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कृषि

कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाना

  • 18 May 2023
  • 23 min read

प्रीलिम्स के लिये:

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFVY), राष्ट्रीय कृषि बाज़ार(E-NAM), सूक्ष्म सिंचाई कोष (MIF), राष्ट्रीय संवहनीय कृषि मिशन (NMSA), नैनो यूरिया

मेंस के लिये:

आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि: महत्व, चुनौतियाँ और आगे का रास्ता

यह एडिटोरियल 17/05/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित ‘‘Agriculture needs a ‘natural’ boost’’ लेख पर आधारित है। इसमें आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि के महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है और इस स्थिति को प्राप्त करने के लिये कुछ संभावित नीतिगत उपायों के सुझाव दिये गए हैं।

भारत सरकार खेती को अधिक आर्थिक रूप से व्यवहार्य और संवहनीय बनाने की आवश्यकता से अवगत रही है। कम उत्पादकता, उच्च इनपुट लागत, बाज़ार में उतार-चढ़ाव, जलवायु परिवर्तन, ऋणग्रस्तता और संस्थागत समर्थन की कमी जैसी कृषकों के समक्ष विद्यमान समस्याओं के समाधान के लिये सरकार कई उपाय कर रही है। भारत की समग्र अर्थव्यवस्था और समाज के लिये कृषि क्षेत्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह कार्यबल के एक बड़े हिस्से को रोज़गार प्रदान करता है और देश की आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है। भारतीय कृषि की स्थिति में सुधार लाना भारत में नीति निर्माताओं के लिये एक प्राथमिकता और एक चुनौती, दोनों ही रही है।

कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये:भारत एक विशाल आबादी वाला देश है जहाँ खाद्य की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है। यह सुनिश्चित करने के लिये कि सभी के पास पर्याप्त खाद्य उपलब्ध हो, कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य (economically viable) बनाना महत्त्वपूर्ण है ताकि किसान माँग की पूर्ति के लिये पर्याप्त खाद्य का उत्पादन कर सकें।
  • ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना:कृषि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिये प्रमुख योगदानकर्ता है। कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाकर ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन में सुधार लाना संभव है।
  • अधिकांश भारतीयों की आजीविका का समर्थन करने के लिये: कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने से उन लाखों भारतीयों के जीवन स्तर और रहन-सहन में सुधार करने में मदद मिल सकती है जो अपने अस्तित्त्व के लिये खेती पर निर्भर हैं। कृषि प्रत्यक्ष रूप से भारत की 50% से अधिक आबादी के लिये आय और रोज़गार का मुख्य स्रोत है।
  • अर्थव्यवस्था के विकास और स्थिरता को बढ़ाने के लिये: भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि का योगदान लगभग 17-18% है। कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने से कृषि उत्पादकता में वृद्धि, अपव्यय (wastage) की कमी, फसलों के विविधिकरण, मूल्यवर्धन बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के रूप में भारत के समग्र आर्थिक विकास एवं स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
  • सतत और प्राकृतिक खेती अभ्यासों को अपनाने के लिये: कृषि पर्यावरणीय क्षति, जल की कमी, मृदा क्षरण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का कारण बनती है। वर्तमान कृषि अभ्यास हानिकारक रसायनों, सिंचाई और सब्सिडी पर निर्भर बने हुए हैं। कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने से सतत और प्राकृतिक कृषि अभ्यासों को बढ़ावा मिल सकता है जो पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन को बढ़ाते हैं।

सन्निहित चुनौतियाँ

  • डिजिटल साक्षरता का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों के बहुत से किसान स्मार्टफ़ोन या विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी तक पहुँच का अभाव रखते हैं, जो डिजिटलीकृत कृषि सेवाओं तक पहुँच की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है। शिक्षा और प्रशिक्षण की आवश्यकता एक अन्य चुनौती है जो किसानों द्वारा नई तकनीकों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के तरीकों को समझने के लिये आवश्यक है।
  • छोटी जोत: भारत में किसानों की एक बड़ी संख्या छोटी जोत (small land holdings) रखती है, जो आकारिक मितव्ययिता (economies of scale) प्राप्त करने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकती है और उनकी लाभप्रदता को कम कर सकती है।
  • ऋण तक पहुँच का अभाव: भारत में कई किसानों की औपचारिक क्रेडिट या साख तक पहुँच नहीं है, जो खेतों में निवेश करने और उनकी उत्पादकता में सुधार लाने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है।
  • बाज़ारों तक पहुँच का अभाव: भारत में किसानों की एक बड़ी संख्या की बाज़ारों तक पहुँच नहीं है जहाँ वे अपनी उपज को उचित मूल्य पर बेच सकें। इससे किसानों को उनकी उपज के लिये कम कीमत प्राप्त होने और उनकी लाभप्रदता कम होने की स्थिति बनती है।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप सूखा और बाढ़ जैसी बारंबार और चरम मौसमी घटनाओं की उत्पत्ति हो रही है, जिनका किसानों की आजीविका पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।
  • अवसंरचना की कमी: भारत में कई ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, बिजली और सिंचाई प्रणाली जैसी बुनियादी अवसंरचना का अभाव है, जो किसानों की उत्पादकता और लाभप्रदता में सुधार करने की क्षमता को सीमित कर सकता है।
  • प्राकृतिक आपदाएँ:भारत बाढ़, सूखा और कीटों के प्रकोप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिये प्रवण है। ये आपदाएँ फसलों और पशुधन को क्षति पहुँचा सकती हैं, जिससे किसानों को हानि हो सकती है।
  • अक्षम विपणन:भारत में कृषि उपज के लिये विपणन प्रणाली पर्याप्त सक्षम नहीं है। इससे किसानों के लिये कम कीमत और उपभोक्ताओं के लिये उच्च कीमतों की स्थिति बनती है।

सरकार द्वारा की गई प्रमुख पहलें

  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme- SHCS): इसका उद्देश्य किसानों को उनकी मृदा के पोषक तत्वों और उर्वरता की स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने के लिये देश भर के कृषि क्षेत्रों में मृदा स्वास्थ्य का आकलन करना और उनमें सुधार लाना है। इससे किसानों को सूचना-संपन्न निर्णय लेने में मदद मिलती है, जिससे उत्पादकता में सुधार होता है और लागत कम होती है।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): यह विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल की हानि या क्षति की स्थिति में किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा शुरू की गई एक फसल बीमा योजना है।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): इसका उद्देश्य सिंचाई निवेश में वृद्धि, खेती योग्य क्षेत्रों के विस्तार, जल उपयोग दक्षता में सुधार, परिशुद्ध सिंचाई एवं अन्य जल-बचत तकनीकों को अपनाने और सतत जल संरक्षण अभ्यासों को बढ़ावा देने के माध्यम से कृषि उत्पादकता एवं कृषि कार्यों में जल संसाधन उपयोग की स्थिति में सुधार लाना है।
  • राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (National Agriculture Market- e-NAM): यह एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल है जो कृषि वस्तुओं के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार के निर्माण हेतु मौजूदा APMC मंडियों को परस्पर-संबद्ध करता है।
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY): वर्ष 2007 में शुरू की गई राष्ट्रीय विकास योजना एक छत्र योजना है जो समग्र कृषि और संबद्ध सेवाओं के विकास को सुनिश्चित करती है। यह योजना राज्यों को कृषि और संबद्ध सेवाओं में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करती है।
  • सूक्ष्म सिंचाई कोष (Micro Irrigation Fund- MIF): सूक्ष्म सिंचाई के तहत कवरेज के विस्तार के लिये अतिरिक्त संसाधन जुटाने और ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना - प्रति बूँद अधिक फसल’ के प्रावधानों से परे इसके अंगीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये राज्य सरकार के प्रयासों को सुविधाजनक बनाने के लिये वर्ष 2019-20 में नाबार्ड (NABARD) के अंतर्गत MIF की स्थापना की गई।
  • राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture- NMSA): इस मिशन को एकीकृत खेती, जल उपयोग दक्षता, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और संसाधन संरक्षण के तालमेल पर ध्यान केंद्रित करते हुए, विशेष रूप से वर्षा-सिंचित क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये तैयार किया गया है।
    • वर्षा-सिंचित क्षेत्र विकास (Rainfed Area Development- RAD): यहउत्पादकता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिये एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System- IFS) पर केंद्रित है।
    • मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (Soil Health Management- SHM): यह अवस्थिति के साथ-साथ  फसल विशिष्ट सतत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (अवशिष्ट प्रबंधन और जैविक कृषि अभ्यास सहित) को बढ़ावा देने के लिये मृदा उर्वरता मानचित्रों को मैक्रो-माइक्रो पोषक तत्व प्रबंधन के साथ संबद्ध करने पर लक्षित है।

कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिये कौन-से नीतिगत विकल्प उपलब्ध हैं?

  • कृषि का डिजिटलीकरण:अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी आधारित कृषि स्टार्ट-अप किसानों के लिये बीज से लेकर बाज़ार तक फुल-स्टैक समाधान (full-stack solutions) प्रदान करते हैं। वे आपूर्ति, ऋण, बीमा और सर्वोत्तम मूल्य पर अपनी उपज की बिक्री करने के लिये प्रत्यक्ष पहुँच प्रदान कर किसान को प्राथमिकता देते हैं।
    • उदाहरण के लिये, गुरुग्राम स्थित ‘देहात’ (DeHaat) 35 से अधिक फसलों को दायरे में लेते हुए 15 लाख किसानों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), मशीन लर्निंग और डेटा एनालिटिक्स के माध्यम से सेवा प्रदान करता है।
    • स्मार्टफ़ोन की सुविधा रखने वाले किसान कृषि-इनपुट, कृषि सलाह और कृषि-उपज के विपणन के लिये डिजिटलीकृत कृषि-सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं।
  • एकीकृत/प्राकृतिक खेती (Integrated/Natural Farming):छोटी जोत वाले किसानों के लिये एकीकृत खेती लाभदायक सिद्ध हो सकती है। प्राकृतिक खाद के लिये कुछ पशुओं, मत्स्य तालाब एवं वर्मी-कल्चर से संपन्न किसान आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से सशक्त बन सकते हैं। इस प्रकार की खेती के लिये पारिवारिक श्रम महत्त्वपूर्ण है और यह व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य एवं पर्यावरण की दृष्टि से संवहनीय है।
    • प्राकृतिक खेती स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग कर और बाहरी इनपुट की आवश्यकता को न्यूनतम कर खाद्य असुरक्षा, किसानों के संकट, स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों और प्राकृतिक आपदाओं जैसी विभिन्न समस्याओं का समाधान प्रदान करती है।
  • जलवायु-कुशल कृषि:जलवायु-कुशल कृषि (Climate Smart Agriculture) नैनो यूरिया जैसे पर्यावरण के अनुकूल कृषि-इनपुट की ओर आगे बढ़कर कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बना सकती है। यह उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग को कम कर सकती है जो अपूरणीय पारिस्थितिक क्षति, मृदा अनुर्वरता और विषाक्त खाद्य शृंखला का कारण बन सकते हैं। किसान लागत-प्रभावी और सतत कृषि अभ्यासों का उपयोग कर अपनी इनपुट लागत को कम करते हुए फसल की पैदावार को बढ़ा सकते हैं। इससे कृषि को दीर्घावधि में अधिक लाभदायक और संवहनीय बनाने में मदद मिल सकती है।
    • सरकार उर्वरक सब्सिडी पर भारी व्यय करती है। इसके कारण उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग की स्थिति बनती है, जिसके परिणामस्वरूप अपूरणीय पारिस्थितिक क्षति, मृदा अनुर्वरता और विषाक्त खाद्य शृंखला जैसे परिणाम उत्पन्न होते हैं।
    • पंजाब में मृदा अस्वास्थ्यकर स्थिति में है जहाँ राष्ट्रीय औसत 135 किलोग्राम की तुलना में प्रति हेक्टेयर 246 किलोग्राम उर्वरक का उपयोग किया जाता है।
  • सर्वोत्तम कृषि अभ्यासों को अपनाना:सहकारी सिद्धांतों पर आधारित सर्वोत्तम कृषि अभ्यासों को अपनाना कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बना सकता है। उदाहरण के लिये, इज़राइल अपनी प्रतिकूल जलवायु और सीमित संसाधनों के बावजूद कृषि-उपज के एक प्रमुख निर्यातक और कृषि प्रौद्योगिकियों में वैश्विक स्तर पर अग्रणी देश के रूप में उभरा है। सर्वाधिक उत्पादक तरीके से कृषि आउटपुट के सृजन के लिये सामाजिक समानता, सहकार्यता एवं पारस्परिक सहायता का पालन करके किसान अपनी दक्षता एवं उत्पादकता बढ़ा सकते हैं। इससे दीर्घावधि में लाभप्रदता और संवहनीयता की वृद्धि हो सकती है।
  • अनौपचारिक ऋण लेने से बचना: औपचारिक ऋण तक आसान पहुँच बनाने के अलावा, किसानों को वित्तीय विवेक पर परामर्श देने की आवश्यकता है। औपचारिक ऋण सुविधाएँ किसानों को उनके खेतों में निवेश के लिये धन उपलब्ध कराकर कृषि उत्पादकता एवं लाभप्रदता को बढ़ा सकती हैं।
    • हाल के एक सर्वेक्षण से पुष्टि होती है कि वित्त के औपचारिक स्रोतों की उपलब्धता के बावजूद ग्रामीण भारत में अभी भी साहूकारों/व्यापारियों/ज़मींदारों का अस्तित्व बना हुआ है, जो किसानों को आर्थिक रूप से अस्थिर तथा अनौपचारिक ऋण स्रोतों पर निर्भर बनाए रखता है।
  • कृषि मूल्य शृंखलाओं का विकास:कृषि मूल्य शृंखलाओं (Agri-Value Chains) के प्रमुख चालक हैं- ग्राहक फोकस, अवसंरचना, प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण।
    • महाराष्ट्र स्थित एक बहु-राज्यीय किसान उत्पादक कंपनी ‘VAPCOL’ का उदाहरण लिया जा सकता है। सात राज्यों में विस्तृत 40,000 से अधिक आदिवासी किसानों को दायरे में लेने वाले 55 किसान उत्पादक संगठन (FPOs) इसके सदस्य हैं।
  • समूहों (Collectives) का लाभ उठाना:SHGs, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और सहकारी समितियों के अभिसरण से रियायती मूल्य पर इनपुट की थोक खरीद, परिवहन एवं भंडारण में आकारिक मितव्ययिता, निम्न-लागत संस्थागत वित्त तक पहुँच, कृषि मशीनीकरण (फसलों की निगरानी और उर्वरकों एवं पौध संरक्षण रसायनों आदि के छिड़काव के लिये ड्रोन) आदि मामलों में किसानों की बेहतर सौदेबाजी शक्ति को बढ़ावा मिलेगा।

अभ्यास प्रश्न: भारत में लाखों किसानों की आजीविका को सुनिश्चित करने के लिये कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाना अत्यंत आवश्यक है। आर्थिक व्यवहार्यता प्राप्त करने में विद्यमान चुनौतियों की चर्चा करें और इन चुनौतियों से निपटने के लिये आवश्यक उपायों के सुझाव दें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्र. क्लाइमेट-स्मार्ट कृषि के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारत में 'क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज़' दृष्टिकोण जलवायु परिवर्तन, कृषि और खाद्य सुरक्षा (CCAFS) के नेतृत्व वाली एक परियोजना का एक हिस्सा है, जो एक अंतर्राष्ट्रीय शोध कार्यक्रम है।
  2. CCAFS की परियोजना फ्राँस में मुख्यालय वाले अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर सलाहकार समूह (CGIAR) के तहत की जाती है।
  3. भारत में अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय के लिए अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) CGIAR के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्र. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014)

कार्यक्रम/परियोजना : मंत्रालय

  1.  सूखा-प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम : कृषि मंत्रालय
  2. मरूस्थल विकास कार्यक्रम : पर्यावरण एवं वन मंत्रालय
  3. वर्षापूर्ति क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय जलसम्भर विकास परियोजना : ग्रामीण विकास मंत्रालय 

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं

उत्तर: (d)


Q. भारत में, निम्नलिखित में से किन्हें कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है।

  1. सभी फसलों के कृषि उत्पाद के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना
  2.  प्राथमिक कृषि साख समितियों का कंप्यूटरीकरण 
  3.  सामाजिक पूंजी विकास
  4.  कृषकों को नि:शुल्क बिजली की आपूर्ति
  5.  बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि ऋण की माफी
  6.  सरकारों द्वारा शीतागार सुविधाओं को स्थापित करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 3, 4 और 5
(c) केवल 2, 3 और 6
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (c)


मुख्य परीक्षा :

प्र.भारतीय कृषि में प्रकृति की अनिश्चितताओं पर निर्भरता के मद्देनजर, फसल बीमा की आवश्यकता की विवेचना कीजिये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी.एम.एफ.बी.वाई.) की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। (2016)

Q. भारत में स्वतंत्रता  के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है? (2017)

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