शासन व्यवस्था
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
- 28 Jul 2022
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:ठोस अपशिष्ट, खतरनाक अपशिष्ट, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, सरकार की पहल मेन्स के लिये:ठोस अपशिष्ट प्रबंधन चुनौतियाँ, अपशिष्ट प्रबंधन में असंगठित क्षेत्र की भूमिका, अपशिष्ट प्रबंधन में असंगठित क्षेत्र के लिये चुनौतियाँ, संबंधित सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
बढ़ती आबादी और तीव्र शहरीकरण के कारण भारतीय शहरों में नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Waste-MSW) के उत्पादन में व्यापक वृद्धि हुई है।
- यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि संगठित अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की भागीदारी शहरों में कम है, क्योंकि अपर्याप्त धन, कम क्षेत्रीय विकास और स्थायी अपशिष्ट प्रबंधन व्यवसायों के बारे में जानकारी की कमी है।
- इसलिये भारत सहित कई विकासशील देशों में अपशिष्ट संग्रह और वस्तु पुनर्चक्रण गतिविधियाँ मुख्य रूप से असंगठित अपशिष्ट क्षेत्र द्वारा की जाती हैं।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में असंगठित क्षेत्र की भूमिका:
- परिचय:
- असंगठित अपशिष्ट संग्रहकर्त्ताओं में ऐसे व्यक्ति, संघ या कचरा-व्यापारी शामिल हैं जो पुनर्चक्रण योग्य सामग्रियों की छँटाई, बिक्री और खरीद में शामिल हैं।
- कचरा बीनने वाला व्यक्ति असंगठित रूप से अपशिष्ट उत्पादन के स्रोत से पुन: प्रयोज्य और पुनर्चक्रण योग्य ठोस अपशिष्ट के संग्रह तथा पुनर्प्राप्ति में लगा हुआ है, जो सीधे या बिचौलियों के माध्यम से पुनर्चक्रणकर्त्ताओं को अपशिष्ट की बिक्री करता है।
- यह अनुमान है कि असंगठित अपशिष्ट अर्थव्यवस्था दुनिया भर में लगभग 0.5% - 2% शहरी आबादी को रोज़गार देती है।
- असंगठित अपशिष्ट संग्रहकर्त्ताओं में ऐसे व्यक्ति, संघ या कचरा-व्यापारी शामिल हैं जो पुनर्चक्रण योग्य सामग्रियों की छँटाई, बिक्री और खरीद में शामिल हैं।
- चुनौतियाँ:
- न्यूनतम आय वाले रोज़गार:
- असंगठित क्षेत्र को अक्सर आधिकारिक तौर पर अनुमोदित, मान्यता प्राप्त और स्वीकार नहीं किया जाता है, जबकि वे पुनर्चक्रण मूल्य शृंखला में अपशिष्ट पदार्थों को इकट्ठा करने, छाँटने, प्रसंस्करण, भंडारण और व्यापार करके शहरों के अपशिष्ट पुनर्चक्रण प्रथाओं में योगदान करते हैं।
- स्वास्थ्य चुनौतियाँ:
- असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले लोग अपशिष्ट के ढेर के पास रहतें हैं एवं अस्वच्छ तथा अस्वस्थ परिस्थितियों में काम करतें हैं।
- श्रमिकों के पास पीने के जल या सार्वजनिक शौचालय तक पहुँच नहीं है।
- उनके पास दस्ताने, गमबूट और एप्रन जैसे उपयुक्त व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPI) नहीं हैं।
- निम्न स्तर का जीवनयापन और काम करने की स्थिति के कारण उनमें कुपोषण, एनीमिया और तपेदिक आम हैं।
- सामाजिक उपचार:
- उन्हें समाज में गंदे और अवांछित तत्त्वों के रूप में माना जाता है, साथ ही उन्हें शोषक सामाजिक व्यवहार से निपटना पड़ता है।
- असंगठित अपशिष्ट-श्रमिकों के विभिन्न स्तरों की मज़दूरी और रहने की स्थिति बहुत भिन्न होती है।
- अन्य:
- इस क्षेत्र में बाल श्रम काफी प्रचलित है और जीवन प्रत्याशा कम है।
- अपशिष्ट बीनने वाले किसी भी श्रम कानून के दायरे में नहीं आते हैं।
- नतीजतन उन्हें सामाजिक सुरक्षा और चिकित्सा बीमा योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।
- न्यूनतम आय वाले रोज़गार:
ठोस अपशिष्ट
- परिचय:
- ठोस अपशिष्ट में ठोस या अर्द्ध-ठोस घरेलू अपशिष्ट, स्वच्छता अपशिष्ट, वाणिज्यिक अपशिष्ट, संस्थागत अपशिष्ट, खानपान और बाज़ार अपशिष्ट एवं अन्य गैर-आवासीय अपशिष्ट, सड़क पर झाड़ू लगाना, सतही नालियों से हटाया या एकत्र किया गया गाद, बागवानी अपशिष्ट, कृषि तथा डेयरी अपशिष्ट, औद्योगिक अपशिष्ट को छोड़कर उपचारित जैव चिकित्सा अपशिष्ट और ई-अपशिष्ट, बैटरी अपशिष्ट, रेडियो-सक्रिय अपशिष्ट आदि शामिल हैं।
- भारत की स्थिति:
- अकेले शहरी भारत में प्रतिदिन लगभग 15 मिलियन टन नगरपालिका ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
- अनुमान है कि देश में सालाना लगभग 62 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसमें से 5.6 मिलियन प्लास्टिक अपशिष्ट और 0.17 मिलियन बायोमेडिकल कचरा है।
- इसके अलावा खतरनाक अपशिष्ट उत्पादन प्रतिवर्ष 7.90 मिलियन टन है और 15 लाख टन ई-अपशिष्ट है।
- अपशिष्ट की मात्रा वर्ष 2031 तक 165 मिलियन टन और वर्ष 2050 तक 436 मिलियन टन तक पहुँचने का अनुमान है।
- अपशिष्ट प्रबंधन में चुनौतियाँ:
- भारत में बढ़ते शहरीकरण के परिणामस्वरूप अति-उपभोक्तावाद की स्थिति है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक अपशिष्ट उत्पादन होता है।
- जैविक खेती और खाद बनाना भारतीय किसान के लिये आर्थिक रूप से आकर्षक नहीं है, क्योंकि रासायनिक कीटनाशकों पर भारी सब्सिडी दी जाती है तथा खाद का विपणन कुशलता से नहीं किया जाता है।
- नगर निगमों/शहरी स्थानीय निकायों के पास वित्तीय संसाधनों की कमी के परिणामस्वरूप ठोस अपशिष्ट का संग्रहण, परिवहन और प्रबंधन की खराब स्थिति है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 की मुख्य विशेषताएँ
- कचरे को निम्नलिखित प्रकार से तीन श्रेणियों में अलग करने की जिम्मेदारी इसके उत्पादक की है:
- गीला (बायोडिग्रेडेबल) ।
- सूखा (प्लास्टिक, कागज़, धातु, लकड़ी आदि) ।
- घरेलू खतरनाक अपशिष्ट (डायपर, नैपकिन, खाली कंटेनर आदि) तथा अलग किये गए कचरे को अधिकृत कचरा बीनने वालों या कचरा संग्रहकर्ता या स्थानीय निकायों को सौंपना।
- अपशिष्ट उत्पादकों को करना होगा भुगतान:
- कचरा संग्रहणकर्त्ताओं को 'उपयोगकर्त्ता शुल्क'।
- लिटरिंग और नॉन-सेग्रीगेशन के लिये 'स्पॉट फाइन'।
- डायपर, सैनिटरी पैड जैसे इस्तेमाल किये गए सैनिटरी अपशिष्ट को निर्माताओं या इन उत्पादों के ब्रांड मालिकों द्वारा प्रदान किये गए पाउच में या उपयुक्त रैपिंग सामग्री में सुरक्षित रूप से लपेटा जाना चाहिये और इसे सूखे अपशिष्ट/गैर-जैव-अवक्रमणीय अपशिष्ट के लिये कूड़ादान (Bin) में रखा जाना चाहिये।
- स्वच्छ भारत में साझेदारी की अवधारणा पेश की गई है।
- थोक और संस्थागत उत्पादक, बाज़ार संघों, कार्यक्रम आयोजकों, होटल और रेस्तराँ को स्थानीय निकायों के साथ साझेदारी में अपशिष्ट को अलग करने, व्यवस्थित करने तथा प्रबंधन के लिये सीधे ज़िम्मेदार बनाया गया है।
- टिन, काँच, प्लास्टिक पैकेजिंग आदि जैसे डिस्पोज़ेबल उत्पादों के निर्माता या ब्रांड मालिक जो ऐसे उत्पादों को बाज़ार में पेश करते हैं,अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की स्थापना हेतु स्थानीय अधिकारियों आवश्यक वित्तीय प्रदान करेंगे।
- बायो-डिग्रेडेबल अपशिष्ट को जहाँ तक संभव हो परिसर के भीतर कंपोस्टिंग या बायो-मीथेनेशन के माध्यम से संसाधित, उपचारित तथा निपटाया जाना चाहिये।
- अवशिष्ट कचरा स्थानीय प्राधिकरण के निर्देशानुसार कचरा संग्रहकर्त्ता या एजेंसी को दिया जाएगा।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिये सरकार की पहल:
- वेस्ट टू वेल्थ पोर्टल:
- वेस्ट टू वेल्थ मिशन प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (PMSTIAC) के नौ वैज्ञानिक मिशनों में से एक है।
- इसका उद्देश्य ऊर्जा उत्पन्न करने, सामग्रियों का पुनर्चक्रण करने और कचरे के उपचार हेतु प्रौद्योगिकियों की पहचान, विकास और तैनाती करना है।
- राष्ट्रीय जल मिशन:
- इसका उद्देश्य एकीकृत जल संसाधन विकास और प्रबंधन के माध्यम से जल का संरक्षण करना, अपव्यय को कम करना तथा राज्यों के बाहर भीतर जल का अधिक समान वितरण सुनिश्चित करना है।
- अपशिष्ट से ऊर्जा:
- एक अपशिष्ट-से-ऊर्जा या ऊर्जा-से-अपशिष्ट संयंत्र औद्योगिक प्रसंस्करण के लिये नगरपालिका एवं औद्योगिक ठोस अपशिष्ट को बिजली और/या गर्मी में परिवर्तित करता है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (PWM) नियम, 2016:
- यह प्लास्टिक कचरे के उत्पादन को कम करने, प्लास्टिक कचरे को फैलने से रोकने और अन्य उपायों के बीच स्रोत पर कचरे का अलग भंडारण सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाने पर ज़ोर देता है।
- यह प्लास्टिक कचरे के उत्पादन को कम करने, प्लास्टिक कचरे को फैलने से रोकने और अन्य उपायों के बीच स्रोत पर कचरे का अलग भंडारण सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाने पर ज़ोर देता है।
आगे की राह
- असंगठित श्रमिक:
- दशकों से कचरा बीनने वाले या ‘रैग-पिकर्स’ (Rag-Pickers) खतरनाक एवं अस्वच्छ परिस्थितियों में कार्य करते हुए हमारी फेंकी हुई चीज़ों से अपनी आजीविका प्राप्त करते रहे हैं।
- इसमें पानी, स्वच्छता एवं स्वच्छ जीवन और स्वास्थ्य बीमा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के व्यावसायिक खतरों को कम करने के लिये संग्रह, पृथक्करण तथा PPE की छँटाई हेतु अनिवार्य पहचान पत्र तक पहुँच से संबंधित बुनियादी प्रावधान शामिल होने चाहिये।
- कचरा बीनने वालों को शहर में निर्दिष्ट संग्रह और संघनन स्टेशनों (स्थानांतरण स्टेशन, सामग्री वसूली सुविधाओं) का उपयोग करने की अनुमति देकर औपचारिक रूप से पुनर्चक्रण योग्य वस्तुओं के पृथक्करण के लिये किया जाना चाहिये।
- दशकों से कचरा बीनने वाले या ‘रैग-पिकर्स’ (Rag-Pickers) खतरनाक एवं अस्वच्छ परिस्थितियों में कार्य करते हुए हमारी फेंकी हुई चीज़ों से अपनी आजीविका प्राप्त करते रहे हैं।
- भागीदारी:
- सरकार को कचरा बीनने वाले संगठनों के साथ साझेदारी स्थापित करनी चाहिये, जिसका उल्लेख SWM 2016 नियमों में भी किया गया है।
- कचरा बीनने वालों की पहचान करने, उन्हें संगठित करने, प्रशिक्षित करने और उन्हें सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
- सरकार को कचरा बीनने वाले संगठनों के साथ साझेदारी स्थापित करनी चाहिये, जिसका उल्लेख SWM 2016 नियमों में भी किया गया है।
- कचरे को आर्थिक अवसर के रूप में देखना:
- ऊर्जा उत्पादन:
- अपशिष्ट का गैसीकरण: बायोगैस संयंत्रों के लिये कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाने वाला ठोस अपशिष्ट।
- पुनर्चक्रण सामग्रियाँ:
- पृथक्करण के चरण में पुनर्चक्रण एक अच्छा आर्थिक अवसर प्रस्तुत करता है।
- भारत द्वारा अपनाए गए चक्रीय अर्थव्यवस्था से 40 लाख करोड़ रुपए (अनुमानित) का वार्षिक लाभ हो सकता है।
- पृथक्करण के चरण में पुनर्चक्रण एक अच्छा आर्थिक अवसर प्रस्तुत करता है।
- आवश्यक संसाधनों की प्राप्ति:
- ई-कचरे के प्रसंस्करण से तांबा, सोना, एल्युमिनियम आदि कीमती धातुओं का निष्कर्षण संभव हो सकता है।
- ऊर्जा उत्पादन:
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2019) (a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे। उत्तर: (c) व्याख्या:
प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे और फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्रा का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018 मुख्य परीक्षा) |