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कुपोषण मुक्त भारत की राह में चुनौती बनते चाइल्ड ‘स्टंटिंग’ एवं ‘वेस्टिंग’

  • 26 Oct 2020
  • 19 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में कुपोषण मुक्त भारत की राह में चुनौती के रूप में चाइल्ड ‘स्टंटिंग’ (Stunting) एवं ‘वेस्टिंग’ (Wasting) से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

वैश्विक भुखमरी सूचकांक (Global Hunger Index- GHI), 2020 में बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की तुलना में भारत को 94वाँ स्थान दिया गया है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2020 के अनुसार, विश्व में लगभग 690 मिलियन लोग ‘अल्पपोषित’ (Undernourishment) श्रेणी के अंतर्गत आते हैं, 144 मिलियन बच्चे ‘स्टंटिंग’ (Stunting) से ग्रस्त हैं, जो स्थायी/क्रानिक अल्पपोषण (Chronic Undernutrition) को दर्शाता है, 47 मिलियन बच्चे ‘वेस्टिंग’ (Wasting) से ग्रस्त हैं यह भी ‘तीव्र’/एक्यूट अल्पपोषण (Acute Undernutrition) को दर्शाता है। भारत में युवा बच्चों की संख्या जो बहुत दुबले-पतले हैं, गंभीर अल्पपोषण को दर्शाते हैं, और भारत को सबसे गरीब अफ्रीकी देशों की श्रेणी में खड़ा कर देते हैं। इनमें से कुछ संकेतकों में पिछले पाँच वर्षों में वास्तविक गिरावट आई है।

वैश्विक भुखमरी सूचकांक (Global Hunger Index- GHI) क्या है?

  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक', भुखमरी की समीक्षा करने वाली एक वार्षिक रिपोर्ट है, इसे आयरलैंड स्थित एक एजेंसी ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ (Concern Worldwide) और जर्मनी के एक संगठन ‘वेल्ट हंगर हिल्फे’ (Welt Hunger Hilfe) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया जाता है।
  • इसका उद्देश्य वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तरों पर भुखमरी की समीक्षा करना है। 
  • GHI स्कोर, चार संकेतकों के आधार पर निकाला जाता है:
    1. अल्पपोषण
    2. चाइल्ड वेस्टिंग
    3. चाइल्ड स्टंटिंग
    4. बाल मृत्यु दर
  • इन चार संकेतकों के मूल्यों के आधार पर 0 से 100 तक के पैमाने पर भुखमरी को निर्धारित किया जाता है जहाँ ‘0’ सबसे अच्छा संभव स्कोर (भुखमरी नहीं) है और ‘100’ सबसे खराब स्थिति को दर्शाता है।
  • इन संकेतकों से संबंधित आँकड़ों के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र से प्राप्त सूचनाओं का उपयोग किया गया है। हालाँकि ये सभी अंतर्राष्ट्रीय संगठन किसी राष्ट्र के राष्ट्रीय डेटा का उपयोग करते हैं जैसे- भारत के संदर्भ में, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के डेटा का उपयोग किया जाता है।
    • वर्ष 2020 का GHI स्कोर वर्ष 2015-19 के आँकड़ों पर आधारित है।
  • प्रत्येक देश के GHI स्कोर को निम्न से अत्यंत खतरनाक स्थिति के रूप वर्गीकृत किया जाता है।

GHI

GHI से संबंधित आँकड़ों के आधार पर भारत की अन्य देशों से तुलना:

  • वर्ष 2020 में भारत वैश्विक भुखमरी सूचकांक में 27.2 के स्कोर के साथ 'गंभीर' (Serious) श्रेणी के अंतर्गत आता है। यह दो दशक पहले की स्थिति से एक महत्त्वपूर्ण सुधार है जब भारत 38.9 स्कोर के साथ 'खतरनाक' (Alarming) श्रेणी में था।
  • हालाँकि, ब्रिक्स देशों में भारत का स्कोर अन्य देशों की तुलना में कम है। 
    • चीन और ब्राज़ील दोनों ने पाँच से कम स्कोर किया है जिसे भुखमरी का निम्न स्तर माना जाता है।
    • दक्षिण अफ्रीका 13.5 के स्कोर के साथ 60वें स्थान पर है जो भुखमरी के मध्यम स्तर को दर्शाता है।
  • 'वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2020’ में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर है। वर्ष 2019 में भारत 117 देशों में से 102वें स्थान पर रहा था, जबकि वर्ष 2018 में भारत 103वें स्थान पर था। 
  • गौरतलब है कि GHI-2020 में भारत ने सूडान के साथ रैंक साझा करते हुए, 107 देशों में से 94वीं रैंक प्राप्त की है।
    • कुल 107 देशों में से केवल 13 देश भारत से खराब स्थिति में हैं, जिनमें रवांडा (97वें), नाइजीरिया (98वें), अफगानिस्तान (99वें), लाइबेरिया (102वें), मोजाम्बिक (103वें), चाड (107वें) आदि देश शामिल हैं।
    • GHI-2020 के स्कोर के अनुसार, 3 देश- चाड, तिमोर-लेस्ते और मेडागास्कर भुखमरी के खतरनाक स्तर पर हैं।
    • GHI-2020 के अनुसार, दुनिया भर में भुखमरी की स्थिति ‘मध्यम’ स्तर पर है।

भारत के संदर्भ में तथ्यात्मक विश्लेषण: 

  • समग्र रूप से अल्पपोषण (Undernourishment) के संदर्भ में, भारत की 14% आबादी को पर्याप्त कैलोरी नहीं मिलती है, हालाँकि इस संख्या में वर्ष 2005-07 की स्थिति (लगभग 20%) से सुधार हुआ है।
  • बाल मृत्यु दर 3.7% है जिसमें वर्ष 2000 की तुलना (9.2%) में एक महत्त्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई है। 
  • कई देश इन दो मापदंडों (अल्पपोषण एवं बाल मृत्यु दर) पर भारत से भी बदतर स्थिति में हैं।

GHI में भारत के खराब प्रदर्शन के लिये ज़िम्मेदार चाइल्ड ‘स्टंटिंग’ (Stunting) एवं ‘वेस्टिंग’ (Wasting):   

  • गौरतलब है कि भारत का खराब स्कोर लगभग पूरी तरह से चाइल्ड ‘स्टंटिंग’ (Stunting) एवं ‘वेस्टिंग’ (Wasting) के मापदंडों पर आधारित है।
  • वर्ष 2000 में 54.2% भारतीय बच्चे ‘स्टंटिंग’ (Stunting) की श्रेणी में थे जबकि GHI-2020 में लगभग 35% भारतीय बच्चे ‘स्टंटिंग’ (Stunting) श्रेणी में हैं, इस प्रकार यह आँकड़ा एक सकारात्मक परिणाम दर्शाता है। किंतु यदि वैश्विक नज़रिये से देखा जाये तो भारत अभी भी ‘चाइल्ड स्टंटिंग’ के संदर्भ में दुनिया में सबसे खराब स्थिति में है।
  • इसके अलावा पाँच वर्ष से कम आयु के 17.3% भारतीय बच्चे ‘वेस्टिंग’ (Wasting) की श्रेणी में आते हैं जो भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा ‘चाइल्ड वेस्टिंग’ की श्रेणी में दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि पिछले दो दशकों से इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ था जब यह आँकड़ा 17.1% था।

भारत में भुखमरी: एक मौसमी घटना

  • देश के कई हिस्सों में भुखमरी एक मौसमी घटना है, जहाँ अपनी आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर परिवारों को फसल बुवाई एवं कटाई चक्र के आधार पर भुखमरी का सामना करना पड़ता है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के तीसरे एवं चौथे दौर के बीच मौसमी अंतर हैं अर्थात् चाइल्ड ‘वेस्टिंग’ के उच्च स्तर को चौथे दौर में देखा जा सकता है।
  • हालाँकि, व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (वर्ष 2016-18) में भी चाइल्ड ‘वेस्टिंग’ दर 17.3% है।

भारत में उच्च स्तर के चाइल्ड ‘स्टंटिंग’ और ‘वेस्टिंग’ का मुख्य कारण:

  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार दक्षिण एशिया और अफ्रीका के गरीब देशों के मध्य चाइल्ड ‘वेस्टिंग’ के संदर्भ में एक दिलचस्प अंतर है।
    • अफ्रीकी बच्चे आमतौर पर जन्म के समय स्वस्थ होते हैं लेकिन जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे कमज़ोर होना शुरू हो जाते हैं। दूसरी ओर दक्षिण एशियाई बच्चों में जन्म के पहले छह महीनों के भीतर चाइल्ड ‘वेस्टिंग’ के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। यह मातृ स्वास्थ्य की खराब स्थिति को दर्शाता है।
      • गर्भावस्था से पहले, गर्भावस्था के दौरान और फिर बच्चे को जन्म देने के बाद स्तनपान के दौरान माताएँ कम उम्र, दुबली-पतली और अल्पपोषण का शिकार होती हैं।
  • जल्द शादी जैसे सामाजिक कारकों के कारण बहुत सी युवा महिलाएँ एवं उनके बच्चों का स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित होता है।
    • 15 से 19 वर्ष की आयु की लगभग 42% किशोर लड़कियों का बॉडी मास इंडेक्स (Body Mass Index- BMI) कम है जबकि 54% एनीमिया का शिकार हैं। 
    • लगभग 27% लड़कियों की शादी 18 वर्ष की कानूनी उम्र तक पहुँचने से पहले ही हो जाती है और 8% किशोर अपनी किशोरावस्था में बच्चे पैदा करना शुरू कर देते हैं।
    • लगभग 50% महिलाओं की किसी भी तरह के गर्भनिरोधकों तक पहुँच नहीं है।
    • मातृ स्वास्थ्य से संबंधित इन खराब संकेतकों के साथ-साथ बच्चे के स्वास्थ्य के लिये भी गंभीर परिणाम उत्पन्न होते हैं।
  • कम स्वच्छता जो डायरिया के लिये उत्तरदायी है, ‘चाइल्ड वेस्टिंग’ और स्टंटिंग का एक और प्रमुख कारण है।
    • पिछले NFHS के अनुसार, लगभग 40% परिवार अभी भी खुले में शौच कर रहे थे।
    • केवल 36% परिवारों ने सुरक्षित तरीके से बच्चों के मल का निपटान किया। 
    • पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में से दस में से एक बच्चा डायरिया से पीड़ित है।

विभिन्न भारतीय राज्यों की स्थिति:

  • व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (National Nutrition Survey) राज्यों में व्यापक परिवर्तनशीलता को दर्शाता है। 
  • चाइल्ड वेस्टिंग के संदर्भ में: 
    • झारखंड में तीन में से लगभग एक बच्चा 29% वेस्टिंग दर के साथ तीव्र अल्पपोषण से ग्रस्त है। हालाँकि यह अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य है। अन्य बड़े राज्य जैसे- तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में भी पाँच में से एक बच्चा वेस्टिंग से ग्रस्त है।
    • दिलचस्प बात यह है कि अन्य राज्य जैसे- बिहार, राजस्थान एवं ओडिशा जो आमतौर पर विकास सूचकांकों में खराब प्रदर्शन करते हैं वे राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण में राष्ट्रीय औसत से बेहतर करते हैं जहाँ चाइल्ड वेस्टिंग दर 13-14% है।
    • कई उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ उत्तराखंड और पंजाब में चाइल्ड वेस्टिंग 10% से कम है।
  • चाइल्ड स्टंटिंग के संदर्भ में
    • चाइल्ड स्टंटिंग के मामले में, बिहार का सबसे खराब प्रदर्शन है जहाँ 42% बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से बहुत छोटे हैं।
    • मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी स्टंटिंग की दर 40% से कम है और ऐसा ही प्रदर्शन गुजरात का भी है।
    • वहीँ जम्मू और कश्मीर में केवल 15% बच्चे स्टंटिंग का शिकार हैं जबकि तमिलनाडु और केरल में यह आँकड़ा 20% के आसपास है।

समाधान: 

  • खाद्य असुरक्षा, कम स्वच्छता, अपर्याप्त आवास, स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच जैसे कई मातृ स्वास्थ्य संबंधी संकट बच्चों में ‘वेस्टिंग’ एवं ‘स्टंटिंग’ के रूप में सामने आते हैं।
    • यद्यपि भारत में हाल के वर्षों में खाद्यान्न उत्पादन के रिकॉर्ड स्तर के साथ समग्र खाद्य सुरक्षा प्रदान की गई है किंतु गरीब परिवार अभी भी खाद्यान्न की पहुँच से बाहर हैं।
  • हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि चार में से तीन ग्रामीण, भारत सरकार के प्रमुख पोषण निकाय द्वारा निर्धारित सबसे सस्ते आहार को खरीद नहीं सकते हैं।
  • पिछले पाँच वर्षों में, सभी के लिये शौचालय बनाने और खुले में शौच को समाप्त करने के उद्देश्य से शुरू किये गए स्वच्छ भारत मिशन के बेहतर परिणाम आए हैं, जो NFHS के पाँचवें दौर में बेहतर मातृ एवं बाल स्वास्थ्य को प्रतिबिंबित कर सकते हैं।
  • एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यक्रम (Integrated Child Development Services Programme) का उद्देश्य छोटे बच्चों एवं माताओं को भोजन, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और टीकाकरण सेवाएँ प्रदान करना है।
  • महिलाओं के लिये जीवन को कठिन बनाने वाले प्रत्येक प्रकार के घरेलू अभावों को निपटाया जाना चाहिये।
  • कई जानकार मानते हैं कि देश में भूख और कुपोषण से निपटने के लिये विकास दर को बढ़ाने और देश में प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के लिये अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्रों- कृषि, उद्योग और सेवा में ऊँचे लक्ष्य निर्धारित कर उन्हें प्राप्त करने की आवश्यकता है।
  • ध्यातव्य है कि गरीबी से निपटने और देश में कुपोषण की दर को कम करने के लिये सर्वप्रथम कृषि क्षेत्र पर ध्यान देने की आवश्यकता है। देश में आज भी कृषि क्षेत्र काफी हद तक प्रकृति मुख्यतः बारिश पर निर्भर करता है।
    • हालाँकि वर्तमान में कृषि क्षेत्र भारत की कुल आय में मात्र 17% का योगदान देता है, परंतु कृषि पर देश की 50% से अधिक आबादी निर्भर करती है और इसी कारण इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
  • नई स्वास्थ्य नीति के तहत सरकार ने अब स्वास्थ्य पर GDP का कुल 2.5 फीसदी खर्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो कि सराहनीय प्रयास है। गौरतलब है कि सरकार अब तक इस कार्य हेतु GDP का मात्र 1.04 प्रतिशत ही खर्च करती थी।
  • नवीन पशुगणना में सामने आया है कि देश में दूध का उत्पादन तेज़ी से बढ़ रहा है इसलिये बच्चों तक दूध और दुग्ध उत्पादों की उपयुक्त आपूर्ति सुनिश्चित करनी भी आवश्यक है।

निष्कर्ष:

  • GHI-2020 में भारत के प्रदर्शन को देखते हुए मौजूदा कुपोषण स्थिति में सुधार की दिशा में किये जा रहे प्रयासों में महत्त्वपूर्ण बदलाव करने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि भारत ने वर्ष 2022 तक ‘कुपोषण मुक्त भारत’ के लिये एक कार्य योजना विकसित की है। वर्तमान रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए इस योजना में अपेक्षित सुधार किया जाना चाहिये। 
  • इसमें कोई संदेह नहीं है कि भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी कुपोषण का सबसे प्रमुख कारण है किंतु समाज के एक बड़े हिस्से में इस संबंध में जागरूकता की कमी स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है। आवश्यक है कि कुपोषण संबंधी समस्याओं को संबोधित करने के लिये जल्द-से-जल्द आवश्यक कदम उठाए जाएँ, ताकि देश के आर्थिक विकास में कुपोषण के कारण उत्पन्न बाधा को समाप्त किया जा सके।

अभ्यास प्रश्न:  मातृ स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किये बिना वर्ष 2022 तक कुपोषण मुक्त भारत का लक्ष्य प्राप्त कर पाना असंभव है। टिप्पणी कीजिये।

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