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शासन व्यवस्था

बहु-राज्य सहकारी समितियाँ

  • 15 Oct 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बहुराज्यीय सहकारिता, संविधान (97वाँ संशोधन) अधिनियम, 2011, सहकारिता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान।

मेन्स के लिये:

बहु-राज्य सहकारी समिति (MSCS) अधिनियम, 2002 में कमियाँ।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बहु-राज्य सहकारी समिति (MSCS) संशोधन विधेयक, 2022 को मंज़ूरी दे दी है, जिसका उद्देश्य बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 में संशोधन करना है।

  • सहकारिता क्षेत्र के विकास को नए सिरे से गति प्रदान करने के उद्देश्य से जुलाई 2021 में सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया था।

विधेयक में प्रस्तावित संशोधन:

  • यह संशोधन व्यवसाय करने में आसानी, अधिक पारदर्शिता और शासन को बढ़ाने का प्रयास करते है।
  • इसमें बहु-राज्य सहकारी समितियों के बोर्ड में महिलाओं और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के प्रतिनिधित्व से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
  • ये संशोधन चुनावी प्रक्रिया में सुधार, निगरानी तंत्र को मज़बूत करने और जवाबदेही बढ़ाने के लिये लाए गए हैं।
  • यह बहु-राज्य सहकारी समितियों को धन जुटाने में सक्षम बनाने के अलावा बोर्ड की संरचना का विस्तार करेगा और वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करेगा।
  • बहु-राज्य सहकारी समितियों के शासन में सुधार के लिये विधेयक में सहकारी चुनाव प्राधिकरण, सहकारी सूचना अधिकारी और सहकारी लोकपाल की स्थापना के लिये विशिष्ट प्रावधान हैं।
  • बहु-राज्य सहकारी समितियों को धन जुटाने में मदद करने के लिये गैर मतदान शेयर जारी करने का भी प्रावधान होगा।
  • इसके अलावा नव प्रस्तावित पुनर्वास, पुनर्निर्माण और विकास कोष रुग्ण सहकारी समितियों को पुनर्जीवित करने में मदद करेगा।
  • विधेयक में 97वें संविधान संशोधन के प्रावधान शामिल होंगे।
  • इसके अलावा विवेकपूर्ण मानदंडों को निर्धारित करने का प्रावधान वित्तीय अनुशासन लाएगा। ऑडिटिंग तंत्र से संबंधित संशोधन अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करेंगे।

MSCS अधिनियम, 2002:

  • परिचय:
    • बहु-राज्य सहकारी समितियाँ: हालाँकि सहकारिता राज्य का विषय है, फिर भी कई समितियाँ हैं जैसे कि चीनी और दूध, बैंक, दूध संघ आदि जिनके सदस्य तथा संचालन के क्षेत्र एक से अधिक राज्यों में फैले हुए हैं।
      • उदाहरण के लिये, कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा क्षेत्य्र के ज़िलों की अधिकांश चीनी मिलें दोनों राज्यों से गन्ना खरीदती हैं।
      • महाराष्ट्र में ऐसी सहकारी समितियों की संख्या सबसे अधिक (567) है, इसके बाद उत्तर प्रदेश (147) और नई दिल्ली (133) का स्थान है।
      • ऐसी सहकारी समितियों को संचालित करने के लिये MSCS अधिनियम पारित किया गया था।
    • कानूनी क्षेत्राधिकार: इनके निदेशक मंडल में उन सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है जिनमें वे कार्य करते हैं।
      • इन समितियों का प्रशासनिक और वित्तीय नियंत्रण केंद्रीय रजिस्ट्रार के पास है एवं कानून यह स्पष्ट करता है कि राज्य सरकार का कोई भी अधिकारी उन पर नियंत्रण नहीं रख सकता है।
      • केंद्रीय रजिस्ट्रार का विशेष नियंत्रण राज्य के अधिकारियों के हस्तक्षेप के बिना इन समितियों के सुचारू संचालन की अनुमति देने के लिये था।
  • संबद्ध चिंताएँ:
    • नियंत्रण और संतुलन की कमी: जबकि राज्य-पंजीकृत समितियों की प्रणाली की प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये कई स्तरों पर जाँच और संतुलन शामिल है।
      • केंद्रीय रजिस्ट्रार केवल विशेष परिस्थितियों में ही समितियों के निरीक्षण की अनुमति दे सकता है।
      • इसके अलावा, निरीक्षण समितियों को पूर्व सूचना के बाद ही कार्यान्वयित किया जा सकता है।
    • केंद्रीय रजिस्ट्रार का कमज़ो संस्थागत ढाँचा: केंद्रीय रजिस्ट्रार के लिये बुनियादी ढाँचे का अभाव है, राज्य स्तर पर कोई अधिकारी या कार्यालय नहीं है, ज़्यादातर काम या तो ऑनलाइन या पत्राचार के माध्यम से किया जाता है।
      • इससे शिकायत निवारण तंत्र बेहद कमज़ोर हो गया है।
      • इसके कारण कई उदाहरण सामने आए हैं जब क्रेडिट सोसाइटियों ने इन खामियों का फायदा उठाते हुए पोंजी योजनाओं की शुरुआत की हैं।

भारत में सहकारिता:

  • परिभाषा:
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • संविधान (97वाँ संशोधन) अधिनियम, 2011 ने भारत में काम कर रही सहकारी समितियों के संबंध में एक नया भाग IX B जोड़ा।
      • संविधान के भाग III के तहत अनुच्छेद 19(1)(c) में "संघों और संघठनों" के रूप में "सहकारिता" शब्द जोड़ा गया था।
        • यह सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार का दर्जा देकर सहकारी समितियों के गठन में सक्षम बनाता है।
      • (भाग IV) में "सहकारी समितियों के प्रचार" के संबंध में एक नया अनुच्छेद 43B जोड़ा गया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
    • जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने 97वें संशोधन अधिनियम, 2011 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था।
      • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, भाग IX B (अनुच्छेद 243ZH से 243ZT) ने अपने सहकारी क्षेत्र पर राज्य विधानसभाओं की ’अनन्य विधायी शक्ति’ को ‘महत्त्वपूर्ण और पर्याप्त रूप से प्रभावित’ किया है।
      • साथ ही 97वें संविधान संशोधन के प्रावधानों को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किये बिना संसद द्वारा पारित किया गया था।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि राज्यों के पास विशेष रूप से उनके लिये आरक्षित विषयों पर कानून बनाने की विशेष शक्ति है (सहकारिता राज्य सूची का एक हिस्सा है)।
        • 97वें संविधान संशोधन के लिये अनुच्छेद 368(2) के तहत कम-से-कम आधे राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है।
        • चूँकि 97वें संविधान संशोधन के मामले में अनुसमर्थन नहीं किया गया था, इसलिये इसे रद्द कर दिया गया।
        • इसने भाग IX B के प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा, जो ‘बहु-राज्य सहकारी समितियों’ (MSCS) से संबंधित हैं।
        • इसने कहा कि ‘बहु-राज्य सहकारी समितियों’ का विषय केवल एक राज्य तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसमें विधायी शक्ति भारत संघ की होगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रश्न. अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण के अनुसार, "गाँवों में सहकारी समिति के अलावा कोई भी ऋण संगठन उपयुक्त नहीं होगा"। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि के आधार पर इस कथन की विवेचना कीजिये। कृषि वित्त की आपूर्ति करने वाले वित्तीय संस्थानों को किन बाधाओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण ग्राहकों तक बेहतर पहुँच एवं सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? (200 शब्द) (2014)

स्रोत: द हिंदू

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