जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु वित्त सर्वेक्षण
- 02 Nov 2023
- 28 min read
यह एडिटोरियल 01/11/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Stocktaking climate finance — a case of circles in red ink” लेख पर आधारित है। इसमें जलवायु वित्त से जुड़ी चुनौतियों एवं जटिलताओं और प्रतिबद्धताओं की पूर्ति तथा जलवायु परिवर्तन से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये इन मुद्दों को संबोधित करने की तात्कालिकता के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs), GCF, SCCF, LDCF, UN-REDD कार्यक्रम, बहुपक्षीय विकास बैंक (MDB), राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAF), ग्रीनवॉशिंग, राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (NCEF), कार्बन टैक्स, ग्लोबल स्टॉकटेक्स, स्वच्छ विकास तंत्र। मेन्स के लिये:जलवायु वित्त, जलवायु वित्त का उद्देश्य, जलवायु वित्त के प्रमुख स्रोत, जलवायु वित्त का उद्देश्य, जलवायु वित्त के लिये मुख्य चुनौतियाँ, जलवायु कार्रवाई के वित्तपोषण के लिये भारतीय पहल, जलवायु वित्त के लिये अगले चरण। |
जलवायु परिवर्तन वार्ताओं में विकसित और विकासशील देशों के बीच विश्वास बनाए रखने के लिये जलवायु वित्त (Climate finance) महत्त्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) के दुबई में आहूत ‘कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज़’ (COP 28) में जलवायु वित्त का एक प्रमुख मुद्दा बनने की उम्मीद की जा रही है।
जलवायु वित्त क्या है?
- UNFCC के अनुसार, जलवायु वित्त सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक स्रोतों से प्राप्त स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण है जो जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन कार्यों के समर्थन का ध्येय रखता है।
- आवश्यक घटक:
- वित्तपोषण स्रोत: जलवायु वित्त विभिन्न स्रोतों से प्राप्त हो सकता है, जिसमें सार्वजनिक स्रोत (जैसे सरकारी वित्तपोषण एवं अंतर्राष्ट्रीय सहायता) और निजी स्रोत (जैसे वित्तीय और कॉर्पोरेट क्षेत्रों से प्राप्त निवेश) शामिल हैं।
- वित्तीय साधन: जलवायु वित्त को प्रसारित करने के लिये कई वित्तीय साधनों (financial instruments) का उपयोग किया जा सकता है, जिनमें अनुदान, ऋण, इक्विटी निवेश और कार्बन क्रेडिट जैसे वित्तीय साधन शामिल हैं।
- प्राप्तकर्ता: सरकारों, व्यवसायों और नागरिक समाज संगठनों सहित विभिन्न प्राप्तकर्ताओं (recipients) को जलवायु वित्त प्रदान किया जा सकता है।
- परियोजनाएँ और गतिविधियाँ: जलवायु वित्त जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन में योगदान करने वाली विभिन्न परियोजनाओं और गतिविधियों का समर्थन कर सकता है। इनमें नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ, ऊर्जा दक्षता उपाय और ऐसे परियोजनाएँ शामिल हो सकती हैं जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति प्रत्यास्थता (resilience) के निर्माण में मदद करती हैं।
- शासन और निरीक्षण: जलवायु वित्त के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने और प्रभावी शासन एवं निरीक्षण सुनिश्चित करने के लिये कई पहल और तंत्र स्थापित किये गए हैं, जैसे कि हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund) और स्वच्छ विकास तंत्र (Clean Development Mechanism)।
जलवायु वित्त के प्राथमिक उद्देश्य
- शमन (Mitigation): ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने से संबद्ध परियोजनाओं एवं पहलों को वित्तपोषित करना। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, सतत कृषि और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने वाली अन्य गतिविधियों में निवेश करना शामिल है।
- अनुकूलन (Adaptation): उन उपायों का समर्थन करना जो समुदायों और राष्ट्रों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के अनुकूल बनने में मदद करते हैं। इसमें आधारभूत संरचना, आपदा प्रत्यास्थता, जल संसाधन प्रबंधन और जलवायु संबंधी जोखिमों के प्रति संवेदनशीलता को कम करने हेतु अन्य रणनीतियों में निवेश करना शामिल हो सकता है।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (Technology Transfer): विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर पर्यावरण के अनुकूल एवं संवहनीय प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करना, ताकि विकासशील देशों को निम्न-कार्बन, जलवायु-प्रत्यास्थी विकास मार्गों पर आगे बढ़ने में सक्षम बनाया जा सके।
- क्षमता निर्माण (Capacity Building): जलवायु परिवर्तन को बेहतर ढंग से समझने एवं संबोधित करने, जलवायु नीतियों एवं रणनीतियों को विकसित करने एवं लागू करने और जलवायु वित्त तक प्रभावी पहुँच सुनिश्चित करने एवं इसका प्रबंधन करने के लिये राष्ट्रों एवं समुदायों की क्षमता का निर्माण करना।
किस मात्रा में जलवायु वित्त की आवश्यकता है?
- अनुकूलन वित्तपोषण अंतराल (Adaptation Financing Gap): वैश्विक अनुकूलन वित्तपोषण अंतराल बड़ा है और बढ़ता जा रहा है। विकासशील देशों में अनुकूलन लागत वर्ष 2030 तक लगभग 340 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष और वर्ष 2050 तक 565 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है।
- शमन वित्तपोषण अंतराल (Mitigation Financing Gap): शमन प्रयासों के लिये अंतराल और भी बड़ा है, जिसके वर्ष 2030 तक प्रति वर्ष 850 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- ट्रिलियन-डॉलर जलवायु वित्त की चुनौती: ‘ग्लासगो फाइनेंशियल एलायंस फॉर नेट ज़ीरो’ का अनुमान है कि शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करने के लिये वर्ष 2050 तक कम से कम 125 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर, यानी प्रति वर्ष लगभग 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी।
- विकासशील देशों के लिये जलवायु वित्त: विकासशील देशों द्वारा, विशेष रूप से ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों द्वारा, अपने NDCs जो वित्तीय आवश्यकताएँ प्रकट की गई हैं, वे मात्रा में बड़ी हैं और वर्ष 2030 तक 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकती हैं।
- 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक लक्ष्य: वर्ष 2009 में UNFCCC के COP15 में विकसित देशों ने संयुक्त रूप से जलवायु संकट को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये शमन एवं अनुकूलन प्रयासों का समर्थन करने हेतु प्रति वर्ष कम से कम 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित किया था।
जलवायु वित्त के प्रमुख स्रोत कौन-से हैं?
- साधनों के प्रकार (Types of Instruments):
- हरित बॉण्ड (Green bonds): हरित बॉण्ड एक प्रकार का ऋण है जो किसी सार्वजनिक या निजी संस्थान द्वारा पर्यावरणीय उद्देश्यों के लिये धन का उपयोग करने हेतु जारी किया जाता है।
- ऋण अदला-बदली (Debt swaps): इसमें ऋणदाता देश (creditor country) द्वारा किसी निवेशक को विदेशी मुद्रा ऋण (foreign currency debt) की बिक्री करना शामिल है जो शमन एवं अनुकूलन परियोजनाओं के विकास के लिये ऋण-प्राप्तकर्ता देश (debtor country) के साथ ऋण की अदला-बदली कर सकता है।
- गारंटी (Guarantees): ये ऐसी प्रतिबद्धताएँ हैं जिनके तहत कोई गारंटर जलवायु परिवर्तन गतिविधियों के संदर्भ में उधारकर्ता (borrower) द्वारा उधारदाता (lender) के प्रति किये गए दायित्वों को पूरा करने का वादा करता है।
- रियायती ऋण (Concessional loans): ये जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन गतिविधियों के लिये प्रदत्त ऋण हैं जो पारंपरिक ऋणों से इस मामले में भिन्न होते हैं कि इनमें अन्य अधिमान्य शर्तों के साथ सुदीर्घ पुनर्भुगतान अवधि और निम्न ब्याज दरें शामिल होती हैं।
- अनुदान और दान (Grants and donations): ये जलवायु आपात स्थितियों (climate emergency) के विरुद्ध संघर्ष से संबंधित परियोजनाओं के लिये दी गई राशि है, जिसे वापस चुकाने की आवश्यकता नहीं होती।
- प्रमुख जलवायु वित्त कोष:
- हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund- GCF): UNFCC द्वारा GCF का गठन वर्ष 2010 में किया गया था। यह विश्व का सबसे बड़ा जलवायु कोष है जो विकासशील देशों को उनके GHG उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को अनुकूलित करने में मदद करने के लिये समर्पित है, जहाँ सर्वाधिक संवेदनशील देशों की ज़रूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। GCF पेरिस समझौते के अनुपालन में महती भूमिका निभाता है जहाँ विकासशील देशों की ओर जलवायु वित्त का प्रसार करता है।
- विशेष जलवायु परिवर्तन कोष (Special Climate Change Fund- SCCF): वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility- GEF) द्वारा प्रशासित SCCF चार अलग-अलग तरह की वित्तीय सेवाएँ प्रदान करता है: जलवायु परिवर्तन के लिये अनुकूलन; प्रौद्योगिकी हस्तांतरण; ऊर्जा, परिवहन, उद्योग, कृषि, वानिकी एवं अपशिष्ट प्रबंधन; और जीवाश्म ईंधन पर निर्भर देशों के लिये आर्थिक विविधीकरण।
- अल्पविकसित देश कोष (Least Developed Countries Fund- LDCF): वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) द्वारा प्रशासित LDCF का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा अल्पविकसित देश के रूप में वर्गीकृत लगभग 50 देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी उच्च संवेदनशीलता से निपटने और उनकी राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं को लागू करने के लिये समर्थन प्रदान करना है।
- UN-REDD कार्यक्रम: इसे वर्ष 2008 में संयुक्त राष्ट्र के अंग के रूप में गठित किया गया। इसका उद्देश्य विकासशील देशों में वनों की कटाई और वन क्षरण के कारण होने वाले उत्सर्जन को कम करना है, जिससे सरकारों को राष्ट्रीय REDD+ रणनीतियों को तैयार करने और उन्हें लागू करने में मदद मिलती है।
- द्विपक्षीय जलवायु वित्त कोष (Bilateral climate finance funds): इसमें USAID (United States Agency for International Development), यूरोपीय संघ का GCCA+ (Global Climate Change Alliance+) और JICA (Japan International Cooperation Agency) जैसे संस्थान शामिल हैं।
जलवायु वित्तपोषण से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ
- धन की कमी:
- जलवायु वित्तपोषण में प्राथमिक चुनौती जलवायु परियोजनाओं के लिये धन की अपर्याप्त उपलब्धता है, विशेष रूप से निम्न-आय देशों में।
- विकसित देश 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वार्षिक लक्ष्य को पूरा नहीं कर सके और वर्ष 2021 में ग्लासगो में आयोजित 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में केवल 79.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर जी जुटा सके।
- संस्थागत क्षमता में कमी:
- कई निर्धन देशों में जलवायु परियोजनाओं में पर्याप्त विदेशी निवेश को प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर सकने और आवंटित कर सकने के लिये आवश्यक वित्तीय अवसंरचना की कमी है, जिससे निवेशकों के अंदर आशंकाएँ उत्पन्न हो सकती हैं और संवेदनशील अर्थव्यवस्थाएँ अस्थिर हो सकती हैं।
- कुछ विशेषज्ञ विश्व की जलवायु वित्त आवश्यकताओं को पूरा करने के मामले में बहुपक्षीय विकास बैंकों (Multilateral Development Banks- MDBs) की क्षमता के बारे में, विशेष रूप से जलवायु संबंधी मामलों में उनकी सीमित विशेषज्ञता के बारे में, चिंता जताते हैं।
- MDBs की आलोचना मुख्य रूप से इस बात के लिये की जाती है कि वे अपना वित्तपोषण जलवायु शमन पर केंद्रित करते हैं, जनकी व्यवसायों एवं समुदायों को जलवायु जोखिमों के प्रति अनुकूल होने में सहायता करने पर अधिक ध्यान नहीं देते।
- जवाबदेही तंत्र:
- वर्तमान में सरकारों और संस्थानों को उनकी जलवायु वित्तपोषण प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये जवाबदेह ठहराने के लिये कोई स्थापित तंत्र मौजूद नहीं है।
- धनी देशों को या तो अपने निवेश अनुमानों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने या अपनी वित्तीय ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में विफल रहने के लिये जाना जाता है।
- ‘ग्रीन फंड’—जो निजी निवेशकों को पर्यावरणीय, सामाजिक और शासन (Environmental, Social, and Governance- ESG) निवेश में भागीदारी की अनुमति देते हैं, उनके निवेश के कार्बन फुटप्रिंट या उत्सर्जन के प्रकटीकरण को अनिवार्य नहीं बनाते हैं, जिससे ‘ग्रीनवॉशिंग’ (greenwashing) की समस्या पैदा होती है।
- ग्रीनवॉशिंग वह स्थिति है जब कोई संगठन वास्तव में अपने पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने की तुलना में स्वयं को पर्यावरण के अनुकूल प्रचारित करने पर अधिक समय एवं धन खर्च करता है।
- जलवायु वित्त का मापन:
- जलवायु वित्त प्रवाह पर डेटा का संग्रहण विभिन्न पद्धतियों का उपयोग कर किया जाता है और इसकी अलग-अलग व्याख्याएँ होती हैं।
- जलवायु वित्त की दोहरी गिनती की स्थिति बन सकती है जब एक ही वित्तपोषण की रिपोर्टिंग कई पक्षों द्वारा की जाती है, जिससे वास्तविक वित्तीय प्रवाह का अनुमान अधिक हो जाता है।
- तात्कालिकता की अनदेखी:
- वर्ष 2009-10 में वैश्विक वित्तीय संकट पर जिस तरह तीव्र प्रतिक्रिया दी गई गई, उसके विपरीत वर्तमान में जलवायु वित्त हस्तांतरण में वैसी मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति, अनुमानित तात्कालिकता और वैश्विक सहयोग का अभाव दिखाई देता है जैसा वित्तीय संकट प्रतिक्रिया में नज़र आता है।
जलवायु कार्रवाई के वित्तपोषण के लिये प्रमुख भारतीय पहलें
- राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (National Adaptation Fund- NAF):
- इस कोष का गठन वर्ष 2014 में 100 करोड़ रुपए के आरंभिक कोष के साथ आवश्यकता और उपलब्ध धन के बीच के अंतराल को दूर करने के उद्देश्य से किया गया था।
- यह कोष पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC ) के अंतर्गत क्रियान्वित है।
- राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण कोष (National Clean Energy and Environment Fund- NCEEF):
- NCEFF की स्थापना भारत में स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिये की गई थी।
- यह उन पहलों को वित्तपोषित करता है जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करती हैं।
- कोष को कोयला उत्पादन और उपयोग पर उपकर अधिरोपित कर समर्थित किया गया है।
- हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund- GCF) और अनुकूलन कोष (Adaptation Fund- AF):
- भारत GSF और AF जैसे अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कोषों से वित्तीय संसाधन प्राप्त करने की पात्रता रखता है।
- ये कोष देश में जलवायु शमन एवं अनुकूलन परियोजनाओं का समर्थन करते हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा वित्तपोषण:
- भारत ने सौर और पवन ऊर्जा सहित विभिन्न नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है।
- सरकार इन क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन और सब्सिडी प्रदान करती है।
- राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (National Clean Energy Fund- NCEF):
- NECF को स्वच्छ ऊर्जा पहलों और अनुसंधान का समर्थन करने के लिये गठित किया गया था।
- यह नवोन्वेषी परियोजनाओं के लिये संसाधन उपलब्ध कराता है जो निम्न-कार्बन विकास में योगदान करते हैं।
- उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (Emission Trading System- ETS):
- भारत कार्बन व्यापार को बढ़ावा देने और उत्सर्जन में कटौती को प्रोत्साहित करने के लिये ETS स्थापित करने की संभावना तलाश रहा है।
- कार्बन कर (Carbon Tax):
- भारत में कार्बन कर लागू करने के बारे में चर्चा हुई है, जो जलवायु पहल के लिये अतिरिक्त राजस्व प्रदान कर सकता है।
- द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौते:
- भारत जलवायु वित्त के लिये विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों में संलग्न है और जलवायु परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण पाने हेतु बहुपक्षीय वार्ताओं में भागीदारी करता रहा है।
जलवायु वित्त के विषय में आगे की राह
- जलवायु वित्त लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता:
- सभी द्विपक्षीय दाताओं को अपनी जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं को पूरा करना चाहिये और अधिक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने चाहिये।
- जलवायु वित्त को राष्ट्रीय विकास योजनाओं और नीतियों में एकीकृत करने की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई है
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना:
- राष्ट्रों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच सहयोग को मज़बूत करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- सभी देशों को पुनर्प्राप्ति/रिकवरी और रूपांतरण का समर्थन करने के लिये निम्न-कार्बन जलवायु प्रत्यास्थी अवसंरचना और अन्य जलवायु-संबंधी निवेशों के अवसर तलाश करने की आवश्यकता है।
- MDBs में जवाबदेही लाना:
- बहुपक्षीय विकास बैंकों को अपनी बैलेंस शीट का बेहतर लाभ उठाना चाहिये, अपने निजी क्षेत्र गुणकों (private sector multipliers) में सुधार लाना चाहिये और एक प्रणाली के रूप में बेहतर ढंग से कार्य करना चाहिये।
- बहुपक्षीय विकास बैंकों को COP25 में निर्धारित सामान्य ढाँचे पर आगे बढ़ते हुए पेरिस समझौते के साथ अपने वित्तीय समर्थन एवं गतिविधियों के संरेखण में तेज़ी लाने की आवश्यकता है।
- कमज़ोर समुदायों का समर्थन करना:
- ऋण संकट और अत्यधिक ऋण संकट से निपटना, विशेष रूप से निर्धन और जलवायु के प्रति संवेदनशील देशों में, महत्त्वपूर्ण है।
- सबसे कमज़ोर या संवेदनशील समुदायों और देशों, विशेषकर जो जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का जोखिम रखते हैं, तक वित्तपोषण के प्रसार लिये लक्षित प्रयास किये जाने चाहिये।
- नवोन्मेषी वित्तपोषण तंत्र:
- हरित बॉण्ड, कार्बन मूल्य निर्धारण और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) जैसे नवीन वित्तपोषण तंत्र की खोज जलवायु परियोजनाओं के लिये अतिरिक्त धन आकर्षित कर सकती है।
- निजी पूंजी इतनी तेज़ी से प्रवाहित नहीं हो रही है कि निम्न-कार्बन और जलवायु-प्रत्यास्थी संक्रमण को वित्तपोषित कर सके और ये प्रायः पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप भी नहीं रही है। इसके अलावा, निजी क्षेत्र के जलवायु निवेश का अधिकांश मौजूदा स्टॉक उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में पाया जाता है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही:
- जलवायु वित्त के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये पारदर्शी रिपोर्टिंग तंत्र स्थापित करना और देशों को उनकी वित्तीय प्रतिबद्धताओं के लिये जवाबदेह बनाना महत्त्वपूर्ण है।
- संवहनीय अभ्यासों को बढ़ावा देना:
- संवहनीय अभ्यासों को प्रोत्साहित करना और हरित अर्थव्यवस्थाओं की ओर संक्रमण जलवायु वित्त के क्षेत्र में दीर्घकालिक रणनीति के अंग हैं।
- ग्लोबल स्टॉकटेक (Global Stocktakes):
- जैसा कि पेरिस समझौते में उल्लिखित है, ग्लोबल स्टॉकटेक के माध्यम से जलवायु वित्त प्रयासों का लगातार आकलन करते रहना और उन्हें आगे बढ़ाना जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखण सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है।
निष्कर्ष
वैश्विक जलवायु वित्त के विषय में सहयोग को बढ़ावा देना न केवल एक आवश्यकता है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न तात्कालिक चुनौतियों का समाधान करने के लिये भी अनिवार्य है। पर्याप्त वित्तीय आवश्यकताओं के साथ जलवायु संबंधी मुद्दों की जटिलता विश्व के विभिन्न राष्ट्रों, संगठनों और निजी क्षेत्रों के बीच एकजुट एवं सहयोगात्मक प्रयास की मांग रखती है।
अभ्यास प्रश्न: जलवायु वित्त जुटाने, इसके मापन और निगरानी में व्याप्त प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं? वैश्विक स्तर पर जलवायु शमन एवं अनुकूलन परियोजनाओं के लिये सटीक एवं पारदर्शी वित्तीय योगदान सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षाप्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (वर्ष 2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: b मुख्य परीक्षाप्रश्न. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पार्टियों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (वर्ष 2021) |