भारतीय अर्थव्यवस्था
द बिग पिक्चर : गरीबी उन्मूलन
- 02 Feb 2019
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संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
भारत ने चरम गरीबी (Extreme Poverty) को बहुत प्रभावी रूप से कम कर दिया है जिससे हम सभी अवगत हैं। अंतिम आधिकारिक डेटा 8 साल पुराना है। विश्व बैंक के आकलन के अनुसार, 2011 में 268 मिलियन लोग प्रतिदिन 1.90 डॉलर से कम (चरम गरीबी) में जीवन यापन कर रहे थे। घरेलू खपत पर डेटा का अगला दौर जून में आने की संभावना है जिसमें गरीबों की संख्या में भारी गिरावट देखी जा सकती है।
- विश्व डेटा लैब द्वारा तैयार किया गया उन्नत सांख्यिकीय मॉडल जो कि वैश्विक गरीबी की निगरानी करता है, के अनुसार 50 मिलियन से कम भारतीय अब एक दिन में 1.90 डॉलर से कम पर जीवन यापन कर सकते हैं।
- अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, तेज़ी से आर्थिक विकास और सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग ने देश में चरम गरीबी को कम करने में मदद की है।
गरीबी क्या है?
- गरीबी को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें व्यक्ति जीवन के निर्वाह के लिये बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है। इन बुनियादी आवश्यकताओं में शामिल हैं- भोजन, वस्त्र और घर।
- चरम गरीबी अंततः मृत्यु की ओर ले जाती है। भारत में उपभोग और आय दोनों के आधार पर गरीबी के स्तर का आकलन किया जाता है।
- उपभोग की गणना उस धन के आधार पर की जाती है जो एक परिवार द्वारा आवश्यक वस्तुओं पर खर्च किया जाता है और आय की गणना उस परिवार द्वारा अर्जित आय के अनुसार की जाती है।
- एक और महत्त्वपूर्ण अवधारणा जिसका उल्लेख किया जाना ज़रूरी है, वह है गरीबी रेखा की अवधारणा। यह गरीबी रेखा भारत में गरीबी के मापन के लिये एक बेंचमार्क का काम करती है।
- गरीबी रेखा को आय के उस अनुमानित न्यूनतम स्तर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो परिवार को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो।
- 2014 तक गरीबी रेखा का निर्धारण ग्रामीण इलाकों में 32 रुपए प्रतिदिन और कस्बों तथा शहरों में 47 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से निर्धारित की गई थी।
गरीबी दूर करने की नीति आयोग की रणनीति
- 2017 में नीति आयोग ने गरीबी दूर करने हेतु एक विज़न डॉक्यूमेंट प्रस्तावित किया था। इसमें 2032 तक गरीबी दूर करने की योजना तय की गई थी।
- इस डॉक्यूमेंट में कहा गया था कि गरीबी दूर करने हेतु तीन चरणों में काम करना होगा-
- गरीबों की गणना – देश में गरीबों की सही संख्या का पता लगाया जाए।
- गरीबी उन्मूलन संबंधी योजनाएँ लाई जाएँ।
- लागू की जाने वाली योजनाओं की मॉनीटरिंग या निरीक्षण किया जाए।
- आज़ादी के 70 साल बाद भी गरीबों की वास्तविक संख्या का पता नहीं चल पाया है।
- देश में गरीबों की गणना के लिये नीति आयोग ने अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में एक टास्क फ़ोर्स का गठन किया था। 2016 में इस टास्क फ़ोर्स की रिपोर्ट आई जिसमें गरीबों की वास्तविक संख्या नहीं बताई गई।
- टास्क फ़ोर्स ने इसके लिये एक नया पैनल बनाने की सिफारिश की और सरकार ने सुमित्र बोस के नेतृत्व में एक समिति गठित की जिसकी रिपोर्ट मार्च 2018 में प्रस्तुत की गई।
- समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना को आधार बनाकर देश में गरीबों की गणना की जानी चाहिये। इसमें संसाधनहीन लोगों को शामिल किया जाए तथा जो संसाधन युक्त हैं, उन्हें इसमें शामिल न किया जाए।
- नीति आयोग ने गरीबी दूर करने के लिये दो क्षेत्रों पर ध्यान देने का सुझाव दिया-पहला योजनाएँ तथा दूसरा MSME। देश में वर्कफ़ोर्स के लगभग 8 करोड़ लोग MSME क्षेत्र में काम करते हैं तथा कुल वर्कफोर्स के 25 करोड़ लोग कृषि क्षेत्र में काम करते हैं। अर्थात् कुल वर्कफोर्स का 65 प्रतिशत इन दो क्षेत्रों में काम करता है।
- वर्कफोर्स का यह हिस्सा काफी गरीब है और गरीबी में जीवन यापन कर रहा है। यदि इन्हें संसाधन मुहैया कराए जाएँ, इनकी आय दोगुनी हो जाए तथा मांग आधारित विकास पर ध्यान दिया जाए तो शायद देश से गरीबी ख़त्म हो सकती है।
गरीबी उन्मूलन की दिशा में हम कहाँ खड़े हैं?
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2018 (Multidimentional Poverty Index-MPI) के मुताबिक, 2005-06 तथा 2015-16 के बीच भारत में 270 मिलियन से अधिक लोग गरीबी से बाहर निकले और देश में गरीबी की दर लगभग 10 वर्ष की अवधि में आधी हो गई है। भारत ने बहुआयामी गरीबी को कम करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
- इस प्रकार दस वर्षों के भीतर, भारत में गरीब लोगों की संख्या 271 मिलियन से कम हो गई जो कि वास्तव में बहुत बड़ी उपलब्धि है।
- पिछले कुछ सालों में भारत में गरीबी दूर करने की दिशा में अच्छा प्रयास किया गया है। पिछले आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, 22 प्रतिशत भारतीय गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।
- भारत की अधिकांश आबादी अभी भी गाँवों में रहती है। हालाँकि भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पर्याप्त प्रवासन हुआ है लेकिन भारत की लगभग 68% आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।
- हालाँकि गरीबी समय के साथ कम होती रही है, शहरी क्षेत्रों में गरीबी में कमी की दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक रही है। शहरी क्षेत्रों की 13.7% की तुलना में आज भी ग्रामीण भारत की लगभग 26% आबादी गरीब है।
- रंगराजन समिति के अनुमान भी इस बात के संकेत देते हैं कि 2011-12 में ग्रामीण गरीबी का प्रतिशत शहरी गरीबी से अधिक था और यह लगभग 31% थी।
- आज़ादी के 70 साल बाद भी गाँव सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के लगभग हर पहलू पर पीछे दिखाई दे रहे हैं।
- भारत ने समृद्ध शहरों और गरीब गाँवों की अर्थव्यवस्था बनाई है जिससे शहरी क्षेत्रों में वृद्धि और ग्रामीण क्षेत्रों में गिरावट आ रही है।
- केंद्र में मौजूदा सरकार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई जिसका प्राथमिक उद्देश्य "सब का साथ सबका विकास" था। शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की बढ़ती खाई को पाटने के लिये अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी गरीबी
- ग्रामीण गरीबी काफी हद तक कम उत्पादकता और बेरोज़गारी का परिणाम है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था व्यापक रूप से कृषि पर निर्भर करती है। लेकिन भारत में खेती अप्रत्याशित मानसून पर निर्भर करती है जिससे उपज में अनिश्चितता की स्थिति बनी रहती है।
- पानी की कमी, खराब मौसम तथा सूखा भी ग्रामीण इलाकों में गरीबी का प्रमुख कारण है। चरम गरीबी कई किसानों को आत्महत्या करने के लिये मजबूर करती है।
- कई ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति इतनी दयनीय है कि इनमें स्वच्छता, बुनियादी ढाँचा, संचार और शिक्षा जैसी सुविधाओं का भी अभाव है।
- भारत में अमीरों और गरीबों के बीच व्यापक अंतर भी गरीबी का मुख्य कारण है। इससे अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। अतः दोनों के बीच बढ़ते इस आर्थिक अंतर को कम करना होगा।
- देश की सामाजिक व्यवस्था को बदलना होगा। साथ ही कृषि समस्याओं को हल करने के लिये किसानों को सिंचाई की सभी सुविधाएँ दी जानी चाहिये।
गरीबी उन्मूलन की दिशा में सरकारों द्वारा किये गए प्रयास
- विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार का लक्ष्य गरीबी दूर करना नहीं बल्कि समृद्धि लाना होना चाहिये क्योंकि समृद्धि से ही गरीबी उन्मूलन संभव है।
- आर्थिक सुधारों के बाद भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ गति से वृद्धि कर रही है। लेकिन उच्च आर्थिक वृद्धि दर के बिना गरीबी कम नहीं हो सकती।
- आर्थिक वृद्धि को ध्यान में रख कर सरकार द्वारा अनेक योजनाओं एवं कार्यक्रमों की शुरुआत की गई है, जैसे रोज़गार सृजन कार्यक्रम, आय समर्थन कार्यक्रम, रोज़गार गारंटी तथा आवास योजना आदि।
- प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) ऐसा ही एक कार्यक्रम है। यह योजना आर्थिक रूप से वंचित लोगों को विभिन्न वित्तीय सेवाओं जैसे- बचत खाता, बीमा, आवश्यकतानुसार ऋण, पेंशन आदि तक पहुँच प्रदान करती है।
- किसान विकास पत्र के माध्यम से किसान 1,000, 5000 तथा 10,000 रुपए मूल्यवर्ग में निवेश कर सकते हैं। इससे जमाकर्त्ताओं का धन 100 महीनों में दोगुना हो सकता है।
- दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY) को ग्रामीण क्षेत्रों को बिजली की निरंतर आपूर्ति प्रदान करने हेतु शुरू किया गया है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत देश भर के गाँवों में लोगों को 100 दिनों के काम की गारंटी दी गई है।
- जहाँ तक ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों के आय स्तर में वृद्धि का संबंध है, यह एक सफल कार्यक्रम साबित हुआ है।
- इंदिरा आवास योजना ग्रामीण क्षेत्र में आवास सुविधा प्रदान करती है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश भर में 20 लाख घर बनाना है जिसमें 65% ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।
- योजना के अनुसार, जो लोग अपना घर बनाने में सक्षम नहीं हैं, उनको रियायती दर पर ऋण प्रदान किया जाता है।
- एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम दुनिया में अपनी तरह की सबसे महत्वाकांक्षी योजना है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गरीबों को रोज़गार प्रदान कर उनके कौशल को विकसित करने के अवसर प्रदान करना है ताकि उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके।
- भारत में गरीबी उन्मूलन के लिये सरकार द्वारा शुरू की गई कुछ अन्य योजनाओं में शामिल हैं: राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार कार्यक्रम (NREP), राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना (NMBS), ग्रामीण श्रम रोज़गार गारंटी कार्यक्रम (RLEGP), राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना (NFBS), शहरी गरीबों के लिये स्वरोज़गार कार्यक्रम (SEPUP) आदि।
- उपरोक्त सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों ने गरीबी कम करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
क्या किये जाने की ज़रूरत है?
- किसी भी गरीबी उन्मूलन रणनीति का एक आवश्यक तत्त्व घरेलू आय में बड़ी गिरावट को रोकना है।
- राज्य प्रायोजित गरीबी और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सही सोच के साथ लागू किया जाना चाहिये।
- कई देशों में गरीबी को कम करने के लिये सशर्त नकद हस्तांतरण (CCT) को एक प्रभावी साधन के रूप में प्रस्तावित किया गया है।
- हालाँकि, पूर्ण लाभ पाने के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण प्रदान करने में सक्षम सामाजिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता है।
- यूटिलिटी, विद्युतीकरण, आवास, ट्रांसपोर्टेशन सुविधाओं के विकास पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
- भारत में केवल 1,500 किलोमीटर एक्सप्रेस वे है, जबकि चीन और अमेरिका में यह 100 हज़ार किलोमीटर से भी अधिक है। अतः इसे बढ़ाए जाने की ज़रूरत है।
- कृषि उत्पादन पर्याप्त नहीं है। गाँवों में आर्थिक गतिविधियों का अभाव है। इन क्षेत्रों की ओर ध्यान देने की ज़रूरत है। कृषि क्षेत्र में सुधार की ज़रूरत है ताकि मानसून पर निर्भरता कम हो।
- बैंकिंग, क्रेडिट क्षेत्र, सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क, उत्पादन और विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा तथा ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सुधार की ज़रूरत।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा पर अधिक निवेश किये जाने की ज़रूरत है ताकि मानव उत्पादकता में वृद्धि हो सके। गुणात्मक शिक्षा, कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही रोज़गार के अवसर, महिलाओं की भागीदारी, बुनियादी ढाँचा तथा सार्वजनिक निवेश पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है।
- हमें आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ाने की आवश्यकता है। आर्थिक वृद्धि दर जितनी अधिक होगी गरीबी का स्तर उतना ही नीचे चला जाएगा।
निष्कर्ष
गरीबी देश के लिये बहुत बड़ी समस्या है। इसे ख़त्म करने के लिये युद्ध स्तर पर प्रयास किया जाना चाहिये। हमारी सरकार देश के विकास के लिये कदम उठा रही है। गरीबी उन्मूलन अर्थव्यवस्था और समाज की एक सतत् और समावेशी वृद्धि सुनिश्चित करेगा। हम सभी को देश से गरीबी दूर करने हेतु किये जा रहे प्रयासों में हरसंभव मदद के लिये तैयार रहना चाहिये।