भारतीय राजव्यवस्था
भारत का सहकारिता क्षेत्र
- 05 Mar 2024
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प्रिलिम्स के लिये:सहकारिता क्षेत्र, प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ, बहु-राज्य सहकारी समितियाँ अधिनियम, 2002, 97वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2011, बहु-राज्य सहकारी समितियाँ (संशोधन) अधिनियम, 2022, इफको। मेन्स के लिये:भारत में सहकारिता क्षेत्र की स्थिति, भारत में सहकारिता समितियों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना के पायलट प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया जिसका शुभारंभ वर्तमान में 11 राज्यों की 11 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों में किया गया है।
- यह सहकारिता क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण विकास को दर्शाता है।
अनाज भंडारण योजना से संबंधित विशेषताएँ क्या हैं?
- परिचय: अनाज भंडारण योजना का लक्ष्य आगामी 5 वर्षों में ₹1.25 लाख करोड़ के निवेश के साथ 700 लाख टन भंडारण क्षमता स्थापित करना है।
- इस परियोजना में भारत सरकार की विभिन्न मौजूदा योजनाओं को एकीकृत कर विकेंद्रीकृत गोदामों, कस्टम हायरिंग सेंटरों, प्रसंस्करण इकाइयों, उचित मूल्य की दुकानों आदि सहित PACS के स्तर पर कृषि बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना शामिल है।
- अपेक्षित परिणाम: इस परियोजना के माध्यम से किसान PACS गोदामों में अपनी उपज का भंडारण करने में, अगले फसल चक्र के लिये ब्रिज फाइनेंस की पेशकश करने अथवा संकटपूर्ण अवधि के दौरान MSP पर फसल का विक्रय करने में सक्षम होंगे।
- अनाज के भंडारण क्षमता में वृद्धि करने से फसल के बाद होने वाले नुकसान में कमी आती है, किसानों की आय में सुधार होता है और ज़मीनी स्तर पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ होता है।
भारत में सहकारिता क्षेत्र की स्थिति क्या है?
- परिचय: सहकारी समितियाँ जन-केंद्रित उद्यम हैं जिनका स्वामित्व, नियंत्रण और संचालन उनके सदस्यों द्वारा उनकी सामान्य आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की प्राप्ति के लिये किया जाता है।
- कृषि, ऋण, डेयरी, आवास और मत्स्य पालन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में 800,000 से अधिक सहकारी समीतियों के साथ भारत का सहकारिता नेटवर्क विश्व के सबसे बड़े नेटवर्कों में से एक है।
- भारत में सहकारिता क्षेत्र का विकास:
- प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56): व्यापक सामुदायिक विकास के लिये सहकारी समितियों को बढ़ावा दिया गया।
- बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002: बहु-राज्य सहकारी समितियों के गठन एवं उसकी कार्यप्रणाली हेतु प्रावधान करता है।
- वर्ष 2011 का 97वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम: सहकारी समितियों के गठन के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया (अनुच्छेद 19)।
- सहकारी समितियों पर राज्य की नीति का एक नया निदेशक सिद्धांत प्रस्तुत किया गया (अनुच्छेद 43-B)।
- संविधान में "सहकारी समितियाँ" शीर्षक से एक नया भाग IX-B जोड़ा गया (अनुच्छेद 243-ZH से 243-ZT)।
- बहु-राज्य सहकारी समितियों (MSCS) को नियंत्रित करने वाले कानून बनाने के लिये संसद को अधिकार दिया गया और साथ ही अन्य सहकारी समितियों के लिये राज्य विधानसभाओं को अधिकार सौंपा गया।
- केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय की स्थापना (2021): सहकारी मामलों की ज़िम्मेदारी संभाली गई, जिसकी देख-रेख पहले कृषि मंत्रालय करता था।
- बहु-राज्य सहकारी समितियाँ (संशोधन) अधिनियम, 2022: इसका उद्देश्य बहु-राज्य सहकारी समितियों हेतु विनियमन बढ़ाना है।
- बहु-राज्य सहकारी समितियों में बोर्ड चुनावों की निगरानी हेतु सहकारी चुनाव प्राधिकरण की शुरुआत की गई।
- बहु-राज्य सहकारी समितियों को अपनी शेयरधारिता को भुनाने से पहले सरकारी अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
- संघर्षरत लोगों को पुनर्जीवित करने के लिये लाभदायक बहु-राज्य सहकारी समितियों द्वारा वित्त पोषित एक सहकारी पुनर्वास, पुनर्निर्माण और विकास कोष की स्थापना का आह्वान किया गया।
- राज्य सहकारी समितियों को राज्य कानूनों के अधीन मौजूदा बहु-राज्य सहकारी समितियों में विलय करने की अनुमति देता है।
- भारत में सहकारी समितियों के उदाहरण:
- प्राथमिक कृषि साख समितियाँ: वे अल्पकालिक सहकारी ऋण संरचना की ज़मीनी स्तर की शाखाएँ हैं।
- यह एक ओर अंतिम उधारकर्त्ताओं (किसानों) और दूसरी ओर उच्च वित्तपोषण एजेंसियों अर्थात् अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों तथा RBI एवं नाबार्ड के बीच अंतिम कड़ी के रूप में कार्य करता है।
- अमूल (आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड): एक डेयरी दिग्गज और भारत की श्वेत क्रांति में अग्रणी, अमूल गुजरात में लाखों दूध उत्पादकों का एक संघ है। इसकी सफलता ने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना दिया।
- भारतीय किसान उर्वरक सहकारी: विश्व की सबसे बड़ी उर्वरक सहकारी समितियों में से एक, IFFCO पूरे भारत में किसानों को गुणवत्तापूर्ण उर्वरक और कृषि सामग्री/निविष्टि प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- बागवानी उत्पादक सहकारी विपणन और प्रसंस्करण सोसायटी (HOPCOMS): किसानों के लिये उचित रिटर्न सुनिश्चित करने वाले कृषि उपज आउटलेट के अपने नेटवर्क के लिये प्रसिद्ध है।
- लिज्जत पापड़ (श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़): पापड़ (भारतीय दाल से निर्मित) उत्पादन के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने वाली एक प्रेरक महिला सहकारी संस्था है।
- प्राथमिक कृषि साख समितियाँ: वे अल्पकालिक सहकारी ऋण संरचना की ज़मीनी स्तर की शाखाएँ हैं।
नोट: बंगाल सचिवालय सहकारी समिति बनाम आलोक कुमार मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने बहु-राज्य सहकारी समितियों के संबंध में संसद और राज्य सहकारी समितियों के मामले में राज्य विधानमंडलों को उचित कानून बनाने का अधिकार देने का प्रस्ताव रखा। |
भारत में सहकारी समितियों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- संचालन और प्रबंधन के मुद्दे:
- सीमित व्यावसायिकता: कई सहकारी समितियों में पेशेवर प्रबंधन संरचनाओं का अभाव है, जो अकुशल संचालन और निर्णायक क्षमता का कारण है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: सहकारी समितियों के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप उनकी स्वायत्तता को कमज़ोर करता है और सदस्यों के हितों को प्रभावी ढंग से पूरा करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है।
- पूंजी और संसाधन बाधाएँ:
- अपर्याप्त फंडिंग: सहकारी समितियाँ प्रायः विस्तार, आधुनिकीकरण और नए उद्यमों के विकास हेतु पर्याप्त पूंजी तक पहुँचने के लिये संघर्ष करती हैं।
- सीमित बुनियादी ढाँचा: उचित भंडारण सुविधाओं, प्रसंस्करण इकाईयों और बाज़ार संबंधों की कमी, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में छोटी सहकारी समितियों की वृद्धि तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा बनती है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक कारक:
- कम जागरूकता और भागीदारी: संभावित सदस्यों के बीच सहकारी मॉडल और इसके लाभों के बारे में जागरूकता की कमी उनकी भागीदारी को सीमित करती है।
- सामाजिक असमानताएँ: कुछ मामलों में, सामाजिक पदानुक्रम और जाति-आधारित विभाजन सहकारी समितियों के भीतर समान भागीदारी एवं प्रतिनिधित्व के लिये बाधाएँ पैदा करते हैं।
भारत में सहकारी क्षेत्र के प्रोत्साहन हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- बुनियादी ढाँचे का विकास: मूल्य शृंखला को मज़बूत करने और सहकारी उत्पादों के लिये बाज़ार पहुँच बढ़ाने हेतु गोदामों, कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं एवं प्रसंस्करण इकाइयों जैसे बुनियादी ढाँचे के विकास में अधिक निवेश की आवश्यकता है।
- साथ ही, सहकारी संचालन और प्रबंधन की दक्षता में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी तथा डिजिटलीकरण को अपनाने को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- नवाचार हब के रूप में सहकारी समितियाँ: सहकारी समितियों की धारणा को पारंपरिक और ग्रामीण से पृथक कर प्रयोग तथा नवाचार के केंद्रों में हस्तांतरित करने की आवश्यकता है।
- साथ ही, अत्याधुनिक कृषि तकनीकों के साथ कार्य करने वाली सहकारी समितियों और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने को उजागर करने की भी आवश्यकता है।
- सहकारी "प्रभावक": इसमें युवा, तकनीक-प्रेमी सहकारी सदस्यों को वकील और विचारक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में पहचानना और उनका पोषण करना, सोशल मीडिया तथा ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के माध्यम से सहकारी समितियों की छवि को परिवर्तित करना शामिल है।
- सहकारी त्वरण क्षेत्र: विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों को सहकारी त्वरण क्षेत्र के रूप में नामित करना, जहाँ नियमों में अस्थायी रूप से शिथिलता प्रदान की जाती है और नवीन व्यापार मॉडल के साथ विविध सहकारी प्रयोग को प्रोत्साहित करने हेतु प्रोत्साहन दिया जाता है।
- सहकारी नेतृत्व वाली पर्यटन पहल: ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी संचालित इको-पर्यटन और समुदाय-आधारित पर्यटन पहल का विकास करना, जिससे यात्रियों को स्थानीय संस्कृति, परंपराओं तथा आजीविका का अनुभव करने की अनुमति मिल सके।
- इसमें पर्यटन गतिविधियों को सामूहिक रूप से प्रबंधित करने, आय उत्पन्न करने, प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना शामिल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर ऋण संगठन का कोई भी ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।" - अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन पर चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्त संस्थाओं को किन बाधाओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है?” (2014) |