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भारत और कुपोषण

  • 01 Nov 2019
  • 14 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में कुपोषण के विभिन्न आयामों और भारत में कुपोषण की स्थिति पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

वर्ष 2017 की वैश्विक पोषण रिपोर्ट बताती है कि भारत में 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग की 51 प्रतिशत महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं। भारत में कुपोषण एक अत्यंत जटिल मुद्दा है, आँकड़ों के अनुसार भारत की तकरीबन एक तिहाई जनसंख्या कुपोषण का सामना कर रही है, वहीं लगभग 40 प्रतिशत बच्चों को पर्याप्त मात्रा में भोजन भी प्राप्त नहीं हो पाता। भारत सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिये अब तक कई प्रयास किये हैं, लेकिन तेजी से बढ़ती जनसंख्या और शहरी क्षेत्रों में रहने वाली आबादी के बढ़ते अनुपात के कारण निरंतर समस्याएँ पैदा हो रही हैं।

क्या है कुपोषण?

  • कुपोषण (Malnutrition) वह अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन, अव्यवस्थित रूप से लेने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है और जिसके कारण गंभीर स्थिति पैदा हो जाती है।
  • कुपोषण तब भी होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्त्वों की सही मात्रा नहीं होती है।
  • दरअसल, हम स्वस्थ रहने के लिये भोजन के ज़रिये ऊर्जा और पोषक तत्त्व प्राप्त करते हैं, लेकिन यदि भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिलते हैं तो हम कुपोषण के शिकार हो सकते हैं।

कुपोषण का प्रभाव

  • शरीर को आवश्यक संतुलित आहार लंबे समय तक नहीं मिलने से बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।
  • बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ कुपोषण ही है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधापन भी कुपोषण का ही दुष्परिणाम है।
  • कुपोषण बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। यह जन्म के बाद या उससे भी पहले शुरू हो जाता है और 6 महीने से 3 वर्ष की आयु वाले बच्चों में तीव्रता से बढ़ता है।
  • सबसे भयंकर परिणाम इसके द्वारा होने वाला आर्थिक नुकसान है। कुपोषण के कारण मानव उत्पादकता 10-15 प्रतिशत तक कम हो जाती है जो सकल घरेलू उत्पाद को 5-10 प्रतिशत तक कम कर सकता है।

भारत में कुपोषण की स्थिति

  • अपनी एक हालिया रिपोर्ट में विश्व बैंक ने कहा था कि वर्ष 1990 से वर्ष 2018 के बीच भारत ने गरीबी से लड़ने के लिये अतुलनीय कार्य किया है और इससे देश में गरीबी दर में काफी गिरावट दर्ज की गई है।
    • इस अवधि में देश की गरीबी दर तकरीबन आधी रह गई है।
  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2006 से वर्ष 2016 के दौरान भारत सबसे तेज़ी से गरीबी हटाने का कार्य किया है और इन 10 वर्षों में लगभग 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आए हैं।
  • गरीबी सूचकांक रिपोर्ट 2019 के मुताबिक, देश के कुल गरीबों का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा देश के मात्र चार राज्यों झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में है।
  • यद्यपि देश में गरीबी दर में गिरावट आ रही है, परंतु कुपोषण और भूख की समस्या आज भी देश में बरकरार है।
  • हाल ही में जारी 'द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन- 2019’ के अनुसार, विश्व में 5 वर्ष तक की उम्र के प्रत्येक 3 बच्चों में से एक बच्चा कुपोषण अथवा अल्पवज़न की समस्या से ग्रस्त है। पूरे विश्व में लगभग 200 मिलियन तथा भारत में प्रत्येक दूसरा बच्चा कुपोषण के किसी-न-किसी रूप से ग्रस्त है।
    • रिपोर्ट में यह भी सामने आया था कि वर्ष 2018 में भारत में कुपोषण के कारण 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 8.8 लाख बच्चों की मृत्यु हुई जो कि नाइजीरिया (8.6 लाख), पाकिस्तान (4.09 लाख) और कांगो गणराज्य (2.96 लाख ) से भी अधिक है।
  • इसी महीने वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2019 जारी किया गया जिसमें भारत 117 देशों में से 102वें स्थान पर रहा, जबकि वर्ष 2018 में भारत 103वें स्थान पर था।
  • भारत में 6 से 23 महीने के कुल बच्चों में से मात्र 9.6 प्रतिशत बच्चों को न्यूनतम स्वीकार्य आहार मिल पाता है।
  • अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन का कहना है कि देश में कुपोषण और भूख से पीड़ित बच्चों की स्थिति काफी खतरनाक है इससे निपटने के लिये जल्द-से-जल्द नए विकल्पों को खोजा जाना चाहिये।
  • जन्म के बाद बच्चों को जिन पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है, वह बच्चों को मिल नहीं पाता है। देश में स्थिति यह है कि न तो बच्चों का सही ढंग से टीकाकरण हो पाता है और न ही उनके इलाज की उचित व्यवस्था हो पाती है।
  • विगत 20 वर्षों में भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन 198 मिलियन टन से बढ़कर 269 मिलियन टन हो गया है, परंतु खाद्य उत्पादन में वृद्धि के बावजूद भारत में कुपोषण की दर बहुत अधिक है।
  • कुपोषण के कारण भारत की GDP को तकरीबन 6.4 प्रतिशत का नुकसान होता है और इसी कारण भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों से बहुत पीछे है, जहाँ कुपोषण के कारण GDP को क्रमशः 2.3 प्रतिशत और 1.5 प्रतिशत का ही नुकसान होता है।
  • एक युवा कार्यशील जनसंख्या वाले देश में कुपोषण जैसी समस्या आर्थिक महाशक्ति बनने के प्रयासों में बाधक है।

भारत में कुपोषण के कारण

  • क्रय शक्ति कम होने के कारण गरीब परिवारों के लिये आवश्यक मात्रा में पौष्टिक आहार क्रय करना मुश्किल हो जाता है और जिसके कारण वे कुपोषण जैसी अन्य समस्याओं का शिकार हो जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप उनकी उत्पादन क्षमता में कमी आती है और निर्धनता तथा कुपोषण का चक्र इसी प्रकार चलता रहता है।
  • देश में पौष्टिक और गुणवत्तापूर्ण आहार के संबंध में जागरूकता की कमी स्पष्ट दिखाई देती है जिसके कारण तकरीबन पूरा परिवार कुपोषण का शिकार हो जाता है।
  • पोषण की कमी और बीमारियाँ कुपोषण के सबसे प्रमुख कारण हैं। अशिक्षा और गरीबी के चलते भारतीयों के भोजन में आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है जिसके कारण कई प्रकार के रोग, जैसे- एनीमिया, घेंघा व बच्चों की हड्डियाँ कमज़ोर होना आदि हो जाते हैं। साथ ही पारिवारिक खाद्य असुरक्षा तथा जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण माना जा सकता है।
  • देश में स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता भी इसका एक मुख्य कारण माना जा सकता है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, भारत में लगभग 1700 मरीज़ों पर एक डॉक्टर उपलब्ध हो पाता है, जबकि वैश्विक स्तर पर 1000 मरीज़ों पर 1.5 डॉक्टर होते हैं।
  • कुपोषण का बड़ा कारण लैंगिक असमानता भी है। भारतीय महिला के निम्न सामाजिक स्तर के कारण उसके भोजन की मात्रा और गुणवत्ता में पुरुष के भोजन की अपेक्षा कहीं अधिक अंतर होता है।
  • स्वच्छ पेयजल की अनुपलब्धता तथा गंदगी भी कुपोषण का एक बहुत बड़ा कारण है।

सरकारी प्रयास- राष्ट्रीय पोषण मिशन

राष्ट्रीय पोषण मिशन, जिसे पोषण अभियान के नाम से भी जाना जाता है, की शुरुआत भारत सरकार द्वारा वर्ष 2018 में की गई थी।

  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission- NNM) का लक्ष्य छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोरियों में कुपोषण और एनीमिया को कम करना है।
  • इस मिशन का उद्देश्य कुपोषण को संबोधित करने हेतु विभिन्न योजनाएँ बनाना तथा इस कार्य के लिये एक मज़बूत तंत्र स्थापित करना है। साथ ही लक्ष्यों को पूरा करने के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को प्रोत्साहित करना भी इसका एक अन्य उद्देश्य है।
  • ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय पोषण मिशन की अभिकल्पना नीति आयोग द्वारा ‘राष्ट्रीय पोषण रणनीति’ के तहत की गई है। इस रणनीति का उद्देश्य वर्ष 2022 तक “कुपोषण मुक्त भारत” बनाना है।

राष्ट्रीय पोषण मिशन से संबंधित चुनौतियाँ

  • विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय का अभाव कार्यक्रम के कार्यान्वयन को प्रभावित करता है।
  • जुलाई 2019 तक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों ने उन्हें आवंटित धन का केवल 16 प्रतिशत ही उपयोग किया था।
  • वास्तविक समय पर डेटा की निगरानी, ​​स्थिरता और जवाबदेही का अभाव राष्ट्रीय पोषण मिशन को भी प्रभावित करता है।
  • आँगनवाडी केंद्र, माताओं और बच्चों के लिये सेवाओं के वितरण हेतु काफी महत्त्वपूर्ण हैं। परंतु बिहार और ओडिशा सहित कई राज्य कामकाजी आँगनवाडी केंद्र स्थापित करने और कर्मचारियों की भर्ती के लिये संघर्ष कर रहे हैं।

आगे की राह

  • कई जानकार मानते हैं कि देश में भूख और कुपोषण से निपटने के लिये विकास दर को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • देश में प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के लिये अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्रों- कृषि, उद्योग और सेवा में ऊँचे लक्ष्य निर्धारित कर उन्हें प्राप्त करने की आवश्यकता है।
  • ध्यातव्य है कि गरीबी से निपटने और देश में कुपोषण की दर को कम करने के लिये सर्वप्रथम कृषि क्षेत्र पर ध्यान देने की आवश्यकता है। देश में आज भी कृषि क्षेत्र काफी हद तक प्रकृति मुख्यतः बारिश पर निर्भर करता है।
    • हालाँकि वर्तमान में कृषि क्षेत्र भारत की कुल आय में मात्र 17 प्रतिशत का योगदान देता है, परंतु कृषि पर देश की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी निर्भर करती है और इसी कारण इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
  • नई स्वास्थ्य नीति के तहत सरकार ने अब स्वास्थ्य पर GDP का कुल 2.5 फीसदी खर्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो कि सराहनीय प्रयास है। गौरतलब है कि सरकार अब तक इस कार्य हेतु GDP का मात्र 1.04 प्रतिशत ही खर्च करती थी।
  • शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े युवाओं को रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रमों के माध्यम से प्रशिक्षित करना होगा।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार जैसे महत्त्वपूर्ण कदम भी उठाए जाने चाहिये।
  • नवीन पशुगणना में सामने आया है कि देश में दूध का उत्पादन तेज़ी से बढ़ रहा है इसलिये बच्चों तक दूध और दुग्ध उत्पादों की उपयुक्त आपूर्ति सुनिश्चित करनी भी आवश्यक है।

प्रश्न: भारत में कुपोषण की स्थिति को स्पष्ट करते हुए राष्ट्रीय पोषण मिशन पर चर्चा कीजिये।

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