जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन
- 11 Sep 2023
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA), सर्कुलर इकॉनमी, ई-अपशिष्ट प्रबंधन, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR), ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 मेन्स के लिये:भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) ने 'भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में सर्कुलर इकॉनमी के रास्ते' शीर्षक से एक व्यापक रिपोर्ट जारी की है।
- यह रिपोर्ट ई-अपशिष्ट प्रबंधन पर पुनर्विचार करने और इसकी क्षमता का दोहन करने के अवसरों का पता लगाने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
- रिपोर्ट बताती है कि यह परिवर्तन अतिरिक्त 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बाज़ार का अवसर खोल सकता है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- भारत में ई-अपशिष्ट परिदृश्य:
- ICEA रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन मुख्य रूप से अनौपचारिक है, लगभग 90% ई-अपशिष्ट संग्रह और 70% रीसाइक्लिंग का प्रबंधन प्रतिस्पर्द्धी अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है।
- अनौपचारिक क्षेत्र पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को स्पेयर पार्ट्स को सहेजने और लाभप्रद ढंग से मरम्मत करने में उत्कृष्टता प्राप्त है।
- मुरादाबाद जैसे औद्योगिक केंद्र सोने और चाँदी जैसी मूल्यवान सामग्री निकालने के लिये प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (PCB) के प्रसंस्करण में विशेषज्ञ हैं।
- ICEA रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन मुख्य रूप से अनौपचारिक है, लगभग 90% ई-अपशिष्ट संग्रह और 70% रीसाइक्लिंग का प्रबंधन प्रतिस्पर्द्धी अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है।
- सर्कुलर इकॉनमी प्रिंसिपल्स:
- रिपोर्ट में ई-अपशिष्ट प्रबंधन के दृष्टिकोण को एक सर्कुलर इकॉनमी स्थापित करने की दिशा में बदलने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- चीन एक उदाहरण के रूप में कार्य करता है, जो वर्ष 2030 तक नए उत्पादों के निर्माण में 35% माध्यमिक कच्चे माल का उपयोग करने का लक्ष्य रखता है, जो सर्कुलर इकॉनमी दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- ई-अपशिष्ट में सर्कुलर इकॉनमी हेतु प्रस्तावित रणनीतियाँ: ICEA रिपोर्ट भारत में ई-अपशिष्ट के लिये सर्कुलर इकॉनमी की शुरुआत करने हेतु कई प्रमुख रणनीतियों की रूपरेखा प्रस्तुत करती है:
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): रिवर्स आपूर्ति शृंखला स्थापित करने की लागत को वितरित करने के लिये सरकारी निकायों और निजी उद्यमों के बीच सहयोग आवश्यक है।
- इस जटिल प्रयास में उपयोगकर्त्ताओं से उपकरण एकत्र करना, व्यक्तिगत डेटा को मिटाना और उन्हें आगे की प्रक्रिया और रीसाइक्लिंग के लिये चैनल करना शामिल है।
- ऑडिटेबल डेटाबेस: रिवर्स सप्लाई चेन प्रक्रिया के माध्यम से एकत्र की गई सामग्रियों के पारदर्शी और ऑडिटेबल डेटाबेस का निर्माण जवाबदेही एवं ट्रेसेबिलिटी को बढ़ा सकता है।
- भौगोलिक क्लस्टर: भौगोलिक क्लस्टर स्थापित करना जहाँ बेकार पड़े उपकरणों को एकत्रित किया जाता है और नष्ट किया जाता है, रीसाइक्लिंग प्रक्रिया को अनुकूलित किया जा सकता है, जिससे यह अधिक कुशल तथा लागत प्रभावी बन जाती है।
- 'उच्च-उत्पादन' पुनर्चक्रण केंद्रों को प्रोत्साहित करना: उच्च-उत्पादन पुनर्चक्रण सुविधाओं के विकास को प्रोत्साहित करने से अर्द्धचालकों में दुर्लभ पृथ्वी धातुओं सहित इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से मूल्यवान निष्कर्षण को अधिकतम करने में मदद मिल सकती है।
- मरम्मत और उत्पाद की दीर्घायु को बढ़ावा देना: नीतिगत सिफारिशों में मरम्मत को प्रोत्साहित करना और उत्पादों को लंबे समय तक संचालित होने में सक्षम बनाना शामिल है।
- इसमें उपयोगकर्त्ता के मरम्मत के अधिकार का समर्थन करना, इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट के पर्यावरणीय बोझ को कम करना शामिल हो सकता है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): रिवर्स आपूर्ति शृंखला स्थापित करने की लागत को वितरित करने के लिये सरकारी निकायों और निजी उद्यमों के बीच सहयोग आवश्यक है।
- रिपोर्ट में ई-अपशिष्ट प्रबंधन के दृष्टिकोण को एक सर्कुलर इकॉनमी स्थापित करने की दिशा में बदलने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
नोट: एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में त्यक्त इलेक्ट्रॉनिक्स को या तो स्टैंड-अलोन उपकरणों के रूप में या उनके घटकों और कीमती धातुओं को नए हार्डवेयर में पुन: पेश करके एक नया जीवन दिया जा सकता है।
- इससे पृथ्वी पर उत्पादित सभी सामग्रियों को अपशिष्ट के बजाय मूल्यवान संसाधनों के रूप में आयाम मिलेगा।
भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति:
- ई-अपशिष्ट का परिचय:
- ई-अपशिष्ट में सीसा, कैडमियम, पारा और निकल जैसी धातुओं सहित कई ज़हरीले रसायन होते हैं।
- भारत में ई-अपशिष्ट की मात्रा में वर्ष 2021-22 में 1.6 मिलियन टन की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
- भारत के 65 शहर कुल उत्पन्न ई-अपशिष्ट का 60% से अधिक उत्पन्न करते हैं जबकि 10 राज्य समस्त ई-अपशिष्ट का 70% उत्पन्न करते हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (ई-अपशिष्ट), एक सामान्य शब्द है जिसका उपयोग सभी प्रकार के पुराने, खराब हो चुके या बेकार पड़े बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, जैसे घरेलू उपकरण, कार्यालय सूचना और संचार उपकरण आदि का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
- भारत वर्तमान में वैश्विक स्तर पर ई-अपशिष्ट के सबसे बड़े उत्पादक/जनक के रूप में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है।
- भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन:
- भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के प्रबंधन को पर्यावरण और वन खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग/निगरानी) 2008 विनियम के ढाँचे के अंतर्गत संबोधित किया गया था।
- वर्ष 2011 में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 द्वारा शासित, 2010 के ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) विनियमों से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण नोटिस जारी किया गया था।
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) इसकी मुख्य विशेषता थी।
- ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 को वर्ष 2017 में अधिनियमित किया गया था, जिसमें नियम के दायरे में 21 से अधिक उत्पाद (अनुसूची- I) शामिल थे। इसमें कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (CFL) तथा अन्य पारा युक्त लैंप, साथ ही ऐसे अन्य उपकरण शामिल थे।
- वर्ष 2018 में वर्ष 2016 के नियमों में एक संशोधन हुआ जिसने प्राधिकरण और उत्पाद प्रबंधन को बढ़ावा देने पर ज़ोर देते हुए उनके दायरे को व्यापक बना दिया।
- उत्पाद प्रबंधन एक अवधारणा और दृष्टिकोण है जो किसी उत्पाद के निर्माण से लेकर उसके निपटान अथवा पुनर्चक्रण तक के पूरे जीवन चक्र के लिये उत्पादकों, निर्माताओं एवं अन्य हितधारकों की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देता है।
- भारत सरकार ने ई-अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया को डिजिटल बनाने और दृश्यता बढ़ाने के प्रमुख उद्देश्य के साथ ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 अधिसूचित किया।
- यह विद्युत तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में खतरनाक पदार्थों (जैसे सीसा, पारा और कैडमियम) के उपयोग को भी प्रतिबंधित करता है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
ई-अपशिष्ट में कमी और इसके प्रभावी पुनर्चक्रण की दिशा में भारत के प्रयास:
- ई-अपशिष्ट संग्रह को औपचारिक बनाना: पुनर्चक्रण प्रक्रिया को औपचारिक और मानकीकृत करने के लिये ई-अपशिष्ट संग्रह के लिये एक संपूर्ण विनियामक ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता है, जिसमें संग्रह केंद्रों तथा पुनर्चक्रणकर्त्ताओं का अनिवार्य पंजीकरण और लाइसेंसिंग शामिल है।
- विनिर्माताओं के लिये ई-अपशिष्ट टैक्स क्रेडिट: एक टैक्स क्रेडिट प्रणाली लागू करना जो इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माताओं को अधिक समय तक उपयोगी और मरम्मत योग्य सुविधाओं वाले उत्पादों को डिज़ाइन करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करता है।
- यह रणनीति पर्यावरण-अनुकूल डिज़ाइन तकनीकों को बढ़ावा देने का प्रयास करती है।
- ई-अपशिष्ट एटीएम: सार्वजनिक स्थानों पर ई-अपशिष्ट एटीएम स्थापित करना, जहाँ कोई व्यक्ति पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जमा कर सकता है और बदले में उसे सार्वजनिक परिवहन अथवा आवश्यक वस्तुओं के लिये छोटे वित्तीय प्रोत्साहन या वाउचर प्रदान किये जा सकें।
- इन एटीएम में शैक्षिक प्रदर्शन/डिस्प्ले भी हो सकते हैं जो ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद कर सकें।
- ई-अपशिष्ट ट्रैकिंग और प्रमाणन: इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के संपूर्ण जीवनचक्र को ट्रैक करने के लिये ब्लॉकचेन-आधारित प्रणाली।