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भारतीय राजव्यवस्था

राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक, 2022

  • 10 Dec 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कॉलेजियम प्रणाली,Collegium System, 99 वां संविधान (संशोधन) अधिनियम, 99th Constitution (Amendment) Act, भारत के मुख्य न्यायाधीश, एसपी गुप्ता बनाम भारत संघ 1981।

मेन्स के लिये:

न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये संवैधानिक प्रावधान, कॉलेजियम प्रणाली का विकास, कॉलेजियम प्रणाली से संबंधित मुद्दे, प्रतिनिधि न्यायपालिका की ओर।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक, 2022 को संसद में प्रस्तुत किया गया।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • नियुक्ति की प्रक्रिया को विनियमित करता है:
    • विधेयक का उद्देश्य भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों एवं अन्य न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति हेतु लोगों की सिफारिश करने के लिये राष्ट्रीय न्यायिक आयोग द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को विनियमित करना है।
  • स्थानान्तरण को विनियमित करना:
    • इसका उद्देश्य उनके स्थानांतरण को विनियमित करना और न्यायिक मानकों को निर्धारित करना तथा न्यायाधीशों की जवाबदेही सुनिश्चित करना है। इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के दुर्व्यवहार या अक्षमता के लिये व्यक्तिगत शिकायतों की जाँच हेतु विश्वसनीय और समीचीन तंत्र स्थापित करना और विनियमित करना है।
  • एक न्यायाधीश को हटाना:
    • यह एक न्यायाधीश को हटाने के लिये कार्यवाही के संबंध में और उससे जुड़े मामलों या प्रासंगिक मामलों के संबंध में राष्ट्रपति को संसद द्वारा एक अभिभाषण प्रस्तुत करने का भी प्रस्ताव करता है।

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) क्या था?

  • NJAC:
    • अगस्त 2014 में, संसद ने NJAC अधिनियम, 2014 के साथ संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 पारित किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक स्वतंत्र आयोग के गठन का प्रावधान है।
  • NJAC की संरचना:
    • पदेन अध्यक्ष के रूप में भारत के मुख्य न्यायाधीश
    • पदेन सदस्य के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश
    • पदेन सदस्य के रूप में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री
    • नागरिक समाज के दो प्रतिष्ठित व्यक्ति (एक समिति द्वारा नामित किये जाएँगे जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश, भारत के प्रधानमंत्री और लोकसभा के विपक्ष के नेता शामिल होंगे; प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से नामित किये जाने वाले व्यक्तियों में एक अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / अन्य पिछड़ा वर्ग / अल्पसंख्यक या महिला)
  • राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission- NJAC) और कॉलेजियम प्रणाली में अंतर:
    • NJAC:
      • भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की सिफारिश NJAC द्वारा वरिष्ठता के आधार पर की जानी थी जबकि SC और HC के न्यायाधीशों की सिफारिश क्षमता, योग्यता और "नियमों में निर्दिष्ट अन्य मानदंडों" के आधार पर की जानी थी।
      • यह अधिनियम NJAC के किसी भी दो सदस्य को सिफारिश संबंधी निर्णय पर वीटो करने का अधिकार प्रदान करता था।
    • कॉलेजियम प्रणाली:
      • कॉलेजियम प्रणाली में, वरिष्ठतम न्यायाधीशों का एक समूह उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियाँ करता है और यह प्रणाली लगभग तीन दशकों से चालू है।

कॉलेजियम प्रणाली:

  • सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम एक पाँच सदस्यीय निकाय है, जिसका नेतृत्व निवर्तमान भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) करते हैं, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश इसमें शामिल होते हैं।
    • उच्च न्यायालय कॉलेजियम का नेतृत्त्व उच्च न्यायालय के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश और उस न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं।
  • कॉलेजियम की पसंद या चयन के बारे में सरकार आपत्ति कर सकती है और स्पष्टीकरण भी मांग सकती है, लेकिन अगर कॉलेजियम पुनः उन्हीं नामों की अनुशंसा करे तो सरकार उन्हें ही न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करने के लिये बाध्य है।

न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान के अनुच्छेद 124(2) और 217 क्रमशः सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में उपबंध करते हैं।
    • ये नियुक्तियाँ राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं जिसके लिये वह ‘‘उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श के पश्चात, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिये परामर्श करना आवश्यक समझे’’ की शर्त का पालन करता है।
  • लेकिन संविधान इन नियुक्तियों के लिये कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं करता है।

NJAC को अदालत में चुनौती देने का कारण:

  • वर्ष 2015 की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने एक याचिका दायर की थी जिसमें मौज़ूदा कानूनों के प्रावधानों को चुनौती दी गई थी।
  • SCAORA का तर्क था कि दोनों अधिनियम "असंवैधानिक" और "अमान्य" थे।
    • यह तर्क दिया गया कि NJAC के निर्माण के लिये प्रदान किये गए 99वें संशोधन ने "भारत के मुख्य न्यायाधीश और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सामूहिक राय की प्रधानता" को अप्रभावी कर दिया क्योंकि उनकी सामूहिक सिफारिश पर वीटो लगाया जा सकता है अथवा "तीन गैर-न्यायाधीश सदस्यों के बहुमत से निलंबित" किया जा सकता है।
    • इसमें कहा गया है कि संशोधन ने "गंभीर रूप से" संविधान की बुनियादी संरचना को नुकसान पहुँचाया है, जिसमें उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायपालिका की स्वतंत्रता एक अभिन्न अंग थी।।
  • इसने यह भी तर्क दिया कि NJAC अधिनियम स्वयं "अमान्य" और "संविधान के दायरे से बाहर" था क्योंकि यह संसद के दोनों सदनों में तब पारित किया गया था जब मूल रूप से अधिनियमित अनुच्छेद 124(2) और 217(1) लागू थे और 99वाँ संशोधन राष्ट्रपति की स्वीकृति नहीं मिली थी।।

आगे की राह

  • स्वतंत्रता और जवाबदेही के बीच संतुलन: वास्तविक मुद्दा यह नहीं है कि कौन (न्यायपालिका या कार्यपालिका) न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है, बल्कि किस प्रकार से उन्हें नियुक्त किया जाता है।
    • इसके लिये न्यायिक नियुक्ति आयोग (JAC) की संरचना चाहे जो भी हो, न्यायिक स्वतंत्रता और न्यायिक जवाबदेही के बीच संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है।
      • नियुक्तियों में कार्यपालिका की भूमिका होनी चाहिये लेकिन JAC की संरचना ऐसी होनी चाहिये कि इससे न्यायिक स्वतंत्रता से समझौता न हो।
  • न्यायपालिका के अंदर न्याय: यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि न्याय प्रदान करने के लिये न्यायालय की संस्थागत अनिवार्यता न्यायपालिका के भीतर अवसर की समानता और न्यायाधीशों के चयन के लिये निश्चित मानदंडों के साथ बनी रहे।
  • NJAC की स्थापना पर पुनर्विचार: NJAC के अधिनियम में उन सुरक्षा उपायों को शामिल करने के लिये संशोधन किया जा सकता है जो इसे संवैधानिक रूप से वैध बनाएँगेे साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये पुनर्गठित किया जाएगा कि बहुमत नियंत्रण न्यायपालिका के पास बना रहे।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्र. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारत के संविधान के 44 वें संशोधन द्वारा लाए गए एक अनुच्छेद ने प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायिक पुनरावलोकन से परे कर दिया।
  2. भारत के संविधान के 99 वें संशोधन को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विखंडित कर दिया क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अतिक्रमण करता था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मैन्स

प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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