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सामाजिक न्याय

शिक्षा का अधिकार

  • 05 Mar 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक याचिका के संदर्भ में केंद्र सरकार से शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम के तहत आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के कक्षा 8 से 12 तक के बच्चों के लिये मुफ्त शिक्षा से संबंधित निर्णय नहीं लेने के संबंध में जवाब मांगा है। 

प्रमुख बिंदु:

शिक्षा के अधिकार का संवैधानिक प्रावधान:

  • मूल भारतीय संविधान के भाग- IV (DPSP) के अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 39 (f) में राज्य द्वारा वित्तपोषित समान और सुलभ शिक्षा का प्रावधान किया गया।
  • शिक्षा के अधिकार पर पहला आधिकारिक दस्तावेज़ वर्ष 1990 में राममूर्ति समिति की रिपोर्ट थी।
  • वर्ष 1993 में उन्नीकृष्णन जेपी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि शिक्षा का अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है।
  • तपस मजूमदार समिति (1999) ने अनुच्छेद 21(A) को शामिल करने की अनुशंसा की थी।
  • वर्ष 2002 में 86वें संवैधानिक संशोधन से शिक्षा के अधिकार को संविधान के भाग- III में एक मौलिक अधिकार के तहत शामिल किया गया।
    • इसे अनुच्छेद 21A के अंतर्गत शामिल किया गया, जिसने 6-14 वर्ष के बच्चों के लिये शिक्षा के अधिकार को एक मौलिक अधिकार बना दिया।
    • इसने एक अनुवर्ती कानून शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 का प्रावधान किया।

शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 की विशेषताएँ:

  • RTE अधिनियम का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना है।
  • धारा 12 (1) (C) में कहा गया है कि गैर-अल्पसंख्यक निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल आर्थिक रूप से कमज़ोर और वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों के लिये प्रवेश स्तर ग्रेड में कम- से-कम 25% सीटें आरक्षित करें।
  • यह विद्यालय न जाने वाले बच्चे के लिये एक उपयुक्त आयु से संबंधित कक्षा में भर्ती करने का प्रावधान भी करता है।
  • यह केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय एवं अन्य ज़िम्मेदारियों को साझा करने के बारे में भी जानकारी देता है।
    • भारतीय संविधान में शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है और केंद्र व राज्य दोनों इस विषय पर कानून बना सकते हैं।
  • यह छात्र-शिक्षक अनुपात, भवन और बुनियादी ढाँचा, स्कूल-कार्य दिवस, शिक्षकों के लिये कार्यावधि से संबंधित मानदंडों और मानकों का प्रावधान करता है।
  • इस अधिनियम में गैर-शैक्षणिक कार्यों जैसे-स्थानीय जनगणना, स्थानीय प्राधिकरण, राज्य विधानसभाओं और संसद के चुनावों तथा आपदा राहत के अलावा अन्य कार्यों में शिक्षकों की तैनाती का प्रावधान करता है।
  • यह अपेक्षित प्रविष्टि और शैक्षणिक योग्यता के अनुसार शिक्षकों की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
  • यह निम्नलिखित का निषेध करता है:
    • शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न।
    • बच्चों के प्रवेश के लिये स्क्रीनिंग प्रक्रिया।
    • प्रति व्यक्ति शुल्क।
    • शिक्षकों द्वारा निजी ट्यूशन।
    • बिना मान्यता प्राप्त विद्यालय।
  • यह बच्चे को उसके अनुकूल और बाल केंद्रित शिक्षा प्रणाली के माध्यम से भय, आघात और चिंता से मुक्त बनाने पर केंद्रित है।

EWS के लिये कक्षा 8 से ऊपर RTE के तहत मुफ्त शिक्षा के लिये तर्क:

  • बच्चों के माता-पिता को 9वीं कक्षा के बाद निजी स्कूलों में अत्यधिक फीस चुकानी पड़ती है, जिसे वे वहन नहीं कर सकते।
  • कक्षा 8 के बाद बिना मान्यता प्राप्त निजी स्कूल से सरकारी स्कूल में बदलाव से बच्चों की मनःस्थिति और शिक्षा प्रभावित हो सकती है और इस प्रकार आरटीई के लाभों का विस्तार शिक्षा में निरंतरता को सुनिश्चित करेगा।

उच्च शिक्षा में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लिये आरक्षण:

  • 103वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करके आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये शिक्षा संस्थानों, नौकरियों और दाखिले में आर्थिक आरक्षण (10% कोटा) की शुरुआत की।
  • इस संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) जोड़ा गया।
  • यह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये बनाई गई 50% आरक्षण की नीति में कवर नहीं हुए गरीबों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये लागू की गई थी।
  • यह समाज के EWS वर्ग को आरक्षण प्रदान करने के लिये केंद्र और राज्यों दोनों को सक्षम बनाता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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