार और शक्तियाँ प्रदान करने की शक्ति प्रदान करता है।
      • पंचायतों के वित्तीय सशक्तीकरण के लिये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243H और अनुच्छेद 243-I में प्रावधान किये गए हैं। 
      • अनुच्छेद 243H, राज्य विधानमंडलों को करों, शुल्कों एवं टोल के संग्रहण के संदर्भ में पंचायतों को अधिकृत करने की शक्ति प्रदान करता है।
      • अनुच्छेद 243-I में राज्यपाल द्वारा प्रत्येक पाँच वर्ष में राज्य वित्त आयोग के गठन का प्रावधान शामिल है।
      • पंचायती राज और पंचायती राज संस्थाओं से संबंधित सभी मामले पंचायती राज मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं। इसका गठन मई 2004 में हुआ था।

संबंधित पहल: 

  • SVAMITVA योजना: प्रत्येक ग्रामीण परिवार के स्वामी को संपत्ति के ‘स्वामित्व का रिकॉर्ड’ प्रदान कर ग्रामीण भारत की आर्थिक प्रगति को सक्षम करने के लिये राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (2020) के अवसर पर ग्रामों का सर्वेक्षण एवं ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत प्रौद्योगिकी से मानचित्रण (Survey of Villages and Mapping with Improvised Technology in Village Areas- SVAMITVA) योजना, अर्थात SVAMITVA योजना की शुरुआत की गई।
  • ई-ग्राम स्वराज ई-वित्तीय प्रबंधन प्रणाली: ई-ग्राम स्वराज, पंचायती राज संस्थाओं के लिये एक सरलीकृत कार्य आधारित लेखांकन ऐप (Simplified Work Based Accounting Application) है। 
  • परिसंपत्तियों की जियो-टैगिंग: पंचायती राज मंत्रालय ने ‘mActionSoft’ विकसित किया है, जो उन कार्यों के लिये जियो-टैग (Geo-Tags, i.e. GPS Coordinates) के साथ फोटो खींचने में सहायता करने के लिये एक मोबाइल-बेस्ड उपागम है, जिसमें आउटपुट के रूप में परिसंपत्ति प्राप्त होती है।
  • सिटीज़न चार्टर: सेवाओं के मानकों के संबंध में अपने नागरिकों के प्रति PRIs की प्रतिबद्धता पर ध्यान केंद्रित करने के लिये पंचायती राज मंत्रालय ने ‘मेरी पंचायत मेरा अधिकार - जन सेवाएँ हमारे द्वार’ के नारे के साथ सिटीज़न चार्टर दस्तावेज़ों को अपलोड करने के लिये एक मंच प्रदान किया है।

पंचायतों के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ:

  • राजकोषीय विकेंद्रीकरण: सरकार के उच्च स्तर द्वारा पंचायतों को वित्तीय शक्तियों और कार्यों का अपर्याप्त हस्तांतरण, स्वतंत्र रूप से संसाधन जुटाने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न करता है। 
    • सीमित राजकोषीय विकेंद्रीकरण स्थानीय शासन तथा सामुदायिक सशक्तीकरण को कमज़ोर बनाता है।
  • राजस्व संग्रहण की सीमित क्षमता और उपयोग: PRI के पास शुल्क एवं टोल आदि जैसे विभिन्न स्रोतों से राजस्व एकत्र करने की सीमित क्षमता, इस दिशा में एक अन्य समस्या मानी जा सकती है।
    • अव्यवस्थित नियोजन, अनुवीक्षण और जवाबदेही तंत्र के कारण इन्हें धन के कुशलतापूर्वक तथा प्रभावी प्रयोग को लेकर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • टॉप-डाउन एप्रोच: बाहरी स्रोतों से वित्तीयन पर निर्भरता के कारण पंचायती राज संस्थाओं में सरकार के उच्च स्तरों का हस्तक्षेप अधिक होता है।
  • वित्तपोषण में विलंब: कुछ क्षेत्रों से संबंधित प्रमुख योजनाओं को पर्याप्त धन न मिलने के कारण इनकी प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
    • मार्च, 2023 में ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर स्थायी समिति के अनुसार 34 में से 19 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्त वर्ष 2023 में राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान योजना के तहत कोई धनराशि प्राप्त नहीं हुई।

पंचायती राज संस्थाओं के वित्त की वर्तमान स्थिति:

  • भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की वित्तीय गतिशीलता पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट:
  • राजस्व के स्रोत: पंचायतें करों के माध्यम से राजस्व का केवल 1% अर्जित करती हैं।
    • इनके राजस्व में अधिकांश हिस्सेदारी केंद्र एवं राज्यों द्वारा दिये गए अनुदान की होती है। 
    • आँकड़ों से पता चलता है कि कुल राजस्व में 80% हिस्सेदारी केंद्र सरकार की तथा 15% राज्य सरकार की होती है।
  • राजस्व प्रति पंचायत: औसतन प्रत्येक पंचायत द्वारा अपने स्वयं के कर राजस्व से केवल 21,000 रुपए तथा गैर-कर राजस्व से 73,000 रुपए अर्जित किये जाते हैं। 
    • इसके विपरीत केंद्र सरकार से प्राप्त अनुदान प्रति पंचायत लगभग 17 लाख रुपए जबकि राज्य सरकार का अनुदान प्रति पंचायत 3.25 लाख रुपए है।
  • राज्य के राजस्व में हिस्सेदारी और अंतर-राज्य असमानताएँ: पंचायतों की हिस्सेदारी अपने राज्य के राजस्व में न्यूनतम बनी हुई हैविभिन्न राज्यों के बीच प्रति पंचायत अर्जित औसत राजस्व में व्यापक भिन्नताएँ हैं।
    • केरल और पश्चिम बंगाल क्रमशः 60 लाख रुपए और 57 लाख रुपए प्रति पंचायत के औसत राजस्व के साथ सबसे आगे हैं। जबकि आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मिज़ोरम, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में औसत राजस्व काफी कम है, जो प्रति पंचायत 6 लाख रुपए से भी कम है।

PRI के सुदृढ़ीकरण के लिये क्या कदम आवश्यक हैं?

  • विकेंद्रीकरण के स्तरों का पुनर्मूल्यांकन: तीन महत्त्वपूर्ण ‘F’ अर्थात् कार्य, वित्त और कार्यकर्त्ता (Functions, Finance, and Functionaries) पर अधिक ध्यान देने के साथ पंचायतों की शक्तियाँ कम करने के स्थान पर उन्हें अधिक अधिकार प्रदान किये जाने चाहिये।
  • राजकोषीय क्षमता में वृद्धि: शासन में सुधार के लिये, पंचायतों की राजकोषीय क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये अतिरिक्त निधि प्राप्त करने के लिये सोशल स्टॉक एक्सचेंज का उपयोग किये जा सकता है।
    • इसके अतिरिक्त उन्हें वित्त संबंधी निर्णय लेने के अधिक अधिकार प्रदान करने से उच्च-स्तर के नौकरशाहों का कार्य का भार कम होगा।
  • वार्ड सदस्यों का सशक्तीकरण: वार्ड सदस्यों (WM) के पास वित्तीय संसाधनों की कमी होती है और वे प्रायः केवल निर्णयों का समर्थन करते हैं किंतु वे ग्राम पंचायत प्रमुखों की देखरेख में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
    • निधि प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाने से पंचायत की प्रभावशीलता बढ़ सकती है क्योंकि लघु राजनीतिक इकाइयों से बेहतर विकास होता है।
  • ग्राम सभाओं का सुदृढ़ीकरण: ग्राम के प्रभावी शासन में ग्राम सभाओं की भूमिका केंद्रीय होती है। उनकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये, उन्हें अधिक से अधिक बार आयोजित किये जाने और उनकी शक्तियों का विस्तार करने की अनुशंसा की जाती है जिससे ग्राम का नियोजन तथा सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिये लाभार्थियों के चयन जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों को सुलभ किया जा सके।
  • प्रशासनिक डेटा की गुणवत्ता में सुधार: प्रशासनिक डेटा की गुणवत्ता में सुधार करने की आवश्यकता है और इसे सरल प्रारूप में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जाना चाहिये। विज़ुअलाइज़ेशन और इंटरैक्टिव डैशबोर्ड सभी समुदाय के सदस्यों द्वारा डेटा को समझने और उसका विश्लेषण करने को सुविधाजनक बना सकते हैं।
  • प्रदर्शन प्रोत्साहन और जवाबदेहिता: पंचायत के प्रदर्शन को स्कोर करने के लिये एक स्वतंत्र और विश्वसनीय प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये। प्रदर्शन के आधार पर पंचायत के निर्वाचित अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने से कार्यों के प्रति उनकी जवाबदेहिता में सुधार हो सकता है।
  • शिकायत निवारण प्रणाली: पंचायतों को उत्तरदायी बनाए रखने के लिये औपचारिक और प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है। इससे सभी नागरिक उच्च अधिकारियों को अपनी समस्याओं की रिपोर्ट करने में सक्षम हो सकते हैं।
  • महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) का एकीकरण: SHG को पंचायतों के साथ एकीकृत करना ग्राम के शासन को बेहतर बनाने और महिलाओं के हितों के अनुरूप निर्णय लेने में संतुलन बनाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपाय के रूप में देखा जाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को सुदृढ़ करने की रणनीतियों पर चर्चा कीजिये।

और पढ़ें: पंचायती राज संस्थान (PRI)

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है (2017)

(a) संघवाद का
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का
(c) प्रशासकीय प्रत्यायोजन का
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का

उत्तर: (b)


प्रश्न. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? (2015)

  1. विकास में जन-भागीदारी 
  2. राजनीतिक जवाबदेही 
  3. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण 
  4. वित्तीय संग्रहण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. आपकी राय में भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी-स्तर पर शासन परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (2022)

प्रश्न. भारत में स्थानीय शासन के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों को खोज सकती हैं? (2018)

प्रश्न. सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में 'पंचायतें' और 'समितियाँ' मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएँ बनी रही हैं न कि शासन के प्रभावी उपकरण। समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिये। (2015)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में फिनटेक अग्रणी

प्रिलिम्स के लिये:

फिनटेक उद्योग, इंटरनेट, क्रिप्टोकरेंसी, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME), जन धन योजना, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, इंडियास्टैक, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस, केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC), भारतीय रिज़र्व बैंक, डिजिटल रुपी, डिजिटल ऋण

मेन्स के लिये:

भारतीय संदर्भ में फिनटेक का महत्त्व, सरकारी पहलों द्वारा संचालित फिनटेक का विकास, फिनटेक उद्योग से संबंधित मुद्दे

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

फिनटेक कंपनियाँ, स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में उद्यमियों के लिये एक आकर्षक विकल्प बनी हुई हैं।

  • Tracxn (एक कंपनी जो निजी कंपनियों के लिये मार्केट इंटेलिजेंस डेटा प्रदान करती है) के आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 24 में स्टार्ट-अप्स में निवेश किये गए सभी इक्विटी निवेश में फिनटेक का हिस्सा वर्तमान में 15% से अधिक है।

फिनटेक क्या हैं?

  • परिचय:
    • फिनटेक, "फाइनेंशियल" और "टेक्नोलॉजी" पदों का संयोजन है, जो ऐसे व्यवसायों को संदर्भित करता है जो वित्तीय सेवाओं एवं प्रक्रियाओं को वर्द्धित अथवा स्वचालित करने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं।
  • प्रकार:
    • डिजिटल भुगतान: ये मोबाइल वॉलेट, ऑनलाइन भुगतान गेटवे और समकक्षीय/पीयर-टू-पीयर (P2P) भुगतान जैसे डिजिटल भुगतान समाधान प्रदान करते हैं। उदाहरण- फोनपे, पेटीएम आदि।
    • वैकल्पिक ऋण: इन्हें मार्केटप्लेस लेंडिंग अथवा समकक्षीय उधार (P2P लेंडिंग) भी कहा जाता है, ये लेन-देन ऑनलाइन होते हैं और उच्च-लाभ चाहने वाले निवेशकों को पारंपरिक उधारदाताओं द्वारा अनदेखा किये गए देनदारों से जोड़ते हैं। इसके उदाहरणों में लेंडिंग क्लब, प्रॉस्पर, पेपाल वर्किंग कैपिटल, गोफंडमी आदि शामिल हैं।
    • बीमा: ये स्वास्थ्य, जीवन और कार बीमा जैसे डिजिटल बीमा समाधान प्रदान करते हैं। उदाहरण- डिजिट इंश्योरेंस, पॉलिसीबाज़ार आदि।
    • इन्वेस्टमेंटटेक: ये स्टॉक ट्रेडिंग, म्यूचुअल फंड और क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग जैसे डिजिटल निवेश समाधान प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिये ज़ीरोधा, ग्रो इत्यादि।
    • इसके अन्य प्रकारों में फसल ऋण जोखिम प्रबंधन (उदाहरण: सैटश्योर), ऑनलाइन धोखाधड़ी का पता लगाना (उदाहरण: ट्यूटेलर), ऋण प्रबंधन (डैट निर्वाण) और बैंकिंग-एज़-ए-सर्विस प्लेटफॉर्म (उदाहरण: फिडपे) शामिल हैं।

भारत में फिनटेक उद्योग की क्या स्थिति है?

  • फिनटेक इकोसिस्टम: भारत फिनटेक के क्षेत्र में विश्व में अपना वर्चस्व बनाए हुए है और 155 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के संयुक्त मूल्य के साथ अमेरिका और ब्रिटेन के बाद तीसरे स्थान पर है।
    • सूनीकॉर्न (सून टू बी यूनिकॉर्न का संक्षेप) के संदर्भ में फिनटेक की हिस्सेदारी एक तिहाई है।
    • वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की पहल स्टार्टअप इंडिया के अनुसार, भारत के फिनटेक उद्योग का बाज़ार आकार वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमरीकी डॉलर होने की उम्मीद है।
  • अपनाने की उच्च दर: आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, भारत में फिनटेक कंपनियों को अपनाने की दर 87% देखी गई जबकि इसकी वैश्विक औसत दर 64% है।
  • डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना: भारत में फिनटेक कंपनियों की डिजिटल भुगतान लेन-देन में 70% की हिस्सेदारी है, जो वित्त वर्ष 2019 की तुलना में वित्त वर्ष 2022 में दो गुना वृद्धि को दर्शाती है।
  • वित्तीय समावेशन: इससे 10 मिलियन से अधिक लोगों और छोटे व्यवसायों को मोबाइल-आधारित सेवाओं तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से बचत खातों, बीमा, निवेश विकल्पों एवं ऋण सुविधाओं तक पहुँच प्राप्त हुई है।
  • ऋण प्रक्रिया का सुलभ होना: पीयर-टू-पीयर लेंडिंग प्लेटफॉर्म से ऋण सुलभ होने के साथ व्यक्तियों एवं छोटे व्यवसायों को पारंपरिक वित्तीय संस्थानों की आवश्यकता के बिना धन तक पहुँच प्राप्त हुई है।
  • लोक निवेश में वृद्धि: निवेश प्लेटफॉर्म तथा रोबो-सलाहकार, स्टॉक एवं म्यूचुअल फंड के साथ अन्य वित्तीय साधनों में निवेश को अधिक सुलभ बना रहे हैं।

फिनटेक के विकास को बढ़ावा देने से संबंधित सरकारी पहल:

  • डिजिटल आइडेंटिटी इंफ्रास्ट्रक्चर (JAM ट्रिनिटी):
    • जन धन योजना (PMJDY): विश्व के इस सबसे बड़े वित्तीय समावेशन कार्यक्रम द्वारा 450 मिलियन से अधिक लोगों को बैंक खाते उपलब्ध कराए गए हैं, जिससे फिनटेक कंपनियों के लिये इन खातों के ज़रिये स्पष्ट तौर पर नए वित्तीय उत्पाद एवं सेवाएँ जैसे कि प्रेषण, ऋण, बीमा तथा पेंशन प्रदान करने हेतु व्यापाक आधार मिला है।
    • आधार: विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार आधार के माध्यम से भारत में 570 मिलियन से अधिक वयस्कों (जो पहले बैंकिंग सेवाओं से वंचित थे) के लिये बैंक खाता खोलने में सहायता मिली है।
      • आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) द्वारा आधार कार्ड धारकों को अपने आधार नंबर और बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण (फिंगरप्रिंट या आईरिस स्कैन) का उपयोग करके वित्तीय लेन-देन में सहायता मिली है।
  • एकीकृत भुगतान इंटरफेस: UPI लेनदेन की मात्रा में प्रतिवर्ष 49% की वृद्धि देखी गई है।
    • अधिक से अधिक बैंक UPI को अपना रहे हैं और इस क्रम में इसमें शामिल बैंकों की संख्या अप्रैल 2023 के 414 से बढ़कर अप्रैल 2024 में 581 हो गई। यह UPI लेन-देन में समग्र वृद्धि का परिचायक है।
  • विनियामक सहायता एवं नवाचार:
    • वर्ष 2017 में RBI ने पीयर-टू-पीयर (P2P) ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के रूप में मान्यता दी है जिससे व्यक्तियों तथा छोटे व्यवसायों के लिये ऋण पहुँच का विस्तार हुआ है।
  • नियामक सैंडबॉक्स (RS) और फिनटेक रिपॉज़िटरी:
    • RS एक ऐसा बुनियादी ढाँचा है जो फिनटेक भागीदारों को अपने उत्पादों या समाधानों को बड़े पैमाने पर शुरू करने के क्रम में आवश्यक विनियामक अनुमोदन प्राप्त करने से पहले परीक्षण करने में मदद करता है, जिससे स्टार्ट-अप के समय एवं लागत में बचत होती है। RBI द्वारा वर्ष 2017 में एक विनियामक सैंडबॉक्स की शुरुआत की गई।
    • इसके अतिरिक्त वर्ष 2021 में शुरू किया गया फिनटेक रिपॉज़िटरी, फिनटेक कंपनियों के लिये एक केंद्रीकृत सूचना केंद्र के रूप में कार्य करने एवं पारदर्शिता को बढ़ावा देने के साथ विनियामक अनुपालन को सुव्यवस्थित करता है।
  • स्व-नियामक संगठन (SRO) की रूपरेखा:
    • वर्ष 2023 में, RBI ने उद्योग-नेतृत्व वाले स्व-नियमन की आवश्यकता के साथ उत्तरदायित्वपूर्ण विकास को प्रोत्साहित करने के लिये फिनटेक क्षेत्र में स्व-नियामक संगठनों (SRO) के लिये एक रूपरेखा निर्मित की है।
    • ये SRO उद्योग में संरक्षक की तरह कार्य करते हैं, आचार संहिता, शिकायत निवारण तंत्र एवं उपभोक्ता संरक्षण मानकों की स्थापना के साथ-साथ उनका कार्यान्वयन भी करते हैं।

भारत में फिनटेक सेक्टर के संभावित विकास क्षेत्र क्या हैं?

  • SME ऋण: लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) को पारंपरिक क्रेडिट चैनलों तक पहुँचने में प्राय: चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • वैकल्पिक डेटा स्रोतों एवं AI-संचालित क्रेडिट स्कोरिंग का लाभ उठाने वाले फिनटेक समाधान ऋण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित कर सकते हैं और साथ ही SME हेतु ऋण को अधिक सुलभ बना सकते हैं।
  • ब्लॉकचेन-आधारित फिनटेक समाधान भुगतान को सुव्यवस्थित कर सकते हैं, और साथ ही पारदर्शिता में सुधार कर सकते हैं, तथा आपूर्ति शृंखला में व्यवसायों के लिये कार्यशील पूंजी प्रबंधन को बढ़ा सकते हैं।
    • आपूर्ति शृंखला वित्तपोषण: पारंपरिक वित्तपोषण की आपूर्ति शृंखला पद्धतियाँ प्राय: बोझिल होती हैं और उनमें पारदर्शिता का अभाव होता है।
  • एग्रीटेक: फसल ऋण जोखिम प्रबंधन, किसानों के लिये सूक्ष्म बीमा और साथ ही कृषि उत्पादों के लिये डिजिटल बाज़ार के समाधान, ग्रामीण समुदायों को आवश्यक सहायता प्रदान कर सकते हैं तथा उन्हें सशक्त कर सकते हैं।
  • विनियामक परिदृश्य एवं दीर्घकालिक स्थिरता: यद्यपि यह अस्थायी रूप से सतर्क निवेश माहौल को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन फिनटेक क्षेत्र में "उपयोगकर्त्ता हानि" को कम करने के लिये RBI का दृष्टिकोण अंततः एक उत्कृष्ट विकास को संबोधित करता है।
    • स्पष्ट एवं सुपरिभाषित विनियमन उपभोक्ता संरक्षण को बढ़ाएंगे तथा पारिस्थितिकी तंत्र में विश्वास भी उत्पन्न करने के साथ-साथ दीर्घकालिक निवेशकों को भी आकर्षित करेंगे तथा सतत् विकास को बढ़ावा देंगे।

फिनटेक से संबंधित संचालन समिति की सिफारिशें

  • परिचय: 
    • फिनटेक से संबंधित मुद्दों पर सुभाष चंद्र गर्ग की अध्यक्षता वाली संचालन समिति ने वर्ष 2019 में वित्त मंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
    • समिति का गठन फिनटेक से संबंधित नियमों को अधिक लचीला बनाने तथा उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया था।
  • फिनटेक के संबंध में मुख्य टिप्पणियाँ:
    • बैंकिंग संस्थाओं को आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली जैसे महत्त्वपूर्ण भुगतान बुनियादी ढाँचे तक पहुँच का लाभ प्राप्त होता है। यह गैर-बैंकिंग फिनटेक कंपनियों के लिये समान अवसर प्रदान करने में बाधा उत्पन्न करता है।
    • नवीन उत्पादों के परीक्षण के लिये नियंत्रित वातावरण, अर्थात विनियामक सैंडबॉक्स का अभाव, प्रयोग को प्रतिबंधित करता  है तथा विकास को धीमा करता है।
    • फिनटेक से नए डेटा गोपनीयता एवं सुरक्षा जोखिम उत्पन्न होते हैं। वर्तमान नियमों के साथ डेटा सुरक्षा अधिनियम में सुरक्षित एवं विकासोन्मुखी वातावरण को बढ़ावा देने हेतु समायोजन की आवश्यकता हो सकती है।
    • फिनटेक सेवाओं का विस्तार: साइबर सुरक्षा, धोखाधड़ी नियंत्रण के साथ-साथ मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम को बढ़ावा देने के लिये फिनटेक के उपयोग को प्रोत्साहित करना। वर्चुअल बैंकिंग एवं वित्तीय साधनों के डीमटेरियलाइजेशन (भौतिक प्रमाणपत्रों को इलेक्ट्रॉनिक रूप में परिवर्तित करना) का अन्वेषण करना शामिल है।
  • अनुशंसाएँ:
    • पदोन्नति के लिये नीतिगत कार्रवाइयाँ:
      • सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों को बैक-एंड ऑटोमेशन के लिये AI का लाभ उठाना चाहिये।
      • व्यापार वित्त में ब्लॉकचेन समाधान लागू करने के लिये  MSME के साथ सहयोग करना।
    • वित्तीय समावेशन:
      • आसान ऋण पहुँच को सक्षम करने हेतु AI/ML आधारित क्रेडिट स्कोरिंग का उपयोग करके किसानों के लिये एक क्रेडिट रजिस्ट्री विकसित करना।
      • कृषि फसल बीमा योजनाओं में दावों और प्रीमियम भुगतान के प्रबंधन के लिये फिनटेक का उपयोग करना।
      • लघु बचत उत्पादों, सूक्ष्म पेंशन योजनाओं और सरकारी पेंशन के लिये एक साझा डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाएँ, जिससे डिजिटल सदस्यता की सुविधा मिल सके।
    • सहयोग और समन्वय:
      • प्रत्येक वित्तीय क्षेत्र नियामक के लिये उद्योग विशेषज्ञों के साथ फिनटेक पर एक सलाहकार परिषद का गठन करना।
      • नियामक निकायों के बीच बेहतर समन्वय के लिये एक अंतर-नियामक तकनीकी समूह की स्थापना करना।
      • फिनटेक-सक्षम प्रौद्योगिकियों के संभावित अनुप्रयोगों का पता लगाने के लिये एक अंतर-मंत्रालयी समूह का गठन किया जाएगा।
      • फिनटेक जोखिमों और लाभों पर ज्ञान साझा करने के लिये अन्य देशों के साथ सहयोग करना।
    • डेटा संरक्षण: वित्तीय क्षेत्र से संबंधित डेटा संरक्षण चुनौतियों से निपटने के लिये वित्त मंत्रालय के अंतर्गत एक टास्क फोर्स की स्थापना की जाएगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में फिनटेक की बढ़ती प्रमुखता पर चर्चा कीजिये, इस क्षेत्र के सामने आने वाले प्रमुख चालकों और नियामक चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. “ब्लॉकचेन तकनीक” के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. यह एक सार्वजनिक खाता है जिसका हर कोई निरीक्षण कर सकता है, परंतु जिसे कोई भी एक उपभोक्ता नियंत्रित नहीं करता।
  2. ब्लॉकचेन की संरचना और अभिकल्प ऐसा है कि इसका समूचा डेटा केवल क्रिप्टोकरेंसी के विषय में हैं। 
  3. ब्लॉकचेन के आधारभूत वैशिष्ट्य पर आधारित अनुप्रयोगों को बिना किसी व्यक्ति की अनुमति के विकसित किया जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. बैंकों का राष्ट्रीयकरण
  2. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का गठन
  3. बैंक शाखाओं द्वारा गाँवों को अपनाना

उपर्युक्त में से किसे भारत में "वित्तीय समावेशन" प्राप्त करने के लिये उठाए गए कदम माना जा सकता है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


जैव विविधता और पर्यावरण

महासागर स्थिति रिपोर्ट, 2024- UNESCO

प्रिलिम्स:

UNESCO की महासागर स्थिति रिपोर्ट 2024, समुद्र विज्ञान अनुसंधान, ग्लोबल वार्मिंग, अम्लीकरण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO), सूक्ष्म प्लवक, समुद्री हीटवेव

मेन्स:

यूनेस्को की महासागर स्थिति रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष, हिंद महासागर पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव

स्रोत:डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनेस्को द्वारा जारी की गई महासागर स्थिति रिपोर्ट (State of Ocean Report), 2024 में बढ़ते समुद्री संकटों (जिनमें तापमान एवं अम्लीयता में वृद्धि, ऑक्सीजन की कमी तथा समुद्र के जलस्तर में वृद्धि शामिल है) से निपटने के लिये उन्नत समुद्र विज्ञान अनुसंधान एवं डेटा संग्रह की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

महासागर स्थिति रिपोर्ट, 2024 के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • अपर्याप्त डेटा और शोध: इस रिपोर्ट में महासागरों के ऊष्मण से संबंधित डेटा एवं शोध में अंतराल पर प्रकाश डाला गया है।
    • महासागरों से संबंधित समस्याओं से निपटने के लिये समुद्र के ऊष्मण एवं उसके प्रभावों की निगरानी हेतु नियमित डेटा संग्रहण की आवश्यकता है।
  • महासागरीय ऊष्मण: वर्ष 1960 से 2023 तक महासागरों का ऊपरी 2,000 मीटर तक का जल औसतन लगभग 0.32 वॉट/मी² (Watt/m²) की दर से गर्म हुआ, जो पिछले दो दशकों में लगभग 0.66 वाट/मी²  की दर से गर्म हुआ।
    • जल के गर्म होने की यह प्रवृत्ति जारी रहने की आशा है, जिससे आने वाले समय में व्यापक परिवर्तन हो सकते हैं।
  • पृथ्वी का ऊर्जा असंतुलन (EEI): मानवीय गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में होने वाली वृद्धि के साथ EEI के असंतुलन में महासागरों की भूमिका रही है।
    • EEI, सूर्य से आपतित एवं पृथ्वी से परावर्तित होने वाली वाली ऊर्जा के बीच का संतुलन है।
    • EEI में महासागरों की लगभग 90% हिस्सेदारी होने के परिणामस्वरूप इसके जल के ऊपरी 2,000 मीटर के ऊष्मण में संचयी वृद्धि हो रही है।
    • इस ऊष्मण से जल में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।
      • ऑक्सीजन की कमी से तटीय एवं बड़े समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • महासागरीय अम्लीकरण: सभी महासागरीय बेसिनों तथा महासागरों के अम्लीकरण में वैश्विक स्तर पर औसत वृद्धि हुई है।
    • खुले महासागरों के pH में निरंतर गिरावट देखी जा रही है। वर्ष 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध से प्रति दशक वैश्विक स्तर पर महासागर के औसत सतही pH में 0.017-0.027 pH इकाइयों की गिरावट देखी गई है।
      • ताज़े जल के प्रवाह, जैविक गतिविधियाँ, तापमान परिवर्तन एवं अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) जैसे जलवायु प्रतिरूपों के कारण तटीय जल अम्लीय हो सकता है।
      • कृषि एवं औद्योगिक गतिविधियों से भी तटीय क्षेत्रों का जल प्रभावित हो सकता है।
    • हालाँकि सीमित दीर्घकालिक अवलोकन, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में इस परिघटना को पूरी तरह समझने में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • समुद्री जलस्तर में वृद्धि: वर्ष 1993 से वर्ष 2023 तक वैश्विक औसत समुद्र जलस्तर लगभग 3.4 मिमी प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा है।
    • वैश्विक स्तर पर क्षेत्रीय एवं तटीय स्तर पर समुद्र जलस्तर में वृद्धि की निगरानी के लिये अंतरिक्ष-आधारित तथा साथ ही वास्तविक निरीक्षण प्रणालियों में सुधार करना होगा। 
  • समुद्री कार्बन डाइ-ऑक्साइड रिमूवल (mCDR): यह रिपोर्ट वायुमंडलीय कार्बन डाइ-ऑक्साइड को कैप्चर करने और साथ ही भंडारण करने के उद्देश्य से mCDR प्रौद्योगिकियों में बढ़ती रुचि को स्वीकार करती है।
    • उदाहरण के लिये समुद्री जल की रासायनिक संरचना में परिवर्तन करना ताकि महासागर वायुमंडल से अधिक कार्बन डाइ-ऑक्साइड को अवशोषित कर सकें अथवा सूक्ष्म प्लवक के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये लौह जैसे पोषक तत्त्वों को समाहित करना, जो समुद्र तल में डूब सकते हैं एवं शताब्दियों या उससे अधिक समय तक संग्रहीत रह सकते हैं।
    • mCDR तकनीकों को विकसित करने वाले स्टार्ट-अप्स की बढ़ती संख्या के साथ mCDR प्रौद्योगिकियों में रुचि बढ़ी है, साथ ही वर्ष 2023 में mCDR अनुसंधान के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोपीय संघ द्वारा वित्तपोषण की घोषणा की गई है।
    • कुछ चुनौतियाँ, जैसे कि mCDR का सीमित उपयोग तथा महासागरीय कार्बन चक्र के साथ उनकी अंतःक्रिया, जिसके परिणामस्वरूप संभवतः दीर्घावधि में समुद्री जीवन के लिये खतरे जैसे अनपेक्षित परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।

हिंद महासागर पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव क्या हैं?

  • चक्रवात एवं समुद्री उष्ण तरंगें: हिंद महासागर अन्य महासागरों की तुलना में तीव्रता से गर्म हो रहा है, जिससे चक्रवात एवं उष्ण तरंगें जैसे अपरिवर्तनीय परिवर्तन होने की संभावना है।
    • हिंद महासागर, मानसूनी तथा पूर्व-मानसूनी चक्रवातों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो वर्षा लाते हैं तथा दक्षिण एशिया, पूर्वी अफ्रीका एवं पश्चिम एशिया के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
    • उत्तरी हिंद महासागर प्रशांत अथवा अटलांटिक महासागर अधिक चक्रवात उत्पन्न नहीं करते है, लेकिन उनकी संख्या एवं तीव्रता बढ़ रही है, परिणामस्वरूप मृत्यु दर के आँकड़ों के हिसाब से सर्वाधिक खरतनाक चक्रवात बन गए हैं।
      • उदाहरण के लिये भारत के ओडिशा में वर्ष 2019 में आए चक्रवात फाणी ने अपनी तीव्र पवनों तथा तूफानी लहरों से व्यापक विनाश किया था।
    • समुद्री हीटवेव लगातार अत्यधिक तीव्र होती जा रही हैं, जिससे प्रवाल विरंजन हो रहा है और साथ ही यह समुद्री जीवन को हानि पहुँचा रहा है।
      • उदाहरण के लिये वर्ष 2010 में हिंद महासागर में उत्पन्न हुई समुद्री हीटवेव के कारण लक्षद्वीप द्वीपसमूह में व्यापक प्रवाल विरंजन हुआ था।
  • महासागरीय परिसंचरण और जलीय जीवन में परिवर्तन: तापन, अपवेलिंग को प्रभावित कर सकती है। अपवेलिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जो शीतल, पोषक तत्त्वों से भरपूर जल को सतह पर लाती है। यह इन पोषक तत्त्वों पर निर्भर मत्स्यों की संख्या को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये अरब सागर में अपवेलिंग के प्रभावित होने से सार्डिन मत्स्यन प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकता है।
  • जैसे-जैसे महासागर अधिक कार्बन डाइ-ऑक्साइड को अवशोषित करता है, यह अधिक अम्लीय हो जाता है, जिससे कैल्शियम कार्बोनेट जीवों के कवच और कंकाल युक्त जीवों, जैसे- प्रवाल भित्ति तथा शेलफिश आदि के शरीर को नुकसान पहुँचता है।
    • ऑस्ट्रेलिया में स्थित ग्रेट बैरियर रीफ को पहले से ही महासागर के अम्लीकरण के कारण गंभीर क्षति का सामना करना पड़ रहा है और ठीक इसी प्रकार के जोखिम हिंद महासागर में प्रवाल भित्तियों के सम्मुख उत्पन्न होते हैं।
  • गर्म जल में ऑक्सीजन का धारण कम होता है। तापन के कारण स्तरविन्यास में हुई वृद्धि से गहरे समुद्र में गर्म व ठंडी जलधाराओं का मिलना बाधित हो सकता है, जिससे जल के गभीर स्तर पर ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। इससे डेड ज़ोन की उत्पत्ति हो सकती है जहाँ जलीय जीवन संभव नहीं है।
  • मानव जनसंख्या का जोखिम: बाधित मत्स्यन, चक्रवात और सूखा जैसी स्थितियाँ आजीविका के लिये हिंद महासागर पर निर्भर व्यक्तियों की खाद्य सुरक्षा के लिये खतरा हैं।
    • वैश्विक तापन के कारण समुद्र का बढ़ता स्तर तटीय समुदायों को जलमग्न होने और क्षरण के खतरे के प्रति संवेदनशील बनाता है। भारत में मुंबई तथा कोलकाता जैसे निम्न क्षेत्र विशेष रूप से असुरक्षित हैं।
    • स्वस्थ प्रवाल भित्तियों और समुद्र तटों पर निर्भर पर्यटन तथा मनोरंजन उद्योग विरंजन एवं तटीय क्षरण से नकारात्मक रूप से प्रभावित होंगे।

समुद्री ऊष्ण तरंगों के प्रभाव को कम करने के लिये भारत द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं?

आगे की राह

  • तटों पर वास कर रहे समुदायों के लिये वास्तविक समय का मौसम पूर्वानुमान और चक्रवात से बचाव के लिये चेतावनी प्रणाली विकसित करना आवश्यक है।
  • समुद्री तापन की समस्या से निपटने के लिये कई भू-इंजीनियरिंग तकनीकों जैसे- स्ट्रैटोफेरिक एरोसोल इंजेक्शन, समुद्री बादलों का चमकना आदि का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा सकता है।
  • समुद्र की दीवारों और तटबंधों का निर्माण करके सतत् तटीय विकास प्रथाओं को बढ़ावा देना, जो चरम मौसम की घटनाओं के दौरान बुनियादी ढाँचे तथा समुदायों को होने वाली हानि को कम करते हैं।
    • उदाहरण के लिये ओडिशा सरकार की तट के किनारे कैसुरीना के पेड़ लगाने की पहल, चक्रवात फणी के प्रभाव को कम करने में प्रभावी साबित हुई।
  • तटीय समुदायों को चक्रवात के जोखिम और निकासी प्रक्रियाओं के संदर्भ में शिक्षित करने के लिये जन जागरूकता अभियान तथा नियमित निकासी अभ्यास आयोजित करना।
  • प्रवाल भित्तियों और अन्य नाज़ुक पारिस्थितिकी प्रणालियों के संरक्षण के लिये समुद्री संरक्षित क्षेत्रों को तैयार करना।
  • जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने और ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का सहयोग अंततः हिंद महासागर को लाभान्वित करेगा।

निष्कर्ष:

कुल मिलाकर यूनेस्को की रिपोर्ट में महत्त्वपूर्ण ज्ञान अंतराल और विश्व भर में महासागरों के सामने आने वाले कई संकटों को समझने तथा उनका समाधान करने के लिये बेहतर डेटा संग्रह की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। यह mCDR और तटीय आवास बहाली जैसे संभावित समाधानों की भी खोज करता है तथा संबंधित अनिश्चितताओं को दूर करने के लिये भविष्य में शोध की आवश्यकता पर बल देता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों के गर्म होने की स्थिति और हिंद महासागर पर इसके प्रभावों पर चर्चा कीजिये। यह भी सुझाव दीजिये कि समुद्री तापमान के प्रभाव को कम करने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'मेथैन हाइड्रेट' के निक्षेपों के बारे में, निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं? (2019)

  1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मेथैन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
  2. 'मेथैन हाइड्रेट' के विशाल निक्षेप उत्तरध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।
  3. वायुमंडल के अंदर मेथैन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइ-ऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाता है।

उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न 1. प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का उदाहरण सहित आकलन कीजिये। (2017)

प्रश्न 2.  'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017)

प्रश्न 3. ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) पर चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये।(2022)


भारतीय राजनीति

बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा देने की मांग

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष श्रेणी का दर्ज़ा, बिहार जाति आधारित सर्वेक्षण 2022, योजना आयोग, अनुच्छेद 370,  केंद्र प्रायोजित योजना।

मेन्स के लिये:

विशेष राज्य का दर्ज़ा, SCS की चुनौतियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से राज्य को विशेष श्रेणी का दर्ज़ा दिये जाने की लंबे समय से चली आ रही मांग को दोहराया, जिससे राज्य को केंद्र से मिलने वाले कर राजस्व में वृद्धि होगी।

बिहार विशेष राज्य का दर्ज़ा (SCS) मांग क्यों रहा है?

  • ऐतिहासिक एवं संरचनात्मक चुनौतियाँ: बिहार को महत्त्वपूर्ण आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें औद्योगिक विकास का अभाव एवं सीमित निवेश के अवसर शामिल हैं।
    • राज्य के विभाजन के परिणामस्वरूप उद्योग झारखंड में स्थानांतरित हो गए, जिससे बिहार में रोज़गार एवं आर्थिक विकास की समस्याओं में वृद्धि हुई है।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: राज्य उत्तरी क्षेत्र में बाढ़ तथा दक्षिणी भाग में गंभीर सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहा है।
    • इन आपदाओं की पुनरावृत्ति से कृषि गतिविधियाँ बाधित होती हैं, विशेषकर सिंचाई सुविधाओं के मामले में और साथ जल आपूर्ति भी अपर्याप्त रहती है जिससे आजीविका एवं आर्थिक स्थिरता प्रभावित होती है।
  • बुनियादी ढाँचे का अभाव: बिहार का अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा राज्य के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न करता है, जिसमें अव्यवस्थित सड़क नेटवर्क, सीमित स्वास्थ्य सेवा पहुँच एवं शैक्षणिक सुविधाओं का अभाव आदि चुनौतियाँ शामिल हैं।
  • निर्धनता तथा सामाजिक विकास: बिहार में निर्धनता दर उच्च है तथा यहाँ बड़ी संख्या में परिवार गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।
    • नीति आयोग के एक हालिया सर्वेक्षण से जानकारी प्राप्त होती है कि बिहार, निर्धन राज्यों की श्रेणी में शीर्ष स्थान पर है, जहाँ वर्ष 2022-23 में बहुआयामी निर्धनता 26.59% होंगे, जो राष्ट्रीय औसत 11.28% की तुलना में अत्यधिक है।
    • बिहार की प्रतिव्यक्ति GDP वर्ष 2022-23 के लिये राष्ट्रीय औसत 1,69,496 रुपए की तुलना में मात्र 60,000 रुपए है।
    • राज्य विभिन्न मानव विकास सूचकांकों में भी काफी पीछे है।
  • विकास के लिये वित्तपोषण: SCS की मांग करना दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिये केंद्र सरकार से पर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त करने का एक साधन भी है।
    • बिहार सरकार ने पिछले वर्ष अनुमान लगाया था कि विशेष श्रेणी का दर्ज़ा दिये जाने से राज्य को पाँच वर्षों में 94 लाख करोड़ रुपए गरीब परिवारों के कल्याण पर खर्च करने के लिये अतिरिक्त 2.5 लाख करोड़ रुपए प्राप्त होंगे।

बिहार को SCS मिलने के विरुद्ध क्या तर्क हैं?

  • हालाँकि, कुछ आलोचकों का तर्क है कि बढ़ी हुई धनराशि खराब नीतियों को प्रोत्साहित कर सकती है और अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों को दंडित कर सकती है, क्योंकि धनराशि को गरीब राज्यों में भेज दिया जाएगा।
  • बिहार में ऐतिहासिक रूप से खराब कानून व्यवस्था विकास और निवेश के लिये एक बड़ी बाधा रही है।
  • 14वें वित्त आयोग के अनुसार, केंद्र पहले से ही 32% करों के बजाय 42% कर राज्यों को हस्तांतरित कर रहा है। केंद्र के कोष पर कोई भी अतिरिक्त दबाव संभावित रूप से अन्य राष्ट्रीय योजनाओं और कल्याणकारी उपायों को प्रभावित करेगा।
  • बिहार भारत में सबसे तेज़ी से विकास करने वाले राज्यों में से एक है। 2022-23 में बिहार की सकल घरेलू उत्पाद में 10.6% की वृद्धि हुई, जो राष्ट्रीय औसत 7.2% से अधिक है।
    • पिछले वर्ष वास्तविक रूप से प्रतिव्यक्ति आय में 9.4% की वृद्धि हुई।
  • अधिक धनराशि से अल्पकालिक राहत मिल सकती है, लेकिन दीर्घकालिक विकास शासन और निवेश के माहौल में सुधार पर निर्भर करता है।
  • हालाँकि बिहार SCS के अनुदान के लिये अधिकांश मानदंडों को पूर्ण करता है, लेकिन यह पहाड़ी इलाकों और भौगोलिक रूप से कठिन क्षेत्रों की आवश्यकता को पूरा नहीं करता है, जिसे बुनियादी ढाँचे के विकास में कठिनाई का प्राथमिक कारण माना जाता है।
  • केंद्र सरकार ने 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, जिसमें केंद्र को सिफारिश की गई थी कि किसी भी राज्य को SCS नहीं दिया जाना चाहिये, बार-बार मांगों को अस्वीकार कर दिया है।

अन्य राज्य जो SCS की मांग कर रहे हैं:

  • 2014 में अपने विभाजन के बाद से आंध्र प्रदेश हैदराबाद के तेलंगाना में जाने से होने वाली राजस्व हानि के आधार पर विशेष राज्य का दर्ज़ा देने की मांग कर रहा है।
  • इसके अलावा ओडिशा भी चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं और बड़ी जनजातीय आबादी (लगभग 22%) के प्रति अपनी संवेदनशीलता को उजागर करते हुए SCS का अनुरोध कर रहा है।

विशेष श्रेणी का दर्ज़ा क्या है?

  • परिचय:
    • विशेष श्रेणी का दर्ज़ा (SCS) केंद्र द्वारा भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों के विकास में सहायता के लिये प्रदान किया जाने वाला एक वर्गीकरण है।
    • संविधान SCS के लिये प्रावधान नहीं करता है और यह वर्गीकरण बाद में 1969 में पाँचवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
    • प्रथमतः वर्ष 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को यह दर्ज़ा प्रदान किया गया था। तेलंगाना भारत का नवीनतम राज्य है जिसे यह दर्ज़ा प्राप्त हुआ है।
    • SCS, विशेष स्थिति से भिन्न है जो कि उन्नत विधायी तथा राजनीतिक अधिकार प्रदान करता है, जबकि SCS केवल आर्थिक एवं वित्तीय पहलुओं से संबंधित है।
      • उदाहरण के लिये अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से पहले जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्ज़ा प्राप्त था।
  • दर्ज़ा प्राप्त करने के मापदंड (गाडगिल सिफारिश पर आधारित):
    • पहाड़ी इलाका
    • कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा
    • पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर सामरिक स्थिति
    • आर्थिक तथा आधारभूत संरचना में पिछड़ापन 
    • राज्य के वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति
  • लाभ:
    • अन्य राज्यों के मामले में 60% या 75% की तुलना में केंद्र प्रायोजित योजना में आवश्यक निधि का 90% विशेष श्रेणी के राज्यों को भुगतान किया जाता है, जबकि शेष निधि राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाती है।
    • वित्तीय वर्ष में अव्ययित निधि व्यपगत नहीं होती है और इसे आगे बढ़ाया जाता है।
    • इन राज्यों को उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क, आयकर एवं निगम कर में महत्त्वपूर्ण रियायतें प्रदान की जाती हैं।
    • केंद्र के सकल बजट का 30% विशेष श्रेणी के राज्यों को प्रदान किया जाता है।
  • चुनौतियाँ:
    • संसाधन आवंटन: SCS प्रदान करने के लिये राज्य को अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान करना आवश्यक है, जो केंद्र सरकार के संसाधनों पर दबाव डाल सकता है।
    • केंद्रीय सहायता पर निर्भरता: SCS प्रदत्त राज्य अमूमन केंद्रीय सहायता पर अत्यधिक निर्भर हो जाते हैं, जिससे आत्मनिर्भर होने और स्वतंत्र आर्थिक विकास रणनीतियों की दिशा में उनके प्रयास हतोत्साहित होते हैं।
    • कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: SCS प्रदान किये जाने के बाद भी, प्रशासनिक अक्षमताओं, भ्रष्टाचार अथवा उचित नियोजन की कमी के कारण निधियों का प्रभावी विधि से उपयोग करने में चुनौतियाँ का सामना करना पड़ सकता है।

आगे की राह:

  • निष्पक्षता एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के क्रम में SCS प्रदान करने के मानदंडों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। 
  • वर्ष 2013 में केंद्र सरकार द्वारा गठित रघुराम राजन समिति ने SCS के बजाय निधियों के हस्तांतरण के संदर्भ में 'बहु-आयामी सूचकांक' पर आधारित एक नई पद्धति का सुझाव दिया, जिसके माध्यम से राज्य के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने पर पुनर्विचार किया जा सकता है। 
  • आत्मनिर्भरता के साथ आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा देने के क्रम में केंद्र सरकार पर राज्यों की निर्भरता को कम करने वाली नीतियों को लागू करना चाहिये। इसके साथ ही राज्यों के राजस्व स्रोत में विविधता लाने पर बल देना चाहिये। 
  • विश्लेषकों का सुझाव है कि सतत् आर्थिक विकास के लिये बिहार में विधि के शासन की आवश्यकता है। 
  • राज्यों को व्यापक विकास योजनाएँ बनाने के क्रम में प्रोत्साहित करने हेतु अन्य कदम उठाए जाने की आवश्यकता है जैसे: 
    • शिक्षा में सुधार: प्रारंभिक बाल्यावस्था विकास (ICDS केंद्र), शिक्षक प्रशिक्षण एवं शिक्षण पद्धति में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने से संबंधित RTE फोरम की सिफारिशों पर ध्यान देने के साथ अधिक संवादात्मक तथा प्रौद्योगिकी आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
    • कौशल विकास एवं रोज़गार सृजन: बिहार के युवाओं के कौशल विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता है। व्यवसायों को आकर्षित करने तथा रोज़गार सृजन हेतु SIPB (सिंगल-विंडो इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ संबंधित कौशल पहलों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: समग्र विकास हेतु बेहतर बुनियादी ढाँचे का होना बहुत आवश्यक है। बाढ़ एवं सूखे से निपटने के लिये बेहतर सिंचाई प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच संपर्क स्थापित करने, निवेश आकर्षित करने तथा कृषि व्यापार को बढ़ावा देने के लिये एक मज़बूत परिवहन नेटवर्क विकसित करना चाहिये।
    • महिला सशक्तीकरण एवं सामाजिक समावेशन: लैंगिक समानता एवं सामाजिक स्तरीकरण के संदर्भ में बिहार विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है। विधियों के बेहतर प्रवर्तन एवं सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं की शिक्षा, कौशल विकास तथा वित्तीय समावेशन पर ध्यान देना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्ज़ा (SCS) देने के क्रम में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। ये चुनौतियाँ देश के राजकोषीय संघवाद एवं विकास उद्देश्यों को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

Q. केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का निर्णयन करने की भारत के सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति किसके अंतर्गत आती है। (2014)

(a) सलाहकार क्षेत्राधिकार
(b) अपीलीय क्षेत्राधिकार
(c) मूल क्षेत्राधिकार
(d) रिट क्षेत्राधिकार

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. क्षेत्रवाद की बढ़ती भावना अलग राज्य की मांग हेतु महत्त्वपूर्ण कारक है। चर्चा कीजिये। (2013)


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्लोबल नाइट्रस ऑक्साइड बजट 2024

प्रिलिम्स के लिये:

नाइट्रोजन प्रदूषण, UNEP, नाइट्रोजन आधारित उर्वरक, अमोनिया, वायु प्रदूषण, मेथेमोग्लोबिनेमिया, स्ट्रेटोस्फेरिक ओज़ोन परत

मेन्स के लिये:

नाइट्रोजन प्रदूषण के स्रोत और प्रमुख प्रभाव, नाइट्रोजन के प्रमुख यौगिक और उनके प्रभाव

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट (GCP) द्वारा किये गए एक नवीन अध्ययन, “ग्लोबल नाइट्रस ऑक्साइड बजट (1980-2020)” के अनुसार, वर्ष 1980 से 2020 की अवधि में नाइट्रस ऑक्साइड में उत्सर्जन में निरंतर वृद्धि हुई है।

  • हालाँकि वैश्विक तापन के प्रभाव की रोकथाम करने के लिये हमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने की आवश्यकता है किंतु एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2021-2022 में, पूर्व के सभी आँकड़ों की अपेक्षा सबसे अधिक तेज़ी से वायु में नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ।

GCP अध्ययन

  • ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट (GCP) वर्ष 2001 में स्थापित एक संगठन है जो विश्व स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और उनके कारणों का पता लगाने के लिये अध्ययन करता है।
    • GCP द्वारा किया जाने वाला यह अध्ययन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और पृथ्वीमंडल पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव का विश्लेषण करता है और उसके संबंध में सार्वजनिक नीति और अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई को सूचित करने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड (3 प्रमुख ग्रीनहाउस गैस) के उत्सर्जन का परिमाण निर्धारित करता है।
  • इसमें विश्व के उन सभी प्रमुख आर्थिक गतिविधियों, 18 मानवजनित और प्राकृतिक स्रोत, के डेटा की जाँच की जाती है, जिससे नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है और साथ ही विश्व में नाइट्रस ऑक्साइड के 3 अवशोषी "रंध्र" (सिंक) पर भी विचार किया जाता है।

नाइट्रस ऑक्साइड के अवशोषी “सिंक”:

  • मृदा:
    • मृदा N₂O के लिये एक महत्त्वपूर्ण सिंक के रूप में कार्य करती है। मृदा में माइक्रोबियल प्रक्रियाएँ N₂O उत्सर्जन को कम कर सकती हैं
    • डीनाइट्रीफाइंग बैक्टीरिया, N₂O को अवायवीय परिस्थितियों में नाइट्रोजन गैस (N₂) में परिवर्तित करते हैं, जिससे इसका वायुमंडल से प्रभावी रूप से निष्कासन हो जाता है। नाइट्रिफिकेशन (जो N₂O का उत्पादन करता है) और डीनाइट्रीफिकेशन के बीच संतुलन मृदा की कुल सिंक क्षमता निर्धारित करता है।
  • महासागर:
    • गभीर और अधः स्तल (Subsurface) महासागर वायु-समुद्र इंटरफेस (वायुमंडल और महासागरीय जल के बीच की सीमा) पर विघटन के माध्यम से वायुमंडल से N₂O को अवशोषित करते हैं। समुद्री फाइटोप्लांकटन और अन्य जीव घुले हुए N₂O को अवशोषित करने का कार्य करते हैं।
  • समताप मंडल:
    • समताप मंडल में, N₂O ओज़ोन (O₃) के साथ अभिक्रिया करता है, जिससे नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और अंततः नाइट्रोजन गैस (N₂) का निर्माण होता है। 
    • N₂O औसत मानव जीवनकाल (117 वर्ष) से ​​अधिक समय तक वायुमंडल में बना रहता है, जिससे यह इस ग्रीनहाउस गैस के लिये एक प्रभावी सिंक बन जाता है, जो लंबे समय तक जलवायु और ओज़ोन को प्रभावित करता है।

अध्ययन से संबंधित मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) उत्सर्जन में चिंताजनक वृद्धि: मानवीय गतिविधियों से N₂O उत्सर्जन में 1980 और 2020 के बीच 40% (प्रति वर्ष 3 मिलियन मीट्रिक टन N2O) की वृद्धि हुई है।
    • N₂O के शीर्ष 5 उत्सर्जक देश चीन (16.7%), भारत (10.9%), अमेरिका (5.7%), ब्राज़ील (5.3%) और रूस (4.6%) थे।
      • इस प्रकार, भारत चीन के बाद वैश्विक स्तर पर N₂O के उत्सर्जन में दूसरे स्थान पर है।
    • प्रति व्यक्ति के संदर्भ में, भारत में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन सबसे कम 0.8 किलोग्राम N₂O /व्यक्ति है, जो चीन (1.3), अमेरिका (1.7), ब्राज़ील (2.5) और रूस (3.3) से कम है।
    • वर्ष 2022 में वायुमंडलीय N2O की सांद्रता 336 भाग प्रति बिलियन तक पहुँच गई, जो पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 25% अधिक है, जो जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) द्वारा लगाए गए अनुमान से भी अधिक है।
    • अध्ययन में स्पष्ट किया गया है कि वर्तमान में ऐसी कोई तकनीक नहीं है जो वायुमंडल से N2O को समाप्त कर सके।
  • नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन के स्रोत:
    • प्राकृतिक स्रोत:
      • महासागरों, अंतर्देशीय जल निकायों एवं मृदा जैसे प्राकृतिक स्रोतों द्वारा वर्ष 2010 से वर्ष 2019 के बीच N2O के वैश्विक उत्सर्जन में 11.8% का योगदान दिया।
    • मानव-चालित स्रोत (मानवजनित): 
      • कृषि गतिविधियाँ मानव-जनित नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन के 74% के लिये उत्तरदायी थीं।
        • यह मुख्य रूप से रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग तथा फसल भूमि पर पशु अपशिष्ट के उपयोग के कारण था।
        • दुनिया भर में खाद्य उत्पादन में नाइट्रोजन उर्वरकों के बढ़ते उपयोग से N2O की सांद्रता बढ़ रही है।
      • अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोतों में उद्योग, दहन एवं अपशिष्ट प्रसंस्करण शामिल हैं।
      • मांस और डेयरी उत्पादों की बढ़ती मांग के परिणामस्वरूप खाद उत्पादन में हुई वृद्धि हुई है, परिणामस्वरूप से N2O उत्सर्जन भी होता है।
  • उत्सर्जन की दर/वृद्धि:
    • कृषि से होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि जारी है, जबकि अन्य क्षेत्रों, जैसे जीवाश्म ईंधन एवं अन्य रासायनिक उद्योग से होने वाले उत्सर्जन में वैश्विक स्तर पर न तो वृद्धि हो रही है और न ही कमी आ रही है।
    • जलीय कृषि से होने वाला उत्सर्जन भूमि पर रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से होने वाले उत्सर्जन का केवल दसवाँ हिस्सा है, लेकिन विशेष रूप से चीन में यह तीव्रता से बढ़ रहा है।
  • क्षेत्रीय स्तर पर उत्सर्जन: इस अध्ययन में शामिल 18 क्षेत्रों में से केवल यूरोप, रूस, आस्ट्रेलिया, जापान एवं कोरिया में नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी प्रदर्शित हुई  है।
    • यूरोप में वर्ष 1980 से वर्ष 2020 के बीच कमी की दर सबसे अधिक थी, जो जीवाश्म ईंधन तथा उद्योग उत्सर्जन में कमी के परिणामस्वरूप हुई।
    • चीन एवं दक्षिण एशिया में वर्ष 1980 से वर्ष 2020 तक N2O उत्सर्जन में सर्वाधिक 92% की वृद्धि हुई है।

नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) के बारे में मुख्य तथ्य:

  • नाइट्रस ऑक्साइड, जिसे आमतौर पर लाफिंग गैस के रूप में जाना जाता है,यह  एक रंगहीन, गंधहीन एवं गैर-ज्वलनशील गैस है।
  • यद्यपि नाइट्रस ऑक्साइड ज्वलनशील नहीं है, फिर भी यह ऑक्सीजन के समान ही दहन में सहायक है।
  • यह उत्साह की स्थिति उत्पन्न करती है, जिसके कारण इसका उपनाम 'लाफिंग गैस' दिया गया है।
  • यह जल में घुलनशील है। इसके वाष्प वायु से भारी होते हैं। 
  • अनुप्रयोग:
    • इसका उपयोग आमतौर पर दंत चिकित्सकों तथा चिकित्सा पेशेवरों द्वारा मामूली चिकित्सा प्रक्रियाओं से गुजर रहे रोगियों को बेहोश करने के लिये किया जाता है।
    • इस गैस का उपयोग खाद्य एरोसोल में प्रणोदक के रूप में भी किया जाता है।
    • इसका उपयोग ऑटोमोटिव उद्योग में इंजन के प्रदर्शन को बढ़ाने के लिये भी किया जाता है।

बढ़ते नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन के निहितार्थ क्या हैं?

  • तीव्र ग्लोबल वार्मिंग: NO 100 वर्षों में होने वाली गर्मी को रोकने में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) की तुलना में लगभग 300 गुना अधिक प्रभावी है। यह ग्लोबल वार्मिंग पर इसके प्रभाव को बढ़ाता है और साथ ही इसकी तीव्र वृद्धि वायुमंडलीय उष्णता में अत्यधिक वृद्धि करता है।
  • ओज़ोन परत को खतरा: N₂O समताप मंडल में विघटित होकर नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जित करता है, जो ओज़ोन परत को हानि पहुँचाती है, जो हमें हानिकारक पराबैंगनी (UV) विकिरण से सुरक्षित रखती है।
    • इस बढ़ी हुई UV विकिरण के कारण त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद में वृद्धि हो सकती है, तथा UV संरक्षण पर निर्भर पारिस्थितिकीय तंत्र को को भी हानि पहुँच सकती है।
  • खाद्य सुरक्षा के समक्ष चुनौती: कृषि क्षेत्र (विशेष रूप से नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों का उपयोग) की N₂O उत्सर्जन में प्रमुख हिस्सेदारी होने के साथ खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग से भविष्य में N₂O उत्सर्जन में और भी वृद्धि होने की संभावना है, जिससे खाद्य सुरक्षा तथा जलवायु लक्ष्यों के बीच संघर्ष की स्थिति होगी। 
  • पेरिस जलवायु समझौते के समक्ष चुनौती: N₂O उत्सर्जन का बढ़ता स्तर पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों (पूर्व-औद्योगिक चरण की तुलना में वैश्विक तापमान को 2°C से नीचे बनाए रखना) को प्राप्त करने में चुनौतियाँ आएंगी।

नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने हेतु प्रस्तावित समाधान:

  • नवीन कृषि पद्धतियाँ:
    • धारणीय कृषि: उर्वरक अनुप्रयोग को अनुकूलित करने के क्रम में मृदा सेंसर जैसी तकनीकों का उपयोग करने से इनपुट के रूप में अनावश्यक नाइट्रोजन को कम किये जाने से N₂O के उत्सर्जन में कमी आएगी।
      • नेचर नामक जर्नल द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि धारणीय कृषि तकनीक से N₂O उत्सर्जन को 50% तक कम किया जा सकता है।
    • नाइट्रीकरण अवरोधक: इससे उर्वरकों में अमोनियम के नाइट्रेट में रूपांतरण को धीमा किया जा सकता है।
    • कवर फसल: परती अवधि के दौरान कवर फसल से मृदा की नमी एवं नाइट्रोजन संग्रहण क्षमता को बनाए रखने में मदद मिलने से N₂O उत्सर्जन का जोखिम कम हो जाता है।
    • एंटी-मीथेनोजेनिक फीड का उपयोग करना: 'हरित धारा' (HD) जैसे एंटी-मीथेनोजेनिक फीड का उपयोग करने या मवेशियों के लिये इसी तरह के एंटी-नाइट्रोजन फीड विकसित करने से मीथेन एवं नाइट्रोजन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी।
      • इसके अतिरिक्त मवेशियों के गोबर से ईंधन गैस उत्पादित करने हेतु चक्रीय विधि को अपनाने से भी N₂O उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
    • नैनो-उर्वरकों का उपयोग:
      • नैनो उर्वरक द्वारा पौधों की जड़ों तक प्रत्यक्ष एवं क्रमिक रूप से पोषक तत्त्वों को पहुँचाया जा सकता है, जिससे नाइट्रस ऑक्साइड का अतिरिक्त उत्सर्जन नहीं होता है। इससे पोषक तत्त्वों के अवशोषण में वृद्धि होने से कम उर्वरक की आवश्यकता होती है।
  • प्रभावी नीतिगत उपाय:
    • उत्सर्जन व्यापार योजनाएँ: N₂O उत्सर्जन हेतु कैप-एंड-ट्रेड प्रणाली को लागू करने से उद्योगों एवं किसानों को स्वच्छ प्रथाओं को अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है।
      • अन्य ग्रीन हाउस गैसों के संदर्भ में यूरोपीय संघ में ऐसी योजनाओं का सफल कार्यान्वयन, इस क्रम में प्रेरणास्रोत है।
    • लक्षित सब्सिडी: सरकारें, N₂O उत्सर्जन को कम करने वाली स्थायी प्रथाओं को अपनाने वाले किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती हैं।
      • वर्ष 2010 के मध्य से N₂O उत्सर्जन को कम करने में चीन की सफलता, बेहतर उर्वरक प्रबंधन हेतु लक्षित सब्सिडी की परिचायक है।
    • अनुसंधान एवं विकास: N₂O शमन रणनीतियों से संबंधित अनुसंधान (जिसमें बेहतर उर्वरक तथा अपशिष्ट प्रबंधन तकनीक शामिल हैं) हेतु आवंटित धनराशि को तार्किक बनाना, इस दिशा में दीर्घकालिक प्रगति हेतु महत्त्वपूर्ण है।
  • अन्य स्रोतों से होने वाले उत्सर्जन को सीमित  करना:
    • औद्योगिक प्रक्रियाएँ: इस दिशा में प्रभावी नियमों को लागू करने के साथ स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने से नायलॉन एवं नाइट्रिक एसिड के उत्पादन जैसे औद्योगिक स्रोतों से होने वाले N₂O के उत्सर्जन को कम किये जाने के साथ, नाइट्रस ऑक्साइड के बढ़ते उत्सर्जन को रोका जा सकता है। 
    • दहन: IPCC की जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट, 2021 के अनुसार वाहनों एवं बिजली संयंत्रों में दहन प्रक्रियाओं को अनुकूलित करने से उप-उत्पाद के रूप में होने वाले N₂O उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है। 
    • अपशिष्ट प्रबंधन: विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, अपशिष्ट से ऊर्जा रूपांतरण में तकनीकी प्रगति तथा अपशिष्ट जल एवं कृषि अपशिष्ट के प्रभावी उपचार से N₂O उत्सर्जन में काफी कमी आ सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

वैश्विक नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि के क्या कारण हैं? इस प्रवृत्ति के पर्यावरणीय और नीतिगत निहितार्थों पर चर्चा कीजिये, साथ ही नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के उपाय सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन मृदा में नाइट्रोजन मिलाता है? (2013)

  1. जानवरों द्वारा यूरिया का उत्सर्जन 
  2. मनुष्यों द्वारा कोयले को जलाना
  3. मृत वनस्पति

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित तत्त्व समूहों में से कौन-सा एक पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये मूलतः उत्तरदायी था? (2012)

(a) हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, सोडियम
(b) कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन
(c) ऑक्सीजन, कैल्सियम, फॉस्फोरस
(d) कार्बन, हाइड्रोजन, पोटैशियम

उत्तर: (b)


प्रश्न. नीले-हरे शैवाल की कुछ जातियों की कौन-सी, विशेषता उन्हें जैविक खाद के रूप में वर्द्धित करने में सहायक है ? (2010)

(a) ये वायुमंडलीय मीथेन को अमोनिया में परिवर्तित करती हैं जिन्हें फसल के पौधे आसानी से ग्रहण कर सकते हैं
(b) ये फसल के पौधों को ऐसे एन्ज़ाइम पैदा करने के लिये प्रेरित करती हैं जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को नाइट्रेटों में परिवर्तित करने में सहायक होते हैं
(c) उनमें ऐसी क्रियाविधि होती है जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ऐसे नए रूप में परिवर्तित कर देती है जिसे फसल के पौधे आसानी से ग्रहण कर सकते हैं
(d) ये फसल के पौधों की जड़ों को अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में मृदा नाइट्रेट अवशोषित करने के लिये प्रेरित करती हैं

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न.  सिक्किम भारत में प्रथम ‘जैविक राज्य’ है। जैविक राज्य के पारिस्थितिक एवं आर्थिक लाभ क्या-क्या होते हैं? (2018)


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