कृषि
भारत में उर्वरक की खपत
- 26 Apr 2023
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:उर्वरक सब्सिडी, यूरिया, डाइ-अमोनियम फॉस्फेट, पोषक तत्त्वों पर आधारित सब्सिडी (NBS) योजना। मेन्स के लिये:उर्वरक सब्सिडी से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिये कई उपायों को लागू किया है। इन प्रयासों के बावजूद यूरिया की खपत में वृद्धि हुई है, जिससे नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में कमी और उर्वरक उपयोग के अनुरूप फसल की पैदावार में गिरावट आई है।
संतुलित उर्वरता को बढ़ावा देने हेतु किये गए उपाय:
- पहल:
- वर्ष 2015 में भारत सरकार ने सभी यूरिया की नीम-कोटिंग को अनिवार्य कर दिया।
- सरकार ने वर्ष 2018 में मांग में कटौती के लिये 50 किग्रा. के स्थान पर 45 किग्रा. के यूरिया बैग प्रस्तावित किये।
- भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (इफको) ने वर्ष 2021 में लिक्विड 'नैनो यूरिया' लॉन्च किया।
- हाल ही में गुजरात के कलोल में पहला लिक्विड नैनो यूरिया (LNU) संयंत्र का उद्घाटन किया गया।
- LNU एक नैनोपार्टिकल के रूप में यूरिया है और पारंपरिक यूरिया को बदलने तथा इसकी आवश्यकता को कम-से-कम 50% कम करने के लिये विकसित किया गया है।
- किये गए उपायों का प्रभाव:
- प्रारंभ में नीम कोटेड यूरिया के उपयोग से खपत में गिरावट आई, जिससे गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये यूरिया का उपयोग करना मुश्किल हो गया।
- हालाँकि यह प्रवृत्ति वर्ष 2018-19 से उलट गई है। वर्ष 2022-23 में यूरिया की बिक्री वर्ष 2015-16 की तुलना में लगभग 5.1 मिलियन टन अधिक थी और अप्रैल 2010 में पोषक तत्त्वों पर आधारित सब्सिडी (NBS) व्यवस्था की शुरुआत से पहले वर्ष 2009-10 की तुलना में 9 मिलियन टन अधिक थी।
यूरिया की प्रमुखता के कारण:
- अनुकूल विशेषताएँ: यूरिया सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला उर्वरक है क्योंकि यह नाइट्रोजन का एक समृद्ध स्रोत है, जो पौधों की वृद्धि के लिये एक आवश्यक पोषक तत्त्व है।
- यूरिया किसानों के लिये आसानी से उपलब्ध और किफायती नाइट्रोजन स्रोत है, जो इसे एक लोकप्रिय विकल्प बनाता है।
- इसे आसानी से स्टोर और ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है, जिससे यह किसानों एवं निर्माताओं दोनों के लिये एक सुविधाजनक विकल्प बन जाता है।
- यूरिया भी एक बहुमुखी उर्वरक है जिसे विभिन्न प्रकार की फसलों और मिट्टी में उपयोग किया जा सकता है।
- भारी सब्सिडी: भारत में यूरिया सबसे अधिक उत्पादित, आयातित, खपत की जाने वाली और भौतिक रूप से विनियमित उर्वरक है।
- वर्ष 2009-10 से यूरिया की खपत में एक-तिहाई से अधिक की वृद्धि देखी गई है; यह मोटे तौर पर 4,830 रुपए से 5,628 रुपए प्रति टन के रूप में इसके अधिकतम खुदरा मूल्य में मात्र 16.5% की वृद्धि के कारण है।
- DAP प्रति टन 27,000 रुपए और MOP प्रति टन 34,000 रुपए के मुकाबले यूरिया का वर्तमान प्रति टन मूल्य 4:2:1 NPK उपयोग अनुपात के साथ संगत नहीं है, जिसे आमतौर पर भारतीय मृदा के लिये आदर्श माना जाता है।
पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (Nutrient-based Subsidy- NBS) योजना:
- लक्षित लाभार्थी:
- NBS का उद्देश्य देश भर के किसानों को लाभान्वित करना है, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसान जो बाज़ार दरों पर उर्वरकों का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं।
- यह योजना किसानों को उनकी उर्वरक आवश्यकताओं के आधार पर सब्सिडी प्रदान करती है और सब्सिडी राशि सीधे उनके बैंक खातों में अंतरित कर दी जाती है।
- फायदे:
- यह मृदा की उर्वरता और फसल उत्पादकता में सुधार करने में मदद करता है।
- यह रियायती दरों पर उर्वरक उपलब्ध कराकर किसानों के लिये कृषि की लागत कम करता है।
- कृषि उपज की गुणवत्ता में सुधार आने से किसानों को बाज़ार में अपनी फसलों के लिये बेहतर कीमत प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
- यह मृदा स्वास्थ्य के संरक्षण एवं उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में मदद करता है।
- NBS की विफलता:
- यूरिया को इस योजना से बाहर रखा गया है और इसलिये यह मूल्य नियंत्रण के अधीन रहती है। तकनीकी रूप से देखें तो अन्य उर्वरकों पर कोई मूल्य नियंत्रण नहीं है।
- जिन अन्य उर्वरकों पर से नियंत्रण हटा लिया गया, उनकी कीमतें बढ़ गई हैं, जिससे किसान पहले की तुलना में अधिक यूरिया का उपयोग करने लगे हैं।
- इससे उर्वरक असंतुलन और बिगड़ गया है।
- DAP के मूल्य को नियंत्रित करने का कार्य फिर से शुरू किया गया है, कंपनियों को प्रति टन 27,000 रुपए से अधिक चार्ज करने की अनुमति नहीं है। इससे वर्ष 2022-23 में यूरिया और DAP दोनों की बिक्री में बढ़ोतरी हुई है।
- यूरिया को इस योजना से बाहर रखा गया है और इसलिये यह मूल्य नियंत्रण के अधीन रहती है। तकनीकी रूप से देखें तो अन्य उर्वरकों पर कोई मूल्य नियंत्रण नहीं है।
असंतुलित उर्वरता के प्रभाव:
- फसल की पैदावार और गुणवत्ता में कमी:
- बहुत कम अथवा बहुत अधिक उर्वरक का उपयोग करने से फसल की पैदावार और गुणवत्ता में कमी आ सकती है जिसके परिणामस्वरूप किसानों को आर्थिक नुकसान होता है।
- मृदा क्षरण:
- असंतुलित उर्वरक से मृदा में पोषक तत्त्वों का असंतुलन हो सकता है, जिससे मृदा का क्षरण, अवनयन एवं समय के साथ मृदा की उर्वरता में कमी हो सकती है।
- पर्यावरण प्रदूषण:
- उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से जल निकायों में अतिरिक्त पोषक तत्त्वों, जैसे नाइट्रोजन और फास्फोरस का निक्षालन (Leaching) हो सकता है, जिससे सुपोषण (Eutrophication), एल्गी ब्लूम एवं अन्य पर्यावरणीय समस्याएँ हो सकती हैं।
- स्वास्थ्य संबंधी खतरा:
- उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से फसलों में नाइट्रेट का संचय हो सकता है, जिनका अधिक मात्रा में सेवन करना मानव स्वास्थ्य हेतु हानिकारक हो सकता है।
आगे की राह
- यूरिया को शामिल करते हुए NBS व्यवस्था का विस्तार:
- NBS व्यवस्था से यूरिया के मौजूदा बहिष्करण से इसकी खपत में वृद्धि हुई है, जिससे उर्वरकों के असंतुलन की समस्या बढ़ गई है।
- NBS व्यवस्था में यूरिया को शामिल करने से इसके संतुलित उपयोग को बढ़ावा मिलेगा और इसकी खपत कम होगी, जिससे किसानों हेतु खेती की लागत कम होगी, साथ ही फसल उत्पादकता में सुधार होगा।
- NBS व्यवस्था से यूरिया के मौजूदा बहिष्करण से इसकी खपत में वृद्धि हुई है, जिससे उर्वरकों के असंतुलन की समस्या बढ़ गई है।
- वैकल्पिक उर्वरकों के उपयोग को प्रोत्साहित करना:
- जैविक और जैव-उर्वरक जैसे वैकल्पिक उर्वरकों का उपयोग, परिष्कृत उर्वरकों (जो असंतुलित उर्वरक हो सकता है) पर निर्भरता को कम करने में मदद कर सकता है,।
- सब्सिडी, जागरूकता अभियान और क्षमता निर्माण के माध्यम से वैकल्पिक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने से मृदा के स्वास्थ्य में सुधार एवं पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद मिल सकती है।
- मृदा परीक्षण और संतुलित उर्वरता को बढ़ावा देना:
- मृदा परीक्षण फसलों की पोषक तत्त्वों की आवश्यकताओं को निर्धारित करने में मदद कर सकता है, जिससे किसानों को संतुलित तरीके से उर्वरकों का प्रयोग करने में मदद मिल सकती है।
- मृदा परीक्षण को बढ़ावा देने और इसके लिये सब्सिडी प्रदान करने से किसानों को उर्वरकों के संतुलित उपयोग की विधियों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे फसल की पैदावार एवं मृदा के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
- अनियंत्रित उर्वरकों की कीमतों की निगरानी और विनियमन:
- DAP जैसे नियंत्रित उर्वरकों की कीमतों को विनियमित करने से उनके अत्यधिक उपयोग को रोकने एवं उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
- सरकार उर्वरकों की वहनीयता सुनिश्चित करने और उनके अत्यधिक उपयोग को रोकने हेतु विनियंत्रित उर्वरकों पर मूल्य नियंत्रण फिर से शुरू करने पर विचार कर सकती है।
- सतत् उर्वरकों का अनुसंधान एवं विकास:
- सतत् उर्वरकों के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने से ऐसे उर्वरक विकसित करने में मदद मिल सकती है जो पर्यावरण के अनुकूल हों, उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा दें और फसल उत्पादकता में सुधार कर सकें।
- सरकार निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के अतिरिक्त स्थायी उर्वरकों के अनुसंधान एवं विकास के लिये धन उपलब्ध कराएगी।
- NUE (नाइट्रोजन उपयोग दक्षता) में सुधार:
- NUE मुख्य रूप से यूरिया के माध्यम से लागू नाइट्रोजन के अनुपात को संदर्भित करता है जो वास्तव में फसलों की अधिक पैदावार के लिये उपयोग किया जाता है।
- यह किसानों को कम यूरिया के साथ समान या अधिक अनाज की पैदावार करने में सक्षम करेगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 1. वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का खुदरा मूल्य बाज़ार संचालित है और यह सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है। 2. अमोनिया जो यूरिया बनाने में काम आता है, प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है। 3. सल्फर जो फॉस्फोरिक अम्ल उर्वरक के लिये कच्चा माल है, तेल शोधन कारखानों का उपोत्पाद है। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत सरकार कृषि में 'नीम अलेपित यूरिया (Neem-coated Urea)' के उपयोग को क्यों प्रोत्साहित करती है? (2016) (a) मृदा में नीम तेल के निर्मुक्त होने से मृदा सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रोजन यौगिकीकरण बढ़ाती है। उत्तर: (b) |