जैव विविधता और पर्यावरण
IPCC रिपोर्ट एवं जलवायु परिवर्तन शमन में समानता
- 19 Mar 2024
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प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी पैनल, एकीकृत मूल्यांकन मॉडल (IAM), कार्बन कैप्चर और स्टोरेज, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन मेन्स के लिये:IPCC रिपोर्ट एवं जलवायु परिवर्तन शमन में समानता, पर्यावरण प्रदूषण तथा गिरावट |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अध्ययन में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी पैनल द्वारा मूल्यांकन किये गए 500 से अधिक भविष्य के उत्सर्जन परिदृश्यों पर प्रकाश डाला गया। ये परिदृश्य दुनिया के जलवायु प्रक्षेपवक्र हेतु अनुमान प्रस्तुत करते हैं।
- अध्ययन के निष्कर्ष IPCC रिपोर्ट के जलवायु कार्रवाई के अनुमानित मार्गों के अंर्तगत महत्त्वपूर्ण असमानताओं पर प्रकाश डालते हैं।
IPCC मूल्यांकन रिपोर्ट क्या हैं?
- परिचय:
- IPCC नियमित रूप से व्यापक मूल्यांकन रिपोर्ट जारी करती है जो जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक साहित्य का संश्लेषण करती है।
- इन रिपोर्टों में भौतिक विज्ञान, जलवायु अनुकूलन एवं शमन कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने वाले तीन कार्य समूह मूल्यांकन शामिल हैं, साथ ही उनके निष्कर्षों को समेकित करने वाली एक संश्लेषण रिपोर्ट भी शामिल है।
- भविष्य के परिदृश्यों का आकलन:
- IPCC यह अनुमान लगाने के लिये 'मॉडल किये गए मार्गों' का उपयोग करता है कि पृथ्वी की सतह के तापमान को सीमित करने के लिये क्या करना होगा।
- ये मार्ग इंटीग्रेटेड असेसमेंट मॉडल (IAM) का उपयोग करके तैयार किये गए हैं जो मानव एवं पृथ्वी प्रणालियों का वर्णन करते हैं।
- IAM जटिल मॉडल हैं जो ऊर्जा एवं जलवायु प्रणालियों के साथ अर्थव्यवस्थाओं के संभावित भविष्य की जाँच भी करते हैं।
- इसके व्यापक आर्थिक मॉडल सकल घरेलू उत्पाद के अनुमानित विकास स्तर का संकेत दे सकते हैं; इसके ऊर्जा मॉडल भविष्य की खपत का अनुमान लगा सकते हैं। इसके ऊर्जा मॉडल भविष्य की मांग का पूर्वानुमान लगा सकते हैं, वनस्पति मॉडल भूमि-उपयोग परिवर्तनों की जाँच कर सकते हैं और पृथ्वी-प्रणाली मॉडल यह समझाने के लिये भौतिक नियम लागू करते हैं कि जलवायु कैसे विकसित होती है।
- विभिन्न विषयों में इस तरह के एकीकरण के साथ, IAMs का उद्देश्य जलवायु कार्रवाई पर नीति-प्रासंगिक दिशा-निर्देश प्रदान करना है।
- हालाँकि इन मॉडलों में कमियाँ भी हैं। वे कम-से-कम लागत वाले आकलन को प्राथमिकता देते हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत में सौर संयंत्र स्थापित करने या वनीकरण करने की पूर्ण लागत अमेरिका की तुलना में कम है।
- हालाँकि विशेषज्ञों ने देशों को जलवायु कार्रवाई के बोझ को समान रूप से साझा करने में सक्षम बनाने के परिदृश्य को सुविधाजनक बनाने का सुझाव दिया है, जिसमें विकसित देश त्वरित और व्यापक शमन उपाय कर रहे हैं।
- IPCC यह अनुमान लगाने के लिये 'मॉडल किये गए मार्गों' का उपयोग करता है कि पृथ्वी की सतह के तापमान को सीमित करने के लिये क्या करना होगा।
नए अध्ययन के निष्कर्ष क्या हैं?
- छठी आकलन रिपोर्ट के तहत जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) के शोधकर्त्ताओं ने 556 परिदृश्यों का विश्लेषण किया। जिसमें अनुमान लगाया गया है, कि वर्ष 2050 तक, उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण, पश्चिम तथा पूर्वी एशिया (चीन को छोड़कर) सहित विश्व की 60% आबादी वाले क्षेत्रों में अभी भी वैश्विक औसत प्रति व्यक्ति जीडीपी से कम रहेगा।
- वैश्विक उत्तर और दक्षिण के बीच वस्तुओं, ऊर्जा तथा जीवाश्म ईंधन की खपत में समान असमानताएँ विद्यमान हैं।
- इसके अलावा, इन परिदृश्यों से संकेत मिलता है, कि विकासशील देशों को कार्बन पृथक्करण और कार्बन कैप्चर और स्टोरेज प्रौद्योगिकियों के मामले में अधिक लागत वहन करना होगी।
- यह गलत तरीके से गरीब देशों पर शमन और कार्बन डाइऑक्साइड हटाने की ज़िम्मेदारी डालता है।
- शोधकर्त्ता धनी देशों की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी की अनदेखी करने और विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये ग्लोबल साउथ की ऊर्जा ज़रूरतों को संबोधित करने में विफल रहने हेतु परिदृश्यों की आलोचना करते हैं।
- यह जलवायु कार्रवाई के अनुमानित मार्गों के भीतर महत्त्वपूर्ण असमानताओं को उजागर करता है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने में समानता क्यों मायने रखती है?
- ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी:
- धनी देशों, विशेष रूप से वैश्विक उत्तर में, ने ऐतिहासिक रूप से औद्योगीकरण और आर्थिक विकास के माध्यम से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान दिया है।
- इन ऐतिहासिक उत्सर्जनों ने जलवायु परिवर्तन में असंगत रूप से योगदान दिया है।
- जलवायु परिवर्तन से निष्पक्षता से निपटने के लिये इस ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को पहचानना आवश्यक है।
- विकासशील देशों की असुरक्षा:
- विकासशील देश, जो अक्सर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये सबसे कम ज़िम्मेदार होते हैं, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं। उनके पास अक्सर जलवायु परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों जैसे चरम मौसम की घटनाओं, समुद्र के स्तर में वृद्धि और बदलती कृषि स्थितियों के अनुकूल संसाधनों तथा बुनियादी ढाँचे की कमी होती है।
- यह सुनिश्चित करने में समानता के विचार महत्त्वपूर्ण हैं कि कमज़ोर समुदायों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिये आवश्यक समर्थन और संसाधन प्राप्त हों।
- संसाधनों तक पहुँच:
- विकसित और विकासशील देशों के बीच शमन और अनुकूलन प्रयासों के लिये संसाधनों तक पहुँच असमान है।
- अमीर देशों के पास आमतौर पर नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु-लचीला बुनियादी ढाँचे और अनुकूलन उपायों में निवेश करने के लिये अधिक वित्तीय संसाधन, तकनीकी क्षमताएँ तथा बुनियादी ढाँचा होता है।
- निष्पक्षता विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिये जलवायु वित्तपोषण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण सहायता तक एकसमान पहुँच सुनिश्चित करती है।
- सामाजिक न्याय:
- जलवायु परिवर्तन देशों के बीच मौजूदा सामाजिक असमानताओं और अन्याय को व्यापक बनता है। हाशिए पर जीवन यापन करने वाले समूह, मूल निवासी और कम आय अर्जित करने वाली आबादी सहित सुभेद्य समुदाय को अमूमन जलवायु प्रभावों का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है।
- जलवायु कार्रवाई में समानता में इन सामाजिक अन्यायों का समाधान करना और जलवायु नीतियों तथा उपायों से समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित लोग का लाभ सुनिश्चित करना शामिल है।
- वैश्विक सहयोग:
- जलवायु परिवर्तन से निपटने में सार्थक प्रगति हासिल करने के लिये वैश्विक सहयोग और एकजुटता की आवश्यकता है।
- समानता के सिद्धांत, जैसे कि एकसमान किंतु विभेदित उत्तरदायित्व, जलवायु परिवर्तन का समाधान करने में देशों की अलग-अलग क्षमताओं और उत्तरदायित्व को स्वीकार कर सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
- जलवायु कार्रवाई में समानता सुनिश्चित करने से विश्वास जनित होता है और साझा जलवायु लक्ष्यों की दिशा में कार्य करने के लिये राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC):
- परिचय:
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान के आकलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्था है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1988 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा की गई थी जिसका उद्देश्य नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार, इसके प्रभावों व भविष्य के जोखिमों तथा अनुकूलन एवं शमन के विकल्पों का नियमित आकलन प्रदान करना था।
- IPCC के आकलन सभी स्तरों पर सरकारों को जलवायु-संबंधी नीतियाँ विकसित करने के लिये एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं जिनको आधार बनाकर संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय में वार्ता की जाती है।
- IPCC आकलन रिपोर्ट:
- वर्ष 1988 के बाद से, IPCC ने छह मूल्यांकन चक्र चलाए हैं और छह आकलन रिपोर्टें दी हैं, जो विश्व भर में जलवायु परिवर्तन के बारे में सबसे व्यापक वैज्ञानिक रिपोर्ट हैं। वे हैं –
- पहली आकलन रिपोर्ट (FAR) (1990)
- दूसरी आकलन रिपोर्ट (SAR) (1995)
- तीसरी आकलन रिपोर्ट (TAR) (2001)
- चौथी आकलन रिपोर्ट (AR4) (2007)
- पाँचवीं आकलन रिपोर्ट (AR5) (2014)
- छठी आकलन रिपोर्ट(AR6) (2023)
- IPCC वर्तमान (2024) में अपने सातवें आकलन चक्र (AR7) में है।
- वर्ष 1988 के बाद से, IPCC ने छह मूल्यांकन चक्र चलाए हैं और छह आकलन रिपोर्टें दी हैं, जो विश्व भर में जलवायु परिवर्तन के बारे में सबसे व्यापक वैज्ञानिक रिपोर्ट हैं। वे हैं –
निष्कर्ष
- IPCC परिदृश्यों और UNFCCC में उल्लिखित सिद्धांतों का विश्लेषण विकसित तथा विकासशील देशों के बीच जलवायु कार्रवाई ज़िम्मेदारियों में महत्त्वपूर्ण असमानताओं को उजागर करता है।
- समानता और विभेदित ज़िम्मेदारियों के सिद्धांतों के बावजूद, वर्तमान शमन मार्ग प्रायः राष्ट्रों की ऐतिहासिक तथा आर्थिक वास्तविकताओं को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
- इसके साथ ही समानता और निष्पक्षता को प्राथमिकता देने के लिये जलवायु कार्रवाई रणनीतियों को फिर से व्यवस्थित करना अनिवार्य है। इसमें विकसित देशों के महत्त्वपूर्ण दायित्व को स्वीकार करना तथा शमन प्रयासों के संबंध में अल्प विकसित क्षेत्रों पर न्यायसंगत दायित्व सुनिश्चित करना शामिल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: b मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) |