विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत में BioE3 नीति और जैव प्रौद्योगिकी
प्रिलिम्स के लिये:BioE3 नीति, विज्ञान धारा, नेट जीरो कार्बन अर्थव्यवस्था, सर्कुलर बायोइकोनॉमी, पर्यावरण के लिये जीवनशैली, जीन थेरेपी, स्टेम सेल, गोल्डन राइस, बायोरेमेडिएशन, कार्बन फुटप्रिंट, राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन, बायोटेक-किसान योजना, अटल जय अनुसंधान बायोटेक मिशन, वन हेल्थ कंसोर्टियम मेन्स के लिये:भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र, भारत के लिये जैव प्रौद्योगिकी का महत्त्व, भारत में जैव प्रौद्योगिकी के विकास में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रस्ताव ‘उच्च प्रदर्शन जैव विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोज़गार के लिये जैव प्रौद्योगिकी (BioE3) नीति’ को मंज़ूरी दी।
- BioE3 नीति के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की तीन योजनाओं को मिलाकर एक योजना बना दी है, जिसे विज्ञान धारा कहा गया है, जिसका वित्तीय परिव्यय वर्ष 2025-26 तक 10,579 करोड़ रुपए है।
BioE3 नीति क्या है?
- परिचय: BioE3 का उद्देश्य उच्च प्रदर्शन वाले जैव-विनिर्माण को बढ़ावा देना है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में जैव-आधारित उत्पादों का उत्पादन शामिल है।
- यह नीति व्यापक राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप है, जैसे 'नेट जीरो' कार्बन अर्थव्यवस्था प्राप्त करना और सर्कुलर बायोइकोनॉमी के माध्यम से सतत् विकास को बढ़ावा देना।
- उद्देश्य: BioE3 नीति अनुसंधान एवं विकास (R&D) और उद्यमिता में नवाचार पर ज़ोर देती है, बायोमैन्युफैक्चरिंग, Bio-AI हब व बायोफाउंड्रीज की स्थापना करती है, जिसका उद्देश्य भारत के कुशल जैव प्रौद्योगिकी कार्यबल का विस्तार करना है, जो 'पर्यावरण के लिये जीवनशैली' कार्यक्रमों के साथ संरेखित है तथा पुनर्योजी जैव अर्थव्यवस्था मॉडल के विकास को लक्षित करता है।
- BioE3 नीति का उद्देश्य जैव विनिर्माण केंद्रों की स्थापना के माध्यम से विशेष रूप से टियर-II और टियर-III शहरों में महत्त्वपूर्ण रोज़गार सृजन करना है।
- ये केंद्र स्थानीय बायोमास का उपयोग कर क्षेत्रीय आर्थिक विकास और समतामूलक विकास को बढ़ावा देंगे।
- नीति में ज़िम्मेदार जैव प्रौद्योगिकी विकास सुनिश्चित करते हुए भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिये नैतिक जैव सुरक्षा और वैश्विक नियामक संरेखण पर भी ज़ोर दिया गया है।
- BioE3 नीति का उद्देश्य जैव विनिर्माण केंद्रों की स्थापना के माध्यम से विशेष रूप से टियर-II और टियर-III शहरों में महत्त्वपूर्ण रोज़गार सृजन करना है।
- BioE3 नीति की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं
- जैव-आधारित रसायन और एंज़ाइम: पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये उन्नत जैव-आधारित रसायनों और एंज़ाइमों का विकास।
- कार्यात्मक खाद्य पदार्थ और स्मार्ट प्रोटीन: पोषण एवं खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिये कार्यात्मक खाद्य पदार्थों और स्मार्ट प्रोटीन में नवाचार।
- प्रिसिजन बायोथेरेप्यूटिक्स: स्वास्थ्य सेवा परिणामों को बेहतर बनाने के लिये सटीक चिकित्सा और बायोथेरेप्यूटिक्स को आगे बढ़ाना।
- जलवायु लचीला कृषि: जलवायु परिवर्तन के लिये लचीले कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- कार्बन कैप्चर और उपयोग: विभिन्न उद्योगों में कुशल कार्बन कैप्चर और इसके उपयोग के लिये प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
- भविष्य के समुद्री और अंतरिक्ष अनुसंधान: जैव विनिर्माण में नई सीमाओं का पता लगाने के लिये समुद्री और अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान का विस्तार करना।
विज्ञान धारा योजना क्या है?
- पृष्ठभूमि: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) देश में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार गतिविधियों के आयोजन, समन्वय तथा संवर्धन हेतु नोडल विभाग के रूप में कार्य करता है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से संबंधित तीन प्रमुख केन्द्रीय क्षेत्र योजनाएँ-संस्थागत एवं मानव क्षमता निर्माण, अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास व परिनियोजन, जो DST द्वारा कार्यान्वित थी, को एक एकीकृत योजना ‘विज्ञान धारा’ में विलय कर दिया गया है।
- उद्देश्य और लक्ष्य: तीनों योजनाओं को एक ही योजना में विलय करने से निधि उपयोग की दक्षता में सुधार होगा और विभिन्न उप-योजनाओं/कार्यक्रमों के बीच समन्वय स्थापित होगा।
-
विज्ञान धारा योजना का उद्देश्य देश में अनुसंधान एवं विकास का विस्तार करना तथा पूर्णकालिक समकक्ष (FTE) शोधकर्त्ताओं की संख्या में वृद्धि करना है।
-
केंद्रित हस्तक्षेप से लिंग समानता प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी।
-
विज्ञान धारा के अंतर्गत सभी कार्यक्रम विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के 5-वर्षीय लक्ष्यों के अनुरूप हैं तथा इनका उद्देश्य वर्ष 2047 तक विकसित भारत अर्थात "विकसित भारत 2047" के व्यापक दृष्टिकोण को ध्यान में रखना है।
-
-
BioE3 नीति को पूरक बनाना: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थागत बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना और महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन पूल का विकास करना।
- बुनियादी अनुसंधान, टिकाऊ ऊर्जा, जल आदि क्षेत्र में उपयोग योग्य अनुसंधान को बढ़ावा देता है।
- स्कूल से लेकर उद्योग स्तर तक नवाचारों का समर्थन करता है और शिक्षा, सरकार एवं उद्योगों के बीच सहयोग बढ़ाता है।
जैव प्रौद्योगिकी क्या है?
- परिचय: जैव प्रौद्योगिकी एक ऐसा क्षेत्र है, जो जीवविज्ञान को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ता है, सेलुलर और बायोमॉलिक्यूलर प्रक्रियाओं का प्रयोग करके ऐसे उत्पाद एवं प्रौद्योगिकी बनाता है, जो हमारे जीवन को बेहतर बनाते हैं तथा हमारे ग्रह की सुरक्षा करते हैं।
- लाभ:
- स्वास्थ्य सेवा में प्रगति: मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी (रेड बायोटेक) उन्नत दवाओं, टीकों और उपचारों के विकास को सक्षम बनाता है, जिसमें व्यक्तिगत चिकित्सा, जीन थेरेपी और लक्षित कैंसर उपचार शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त जैसा कि कोविड-19 महामारी द्वारा प्रदर्शित किया गया है, यह टीकों के निर्माण को गति देता है। स्टेम सेल अनुसंधान और ऊतक इंजीनियरिंग क्षतिग्रस्त ऊतकों एवं अंगों को पुनर्जीवित करने की क्षमता प्रदान करते हैं, जिससे उन रोगों के उपचार के नए मार्ग खुलते हैं जिन्हें लाइलाज माना जाता था।
- कृषि सुधार: कृषि जैव प्रौद्योगिकी (ग्रीन बायोटेक) के तहत पादप वर्ग में आनुवंशिक संशोधन और इंजीनियरिंग शामिल है, जो कीटों, बीमारियों एवं अनावृष्टि जैसे पर्यावरणीय तनावों के प्रति अधिक प्रतिरोधी फसल किस्मों का उत्पादन कर सकते हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा में सुधार होता है।
- बायोटेक उन्नत पोषण प्रोफाइल वाली फसलों के विकास की अनुमति देता है, जैसे कि गोल्डन राइस, जो कुपोषण से निपटने के लिये विटामिन A से भरपूर होता है।
- पर्यावरणीय स्थिरता: जैव प्रौद्योगिकी के तहत तेल रिसाव, भारी धातुओं और प्लास्टिक जैसे प्रदूषकों (बायोरेमेडिएशन) को साफ करने के लिये सूक्ष्मजीवों का प्रयोग किया जाता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्भरण करने और पर्यावरणीय क्षति को कम करने में मदद मिलती है।
- औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी (व्हाइट बायोटेक) जैव प्रौद्योगिकी को औद्योगिक प्रक्रियाओं में लागू करती है, जैसे जैव ईंधन, जैव प्लास्टिक और बायोडिग्रेडेबल पदार्थों का उत्पादन।
- यह पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने और स्वच्छ उत्पादन विधियों के माध्यम से स्थिरता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- जैव प्रौद्योगिकी नवाचार अपशिष्ट पदार्थों को रीसाइकिल और अपसाइकिल करने में मदद करते हैं, परिपत्र अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं तथा लैंडफिल को कम करते हैं।
- औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी (व्हाइट बायोटेक) जैव प्रौद्योगिकी को औद्योगिक प्रक्रियाओं में लागू करती है, जैसे जैव ईंधन, जैव प्लास्टिक और बायोडिग्रेडेबल पदार्थों का उत्पादन।
- आर्थिक विकास: जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान, विकास और विनिर्माण क्षेत्रों में रोज़गार सृजित करके आर्थिक विकास को गति देता है।
- जैव प्रौद्योगिकी में निवेश करने वाले देश अत्याधुनिक नवाचारों में अग्रणी हैं, जिससे उन्हें वैश्विक बाज़ारों और व्यापार में प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त मिलती है।
- जलवायु परिवर्तन शमन: कुछ जैव प्रौद्योगिकी वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर उसका उपयोग कर सकती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है।
- जैव प्रौद्योगिकी स्वच्छ जैव ईंधन के उत्पादन में सहायता करती है, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करती है और कार्बन फूटप्रिंट्स को कम करती है।
- सामग्रियों में नवाचार: जैव प्रौद्योगिकी जैव-आधारित फाइबर और उच्च-प्रदर्शन जैव-कंपोज़िट सहित नवीन सामग्रियों की इंजीनियरिंग को सक्षम बनाती है, जिनका फैशन से लेकर एयरोस्पेस तक के उद्योगों में अनुप्रयोग किया जा सकता है।
- स्वास्थ्य सेवा में प्रगति: मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी (रेड बायोटेक) उन्नत दवाओं, टीकों और उपचारों के विकास को सक्षम बनाता है, जिसमें व्यक्तिगत चिकित्सा, जीन थेरेपी और लक्षित कैंसर उपचार शामिल हैं।
भारत में बायोटेक्नोलॉजी की वर्तमान स्थिति क्या है?
- बायोटेक्नोलॉजी हब: भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष 12 बायोटेक्नोलॉजी गंतव्यों में शुमार है। कोविड-19 महामारी ने भारत में बायोटेक्नोलॉजी के विकास को गति दी, जिससे टीके, नैदानिक परीक्षण और चिकित्सा उपकरणों में प्रगति हुई।
- वर्ष 2021 में भारत में बायोटेक स्टार्टअप पंजीकरण की रिकॉर्ड संख्या देखी गई, जिसमें 1,128 नई प्रविष्टियाँ शामिल थीं, जो वर्ष 2015 के बाद से सबसे अधिक है। वर्ष 2022 तक बायोटेक स्टार्टअप की कुल संख्या 6,756 तक पहुँच गई, जिसके वर्ष 2025 तक 10,000 तक पहुँचने की उम्मीद है।
- बायोइकोनॉमी: भारत की बायोइकोनॉमी में व्यापक वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2014 में 10 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 130 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक हो गई है, जिसके वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- बायोफार्मा भारत की बायो-इकोनॉमी का सबसे बड़ा हिस्सा है, जो इसके कुल मूल्य का 49% है, जिसका अनुमान 39.4 बिलियन अमरीकी डॉलर है। अनुमानतः वर्ष 2025 तक टीकाकरण बाज़ार 252 बिलियन रुपए (USD 3.04 बिलियन) का हो जाएगा।
- जैव संसाधन: भारत की विशाल जैवविविधता, विशेष रूप से हिमालय क्षेत्र में और 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा जैव प्रौद्योगिकी में महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है।
- डीप-सी मिशन का उद्देश्य समुद्र के नीचे की जैवविविधता का पता लगाना है।
- सरकारी पहल:
- अनुप्रयुक्त जैव प्रौद्योगिकी में हाल ही में अनुसंधान एवं विकास उपलब्धियाँ:
- ADVIKA काबुली चने (Chickpea) की किस्म: सूखे की स्थिति में बीज के वज़न और उपज में वृद्धि के साथ अनावृष्टि-सहिष्णु चने की किस्म विकसित की गई।
- एक्सेल ब्रीड सुविधा: लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) में अत्याधुनिक स्पीड ब्रीडिंग सुविधा, फसल सुधार कार्यक्रमों को गति प्रदान करती है।
- स्वदेशी टीके: भारत ने कई अग्रणी टीके विकसित किये जिनमें चतुर्भुज मानव पेपिलोमा वायरस (qHPV) वैक्सीन, ZyCoV-D (DNA वैक्सीन) शामिल है और इसके अतिरिक्त GEMCOVAC-OM, एक mRNA-आधारित ओमिक्रॉन बूस्टर पेश किया गया।
- जीन थेरेपी: हीमोफीलिया A के लिये भारत के पहले जीन थेरेपी क्लिनिकल परीक्षण को मंज़ूरी मिली।
- नई रुधिर बैग प्रौद्योगिकी: बेंगलुरु के inStem के शोधकर्त्ताओं ने विशेष शीट बनाई, जो संगृहीत लाल रक्त कोशिकाओं को नुकसान से बचाती है।
- यह तकनीक बेहतर रुधिर बैग बनाने और आधान के दौरान समस्याओं को कम करने में मदद कर सकती है।
- ADVIKA काबुली चने (Chickpea) की किस्म: सूखे की स्थिति में बीज के वज़न और उपज में वृद्धि के साथ अनावृष्टि-सहिष्णु चने की किस्म विकसित की गई।
- भविष्य का दृष्टिकोण:
- बायोटेक्नोलॉजी उद्योग वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने वाला है और वर्ष 2030 तक इसके 300 बिलियन अमरीकी डॉलर तक बढ़ने की संभावना है।
- इस क्षेत्र से वर्ष 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 3.3-3.5% योगदान मिलने की उम्मीद है।
- डायग्नोस्टिक और मेडिकल उपकरणों के बाज़ार में उल्लेखनीय वृद्धि होने का अनुमान है साथ ही चिकित्सीय क्षेत्र से वर्ष 2025 तक जैव-आर्थिक गतिविधि में 15 बिलियन अमरीकी डॉलर सृजन होने की उम्मीद है।
- बायोटेक इनक्यूबेटरों के विस्तार और स्टार्टअप्स के लिये समर्थन से स्वास्थ्य, कृषि एवं औद्योगिक प्रक्रियाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में आगे विकास एवं नवाचार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- बायोटेक्नोलॉजी उद्योग वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने वाला है और वर्ष 2030 तक इसके 300 बिलियन अमरीकी डॉलर तक बढ़ने की संभावना है।
भारत में जैव प्रौद्योगिकी के लिये चुनौतियाँ क्या हैं?
- रणनीतिक रोडमैप विकास: जैव प्रौद्योगिकी के लिये एक व्यापक रणनीतिक रोडमैप का अभाव है जो प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्रों और उद्योग-विशिष्ट अनुसंधान एवं विकास आवश्यकताओं को रेखांकित करता हो।
- फसल सुधार और चिकित्सा विज्ञान में महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को हरित और श्वेत क्रांति के समान क्रांति की आवश्यकता है।
- जैव-नेटवर्किंग: जैव-प्रौद्योगिकी व्यवसायों के बीच संपर्क बढ़ाने, बौद्धिक संपदा अधिकारों को संबोधित करने तथा जैव-सुरक्षा एवं जैव-नैतिकता सुनिश्चित करने के लिये प्रभावी जैव-नेटवर्किंग की आवश्यकता है।
- मानव संसाधन: जैव प्रौद्योगिकी में विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में अधिक विशिष्ट मानव संसाधनों की आवश्यकता है।
- विनियामक बोझ: जैव प्रौद्योगिकी हेतु भारत का विनियामक वातावरण जटिल और धीमा है, विशेष रूप से आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) के लिये।
- अनुमोदन प्रक्रिया बहुत जटिल है, जिसमें अनेक एजेंसियाँ तथा जेनेटिक मैनिपुलेशन पर समीक्षा समिति (Review Committee on Genetic Manipulation- RCGM) शामिल हैं, जिसके कारण क्षेत्राधिकार में अतिव्यापन होता है और देरी होती है।
- वित्तपोषण और निवेश: यद्यपि जैव प्रौद्योगिकी उद्योग भागीदारी कार्यक्रम (Biotechnology Industry Partnership Programme- BIPP) के तहत जैव प्रौद्योगिकी परियोजनाओं के लिये सरकारी वित्तपोषण उपलब्ध है, फिर भी उच्च जोखिम वाले अग्रणी अनुसंधान को समर्थन देने हेतु और अधिक निवेश की आवश्यकता है।
- IT एकीकरण और डेटा प्रबंधन: जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान को डेटा प्रबंधन के लिये व्यापक आईटी समर्थन की आवश्यकता होती है, जिसमें डेटा एकीकरण और तकनीकी मानकों की स्थापना से संबंधित चुनौतियाँ भी शामिल हैं।
जैव प्रौद्योगिकी विकास हेतु केस स्टडी के रूप में हैदराबाद
- हैदराबाद ने 700 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश प्राप्त किया है और इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचना है, जो जैव प्रौद्योगिकी के लिये महत्त्वपूर्ण वित्तीय समर्थन को दर्शाता है।
- जीनोम वैली, मेडटेक पार्क और फार्मा सिटी जैसी प्रमुख बुनियादी परियोजनाएँ चल रही हैं, जो हैदराबाद के बायोटेक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ा रही हैं।
- हैदराबाद में जीवन विज्ञान क्षेत्र ने हाल के वर्षों में 4,50,000 से अधिक नौकरियाँ उत्पन्न की हैं, जिससे महत्त्वपूर्ण आर्थिक विकास में योगदान मिला है।
- वैश्विक वैक्सीन उत्पादन में तेलंगाना का योगदान एक तिहाई है और हैदराबाद को विश्व की वैक्सीन राजधानी माना जाता है। साथ ही राज्य भारत के दवा उत्पादन में लगभग 35% योगदान देता है।
- हैदराबाद अन्य वैश्विक बाज़ारों की तुलना में किफायती मानव संसाधन और कम अचल संपत्ति लागत प्रदान करता है, जिससे बायोटेक कंपनियाँ यहाँ आकर्षित होती हैं।
आगे की राह
- जैव प्रौद्योगिकी में कुशल कार्यबल विकसित करने के लिये बायोटेक औद्योगिक प्रशिक्षण कार्यक्रम (Biotech Industrial Training Programme- BITP) जैसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार करना।
- बायोटेक स्टार्टअप और शुरुआती चरण की कंपनियों में उद्यम पूंजी निवेश को प्रोत्साहित करें। संसाधन जुटाने तथा नवाचार में तेजी लाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा दें।
- सहायक नीतियों और प्रोत्साहनों को तैयार करना तथा उन्हें लागू करना महत्त्वपूर्ण होगा। नीतियों को बायोटेक फर्मों को आकर्षित करने और बनाए रखने के लिये विनियामक व्यवस्था को सुव्यवस्थित कर लाभ तथा सब्सिडी पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
- प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजना जैसी पहलों का लाभ उठाना। रणनीतिक साझेदारी और निवेश के माध्यम से वैश्विक बाज़ार में उपस्थिति और ब्रांड पहचान बनाने पर ध्यान केंद्रित करना।
- जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित वैश्विक पहलों जैसे कि ग्लोबल अलायंस फॉर जीनोमिक्स एंड हेल्थ और वैश्विक गठबंधन तथा प्लांट बायोटेक्नोलॉजी के अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Association of Plant Biotechnology- IAPB) में सक्रिय रूप से भाग लें। वैश्विक बाज़ारों में जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों तथा सेवाओं के निर्यात का समर्थन करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. BioE3 नीति भारत के राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ इसके संरेखण और भारत में जैव प्रौद्योगिकी कैसे विकसित हुई है, इस पर चर्चा कीजिये। चुनौतियों का समाधान करने के लिये संभावित समाधान सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. पीड़कों को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं, जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होगीं?(2021) प्रश्न. किसानों के जीवन मानकों को उन्नत करने के लिये जैव-प्रौद्योगिकी किस प्रकार सहायता कर सकती हैं? (2019) प्रश्न. क्या कारण है कि हमारे देश में जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्यधिक सक्रियता है? इस सक्रियता ने बायोफार्मा के क्षेत्र को कैसे लाभ पहुँचाया है? (2018) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्रों के लिये मरम्मत योग्यता सूचकांक
मेन्स के लिये:ई-अपशिष्ट, नियोजित अप्रचलन, ग्रे मार्केट, राइट-टू-रिपेयर, यूरोपियन यूनियन, सर्कुलर इकोनॉमी, मरम्मत योग्यता सूचकांक, राइट-टू-रिपेयर पोर्टल इंडिया, बौद्धिक संपदा। मेन्स के लिये:राइट-टू-रिपेयर से जुड़े महत्त्व और चुनौतियाँ, सर्कुलर इकोनॉमी की आवश्यकता। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत उपभोक्ता मामले विभाग (Department of Consumer Affairs- DoCA) ने मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्रों के लिये मरम्मत के अधिकार की रूपरेखा पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया।
- इसमें मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिये "मरम्मत सूचकांक" शुरू करने पर चर्चा की गई ताकि उपभोक्ताओं को उन्हें खरीदने से पहले उचित निर्णय लेने में मदद मिल सके।
- इस पहल का उद्देश्य बढ़ती ई-अपशिष्ट की समस्या का समाधान करना तथा निर्माताओं को आसानी से मरम्मत योग्य वस्तुओं का उत्पादन करने के लिये प्रोत्साहित करना है।
कार्यशाला की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- कार्यशाला का उद्देश्य: कार्यशाला का उद्देश्य मरम्मत योग्यता सूचकांक स्थापित करने, उत्पाद की दीर्घायु को बढ़ावा देने तथा मोबाइल एवं इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के पुनः उपयोग में उपभोक्ता अनुभव को बढ़ाने के लिये मरम्मत संबंधी जानकारी का लोकतंत्रीकरण करने पर उद्योग हितधारकों के बीच आम सहमति बनाना था।
- यह मरम्मत विकल्पों की कमी या उच्च मरम्मत लागत के कारण उपभोक्ताओं को नए उत्पाद खरीदने की आवश्यकता को रोकने में मदद करता है।
- नियोजित अप्रचलन से निपटना: यह चर्चा "नियोजित अप्रचलन" की प्रथा से निपटने पर केंद्रित थी, जहाँ निर्माता आवश्यक मरम्मत जानकारी, मरम्मत मैनुअल/वीडियो और स्पेयर पार्ट्स तक पहुँच को प्रतिबंधित करते हैं।
- इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि मरम्मत संबंधी जानकारी और स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता की कमी के कारण उपभोक्ता अपने उपकरणों को छोड़कर नए खरीदने को मजबूर होते हैं या फिर ग्रे मार्केट (अनौपचारिक बाज़ार) से जोखिम भरे नकली पार्ट्स खरीदने को मज़बूर होते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम पद्धतियाँ : चर्चा में फ्राँस, यूरोपियन यूनियन, यूनाइटेड किंगडम की अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम पद्धतियों को एकीकृत करने और मरम्मत क्षमता बढ़ाने के लिये दीर्घावधिक उत्पादों के डिज़ाइन पर ज़ोर दिया गया।
- चर्चाओं में टिकाऊ उत्पाद डिज़ाइन के महत्त्व, पारिस्थितिकीय चिंताओं तथा "उपयोग और निपटान" की अर्थव्यवस्था से "सर्कुलर इकोनॉमी" की ओर स्थानांतरित होने की आवश्यकता तथा "विचारहीन उपभोग" के स्थान पर "विचारपूर्ण उपयोग" को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर चर्चा की गई।
मरम्मत योग्यता सूचकांक के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिभाषा: मरम्मत योग्यता सूचकांक एक अनिवार्य लेबल है, जिसे निर्माता उत्पाद की मरम्मत योग्यता के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिये विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर प्रदर्शित करते हैं।
- उत्पादों की रेटिंग के लिये मानदंड: मरम्मत योग्यता सूचकांक निम्नलिखित के आधार पर उत्पादों का मूल्यांकन करेगा:
- तकनीकी दस्तावेज़ों की उपलब्धता: उत्पाद की मरम्मत में सहायता करने वाले मैनुअल और गाइड तक पहुँच।
- वियोजन में आसानी: किसी उत्पाद को कितनी आसानी से अलग किया जा सकता है ताकि उसके घटकों तक पहुँचा जा सके और उनकी मरम्मत की जा सके।
- स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता और मूल्य निर्धारण: स्पेयर पार्ट्स कितनी आसानी से उपलब्ध हैं और उपभोक्ताओं के लिये उनकी लागत कितनी है।
- मरम्मत योग्यता सूचकांक की स्कोरिंग प्रणाली: उत्पादों को 1 से 5 के पैमाने पर स्कोर किया जाएगा।
- 1 का स्कोर: ऐसे उत्पाद जिनमें क्षति का उच्च जोखिम होता है तथा जिनके एक भाग तक पहुँचने के लिये कई घटकों को तोड़ना पड़ता है।
- 5 का स्कोर: ऐसे उत्पाद जिनकी मरम्मत आसान है तथा बैटरी या डिस्प्ले जैसे प्रमुख भागों तक सीधी पहुँच है एवं उन्हें अनावश्यक रूप से अलग नहीं किया जा सकता।
राईट टू रिपेयर क्या है?
- परिचय: उपभोक्ता वस्तुओं के लिये ‘राईट टू रिपेयर’ अंतिम उपभोक्ताओं, उपभोक्ताओं तथा सभी व्यवसायों को बिना किसी निर्माता या तकनीकी प्रतिबंध के अपने स्वामित्व वाले या सेवा वाले उपकरणों की मरम्मत करने की अनुमति देता है।
- यह निर्माताओं को उपकरण, पार्ट्स और दस्तावेज़ों तक पहुँच को सीमित करके रिपेयर को उनकी अधिकृत सेवाओं तक सीमित करने से प्रतिबंधित करता है।
- राईट टू रिपेयर की विशेषताएँ:
- सूचना तक पहुँच: उपभोक्ताओं को रिपेयर मैनुअल, व्यवस्था (स्कीमैटिक्स) और सॉफ्टवेयर अपडेट तक पहुँच होनी चाहिये।
- पुर्ज़ों और उपकरणों की उपलब्धता: थर्ड पार्टी और व्यक्तियों को रिपेयर के लिये आवश्यक भागों एवं उपकरणों तक पहुँच में सक्षम होना चाहिये।
- लीगल अनलॉकिंग: उपभोक्ताओं को डिवाइस को अनलॉक या संशोधित करने की अनुमति दी जानी चाहिये जैसे कि कस्टम सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना।
- मरम्मत के अनुकूल डिज़ाइन: डिवाइस को आसान रिपेयर के लिये डिज़ाइन किया जाना चाहिये।
- राईट टू रिपेयर की आवश्यकता:
- बढ़ता ई-अपशिष्ट: उपकरणों की मरम्मत में कठिनाई से इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट में वृद्धि होती है।
- भारत ई-अपशिष्ट में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है, जहाँ प्रत्येक वर्ष लगभग 3.2 मिलियन मीट्रिक टन ई-अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जो केवल चीन एवं संयुक्त राज्य अमेरिका से पीछे है।
- रिपेयर का एकाधिकार: निर्माता प्रायः थर्ड पार्टी रिपेयर में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं, जो उपभोक्ता की पसंद को सीमित करता है और लागत बढ़ाता है।
- नियोजित अप्रचलन: कंपनियाँ बार-बार प्रतिस्थापन को प्रोत्साहित करने के लिये सीमित जीवनकाल वाले उत्पाद डिज़ाइन करती हैं।
- स्थायित्व: यह उपकरणों के जीवन को बढ़ाकर और उनके रखरखाव, पुन: उपयोग, उन्नयन, पुनर्चक्रण तथा अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करके परिपत्र अर्थव्यवस्था लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा।
- बढ़ता ई-अपशिष्ट: उपकरणों की मरम्मत में कठिनाई से इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट में वृद्धि होती है।
मरम्मत के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिये क्या पहल की गई है?
- भारत में राईट टू रिपेयर:
- उपभोक्ता कार्य विभाग ने निधि खरे की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है, जिसके कारण भारत में राईट टू रिपेयर पोर्टल का निर्माण हुआ।
- यह उपभोक्ताओं को उत्पादों की मरम्मत और रखरखाव पर आवश्यक जानकारी तक आसान पहुँच प्रदान करने के लिये एकल मंच के रूप में कार्य करता है।
- इस पोर्टल पर कृषि उपकरण, मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स, उपभोक्ता धारणीय वस्तुएँ और ऑटोमोबाइल उपकरण जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
- अब तक 63 कंपनियाँ पोर्टल पर शामिल हो चुकी हैं, जिनमें मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र की 23 कंपनियाँ शामिल हैं, जो मरम्मत के विकल्पों, अधिकृत मरम्मत करने वालों एवं स्पेयर पार्ट्स के स्रोतों के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं।
- उपभोक्ता कार्य विभाग ने निधि खरे की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है, जिसके कारण भारत में राईट टू रिपेयर पोर्टल का निर्माण हुआ।
- अन्य देशों में राईट टू रिपेयर:
- संयुक्त राज्य अमेरिका: वर्ष 2022 के फेयर रिपेयर एक्ट के तहत कंपनियों को पेटेंट किये गए उपकरण उपलब्ध कराने और ऐसे सॉफ्टवेयर प्रतिबंध हटाने की आवश्यकता होती है, जो उपयोगकर्त्ताओं को अपने उत्पादों की मरम्मत करने से प्रतिबंधित करते हैं।
- यूरोपीय संघ: राईट टू रिपेयर नियम, 2019 का उद्देश्य डिजिटल उत्पादों की एक परिपत्र अर्थव्यवस्था स्थापित करना है, जिससे उपयोगकर्त्ताओं को उपभोक्ता उपकरणों की मरम्मत के लिये रिपेयर टूल्स तक पहुँच मिलती है।
- यूनाइटेड किंगडम: राईट टू रिपेयर विनियम, 2021 सुनिश्चित करते हैं कि उत्पाद रिलीज़ होने के दस वर्ष बाद तक स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध रहें।
- ऑस्ट्रेलिया: स्वयंसेवी मरम्मत करने वाले लोग (Volunteer Repairmen) अपने कौशल को उन लोगों के साथ साझा करने के लिये ‘रिपेयर कैफे’ में इकट्ठा होते हैं जो अपना सामान लेकर आते हैं।
राईट टू रिपेयर को लागू करने में क्या चुनौतियाँ शामिल हैं?
- टेक कंपनियों का विरोध: Apple, Microsoft और Tesla जैसी कंपनियों का तर्क है कि राईट टू रिपेयर के कारण सुरक्षा, बौद्धिक संपदा और उत्पाद की गुणवत्ता से समझौता हो सकता है।
- उपयोगकर्त्ता सुरक्षा, तकनीक का संकुचित होता आकार और नवाचार में कम प्रोत्साहन चिंता के बिंदु हैं।
- संकुचित होती हुई तकनीक: प्रत्येक वर्ष तकनीक क्षेत्र संकुचित होती जा रही है और जटिल हार्डवेयर की मरम्मत औसत व्यक्ति के लिये कठिन होती जा रही है।
- जबकि पुरानी तकनीक को किसी भी हार्डवेयर स्टोर पर उपलब्ध सामान्य उपकरणों से ठीक किया जा सकता है, आधुनिक तकनीक इसकी तुलना में छोटी और अधिक सूक्ष्म है।
- उन्हें प्रायः विशेष टूल्स के प्रयोग की आवश्यकता होती है, जो व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं और यहाँ तक कि लाइसेंसिंग की भी आवश्यकता हो सकती है।
- नवाचार के लिये शून्य प्रोत्साहन: मूल उपकरण निर्माता (OEM) लगातार नई तकनीक पर बल देते हैं क्योंकि इससे उन्हें लाभ होता है।
- OEM ने तर्क दिया कि यदि लोग गैजेट को अपग्रेड करने के बजाय उन्हें रिपेयर कराना पसंद करेंगे तो नवाचार पीछे छूट जाएगा।
- दक्षता: आधुनिक तकनीकी उत्पादों को उनके दिये गए फॉर्म फैक्टर के भीतर यथासंभव कुशल बनाने हेतु डिज़ाइन किया गया है। रिपेयर को आसान बनाने के लिये इसकी दक्षता को कम करना होगा।
- सुरक्षा और गोपनीयता: तीसरे पक्ष को पहुँच की अनुमति देने से उपयोगकर्त्ताओं के डेटा की सुरक्षा भंग हो सकती है।
आगे की राह:
- रिपेयर उपकरणों और सूचना तक उचित पहुँच: निर्माताओं को प्रमाणित स्वतंत्र मरम्मत दुकानों के लिये मरम्मत मैनुअल, नैदानिक उपकरण और स्पेयर पार्ट्स को आसानी से उपलब्ध कराने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है या उनसे यह अपेक्षा की जा सकती है।
- इससे उपभोक्ताओं को रिपेयर के लिये आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने में भी सहायता मिलेगी।
- उत्पाद डिज़ाइन में दक्षता और रिपेयर योग्यता के बीच संतुलन: निर्माताओं को उत्पाद दक्षता और रिपेयर योग्यता के बीच संतुलित दृष्टिकोण अपनाने का लक्ष्य रखना चाहिये।
- यह कार्य ऐसे मॉड्यूलर घटकों को डिज़ाइन करके प्राप्त किया जा सकता है, जिन्हें रिपेयर या प्रतिस्थापन आसान हो और जो डिवाइस के समग्र प्रदर्शन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित न करें।
- नवाचार और अनुसंधान को प्रोत्साहित करना: नवाचार की गति को बनाए रखने के लिये, सरकारें उन कंपनियों को कर छूट, अनुदान या सब्सिडी जैसे प्रोत्साहन प्रदान कर सकती हैं जो अनुसंधान और विकास में निवेश करती हैं तथा साथ ही रिपेयर योग्य उत्पाद डिज़ाइनों का भी समर्थन करती हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. 'राइट टू रिपेयर' की अवधारणा और उपभोक्ता अधिकारों, पर्यावरणीय स्थिरता तथा नवाचार के लिये इसके निहितार्थ पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में 'विस्तारित उत्पादक दायित्व' आरंभ किया गया था? (2019) (a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1998 उत्तर: (c) प्रश्न. पुराने और प्रयुक्त कम्प्यूटरों या उनके पुर्जों के असंगत/अव्यवस्थित निपटान के कारण, निम्नलिखित में से कौन-से ई-अपशिष्ट के रूप में पर्यावरण में निर्मुक्त होते हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए। (a) केवल 1, 3, 4, 6 और 7 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018) प्रश्न. "सूचना प्रौद्योगिकी केंद्रों के रूप में नगरों की संवृद्धि ने रोज़गार के नए मार्ग खोल दिये हैं, परंतु साथ में नई समस्याएँ भी पैदा कर दी हैं।" उदाहरणों सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये। (2017) |
मुख्य परीक्षा
लिथियम खनन के प्रतिकूल प्रभाव
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
एक नए अध्ययन के अनुसार लिथियम खनन के कारण चिली के अटाकामा नमक क्षेत्र में भूमि अवतलन हो रहा है।
अध्ययन के मुख्य तथ्य क्या हैं?
- निष्कर्ष:
- डूबने की दर: चिली में अटाकामा नमक का मैदान लिथियम ब्राइन निष्कर्षण के कारण प्रति वर्ष 1 से 2 सेंटीमीटर की दर से डूब रहा है।
- लिथियम ब्राइन निष्कर्षण में नमक युक्त जल को सतह पर और वाष्पीकरण तालाबों में पंप करके लिथियम प्राप्त करना शामिल है।
- डूबने का कारण जलभृतों के प्राकृतिक पुनर्भरण की तुलना में तीव्र गति से लिथियम युक्त ब्राइन का निष्कर्षण है, जिसके कारण अवतलन होता है।
- डूबने की दर: चिली में अटाकामा नमक का मैदान लिथियम ब्राइन निष्कर्षण के कारण प्रति वर्ष 1 से 2 सेंटीमीटर की दर से डूब रहा है।
- लिथियम खनन का पर्यावरण पर प्रभाव:
- जल उपयोग: इस प्रक्रिया में अत्यधिक मात्रा में स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है, एक टन लिथियम उत्पादन के लिये 2,000 टन जल की आवश्यकता होती है।
- जल की कमी: यह निष्कर्षण अटाकामा रेगिस्तान में जल की कमी को बढ़ाता है, जिससे स्थानीय समुदाय और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों प्रभावित होते हैं।
- रासायनिक संदूषण: लिथियम निष्कर्षण में इस्तेमाल किये जाने वाले सल्फ्यूरिक एसिड और सोडियम हाइड्रॉक्साइड जैसे रसायन मृदा व जल को दूषित करते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है तथा प्रजातियाँ खतरे में पड़ जाती हैं।
- वन्यजीवों पर प्रभाव: वर्ष 2022 के एक अध्ययन ने अटाकामा क्षेत्र में जल स्तर में कमी के कारण फ्लेमिंगो की आबादी में गिरावट पर प्रकाश डाला, जो उनके प्रजनन दर को प्रभावित करता है।
- रियासी (जम्मू और कश्मीर) में लिथियम खनन का संभावित प्रभाव:
- जल संकट: चिनाब रेल पुल के निर्माण के बाद बारहमासी जलधाराएँ सूख जाने के कारण रियासी के कई गाँव पर्याप्त जल की उपलब्धता के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
- जल की अधिक खपत वाले लिथियम खनन से स्थिति और भी खराब हो सकती है।
- जैवविविधता के लिये खतरा: जम्मू-कश्मीर में हिमालयी क्षेत्र जैवविविधता का हॉटस्पॉट और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र है तथा खनन से जैवविविधता को काफी नुकसान हो सकता है।
- यह कॉमन टील नॉर्दर्न पिंटेल जैसे प्रवासी पक्षियों के आवास को बाधित कर सकता है, जो हर वर्ष जम्मू-कश्मीर की झीलों, दलदलों और आर्द्रभूमि में रहने के लिये आते हैं।
- खाद्य असुरक्षा: लिथियम का खनन व प्रसंस्करण अपने अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन, जल तथा भूमि उपयोग के तरीकों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा को और भी खतरे में डाल सकता है।
- प्रदूषण: हिमालय अनेक नदियों का स्रोत है और खनन गतिविधियाँ समूचे तटवर्ती पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषित कर सकती हैं।
- जल संकट: चिनाब रेल पुल के निर्माण के बाद बारहमासी जलधाराएँ सूख जाने के कारण रियासी के कई गाँव पर्याप्त जल की उपलब्धता के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
लिथियम के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: यह एक नरम, चाँदी जैसी धातु है तथा सभी धातुओं में इसका घनत्व सबसे कम है।
- इसमें उच्च प्रतिक्रियाशीलता, कम घनत्व और उत्कृष्ट विद्युत-रासायनिक गुण हैं।
- इसके अयस्कों में पेटालाइट, लेपिडोलाइट और स्पोडुमीन शामिल हैं। इसे "सफेद सोना" के नाम से भी जाना जाता है।
- अनुप्रयोग:
- बैटरियाँ: लिथियम का सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोग मोबाइल फोन, लैपटॉप, डिजिटल कैमरा और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये रिचार्जेबल बैटरियों में किया जाता है।
- लिथियम का उपयोग हृदय पेसमेकर, खिलौनों और घड़ियों जैसी चीजों के लिये कुछ गैर-रिचार्जेबल बैटरियों में भी किया जाता है।
- मिश्र धातु: मैग्नीशियम-लिथियम मिश्र धातु का उपयोग कवच चढ़ाने के लिये किया जाता है।
- एयर कंडीशनिंग: लिथियम क्लोराइड और लिथियम ब्रोमाइड का उपयोग उनके हाइग्रोस्कोपिक गुणों के कारण एयर कंडीशनिंग और इंडस्ट्रियल ड्राइंग सिस्टम किया जाता है।
- स्नेहक: लिथियम स्टीयरेट का उपयोग बहुउद्देशीय और उच्च-तापमान स्नेहक (Lubricant) के रूप में किया जाता है।
- बैटरियाँ: लिथियम का सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोग मोबाइल फोन, लैपटॉप, डिजिटल कैमरा और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये रिचार्जेबल बैटरियों में किया जाता है।
- भंडार: चिली के पास विश्व स्तर पर सबसे बड़ा लिथियम भंडार है, जो लगभग 36% है तथा यह दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जो विश्व की आपूर्ति में 32% का योगदान देता है।
- चिली, अर्जेंटीना और बोलीविया के साथ "लिथियम त्रिकोण" का हिस्सा है।
- ऑस्ट्रेलिया और चीन विश्व स्तर पर लिथियम के पहले और तीसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं।
अटाकामा मरूस्थल
- स्थान: अटाकामा मरूस्थल चिली में कॉर्डिलेरा डे ला कोस्टा पर्वत शृंखला और एंडीज पर्वत के बीच स्थित है।
- जलवायु: यह रेगिस्तान पूर्व में एंडीज पर्वतमाला द्वारा वर्षा से सुरक्षित रहता है तथा यहाँ वायुमंडलीय परिस्थितियाँ ऐसी हैं, जो प्रशांत महासागर से ऊपर उठने वाले शीतल जल (पेरू/हम्बोल्ट धारा) के कारण बादलों के निर्माण को रोकती हैं।
- तापमान: अन्य रेगिस्तानों के विपरीत अटाकामा में शीतोष्ण जलवायु और शीतल जल के ऊपर उठने के कारण लगभग 18 डिग्री सेल्सियस का हल्का औसत तापमान रहता है।
- खनिज स्रोत:
- नमक जमा होना: रेगिस्तान का केंद्र मोटे नमक जमा से ढका हुआ है, जिसे प्लायास कहा जाता है।
- नाइट्रेट बेल्ट: इस रेगिस्तान में नाइट्रेट खनिज पाए जाते हैं, जिनका ऐतिहासिक रूप से विस्फोटकों और उर्वरकों में उपयोग के लिये खनन किया जाता था।
- खनिज समृद्धि: यह लिथियम, ताँबा और आयोडीन जैसी अन्य सामग्रियों से समृद्ध है।
- संरक्षित क्षेत्र: इस पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर पैन डी अज़ुकर नेशनल पार्क एकमात्र बड़ा राष्ट्रीय संरक्षित क्षेत्र है।
और पढ़ें….
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. लिथियम खनन के प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा कीजिये। यह देश के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों के लिये किस प्रकार खतरा उत्पन्न करता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न. धातुओं के निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सी क्रमशः सबसे हल्की धातु और सबसे भारी धातु है? (2008) (a) लिथियम और पारा उत्तर: (b) प्रश्न. अफ्रीकी और यूरेशियन मरुस्थल पेटी के गठन के लिये मुख्य कारण क्या हो सकता/सकते हैं?(2011)
इस संदर्भ में उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. तटीय बालू खनन चाहे वह वैध हो या अवैध हो, हमारे पर्यावरण के सामने सबसे बड़े खतरों में से एक है। भारतीय तटों पर हो रहे बालू खनन के प्रभाव का विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देते हुए विश्लेषण कीजिये। (2019)
|
भारतीय राजव्यवस्था
सर्वोच्च न्यायालय के 75 वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय, संविधान, संसद, मूल संरचना सिद्धांत, अनुच्छेद 21, आपातकाल, जनहित याचिका (PIL), कॉलेजियम प्रणाली, रिट याचिकाएँ, ई-कोर्ट परियोजना, केंद्रीय सतर्कता आयोग। मेन्स के लिये:अपने गठन के बाद से लोकतंत्र को मज़बूत करने और व्यक्तिगत अधिकारों को बढ़ावा देने में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका। |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय (स्थापना - 26 जनवरी 1950) की स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में इसके नए ध्वज और प्रतीक चिह्न का अनावरण किया।
- ध्वज में अशोक चक्र, सर्वोच्च न्यायालय भवन और भारत के संविधान की पुस्तक अंकित है।
- इसके अलावा प्रधानमंत्री ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय की 75वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया।
75 वर्षों के दौरान सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका से जुड़े मुख्य तथ्य क्या हैं?
लोकतंत्र को मज़बूत करने में न्यायपालिका की भूमिका: भारत में न्यायपालिका ने स्वतंत्रता के बाद से लोकतंत्र और उदार मूल्यों की रक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इसने संविधान के संरक्षक, हाशिये पर पड़े लोगों के अधिकारों के रक्षक तथा बहुसंख्यकवाद विरोधी शासन संस्था के रूप में कार्य किया है।
सर्वोच्च न्यायालय (SC) का विकास: सर्वोच्च न्यायालय की यात्रा और लोकतंत्र को मज़बूत करने तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा में इसकी भूमिका को चार चरणों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
न्यायिक समीक्षा पर ध्यान: स्वतंत्रता के बाद के प्रारंभिक वर्षों में न्यायपालिका ने रूढ़िवादी दृष्टिकोण बनाए रखा तथा स्वयं को संविधान की लिखित व्याख्या तक ही सीमित रखा।
इसने अपनी सीमाओं का अतिक्रमण किये बिना विधायी कार्यों की जाँच करने के लिये न्यायिक समीक्षा का प्रयोग किया।
वैचारिक प्रभाव से बचाव: न्यायपालिका समाजवाद और सकारात्मक कार्रवाई जैसी सरकारी विचारधाराओं से प्रभावित होने से बचती है।
उदाहरण के लिये कामेश्वर सिंह मामले, 1952 में ज़मींदारी उन्मूलन को अवैध घोषित किया गया, लेकिन संसद द्वारा किये गए संवैधानिक संशोधनों को अमान्य नहीं किया गया।
विधायी सर्वोच्चता के प्रति सम्मान: चंपकम दोरायराजन मामला, 1951 जैसे मामलों से पता चलता है कि न्यायपालिका ने समानता के अधिकार का उल्लंघन करते हुए शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को खारिज कर दिया, लेकिन संविधान की सकारात्मक व्याख्या का पालन करते हुए उसने संसद के साथ टकराव से परहेज किया।
मौलिक अधिकारों का विस्तार: गोलक नाथ निर्णय, 1967 ने मौलिक अधिकारों की अधिक विस्तृत व्याख्या की ओर एक बदलाव को चिह्नित किया, जिसने संसद की विधायी शक्ति को चुनौती दी और न्यायिक समीक्षा की शक्ति पर पुनः ज़ोर दिया।
गोलक नाथ मामले, 1967 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि संसद किसी भी मौलिक अधिकार को छीन या कम नहीं कर सकती।
संविधान संशोधन पर ऐतिहासिक निर्णय: केशवानंद भारती मामले, 1973 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने 'मूल संरचना' सिद्धांत को प्रस्तुत किया, जिसने संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को सीमित कर दिया, जिससे न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई।
न्यायिक स्वतंत्रता पर आपातकाल का प्रभाव: राष्ट्रीय आपातकाल और तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों की अनदेखी कर न्यायमूर्ति ए.एन. रे को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किये जाने ने ADM जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला, 1976 मामले में न्यायिक आत्मसमर्पण में प्रमुख योगदान दिया, जिसमें मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार को निलंबित करने के सरकार के कृत्य का समर्थन किया गया था।
इस निर्णय ने देश में संवैधानिक लोकतंत्र के लिये एक नया निम्न स्तर चिह्नित किया, साथ ही उच्च न्यायपालिका की संस्थागत कमज़ोरी को भी उजागर किया।
आपातकाल के बाद सुधार: आपातकाल के बाद न्यायपालिका ने अपनी स्वतंत्रता और विश्वसनीयता को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया। मेनका गांधी मामले, 1978 ने अनुच्छेद 21 की व्याख्या को व्यापक बनाया तथा जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे का विस्तार किया।
जनहित याचिका (PIL) का उदय: हुसैनारा खातून मामला, 1979 जैसे मामलों के माध्यम से न्यायपालिका ने जनहितैषी व्यक्तियों को हाशिये पर पड़े समूहों की ओर से याचिका दायर करने की अनुमति देकर न्याय तक पहुँच का विस्तार किया।
जनहित याचिकाएँ न्यायिक सक्रियता का एक साधन बन गईं, जो मानवाधिकार, पर्यावरण संरक्षण और शासन जैसे मुद्दों को हल करती हैं।
कॉलेजियम प्रणाली: न्यायपालिका ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम सिस्टम शुरू करके अपनी स्वायत्तता बनाए रखने की कोशिश की।
इस प्रणाली को बाद में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 द्वारा चुनौती दी गई, जिसे न्यायपालिका ने अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिये रद्द कर दिया।
उदार व्याख्या: सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संघ में जम्मू-कश्मीर के पूर्ण एकीकरण के लिये अनुच्छेद 370 को हटाने को बरकरार रखा है।
न्यायिक सक्रियता को बनाए रखना: आलोचनाओं के बावजूद न्यायपालिका ने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा में अपनी भूमिका पर ज़ोर देना जारी रखा है। उदाहरण के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने अपारदर्शी चुनावी बॉण्ड योजना को अमान्य ठहराया।
वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को रद्द कर दिया, जिसने व्यभिचार को अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने वाला अपराध घोषित किया था।
प्रथम चरण (1950-1967): इसमें संवैधानिक पाठ के प्रति अनुपालन और न्यायिक संयम को प्रतिबिंबित किया गया।
दूसरा चरण (1967-1976): इसमें न्यायिक सक्रियता और संसद के साथ टकराव प्रदर्शित हुआ।
तीसरा चरण (1978-2014): इसने न्यायिक सक्रियता और जनहित याचिका (PIL) के विस्तार को प्रदर्शित किया।
चौथा चरण (2014-वर्तमान): यह संविधान की उदार व्याख्या और संविधान को एक जीवंत दस्तावेज़ के रूप में मानने पर केंद्रित था।
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?
- लंबित मामलों की संख्या: वर्ष 2023 के अंत में सर्वोच्च न्यायालय में 80,439 मामले लंबित थे। ये लंबित मामले न्याय प्रदान करने में पर्याप्त विलंब करते हैं जो न्यायपालिका की दक्षता और विश्वसनीयता को कमज़ोर करते हैं।
- विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP) का प्रभुत्व: सर्वोच्च न्यायालय के पास लंबित मामलों की सूची में सर्वाधिक मामले विशेष अनुमति याचिकाओं (सिविल एवं आपराधिक अपीलों के लिये वरीयता साधन) से संबंधित हैं, जो रिट याचिकाओं और संवैधानिक चुनौतियों जैसे अन्य प्रकार के मामलों से सर्वोपरि हैं।
- यह वरीयता न्यायालय की विविध प्रकार के मुद्दों को प्रभावी ढंग से हल करने की क्षमता को प्रभावित करती है।
- मामलों की चयनात्मक वरीयता: ‘पिक एंड चूज़ मॉडल’ कुछ मामलों को अन्य मामलों पर प्राथमिकता देने की अनुमति देता है, जिससे तरजीही व्यवहार की धारणा बनती है। उदाहरण के लिये अन्य महत्त्वपूर्ण मामलों की तुलना में एक हाई-प्रोफाइल जमानत आवेदन पर तेज़ी से ध्यान दिया जाना।
- न्यायिक अपवंचन: लंबित मामलों के कारण कभी-कभी ‘न्यायिक अपवंचन’ होती है, जहाँ महत्त्वपूर्ण मामलों को टाला जाता है या विलंब किया जाता है। उल्लेखनीय उदाहरणों में आधार बायोमेट्रिक ID योजना चुनौती और चुनावी बॉण्ड मामले का निर्णय सुनाने करने में विलंब शामिल है।
- हितों का टकराव और ईमानदारी: सर्वोच्च न्यायालय सहित न्यायपालिका के भीतर भ्रष्टाचार के आरोप इसकी सत्यनिष्ठा और सार्वजनिक विश्वास के लिये चुनौतियाँ पेश करते हैं।
- उदाहरण के लिये संभावित हितों के टकराव की बात तब सामने आई जब कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय ने न्यायाधीश के रूप में अपने पद से इस्तीफा दे दिया और कुछ ही समय बाद राजनीति में प्रवेश कर गए।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति की चिंताएँ: न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया, विशेष रूप से कॉलेजियम प्रणाली की भूमिका, विवाद का विषय रही है।
- नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग जैसे सुधारों पर चर्चा हुई है।
आगे की राह
- अखिल भारतीय न्यायिक भर्ती: हाल ही में राष्ट्रपति ने अखिल भारतीय स्तर पर न्यायिक भर्ती का आह्वान किया। न्यायिक भर्ती के लिये एक राष्ट्रीय मानक स्थापित करने से राज्यों में एकरूपता और गुणवत्ता सुनिश्चित होती है, जिससे दक्षता में सुधार होता है।
- ज़िला न्यायालयों में न्यायिक भर्तियों को अब क्षेत्रवाद की संकीर्णता जैसी घरेलू बाधाएँ और राज्य-केंद्रित चयनों की सीमाओं तक सीमित नहीं किया जाना चाहिये।
- मामला प्रबंधन सुधार: प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिये उन्नत केस प्रबंधन तकनीकों को लागू करने की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिये ई-कोर्ट परियोजना का उद्देश्य न्यायालय संचालन को डिजिटल बनाना और स्वचालित करना है, जो केस बैकलॉग को प्रबंधित करने एवं विलंब को कम करने में मदद कर सकता है।
- मामलों की ट्रैकिंग और प्रबंधन को बढ़ाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय की केस मैनेजमेंट सिस्टम (CMS) के उपयोग का विस्तार करना।
- वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) को बढ़ावा देना: उन मामलों के लिये ADR तंत्र के उपयोग को प्रोत्साहित करना जिनमें सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती है, जैसा कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 में उल्लिखित है।
- पारदर्शी मामला सूचीकरण: पारदर्शी मामला सूचीकरण और प्राथमिकता प्रोटोकॉल विकसित करें।
- सर्वोच्च न्यायालय पोर्टल में मामलों की स्थिति और प्राथमिकताओं पर सार्वजनिक रूप से नज़र रखने की सुविधा शामिल की जा सकती है, जिससे पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।
- संस्थागत लक्ष्यों को स्पष्ट करना: संस्थागत लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना और उन्हें संप्रेषित करना। न्यायिक प्रदर्शन मूल्यांकन ढाँचे को न्यायालय के लक्ष्यों का आकलन करने तथा उन्हें पुनः संरेखित करने के लिये अनुकूलित किया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय का अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान इस फोकस को समर्थन देने में भूमिका निभा सकता है।
- जवाबदेही तंत्र को मज़बूत करना: न्यायाधीशों के लिये सख्त जवाबदेही उपायों को लागू करें। उदाहरणतः सरकारी अधिकारियों हेतु केंद्रीय सतर्कता आयोग के समान एक स्वतंत्र न्यायिक जवाबदेही आयोग की स्थापना करें।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देते हुए सर्वोच्च न्यायालय के 75 वर्ष के विकास पर चर्चा कीजिये। प्रभावी न्याय सुनिश्चित करने के लिये वर्तमान चुनौतियों पर काबू पाने की रणनीतियों पर चर्चा कीजिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के संविधान के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. 'संवैधानिक नैतिकता' की जड़ संविधान में ही निहित है और इसके तात्त्विक फलकों पर आधारित है। प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों की सहायता से 'संवैधानिक नैतिकता' के सिद्धांत की व्याख्या कीजिये। (2021) प्रश्न. न्यायिक विधायन, भारतीय संविधान में परिकल्पित शक्ति पृथक्करण सिद्धांत का प्रतिपक्षी है। इस संदर्भ में कार्यपालक अधिकरणों को दिशा-निर्देश देने की प्रार्थना करने संबंधी, बड़ी संख्या में दायर होने वाली, लोकहित याचिकाओं का न्याय औचित्य सिद्ध कीजिये। (2020 प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017) |
इन्फोग्राफिक्स
शासन व्यवस्था
NGT ने पंजाब सरकार पर ज़ुर्माना लगाया
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI), प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM)। मेन्स के लिये:भारत में अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़े मुद्दे। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने पंजाब सरकार पर कई चेतावनियों के बावजूद राज्य में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन में विफल रहने के लिये 1,000 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया है। यह राशि एक महीने के भीतर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCP) के पास जमा करनी है।
NGT ने पंजाब सरकार पर ज़ुर्माना क्यों लगाया?
- पिछले छह महीनों में लगाए गए ज़ुर्माने: NGT ने ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन में विफलता के कारण यह ज़ुर्माना लगाया हैज़ुर्माने की गणना 5.387 मिलियन टन पुरानेहीने की अवधि में ल अपशिष्ट तथा सीवेज उपचार क्षमता में अंतर के कारण अनुपचारित सीवेज के लिये छह मगाए गए पर्यावरणीय ज़ुर्माने के आधार पर की गई थी।
- बार-बार उल्लंघन: न्यायाधिकरण ने पाया कि पंजाब सरकार वर्ष 2022 में अपने पिछले आदेशों का पालन करने में भी विफल रही है, जिसमें NGT अधिनियम, 2010 की धारा 26 के तहत 2,080 करोड़ रुपए के लिये रिंग-फेंस्ड खाता बनाना भी शामिल है।
- NGT ने पंजाब के मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (शहरी विकास) को कारण बताओ नोटिस जारी कर उनसे स्पष्टीकरण मांगा है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016:
- इन नियमों ने नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2000 को प्रतिस्थापित किया है और स्रोत पर अपशिष्ट को पृथक करने, सैनिटरी एवं पैकेजिंग अपशिष्ट के निपटान के लिये निर्माता की ज़िम्मेदारी, बड़े पैमाने पर अपशिष्ट उत्पादकों से अपशिष्ट का संग्रह, निपटान तथा प्रसंस्करण हेतु उपयोगकर्त्ता शुल्क पर ध्यान केंद्रित किया।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- उत्पादकों की ज़िम्मेदारी यह निर्धारित की गई है कि वे अपशिष्ट को तीन श्रेणियों में विभाजित करें- गीला (जैवनिम्नीकरणीय), सूखा (प्लास्टिक, कागज, धातु, लकड़ी, आदि) और घरेलू खतरनाक अपशिष्ट (डायपर, मच्छर भगाने वाली दवाइयाँ, आदि) तथा अलग किये गए अपशिष्ट को अधिकृत कूड़ा बीनने वालों या अपशिष्ट संग्रहकर्त्ताओं या स्थानीय निकायों को सौंप दें।
- अपशिष्ट उत्पादकों को यह भुगतान करना होगा:
- अपशिष्ट संग्रहकर्ताओं को ‘उपयोगकर्ता शुल्क’।
- अपशिष्ट फेंकने और अलग न करने पर ‘स्पॉट फाइन’।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण क्या है?
- परिचय
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत 18 अक्तूबर, 2010 को NGT की स्थापना की गई थी।
- इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, वनों के संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों का त्वरित और कुशल समाधान करना है।
- इस अधिकरण का नेतृत्व केंद्र सरकार द्वारा CJI के परामर्श से नियुक्त, अध्यक्ष करते हैं, जो मुख्य पीठ पर बैठते हैं और इसमें कम से कम 10-20 न्यायिक सदस्य तथा विशेषज्ञ होते हैं।
- क्षेत्राधिकार
- अधिकरण का क्षेत्राधिकार पर्यावरण अधिकारों को लागू करने, व्यक्तियों और संपत्ति को हुए नुकसान के लिये राहत तथा मुआवज़ा देने एवं पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मामलों को हल करने तक फैला हुआ है
- आवेदन दाखिल करने के मूल क्षेत्राधिकार के अलावा NGT के पास न्यायालय (न्यायाधिकरण) के रूप में अपील सुनने का अपीलीय क्षेत्राधिकार भी है।
- NGT निम्नलिखित कानूनों के तहत दीवानी मामलों का समाधान करता है:
- जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम,
- जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) उपकर अधिनियम,
- वन (संरक्षण) अधिनियम,
- वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम,
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम,
- सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम,
- जैविक विविधता अधिनियम, 2002
- अधिकरण का क्षेत्राधिकार पर्यावरण अधिकारों को लागू करने, व्यक्तियों और संपत्ति को हुए नुकसान के लिये राहत तथा मुआवज़ा देने एवं पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मामलों को हल करने तक फैला हुआ है
- शक्तियाँ:
- न्यायाधिकरण CPC,1908 के तहत निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं है, लेकिन 'प्राकृतिक न्याय' के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा
- NGT अपने आदेश द्वारा निम्नलिखित प्रावधान कर सकता है
- प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय क्षति (किसी खतरनाक पदार्थ को संभालते समय होने वाली दुर्घटनाओं सहित) से पीड़ित व्यक्तियों को राहत तथा मुआवजा प्रदान करना;
- क्षतिग्रस्त संपत्ति को बहाल करना;
- न्यायाधिकरण ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों में पर्यावरण की बहाली के लिये प्रावधान कर सकता है, जिसे वह उचित समझे।
- न्यायाधिकरण का आदेश अथवा निर्णय सिविल न्यायालय के आदेश के रूप में निष्पादन योग्य है।
- NGT अधिनियम गैर-अनुपालन के लिये दंड की एक प्रक्रिया का भी प्रावधान करता है:
- तीन वर्ष तक की अवधि के लिये कारावास,
- दस करोड़ रुपए तक का ज़ुर्माना
- ज़ुर्माना एवं कारावास दोनों।
- NGT द्वारा दिये गए आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में संप्रेषण की तिथि से 90 दिनों के भीतर अपील की जा सकती है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में प्रमुख प्रशासनिक चुनौतियाँ क्या हैं?
- विनियमों का अपर्याप्त कार्यान्वयन:
- भारत के शहरी केंद्रों में अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना प्रायः अपर्याप्त होते हैं, जहाँ अक्सर पुराने, क्षतिग्रस्त या अपर्याप्त अपशिष्ट संग्रहण सुविधाएँ होती हैं।
- स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण के प्रवर्तन की कमी के कारण लैंडफिल में अप्रसंस्कृत अपशिष्ट को मिलाकर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का उल्लंघन एक गंभीर चिंता का विषय है।
- अंतर-विभागीय समन्वय की कमी:
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिये शहरी विकास, पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे विभिन्न विभागों में समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होती है। राज्य सरकारें प्रायः अंतर-विभागीय समन्वय की कमी के कारण अपशिष्ट के संग्रह, प्रसंस्करण तथा निपटान में अक्षमताओं का अनुभव करती हैं।
- संसाधन आवंटन और अवसंरचना की कमी:
- राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय और तकनीकी संसाधनों का अपर्याप्त आवंटन आवश्यक अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना के विकास में बाधा डालता है। विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में इन बाधाओं में अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाएँ, खाद बनाने वाली इकाइयाँ तथा अपशिष्ट से ऊर्जा बनाने वाले संयंत्र स्थापित करने में विलंब शामिल है।
- अपशिष्ट निपटान स्थलों की चुनौतियाँ:
- महानगरों में अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों के लिये भूमि की कमी के कारण अनुपचारित अपशिष्टों का संचय हो रहा है। अवैध डंपिंग पद्धतियों के कारण यह स्थिति और भी गंभीर हो गई है। ठोस अपशिष्ट का एक बड़ा हिस्सा बिना संसाधित किये ही रह जाता है।
- महानगरों में अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों के लिये भूमि की कमी के कारण अनुपचारित अपशिष्टों का संचय हो रहा है। अवैध डंपिंग पद्धतियों के कारण यह स्थिति और भी गंभीर हो गई है। ठोस अपशिष्ट का एक बड़ा हिस्सा बिना संसाधित किये ही रह जाता है।
आगे की राह
-
नगर पालिकाओं को भविष्य में जनसंख्या वृद्धि को देखते हुए अपने अपशिष्ट प्रसंस्करण क्षमताओं को सक्रिय रूप से बढ़ाना चाहिये। इसके लिये बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट के लिये खाद बनाने और बायोगैस उत्पादन पर रणनीतिक ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।
-
हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों के साथ सहयोग करके दिल्ली जैसे महानगरीय क्षेत्रों में एक विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण मॉडल लागू किया जा सकता है।
-
इस दृष्टिकोण में इन राज्यों में मौजूदा जैविक खाद बाज़ार का लाभ उठाते हुए कई खाद बनाने के संयंत्र स्थापित करना शामिल हैं
-
-
एक एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन उपागम जो विकेंद्रीकृत प्रसंस्करण विकल्पों को बड़े पैमाने पर अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ जोड़ता है, सभी अपशिष्ट धाराओं के व्यापक उपचार को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है
-
यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करेगा कि अपशिष्ट को स्थानीय और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जाए, जो शहरी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों की समग्र स्थिरता में योगदान देता है
-
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित मुद्दों के समाधान में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की भूमिका का परिक्षण कीजिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2019) (a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे। उत्तर: (c) प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी.) किस प्रकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) से भिन्न है? (2018)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018) |