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इतिहास प्रैक्टिस प्रश्न

  • ‘पुरातत्व विज्ञान आर्यों को नहीं जानता है, केवल साहित्य ही आर्यों को जानता है।’ समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

    30 May, 2020

    उत्तर :

    ऋग्वेद, वैदिक ग्रंथ से हमें आर्यों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती है। इस साहित्यिक ग्रंथ में आर्यों के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन के बारे में विस्तृत उल्लेख मिलता है।

    • ऋग्वेद से भारत में आर्यों के आगमन एवं उनके आरंभिक निवास का पता चलता है, जैसे-  गोमती घाटी, सिंधु तथा सरस्वती नदियों के उल्लेख से लगता है कि आरंभिक आर्यों का निवास पूर्वी अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के पंजाब व हरियाणा में था।
    • आर्य समाज का पाँच कबीलों अर्थात् पंचजन समुदाय में विभाजन एवं उनके मध्य आंतरिक संघर्ष का उल्लेख आर्य समाज के आंतरिक जनजातीय संघर्ष की ओर संकेत करता है।
    • ऋग्वेद में आर्यों के भौतिक जीवन की विस्तृत चर्चा मिलती है, जैसे-  गाय एवं सांड की चर्चा तथा समाज में बढ़ई, रथकार, बुनकर, चर्मकार, कुम्हार आदि शिल्पियों का उल्लेख।
    • ऋग्वेद के उल्लेखों में आर्यन जनजातीय राजव्यवस्था की भी चर्चा है। ऋग्वेद में कबीलों या कुलों के आधार पर बहुत से संगठनों के उल्लेख मिलते हैं, जैसे- सभा, समिति, विदथ और गण।
    • इस वैदिक ग्रंथ में आर्यों की पारिवारिक व्यवस्था का विस्तृत वर्णन मिलता है, जैसे- स्त्रियों द्वारा पतियों के साथ यज्ञों में आहुतियाँ देना, विवाह संस्था का कायम होना तथा विधवा विवाह एवं नियोग प्रथा के प्रचलन का आभास आदि।
    • ऋग्वैदिक वर्णनों से इस युग में ही समाज में व्यवसाय के आधार पर विभेदीकरण के संकेत मिलते हैं।
    • ऋग्वेद के सूक्तों में आर्यों के देवताओं तथा उनके उपासना पद्धति का उल्लेख मिलता है। प्राकृतिक शक्तियों को देवताओं के रूप में मानना एवं केवल भौतिक उत्थान के लिये उनकी उपासना की जानकारी हमें इस साहित्यिक स्रोत से मिलती है।

    स्पष्ट है कि ऋग्वैदिक साहित्य से आर्यों के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है, लेकिन इसे एकमात्र ऐतिहासिक स्रोत कहा जाना उपयुक्त प्रतीत नहीं होता। आर्यों के बारे में पुरातत्त्व विज्ञान के कुछ साक्ष्य भी मिले हैं, जो साहित्यिक उल्लेखों की पुष्टि करते हैं।

    • ऋग्वेद में सात सिंधु क्षेत्रों का उल्लेख है। आज भी पश्चिमोत्तर भारत में सिंधु और उसकी पाँच सहायक नदियाँ मौजूद हैं। हालाँकि सरस्वती नदी विलुप्त हो चुकी है।
    • भारत में तो नहीं, लेकिन ईराक के लगभग 1600 ई. पूर्व के कस्साहट अभिलेखों तथा सीरिया में मितनी अभिलेखों में आर्य नामों का उल्लेख मिलता है।
    • हरियाणा एवं पंजाब में वैदिककालीन चित्रित धूसर मृदभांड मिले हैं।
    • हरियाणा के भगवानपुरा से ऋग्वैदिककालीन घोड़ों की हड्डियाँ मिली है। आर्य समाज में घोड़ों की प्रधानता थी।

    उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि आर्यों के जीवन इतिहास की जानकारी साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक दोनों स्रोतों से मिलती है। हाँ, इतना अवश्य है कि साहित्यिक उल्लेखों का जिक्र पुरातात्त्विक साक्ष्यों से कहीं अधिक है। प्राचीन इतिहास की जानकारी एवं बेहतर निष्कर्षों के लिये दोनों, साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक स्रोतों का एक साथ  अध्ययन करना ही बेहतर सुझाव है।

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