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सामाजिक न्याय

समेकित बाल विकास सेवा योजना का सशक्तीकरण

  • 19 Jun 2023
  • 16 min read

यह एडिटोरियल 15/06/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Strengthening the Integrated Child Development Services scheme’’ लेख पर आधारित है। इसमें ‘समेकित बाल विकास योजना’ से संबद्ध मुद्दों और इसे सशक्त करने के उपायों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

समेकित बाल विकास सेवा योजना, 15वाँ वित्त आयोग, पोषण 2.0

मेन्स के लिये:

समेकित बाल विकास सेवा योजना- चुनौतियाँ और आगे की राह

भारत में स्टंटिंग, वेस्टिंग और एनीमिया का उच्च प्रसार अभी भी बच्चों और महिलाओं के लिये प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम बना हुआ है। इससे निपटने के लिये भारत को अपनी मौजूदा सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं, जैसे कि समेकित बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Services- ICDS) को सशक्त बनाने की आवश्यकता है। ICDS 0-6 आयु वर्ग के बच्चों, गर्भवती महिलाओं एवं दुग्धपान कराने वाली माताओं को लक्षित करता है; अनौपचारिक प्री-स्कूल शिक्षा को संबोधित करता है; और कुपोषण, रुग्णता एवं मृत्यु दर के चक्र को तोड़ता है।

समेकित बाल विकास सेवा योजना क्या है?

  • बच्चों को पूरक पोषण, टीकाकरण और प्री-स्कूल शिक्षा प्रदान करने वाली समेकित  बाल विकास सेवा योजना भारत सरकार का एक लोकप्रिय प्रमुख कार्यक्रम है।
  • वर्ष 1975 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम विश्व के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक है जो बच्चों के समग्र विकास के लिये विभिन्न सेवाओं का एक एकीकृत पैकेज प्रदान करता है।
  • ICDS एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। यह योजना सार्वभौमिक है जो देश के सभी ज़िलों को कवर करती है।
  • योजना का नया नामकरणर ‘आँगनवाड़ी सेवा योजना’ के रूप में किया गया है।
  • इन सेवाओं को 15वें वित्त आयोग की अवधि के लिये (वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक के लिये) सक्षम आँगनवाड़ी एवं पोषण 2.0 (Saksham Anganwadi and Poshan 2.0), जो एक एकीकृत पोषण समर्थन कार्यक्रम है, के एक अंग के रूप में पेश किया जा रहा है।
  • उद्देश्य:
    • 0-6 आयु वर्ग के बच्चों के पोषण एवं स्वास्थ्य स्थिति में सुधार करना
    • बच्चों के उचित मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नींव रखना
    • मृत्यु दर, रुग्णता, कुपोषण और स्कूल ड्रॉपआउट की स्थिति को कम करना
    • बाल विकास को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न विभागों के बीच नीति एवं कार्यान्वयन का प्रभावी समन्वय प्राप्त करना
    • उचित पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से बच्चे के सामान्य स्वास्थ्य और पोषण संबंधी आवश्यकताओं की देखभाल करने के लिये माताओं की सक्षमता में वृद्धि करना।
  • लाभार्थी:
    • 0-6 आयु वर्ग के बच्चे
    • गर्भवती महिलाएँ और दुग्धपान कराने वाली माताएँ
    • आकांक्षी ज़िलों और उत्तर-पूर्वी राज्यों की किशोरियाँ (14-18 आयु वर्ग)।

ICDS की सफलता के बारे में अध्ययन क्या दर्शाते हैं?

  • ‘वर्ल्ड डेवलपमेंट’ में प्रकाशित एक अध्ययनने संज्ञानात्मक उपलब्धियों के मामलों में, विशेष रूप से बालिकाओं और आर्थिक रूप से वंचित परिवारों की बालिकाओं के बीच, ICDS के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाया है
  • ‘यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो प्रेस जर्नल्स’ के एक अन्य विशेषज्ञ समीक्षित (peer-reviewed) अध्ययनने पाया है कि जीवन के प्रथम तीन वर्षों के दौरान ICDS का लाभ पाने वाले बच्चों ने इसके लाभ नहीं पाने वाले बच्चों की तुलना में स्कूल शिक्षा के 0.1-0.3 अधिक ग्रेड पूरे किये।
  • ‘नैचुरल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित एक अध्ययन मेंपाया गया कि 13-18 आयु वर्ग के किशोर/किशोरियों, जो उपयुक्त ICDS कार्यान्वयन वाले गाँवों में पैदा हुए थे, ने स्कूल में नामांकन की 7.8% अधिक संभावना प्रदर्शित की और ICDS तक पहुँच से वंचित अपने समकक्षों की तुलना में औसतन 0.8 अतिरिक्त ग्रेड पूरे किये।

ICDS के प्रभावी कार्यान्वयन में चुनौतियाँ 

  • अवसंरचनात्मक मुद्दे: चिंताजनक रूप से 2.5 लाख केंद्र कार्यात्मक स्वच्छता सुविधाओं के बिना कार्यरत हैं और 1.5 लाख केंद्रों में पीने योग्य जल तक पहुँच का अभाव है। लगभग 4.15 लाख आँगनबाड़ी केंद्रों के पास अपना पक्का भवन नहीं है।
  • सप्लाई नेटवर्क प्लानिंग (SNP) और प्रशासनिक चुनौतियाँ: बच्चों और माताओं को प्रदान किये जाने वाले खाद्य और सूक्ष्म पोषक तत्त्व प्रायः अनियमितता, गुणवत्ताहीनता, अपर्याप्तता और भ्रष्टाचार से ग्रस्त होते हैं। SNP के लिये कोई स्पष्ट नीति या दिशानिर्देश मौजूद नहीं है।
  • मानव संसाधन की उपलब्धता: पर्याप्त संख्या में आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता (AWWs) और आँगनवाड़ी सहायिकाएँ (AWHs) उपलब्ध नहीं हैं, जो आँगनवाड़ी केंद्रों (AWCs) की मुख्य सेवा प्रदाता होती हैं। वे कार्य के अधिक बोझ, कम वेतन और खराब प्रशिक्षण की भी शिकार हैं।
  • आरंभिक बाल्यावस्था शिक्षा पर कम ध्यान: आँगनवाड़ी केंद्रों में 3-6 आयु वर्ग के बच्चों के लिये प्री-स्कूल शिक्षा की प्रायः अनदेखी की जाती है या इसे खराब तरीके से कार्यान्वित किया जाता है। प्री-स्कूल शिक्षा के लिये उपयुक्त अवसंरचना, पाठ्यक्रम, सामग्री या निगरानी उपलब्ध नहीं है।
  • प्रशिक्षण, निगरानी को सुदृढ़ करने से संबद्ध चुनौतियाँ: ICDS के लिये प्रशिक्षण, निगरानी, प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) की स्थिति कई जगहों पर कमज़ोर है या उपलब्ध नहीं है। प्रशिक्षण का तरीका पुराना और अनुपयुक्त है। निगरानी व्यवस्था अनियमित और अपूर्ण है। MIS मैनुअल है और भरोसेमंद नहीं है। ICT का पूर्ण उपयोग नहीं हो रहा है या यह अनुपलब्ध है।
  • कमज़ोर निगरानी: डेटा उपलब्धता, विश्वसनीयता और उपयोग में अंतराल के साथ ICDS की निगरानी एवं मूल्यांकन व्यवस्था कमज़ोर और असंगत है। MIS को नियमित रूप से अद्यतन नहीं किया जाता है और यह ICDS के सभी प्रासंगिक संकेतकों एवं परिणामों को शामिल नहीं करता है। निगरानी डेटा पर आधारित प्रतिक्रिया/फीडबैक और सुधारात्मक कार्रवाई का भी अभाव है।
  • आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं पर ICDS से इतर कार्यों का बोझ: प्रत्येक आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता (जो वस्तुतः ICDS के तहत सेवा वितरण की मूल इकाई है) को पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, रिकॉर्ड कीपिंग जैसे कई अन्य कार्य करने होते हैं। यह सेवाओं की गुणवत्ता और कवरेज को प्रभावित करता है। 
    • इसके अलावा, आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को प्रायः अन्य विभागों या प्राधिकरणों द्वारा जनगणना, चुनाव, सर्वेक्षण जैसे अन्य कर्तव्य सौंप दिये जाते है, जो उन्हें उनके ICDS संबंधी मूल कार्यों से विचलित करता है।

ICDS योजना को सशक्त करने के लिये क्या किया जाना चाहिये?

  • अवसंरचना में सुधार: आँगनवाड़ी केंद्रों की अवसंरचना में सुधार के लिये, जैसे पक्की संरचनाओं के निर्माण, स्वच्छता सुविधाएँ, पेयजल, बिजली, रसोई संबंधी साधन आदि के लिये सरकार द्वारा उन्हें अधिक धन एवं संसाधन प्रदान करना चाहिये।
    • आँगनवाड़ी केंद्रों के रखरखाव और प्रबंधन में सरकार को स्थानीय समुदाय और पंचायतों को भी शामिल करना चाहिये।
  • सप्लाई नेटवर्क प्लानिंग (SNP) को सुव्यवस्थित करना: सरकार को ICDS लाभार्थियों के लिये खाद्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की खरीद, वितरण और निगरानी को सुव्यवस्थित करना चाहिये तथा इनकी समयबद्ध एवं पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिये। SNP में भ्रष्टाचार और लीकेज को रोकने के लिये सरकार को पारदर्शी और जवाबदेह तंत्र भी अपनाना चाहिये।
    • सरकार को SNP के लिये स्पष्ट नीतिगत दिशानिर्देश और मानक संचालन प्रक्रियाएँ भी जारी करनी चाहिये।
  • मानव संसाधन की उपलब्धता में वृद्धि करना: सरकार को आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं एवं सहायिकाओं की संख्या बढ़ानी चाहिये और उनके वेतन एवं अन्य वित्तीय लाभों का उचित एवं नियमित भुगतान सुनिश्चित करना चाहिये।
    • सरकार को उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण, पर्यवेक्षण, समर्थन और उनके कार्य के लिये मान्यता प्रदान करनी चाहिये।
    • सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि उन पर अन्य विभागों या प्राधिकरणों द्वारा ICDS से इतर कार्यों का अत्यधिक बोझ न डाला जाए।
  • आरंभिक बाल्यावस्था शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना: सरकार को उपयुक्त अवसंरचना, पाठ्यक्रम, सामग्री एवं निगरानी प्रदान कर आँगनवाड़ी केंद्रों में 3-6 आयु वर्ग के बच्चों के लिये प्री-स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता एवं कवरेज में संवृद्धि करनी चाहिये।
    • सरकार को 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिये आरंभिक प्रोत्साहन एवं लर्निंग गतिविधियों को भी बढ़ावा देना चाहिये और उनके विकास में माता-पिता एवं देखभालकर्त्ताओं (caregivers) को संलग्न करना चाहिये।
  • प्रशिक्षण, निगरानी, MIS और ICT को सुदृढ़ करना: सरकार को स्मार्टफोन, एप्लीकेशन, बायोमीट्रिक डिवाइस जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर ICDS के लिये प्रशिक्षण, निगरानी, MIS और ICT तंत्र को सुदृढ़ करना चाहिये।
    • सरकार को प्रशिक्षण मॉड्यूल और विधियों को भी अद्यतन करना चाहिये तथा सभी ICDS कार्यकारियों के लिये नियमित एवं प्रभावी प्रशिक्षण सुनिश्चित करना चाहिये।

केस स्टडी: आँगनवाड़ी केंद्रों में अतिरिक्त कार्यकर्त्ताओं के लाभ

  • आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं के कार्य बोझ को कम करने के लिये प्रत्येक आँगनवाड़ी केंद्र में एक अतिरिक्त आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता को शामिल किया जा सकता है । इस दृष्टिकोण को लागू करने से विभिन्न लाभ प्राप्त हो सकते हैं: 
  • इससे बेहतर स्वास्थ्य संबंधी और शैक्षिक परिणाम प्राप्त होंगे। ICDS ढाँचे के भीतर बढ़ते कर्मी स्तर के प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिये तमिलनाडु में एक वृहत यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण किया गया, जिसके महत्त्वपूर्ण परिणाम सामने आए।
    • एक अंशकालिक कार्यकर्त्ता को शामिल करने से शुद्ध प्री-स्कूल निर्देशात्मक समय प्रभावी रूप से दोगुना हो गया, जिससे इस कार्यक्रम में नामांकित बच्चों के लिये गणित एवं भाषा की परीक्षा के अंकों में सुधार दिखा।
  • इस मॉडल के राष्ट्रव्यापी रोल-आउट की लागत इसके द्वारा प्रदत्त संभावित लाभों की तुलना में अपेक्षाकृत नगण्य है। अनुमानित दीर्घावधिक लाभ (जीवनकालीन आय अर्जन में अपेक्षित सुधार पर आधारित) व्यय का लगभग 13 से 21 गुना अधिक होगा।
  • इस नई आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता को केवल प्री-स्कूल और आरंभिक बाल्यावस्था शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
    • यह पहले से मौजूद कार्यकर्त्ताओं को बाल स्वास्थ्य और पोषण के लिये अधिक समय समर्पित कर सकने का अवसर देगा।
    • इससे आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को अपनी पहुँच का विस्तार करने और परिवारों की बड़ी संख्या की सेवा करने में भी मदद मिलेगी।
  • ग्रामीण समुदायों के कल्याण में सुधार के अलावा, यह स्थानीय निवासियों, विशेषकर महिलाओं के लिये रोज़गार के अवसर भी पैदा करेगा। इससे पूरे भारत में महिलाओं के लिये 1.3 मिलियन नए रोज़गार सृजित होंगे।

अभ्यास प्रश्न: समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) योजना कवरेज, गुणवत्ता, प्रभाव और शासन के मामले में कई चुनौतियों का सामना कर रही है। ICDS योजना के प्रदर्शन एवं चुनौतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये और इसे सुदृढ़ करने के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स:

प्रश्न. अब  तक भी भूख और गरीबी भारत में सुशासन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं। मूल्यांकन कीजिये कि इन भारी समस्याओं से निपटने में क्रमिक सरकारों ने किस सीमा तक प्रगति की है। सुधार के लिये उपाय सुझाइये। (2017)

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