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भारतीय अर्थव्यवस्था

बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार

  • 29 Jun 2023
  • 15 min read

यह एडिटोरियल 27/06/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Transforming the Banks’’ लेख पर आधारित है। इसमें बहुपक्षीय विकास बैंकों और उनसे संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व बैंक समूह, एशियाई विकास बैंक, सतत् विकास लक्ष्य

मेन्स के लिये:

निर्धनता और असमानता की समस्या का समाधान करने में बहुपक्षीय विकास बैंकों की भूमिका, लैंगिक समानता, मानवाधिकार 

बहुपक्षीय विकास बैंक (Multilateral development banks- MDBs) ऐसे वित्तीय संस्थान हैं जो विकासशील देशों को उनके आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिये ऋण, अनुदान और तकनीकी सहायता प्रदान करते हैं। MDBs में विश्व बैंक समूह, एशियाई विकास बैंक, अफ्रीकी विकास बैंक, इंटर-अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक आदि शामिल हैं। MDBs निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LICs and MICs) के विकास का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है जिससे निर्धनता, अवसंरचनात्मक विकास, मानव पूंजी निर्माण आदि विषयों को हल किया गया है।

हालाँकि, MDBs को विभिन्न चुनौतियों और सीमाओं का भी सामना करना पड़ रहा है जो बदलते वैश्विक संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता और प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं। इस परिदृश्य में डिजिटल क्षेत्र में उभरती चुनौतियों से निपटने और अवसरों का लाभ उठाने के लिये MDBs को अधिक संवेदनशील और प्रभावी बनाने हेतु इनके सुधार एवं सशक्तीकरण की आवश्यकता है।

MDBs में सुधार की आवश्यकता:

  • MDBs का वर्तमान विधिक और संस्थागत ढाँचा पुराना हो गया है और डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में तेज़ी से हो रहे बदलावों एवं जटिलताओं से निपटने के लिये यह अपर्याप्त है।
    • वर्तमान ढाँचा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अल्पविकसित देशों की युद्धोत्तर पुनर्निर्माण एवं विकास आवश्यकताओं को संबोधित करने के लिये स्थापित किया गया था।
    • वर्तमान ढाँचा विकासशील देशों, विशेष रूप से ‘वैश्विक दक्षिण’ (Global South) की समकालीन वास्तविकताओं एवं आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित नहीं करता है।
  • विकासशील देशों की सहायता में उनकी प्रासंगिकता और प्रदर्शन को बढ़ाने के लिये:
    • MDBs की वर्तमान क्रियान्वयन रणनीतियाँ और व्यवसाय मॉडल समावेशी एवं सतत् विकास को आगे बढ़ाने में विकासशील देशों की विविध एवं उभरती आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये इष्टतम नहीं हैं।
    • वर्तमान रणनीतियाँ और मॉडल संसाधन एवं साझेदारी जुटाने, नीति संवाद एवं संरेखण को बढ़ावा देने, प्रगति की निगरानी एवं मूल्यांकन करने तथा अंतराल एवं चुनौतियों का समाधान करने के मामले में MDBs की पूरी क्षमता का लाभ नहीं उठा पाते हैं।
    • वर्तमान रणनीतियाँ और मॉडल विभिन्न संदर्भों एवं क्षेत्रों के लिये अनुरूप एवं लचीले समाधान प्रदान करने हेतु साधनों एवं तौर-तरीकों के अपने पोर्टफोलियो में विविधता नहीं लाते हैं।
    • वर्तमान रणनीतियाँ और मॉडल विकास समाधानों के लिये नवाचार एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का समर्थन नहीं करते हैं, विशेष रूप से अनुकूलन एवं लचीलेपन के लिये।
  • शासन और जवाबदेही में सुधार के लिये:
    • MDBs की वर्तमान शासन संरचना उनके शेयरधारकों और हितधारकों की आवश्यकताओं एवं हितों के प्रति उत्तरदायी नहीं है।
    • वर्तमान संरचना वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में विकसित और विकासशील देशों के बीच शक्ति एवं प्रभाव के बदलते संतुलन को प्रतिबिंबित नहीं करती है।
    • वर्तमान संरचना निर्णयन प्रक्रियाओं में विकासशील देशों की प्रभावी भागीदारी एवं अभिव्यक्ति को सुनिश्चित नहीं करती है।
    • वर्तमान संरचना MDBs के क्रियान्वयन और प्रभावों की पारदर्शिता एवं प्रकटीकरण को सुनिश्चित नहीं करती है।

MDBs में सुधार की राह की प्रमुख चुनौतियाँ:

  • उभरती वैश्विक चुनौतियों के अनुकूल बनना:
    • MDBs को महामारी, संघर्ष, सीमा-पार मुद्दों जैसी उभरती वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये अपने क्रियान्वयन एवं वित्तपोषण तंत्र को अनुकूलित करने की आवश्यकता है।
    • उनके पास तेज़ी से बदलती परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया देने और प्रभावित देशों को समय पर सहायता प्रदान करने हेतु लचीलापन होना चाहिये।
  • संसाधनों की कमी:
    • MDBs को विकास वित्तपोषण की बढ़ती मांगों को पूरा करने में संसाधन संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • संभव है कि मौजूदा वित्तपोषण स्तर विकासशील देशों के सामने विद्यमान चुनौतियों के वृहत स्तर को संबोधित कर सकने के लिये पर्याप्त सिद्ध नहीं हो (विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन शमन, अनुकूलन और अवसंरचना विकास के क्षेत्रों में)।
  • प्रक्रियात्मक बाधाएँ:
    • MDBs को प्रायः नौकरशाही प्रक्रियाओं में फँसे होने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ता है, जो परियोजना कार्यान्वयन और निर्णयन को धीमा कर सकता है।
  • निजी क्षेत्र से निवेश जुटाना:
    • MDBs को विकास परियोजनाओं के लिये निजी क्षेत्र से निवेश जुटाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • उन्हें एक सक्षमकारी वातावरण का निर्माण करने की आवश्यकता है जो जोखिमों को हल कर और निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान कर निजी पूंजी को आकर्षित करे।
  • जलवायु परिवर्तन को हल करना:
    • MDBs जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास पहल का समर्थन करने संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
    • इसके लिये उनकी नीतियों, रणनीतियों और परियोजना वित्तपोषण निर्णयों में जलवायु संबंधी विचारों को शामिल करने की आवश्यकता है।

भारत के लिये इसके निहितार्थ:

  • वैश्विक दक्षिण के एक नेता और भागीदार के रूप में भारत MDBs के सुधारों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी एवं भूमिका रखता है ताकि विभिन्न मुद्दों और अवसरों को हल कर सकने में इन संस्थानों को अधिक संवेदनशील एवं प्रभावी बनाया जा सके।
  • भारत MDBs (विशेष रूप से विश्व बैंक समूह और एशियाई विकास बैंक) का एक प्रमुख उधारकर्ता एवं लाभार्थी भी है। 
    • भारत को इन संस्थानों से अवसंरचना, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि आदि विभिन्न क्षेत्रों के लिये ऋण एवं अनुदान प्राप्त हुआ है।
  • भारत MDBs का योगदानकर्ता और शेयरधारक भी है।
    • भारत ने इन संस्थानों को उनके क्रियान्वयन और ऋण देने की क्षमता का समर्थन करने के लिये पूंजी एवं संसाधन प्रदान किये हैं।
    • भारत ने उनके शासन और निर्णयन प्रक्रियाओं में भी भागीदारी की है।

निर्धनता और असमानता को दूर करने में MDBs की भूमिका:

  • SDGs के कार्यान्वयन का समर्थन करना:
    • सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals- SDGs) 17 वैश्विक लक्ष्यों का एक समूह हैं जिनका उद्देश्य निर्धनता का उन्मूलन करना, पृथ्वी की रक्षा करना और सभी के लिये शांति एवं समृद्धि सुनिश्चित करना है।
    • MDBs विकासशील देशों को उनकी राष्ट्रीय नीतियों एवं रणनीतियों को SDGs के साथ संरेखित करने, संसाधन एवं साझेदारी जुटाने, प्रगति की निगरानी एवं मूल्यांकन करने और अंतराल एवं चुनौतियों को संबोधित करने में मदद कर सकते हैं।
    • MDBs लैंगिक समानता, मानवाधिकार, शासन जैसे विकास के हर पहलू से व्यापक रूप से संबद्ध मुद्दों का भी समर्थन कर सकते हैं, जो SDGs की प्राप्ति के लिये आवश्यक हैं।
  • रियायती वित्त एवं अनुदान प्रदान करना:
    • LICs एवं FCSs को रियायती वित्त एवं अनुदान उपलब्ध कराना:
      • निम्न आय वाले देश (LICs) और कमज़ोर एवं संघर्ष-प्रभावित राज्य (Fragile and Conflict-affected States- FCSs) निम्न विकास, उच्च ऋण, कमज़ोर संस्थान, सामाजिक अशांति, हिंसा जैसी कई चुनौतियों का सामना करते हैं, जो उनकी विकास संभावनाओं को बाधित करते हैं और आघातों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को बढ़ाते हैं। 
    • MDBs इन देशों को उनकी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करने, प्रत्यास्थता का निर्माण करने, स्थिरता को बढ़ावा देने और आर्थिक रूपांतरण को बढ़ावा देने में मदद करने के लिये रियायती ऋण एवं अनुदान प्रदान कर सकते हैं।
  • समावेशी विकास और साझा समृद्धि को बढ़ावा देना:
    • मध्यम आय वाले देश (MICs) ऐसे देशों का एक विविध समूह है जिन्होंने निर्धनता को कम करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है लेकिन अभी भी विद्यमान असमानताओं एवं सामाजिक अपवर्जन का सामना कर रहे हैं।
    • MDBs ऐसी नीतियों एवं कार्यक्रमों का समर्थन कर MICs को इन चुनौतियों से निपटने में मदद कर सकते हैं जो उत्पादकता, प्रतिस्पर्द्धात्मकता, नवाचार, विविधीकरण आदि को बढ़ावा दें, साथ ही समाज के सभी वर्गों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, अवसंरचना आदि तक पहुँच में सुधार लाएँ। 
    • MDBs मध्यम आय वाले देशों को जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण, डिजिटलीकरण जैसे उभरते मुद्दों से निपटने में भी मदद कर सकते हैं, जिनका उनके विकास प्रक्षेपवक्र पर प्रभाव पड़ता है।

निष्कर्ष:

  • MDBs में सुधार एक महत्त्वपूर्ण और सामयिक पहल है जो न केवल वर्तमान विधिक व्यवस्था को उन्नत कर सकती है बल्कि भारत में प्रौद्योगिकी के विनियमन की रूपरेखा को भी पुनर्परिभाषित कर सकती है।
  • MDBs में सुधार का अवसरों और चुनौतियों के संदर्भ में डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र एवं इसके हितधारकों पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।
  • MDBs में सुधार के लिये विभिन्न हितधारकों के बीच व्यापक परामर्श एवं विचार-विमर्श की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह समावेशी, भागीदारीपूर्ण और भविष्य की चुनौतियों एवं आवश्यकताओं के अनुकूल है।
  • MDBs के सुधार में भारत को एक प्रमुख भूमिका एवं ज़िम्मेदारी निभानी है ताकि इन्हें वैश्विक दक्षिण के विकास के लिये अधिक प्रासंगिक एवं प्रभावी बनाया जा सके।
  • अभ्यास प्रश्न: किसी देश के समक्ष संसाधनों और विकास वित्त एवं सहायता के लिये भागीदारी जुटाने के संबंध में बहुपक्षीय विकास बैंक के संदर्भ में कौन-से मुख्य अवसर और चुनौतियाँ मौजूद हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न एशियाई आधारिक-संरचना निवेश बैंक ख्एशियन इंप्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट बैंक (AIIB)] के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

1. AIIB के 80 से अधिक सदस्य राष्ट्र हैं।
2. AIIB में भारत सबसे बड़ा शेयरधारक है।
3. AIIB में एशिया से बाहर का कोई सदस्य नहीं है।

उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1         
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न. भारत ने हाल ही में न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर बैंक (AIIB) का संस्थापक सदस्य बनने के लिये हस्ताक्षर किये हैं। इन दोनों बैंकों की भूमिका किस प्रकार भिन्न होगी? भारत के लिये इन दोनों बैंकों के रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (2012)

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