लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

सामाजिक न्याय

भारत में ‘रैग-पिकर्स’

  • 07 Mar 2022
  • 11 min read

यह एडिटोरियल 05/03/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Wheels of Swachh Bharat” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में कूड़ा-कचरा बीनने वालों (Rag-Pickers) के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

दशकों से कचरा बीनने वाले या ‘रैग-पिकर्स’ (Rag-Pickers) खतरनाक एवं अस्वच्छ परिस्थितियों में कार्य करते हुए हमारी फेंकी हुई चीज़ों से अपनी आजीविका कमाते रहे हैं। वे एक पिरामिड के आधार का निर्माण करते हैं जहाँ कबाड़ी या स्क्रैप डीलर, एग्रीगेटर और री-प्रोसेसर जैसे अन्य घटक शामिल होते हैं। दुर्भाग्य से अधिकांश अनौपचारिक कचरा बीनने वाले तंत्र में अदृश्य बने रहते हैं। भारत में उनकी संख्या 1.5 मिलियन से 4 मिलियन तक है और वे किसी सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा, न्यूनतम मज़दूरी या बुनियादी सुरक्षात्मक साधनों के बिना ही कार्यरत हैं। चूँकि भारत सतत् विकास के लिये एजेंडा-2030 की पूर्ति की दिशा में आगे बढ़ रहा है, ‘सफाई करने वाले साथियों’ की दुर्दशा एक महत्त्वपूर्ण विषय है जहाँ उनके समक्ष विद्यमान चुनौतियों को दूर करने के लिये प्रयासों को तेज़ करने की आवश्यकता है।

भारत में कचरा बीनने वालों की स्थिति:

  • अनुमान है कि भारत हर वर्ष 65 मिलियन टन कचरा उत्पन्न करता है और यहाँ 4 मिलियन से अधिक कचरा बीनने वाले कार्यरत हैं।
    • रैग-पिकर्स या ‘सफाई साथियों’ (जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएँ शामिल हैं) का यह बड़ा समुदाय अधिकांश भारतीय शहरों में पारंपरिक कचरा प्रबंधन की रीढ़ रहा है।
  • कचरा बीनने वालों के समावेशन के लिये समय-समय पर कुछ पहल की गई हैं, जैसे:
    • योजना आयोग द्वारा गठित ‘ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर उच्च-शक्ति समिति’ की वर्ष 1995 की एक रिपोर्ट में कचरा बीनने वालों को एक तंत्र में एकीकृत करने का आह्वान किया गया था।
      • वर्ष 1988 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समूह ने भी यही अनुशंसा की थी।
    • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम (Solid Waste Management Rules) और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम (Plastic Waste Management Rules), 2016 में भी कचरा बीनने वालों के योगदान को चिह्नित किया गया और स्थानीय निकायों के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में उन्हें शामिल करने का प्रस्ताव किया था।
    • हालाँकि प्रशासन की किसी भी आपदा प्रबंधन योजना में कचरा बीनने वालों को शामिल नहीं किया गया है।
  • जब सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को समर्थन देने के उपायों की घोषणा की तो ‘रैग-पिकर्स’ समुदाय को इसके दायरे से बाहर रखा गया।
  • निम्न एवं अनिश्चित आय, सरकारी योजनाओं तक सीमित पहुँच, उच्च स्वास्थ्य जोखिम और गंभीर सामाजिक बहिर्वेशन सहित उनकी विभिन्न भेद्यताएँ या कमज़ोरियाँ कोविड-19 महामारी के दौरान और बढ़ गईं।

रैग-पिकर्स के उत्थान के राह की बाधाएँ 

  • आँकड़ों की अनुपलब्धता: वर्ष 2018 में ‘UNDP India’ ने अपने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्यक्रम के माध्यम से सफाई साथियों के साथ कार्य करना शुरू किया था। हालाँकि इस समुदाय के संबंध में आँकड़े की कमी के कारण सफाई साथियों के समर्थन के लिये कार्यक्रमों एवं नीतियों को आकार देने में बाधा उत्पन्न हुई।
    • यद्यपि इसने UNDP India को सफाई साथियों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बारे में भारत के पहले वृहत-स्तरीय विश्लेषण की अभिकल्पना एवं प्रकाशन के लिये प्रेरित किया, जहाँ 14 भारतीय शहरों में 9,000 से अधिक श्रमिकों के सर्वेक्षण को आधार बनाया गया।
  • औपचारिक शिक्षा की कमी: सफाई साथियों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के सर्वेक्षण ने दिखाया कि वे मुख्य रूप से शहरी अनौपचारिक क्षेत्र के हाशिये पर कार्यरत हैं।
    • उनकी निम्न आय और रोज़गार असुरक्षा इस तथ्य के साथ और जटिल हो जाती है कि कचरा बीनने वालों का लगभग 70% सामाजिक रूप से पिछड़े समूहों से संबद्ध है और 60% से अधिक के पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं है।
  • औपचारीकरण में बाधाएँ: 90% से अधिक श्रमिकों के पास आधार कार्ड मौजूद था (व्यापक राष्ट्रीय प्रवृत्तियों के अनुरूप), लेकिन केवल एक छोटे उपसमुच्चय के पास ही आय, जाति या व्यवसाय प्रमाण-पत्र उपलब्ध था।
    • यह उनके कार्य को औपचारिक रूप देने के किसी भी प्रयास को विफल करता है और सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक उनकी पहुँच को सीमित करता है।
  • स्वास्थ्य बीमा का अभाव: UNDP सर्वेक्षण के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से 5% से भी कम के पास कोई स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध था जो उनकी स्वास्थ्य-आघात संबंधी भेद्यताओं के अत्यंत उच्च स्तर का संकेत देता है।
  • सरकारी कल्याण योजनाओं से असंबद्धता: सर्वेक्षण में शामिल सफाई साथी, जिनके पास बैंक अकाउंट था, में से केवल 20% जन-धन योजना से जुड़े थे जो सरकार का प्रमुख वित्तीय समावेशन कार्यक्रम है।
    • सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से केवल आधे लोगों ने राशन कार्ड होने और उनका उपयोग करने की सूचना दी। यह अनुपात शहरों में और भी कम था जहाँ सर्वेक्षण में शामिल श्रमिकों में से एक बड़ा भाग प्रवासियों का था।

आगे की राह

  • शहरी स्थानीय निकायों के साथ पंजीकरण: एक महत्त्वपूर्ण प्रारंभिक बिंदु यह होगा कि शहरी स्थानीय निकायों द्वारा सफाई साथियों का पंजीकरण किया जाए और उन्हें पहचान पत्र प्रदान किया जाए जो उनकी स्पष्ट भूमिका के साथ उन्हें नगर निकाय कर्मचारी के रूप में चिह्नित करता हो।
    • न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करना और कचरे तक उनकी अधिकृत पहुँच को सक्षम करना अगले आवश्यक कदम होंगे।
    • सूखा कचरा केंद्र प्रबंधक और मशीन ऑपरेटर जैसे विविधिकृत ठोस कचरा प्रबंधन से संबद्ध आजीविका अवसर इन श्रमिकों के लिये रोज़गार के अवसर को और व्यापक बना सकते हैं।
  • उनके लिये खाद्य-सुरक्षा सुनिश्चित करना: सुवाह्यता (Portability) पर ध्यान देने के साथ सरकार की ‘वन नेशन वन राशन कार्ड योजना’ इन श्रमिकों के लिये रियायती खाद्यान्न तक पहुँच सुनिश्चित करने में रूपांतरणकारी भूमिका निभाने की क्षमता रखती है।
  • आर्थिक और सामाजिक उत्थान: सफाई साथियों के लिये समग्र नीति एजेंडा में किसी आघात के विरुद्ध प्रत्यास्थता के निर्माण, सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच के विस्तार और सुरक्षित, संवहनीय एवं सम्मानजनक आजीविका की दिशा में आगे बढ़ने के अवसर पैदा करने पर ध्यान देने को शामिल किया जाना चाहिये।
  • सरकारी नीतियों में समावेशन: सफाई साथियों के लिये सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को स्पष्ट रूप से डिज़ाइन करने हेतु एक कल्याणकारी ढाँचे का निर्माण करना नीतिगत प्राथमिकता होनी चाहिये।
    • सरकारी कार्यक्रमों से सफाई साथियों को जोड़ने के लिये सरकारी योजनाओं में नामांकन हेतु उन्हें सक्रिय रूप से प्रेरित करने, कागज़ी कार्रवाई कम करने और अधिकारों एवं हक़ के संबंध में उन्हें अधिकाधिक जागरूक करने की महती आवश्यकता है।
      • ‘रैग-पिकर्स को-ऑपरेटिव्स’ (कचरा बीनने वालों की सहकारी समितियाँ) भी सफाई साथियों को सामूहिक रूप से सशक्त कर सकते हैं, जिससे उनके द्वारा एकत्र किये गए वस्तुओं के लिये उच्च मूल्य प्राप्त हो सकते हैं।
  • बेहतर वैकल्पिक रोज़गार: जब भारत सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये दृढ़ प्रयास कर रहा है, तब उसे वैकल्पिक, प्रौद्योगिकी-संचालित ‘सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल’ की भी खोज करनी चाहिये, जहाँ किसी व्यक्ति के लिये कचरा बीनने जैसे जोखिमपूर्ण और खतरनाक कार्य को मैन्युअल रूप से करने की आवश्यकता समाप्त हो जाए।
    • अर्थव्यवस्था में बेहतर, सुरक्षित रोज़गार अवसर सृजित करने की स्पष्ट आवश्यकता है ताकि सफाई साथी जैसे अनौपचारिक श्रमिक अंततः अपने कौशल सेउस दिशा में आगे बढ़ सकें।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत सतत् विकास लक्ष्यों को साकार करने की दिशा में दृढ़ प्रयास कर रहा है, लेकिन इस लक्ष्य की प्राप्ति तब तक नहीं होगी जब तक कि भारत में कचरा बीनने वाले जैसे श्रमिकों की बदतर कार्य परिस्थितियों को संबोधित नहीं किया जाएगा।’’ टिप्पणी कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2