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भारतीय अर्थव्यवस्था

पंचवर्षीय योजनाएँ

  • 24 Aug 2022
  • 17 min read

पंचवर्षीय योजनाओं का इतिहास:

  1. अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिये नियोजन के विचार को 1940 और 1950 के दशक में पूरे विश्व में जनसमर्थन मिला था।
  2. वर्ष 1944 में उद्योगपतियों का एक समूह एकजुट हुआ जिसने भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था की स्थापना हेतु एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ‘बॉम्बे प्लान’ कहा जाता है।
  3. भारत की स्वतंत्रता के बाद ही नियोजित विकास को देश के लिये एक महत्त्वपूर्ण विकल्प के रूप में देखा जाने लगा।
  4. जोसेफ स्टालिन प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने सोवियत संघ में वर्ष 1928 में पंचवर्षीय योजना को लागू किया।
  5. भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था के निर्माण और विकास को प्राप्त करने के लिये स्वतंत्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाओं (FYPs) की एक शृंखला शुरू की।

पंचवर्षीय योजना की अवधारणा:

  1. पंचवर्षीय योजनाओं का सामान्य विचार है कि भारत सरकार अपनी ओर से दस्तावेज़ तैयार करती है, जिसमें अगले पाँच वर्षों के लिये उसकी आमदनी और खर्च की योजना होती है।
  2. केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट को दो भागों में बाँटा गया है: गैर-योजना बजट और योजना बजट
  3. गैर-योजना बजट सालाना दैनंदिन मदों पर खर्च किया जाता है। योजना बजट को योजना द्वारा निर्धारित प्राथमिकताओं के अनुसार पंचवर्षीय आधार पर खर्च किया जाता है।
  4. वर्ष 1951 से 2017 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का मॉडल पंचवर्षीय योजनाओं पर आधारित नियोजन की अवधारणा पर आधारित था।
  5. पंचवर्षीय योजनाओं को तैयार करने, कार्यान्वित करने तथा विनियमित करने का कार्य योजना आयोग नामक संस्था द्वारा किया गया।
  6. वर्ष 2015 में योजना आयोग को नीति आयोग नामक थिंक टैंक द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
  7. नीति आयोग ने तीन दस्तावेज़ प्रस्तुत किये हैं - 3 वर्षीय एक्शन एजेंडा, 7 वर्षीय मध्यम अवधि का रणनीति पेपर और 15 वर्षीय विज़न डॉक्यूमेंट।

पंचवर्षीय योजना

विशेषताएँ

प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56)

  • प्रथम पंचवर्षीय योजना ने भारत में आर्थिक विकास पर ज़ोर दिया।
  • इसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय संसद में प्रस्तुत किया था।
  • एक युवा अर्थशास्त्री के.एन. राज ने तर्क दिया कि भारत को पहले दो दशकों के दौरान "धीरे-धीरे विकास" करना चाहिये।
  • इसने मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें बाँधों और सिंचाई में निवेश शामिल था। उदाहरण- भाखड़ा नंगल बाँध के लिये भारी आवंटन किया गया था।
  • यह हैरोड डोमर मॉडल पर आधारित था और इसने बचत बढ़ाने पर अधिक ज़ोर दिया।
  • 1956 के अंत तक, पाँच भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान स्थापित किये गए।
  • इस योजना की लक्षित वृद्धि दर 2.1% जबकि प्राप्त विकास दर 3.6% थी।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61)

  • दूसरी पंचवर्षीय योजना ने तीव्र औद्योगीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र पर बल दिया।
  • इसकी रूपरेखा तैयार करने और नियोजन का कार्य पी.सी. महालनोबिस के नेतृत्व में किया गया।
  • इसने त्वरित संरचनात्मक परिवर्तन पर ज़ोर दिया।
  • इस योजना के तहत सरकार ने घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिये आयात पर शुल्क अधिरोपित किया।
  • लक्षित वृद्धि दर 4.5% थी जबकि वास्तविक विकास दर अपेक्षा से थोड़ी कम (4.27%) थी। 

तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-66)

  1. कृषि और गेहूँ के उत्पादन में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  2. राज्यों को विकास संबंधी अतिरिक्त उत्तरदायित्व सौंपे गए। उदाहरण- राज्यों को माध्यमिक और उच्च शिक्षा का उत्तरदायित्व सौंपा गया।
  3. ज़मीनी स्तर अथवा ग्रासरूट लेवल पर लोकतंत्र के लिये पंचायत चुनाव की शुरुआत की गई।
  4. लक्षित वृद्धि दर 5.6% थी जबकि वास्तविक विकास दर केवल 2.4% ही रही।
  5. इसने तीसरी योजना की विफलता का संकेत दिया और सरकार को "योजना अवकाश" (1966-67, 1967-68, और 1968-69) की घोषणा करनी पड़ी। चीन-भारत युद्ध और भारत-पाक युद्ध योजना अवकाश के प्राथमिक कारणों में शामिल थे, जिनके कारण तीसरी पंचवर्षीय योजना विफल हुई थी।

चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74)

  • इसे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान पेश किया गया था तथा इसके माध्यम से पिछली विफलताओं में सुधार करने का प्रयास किया गया।
  • गाडगिल फॉर्मूले के आधार पर, स्थिरता के साथ विकास और आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रगति पर बहुत अधिक ज़ोर दिया गया।
  • सरकार ने 14 प्रमुख भारतीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और हरित क्रांति ने कृषि को बढ़ावा दिया।
  • सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम (Drought Prone Area Programme) भी शुरू किया गया।
  • इस योजना की लक्षित वृद्धि दर 5.6% थी जबकि वास्तविक विकास दर 3.6% थी। 

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-78)

  • इसने रोज़गार बढ़ाने और गरीबी उन्मूलन (गरीबी हटाओ) पर ज़ोर दिया।
  • वर्ष 1975 में, विद्युत आपूर्ति अधिनियम में संशोधन किया गया, जिससे केंद्र सरकार बिजली उत्पादन और पारेषण के क्षेत्र में प्रवेश कर सकी।
  • भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्रणाली की शुरुआत की गई थी।
  • इस योजना के पहले वर्ष में शुरू किया गया न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (Minimum Needs Programme-MNP), जिसका उद्देश्य बुनियादी न्यूनतम आवश्यकताएँ प्रदान करना था। MNP को डी.पी. धर द्वारा तैयार किया गया था।
  • लक्षित विकास दर 4.4% और वास्तविक विकास दर 4.8% थी।
  • वर्ष 1978 में नवनिर्वाचित मोरारजी देसाई सरकार ने इस योजना को खारिज कर दिया। 

रोलिंग प्लान (1978-80)

  • यह अस्थिरता का दौर था। जनता पार्टी सरकार ने पाँचवीं पंचवर्षीय योजना को खारिज कर दिया और एक नई छठी पंचवर्षीय योजना प्रस्तुत पेश की। बदले में वर्ष 1980 में इंदिरा गांधी के फिर से प्रधानमंत्री चुने जाने पर भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस द्वारा इसे खारिज कर दिया गया था।
  • एक रोलिंग प्लान का तात्पर्य ऐसी योजना से है जिसमें योजना की प्रभावशीलता का मूल्यांकन वार्षिक रूप से किया जाता है और इस मूल्यांकन के आधार पर अगले वर्ष एक नई योजना बनाई जाती है। परिणामस्वरूप, इस पूरी योजना में, आवंटन और लक्ष्य दोनों को अपडेट किया जाता है।

छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85)

 

  • इसने मूल्य नियंत्रणों को समाप्त करके आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत को रेखांकित किया।
  • इसे नेहरूवादी समाजवाद (Nehruvian Socialism) के अंत के रूप में देखा गया।
  • जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिये, परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया गया।
  • शिवरमन समिति की सिफारिश पर, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक- नाबार्ड (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD) की स्थापना की गई।
  • लक्षित विकास दर 5.2% और वास्तविक विकास दर 5.7% थी, जिसका अर्थ है कि यह पंचवर्षीय योजना सफल रही।

सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90)

 

  • यह योजना प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान प्रस्तुत की गई।
  • इसने प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से औद्योगिक उत्पादकता के स्तर में सुधार पर ज़ोर दिया।
  • अन्य उद्देश्यों में आर्थिक उत्पादकता में वृद्धि, खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि और सामाजिक न्याय प्रदान करते हुए रोज़गार सृजन करना शामिल था।
  • छठी पंचवर्षीय योजना के परिणामों ने ने सातवीं पंचवर्षीय योजना की सफलता के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान किया।
  • इसने गरीबी-विरोधी कार्यक्रमों, आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग और भारत को एक स्वतंत्र अर्थव्यवस्था बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
  • इसने वर्ष 2000 तक आत्मनिर्भर विकास के लिये पूर्व अपेक्षित लक्ष्यों को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित किया।
  • लक्षित वृद्धि दर 5.0% थी जबकि वास्तविक विकास दर 6.01% रही। 

वार्षिक योजनाएँ (1990-92)

आठवीं पंचवर्षीय योजना वर्ष 1990 में शुरू नहीं की गई थी और बाद के वर्षों 1990-91 और 1991-92 को वार्षिक योजना के रूप में माना गया था। इसका कारण काफी हद तक आर्थिक अस्थिरता थी। भारत को इस दौरान विदेशी मुद्रा भंडार के संकट का सामना करना पड़ा। प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में अर्थव्यवस्था की समस्या से निपटने के लिये भारत में उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण (Liberalisation, Privatisation, Globalisation- LPG) की शुरुआत की गई थी।

आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97)

  • आठवीं योजना ने उद्योगों के आधुनिकीकरण को बढ़ावा दिया।
  • 1 जनवरी, 1995 को भारत विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) का सदस्य बना।
  • इसके लक्ष्य जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना, गरीबी कम करना, रोज़गार सृजन, बुनियादी ढाँचे के विकास को मज़बूत करना, पर्यटन का प्रबंधन करना, मानव संसाधन विकास पर ध्यान केंद्रित करना आदि थे।
  • इसने विकेंद्रीकरण के माध्यम से पंचायतों और नगर पालिकाओं को शामिल करने पर भी ज़ोर दिया।
  • लक्षित वृद्धि दर 5.6% थी लेकिन वास्तविक विकास दर अविश्वसनीय रूप से 6.8% रही।

नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002)

  • इसने स्वतंत्रता के बाद से भारत के पचास वर्षों को चिह्नित किया और अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद का नेतृत्व किया।
  • इसने गरीबी के पूर्ण उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सामाजिक क्षेत्रों हेतु समर्थन की पेशकश की और आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के मामले में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों ने संयुक्त रूप से प्रयास किया।
  • तीव्र विकास और लोगों के जीवन की गुणवत्ता के बीच संबंधों को संतुलित करने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।
  • इसके अलावा, अन्य उद्देश्यों में सामाजिक रूप से वंचित वर्गों को सशक्त बनाना, आत्मनिर्भरता विकसित करना तथा देश में सभी बच्चों के लिये प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना शामिल था।
  • इस योजना की रणनीतियों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये निर्यात की उच्च दर में वृद्धि करना तीव्र विकास के लिये दुर्लभ संसाधनों का कुशल उपयोग आदि शामिल थे।
  • लक्षित विकास दर 7.1% अनुमानित की गई थी लेकिन इसकी वास्तविक विकास दर 6.8% रही।

दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07)

इस योजना की विशेषताओं में समावेशी तथा समान विकास को बढ़ावा देना शामिल था।

इसने प्रति वर्ष 8% GDP विकास दर का लक्ष्य रखा।

इसका उद्देश्य गरीबी को 50 प्रतिशत तक कम करना और 80 मिलियन लोगों के लिये रोज़गार का सृजन करना था। इसके अलावा, इसका उद्देश्य क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना था।

इसने वर्ष 2007 तक शिक्षा और मज़दूरी दरों के क्षेत्र में लैंगिक अंतराल को कम करने पर भी ज़ोर दिया।

लक्षित विकास दर 8.1% थी जबकि वास्तविक वृद्धि 7.6% रही। 

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012)

  • ग्यारहवीं योजना उच्च शिक्षा में नामांकन बढ़ाने और दूरस्थ शिक्षा के साथ-साथ आईटी संस्थानों पर ध्यान केंद्रित करने के अपने उद्देश्य के साथ बहुत महत्त्वपूर्ण थी। उदाहरण: वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम प्रस्तुत किया गया जो कि वर्ष 2010 में लागू हुआ, इसने 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये शिक्षा को निशुल्क और अनिवार्य कर दिया।
  • इसकी मुख्य विषयवस्तु तीव्र और अधिक समावेशी विकास थी।
  • इसका उद्देश्य पर्यावरणीय स्थिरता और लैंगिक असमानता में कमी लाना था।
  • इसकी रूपरेखा सी. रंगराजन ने तैयार की थी।
  • इसमें वर्ष 2009 तक सभी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने पर भी बल दिया गया।
  • लक्षित विकास दर 9% और वास्तविक विकास दर 8% थी।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17)

  • इस योजना की विषयवस्तु "तीव्र, अधिक समावेशी और धारणीय विकास” (Faster, More Inclusive and Sustainable Growth) थी।
  • इस योजना का उद्देश्य बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को मज़बूत करना और सभी गाँवों को बिजली आपूर्ति प्रदान करना था।
  • इसका उद्देश्य स्कूल में प्रवेश के संदर्भ में लैंगिक और सामाजिक अंतराल को दूर करना तथा उच्च शिक्षा तक पहुँच में सुधार करना है।
  • इसके अलावा, हर साल 1 मिलियन हेक्टेयर तक हरित क्षेत्र को बढ़ाना और गैर-कृषि क्षेत्र में नए अवसर सृजित करना भी इसके उद्देश्यों में शामिल था।
  • लक्षित वृद्धि दर 9% थी लेकिन वर्ष 2012 में, राष्ट्रीय विकास परिषद ने इस बारहवीं योजना के लिये 8% की वृद्धि दर को मंज़ूरी दी।

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