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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की लिथियम खनन चुनौतियाँ

  • 31 Jul 2024
  • 21 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लिथियम, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण, इलेक्ट्रिक वाहन (EV), खनिज (नीलामी) नियम, 2015, संसाधनों के वर्गीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा, 2070 तक शुद्ध शून्य, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी

मेन्स के लिये:

प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, खनिज और ऊर्जा संसाधन, लिथियम खनन चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

घरेलू लिथियम संसाधनों को सुरक्षित करने के भारत के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो गई है, क्योंकि खान मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले में लिथियम ब्लॉक की नीलामी दूसरी बार रद्द कर दी है।

  • बार-बार मिल रही असफलता के कारण अधिकारी एक और नीलामी का प्रयास करने से पहले और अधिक अन्वेषण की आवश्यकता पर विचार कर रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले में लिथियम ब्लॉक के संबंध में मुख्य बातें क्या हैं?

  • अनुमानित संसाधन: फरवरी 2023 में, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India- GSI) ने जम्मू और कश्मीर (J&K) के रियासी ज़िले में 5.9 मिलियन टन के लिथियम-अनुमानित संसाधन स्थापित किये, जो विभिन्न अनुप्रयोगों, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरी के लिये आवश्यक है।
    • इस खोज से भारत विश्व में लिथियम का सातवाँ सबसे बड़ा स्रोत बन गया है।
  • नीलामी का प्रयास: पहला नीलामी प्रयास नवंबर 2023 में हुआ था, लेकिन तीन से कम बोलीदाताओं के योग्य होने के कारण 13 मार्च को रद्द कर दिया गया था।
    • दूसरी बार नीलामी का प्रयास किया गया, लेकिन किसी भी बोलीदाता के योग्य न होने के कारण इसे भी रद्द कर दिया गया।
  • विनियामक ढाँचा: खनिज (नीलामी) नियम, 2015 के अनुसार, तीन से कम बोलीदाताओं के योग्य होने पर भी नीलामी दूसरे दौर में जा सकती है। हालाँकि इस मामले में कोई भी बोलीदाता योग्यता मानदंडों को पूरा नहीं करता था।
    • दूसरे नीलामी प्रयास में कोई भी योग्य बोलीदाता सामने नहीं आया, जिससे निवेशकों की हिचकिचाहट का पता चलता है।
  • निवेशकों की हिचकिचाहट के कारण:
    • मिट्टी के भंडार: जम्मू-कश्मीर के लिथियम भंडार मुख्य रूप से मिट्टी के भंडार हैं, जिन्हें अभी तक वैश्विक स्तर पर व्यावसायिक रूप से प्रामाणित नहीं किया गया है। ऐसे भंडारों के व्यवसायीकरण का मार्ग अनिश्चित है और इसमें अधिक समय लग सकता है।
    • लाभकारी अध्ययन का अभाव: लिथियम के निष्कर्षण और प्रसंस्करण की व्यवहार्यता का मूल्यांकन करने के लिये लाभकारी अध्ययन के अभाव ने परियोजना की आर्थिक व्यवहार्यता के बारे में संभावित बोलीदाताओं के बीच चिंता पैदा कर दी है।
    • घटिया रिपोर्टिंग मानक: नीलामी दस्तावेज़ों की आलोचना इस बात के लिये की गई है कि उनमें ब्लॉक के बारे में सीमित जानकारी दी गई है।
      • संभावित बोलीदाताओं ने ब्लॉक के छोटे आकार और आधुनिक खनिज प्रणालियों-आधारित उपकरणों के प्रयोग के लिये डेटा की अपर्याप्तता के बारे में चिंता व्यक्त की है।
    • अन्वेषण चरण की अस्पष्टताएँ: कम बोली रुचि का प्राथमिक कारण ब्लॉक की अन्वेषण स्थिति है, जो वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क वर्गीकरण संसाधनों (UNFC) के अनुसार G3 स्तर पर है।
      • अन्वेषण का यह स्तर खनिज भंडारों के बारे में प्रारंभिक और कम विश्वसनीय अनुमान प्रदान करता है, जो ऐसे निवेशों से जुड़े उच्च जोखिम तथा अनिश्चितता के कारण निवेशकों को हतोत्साहित करता है।
    • आर्थिक व्यवहार्यता संबंधी चिंताएँ: लिथियम का निष्कर्षण महँगा है और वैश्विक लिथियम की कीमतों में गिरावट के कारण निवेशक संभावित वित्तीय नुकसान से चिंतित हैं।
      • वर्तमान रिपोर्टिंग मानक परियोजना की लाभप्रदता के बारे में पर्याप्त स्पष्टता प्रदान नहीं करते हैं, जिससे निवेश में और बाधा उत्पन्न होती है।
    • आरक्षित मूल्य: दूसरे नीलामी प्रयास के लिये निर्धारित आरक्षित मूल्य पिछले दौर की उच्चतम प्रारंभिक बोली पेशकश पर आधारित था। यदि यह आरक्षित मूल्य ब्लॉक के अनुमानित मूल्य या जोखिम के सापेक्ष बहुत अधिक माना जाता, तो यह संभावित बोलीदाताओं को हतोत्साहित कर सकता था।

संसाधनों के वर्गीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा (UNFC)

  • UNFC अन्वेषण के चरण और अनुमानों में विश्वास के आधार पर खनिज संसाधनों को वर्गीकृत करने के लिये एक संरचित दृष्टिकोण प्रदान करता है। वर्गीकरण को चार चरणों में विभाजित किया गया है:
    • G4-सर्वेक्षण: यह अन्वेषण का प्रारंभिक चरण है, जिसमें क्षेत्रीय आकलन और सीमित भूमिगत नमूनाकरण शामिल है।
      • विश्वास का स्तर: अनुमान कम विश्वास वाले हैं तथा खनिज संसाधनों की संभावित मात्रा और श्रेणी के बारे में केवल प्रारंभिक जानकारी ही प्रदान करते हैं।
    • G3-पूर्वेक्षण: इस चरण में, खनिज भंडार की क्षमता का आकलन करने के लिये प्रारंभिक अन्वेषण किया जाता है।
      • विश्वास का स्तर: अनुमान कम विश्वास वाले बने हुए हैं तथा खनिज संसाधनों के वास्तविक मूल्य और सीमा के बारे में अनिश्चितता बनी हुई है।
    • G2-सामान्य अन्वेषण: इस चरण में अधिक विस्तृत अन्वेषण और नमूनाकरण शामिल होता है, जो अनुमानों में मध्यम स्तर का विश्वास प्रदान करता है।
      • विश्वास का स्तर: ये आकलन खनिज संसाधनों का अधिक विश्वसनीय अनुमान प्रस्तुत करते हैं, लेकिन अभी भी पूर्णतः विस्तृत नहीं हैं।
    • G1- विस्तृत अन्वेषण: अन्वेषण के सबसे उन्नत चरण में व्यापक जाँच, व्यापक नमूनाकरण और प्रत्यक्ष विश्लेषण शामिल है।
      • विश्वास का स्तर: इस स्तर पर अनुमान अत्यधिक विश्वास योग्य होते हैं तथा खनिज संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता के बारे में सटीक तथा विश्वसनीय आँकड़े उपलब्ध कराते हैं।

भारत में लिथियम अन्वेषण की स्थिति क्या है? 

  • छत्तीसगढ़ में सफल नीलामी: भारत की पहली सफल लिथियम नीलामी छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में हुई। इस ब्लॉक की नीलामी जून 2024 में मैकी साउथ माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड को की गई।
    • बोली में 76.05% का प्रीमियम शामिल था, जो अधिक रुचि और प्रतिस्पर्द्धी बोली को दर्शाता है।
    • कोरबा में अतिरिक्त अन्वेषण: राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET) द्वारा वित्तपोषित एक निजी अन्वेषण कंपनी ने कोरबा में हार्ड रॉक लिथियम भंडार की पहचान की है, जिसमें लिथियम सांद्रता 168 से 295 भाग प्रति मिलियन (ppm) तक है।
  • अन्य राज्यों में चुनौतियाँ:
    • मणिपुर: स्थानीय प्रतिरोध के कारण कामजोंग ज़िले में लिथियम अन्वेषण प्रयास रुक गए हैं। NMET समिति ने इस क्षेत्र में आगे की कार्रवाई को रोकने का फैसला किया है।
    • लद्दाख: भारत-चीन सीमा के समीप मेरक ब्लॉक में अन्वेषण से निराशाजनक परिणाम मिले हैं, जिसके कारण NMET समिति ने वहाँ अन्वेषण प्रयासों को रोकने का सुझाव दिया है।
    • असम: धुबरी और कोकराझार ज़िलों में अन्वेषण आशाजनक नहीं रहा है, NMET ने इन क्षेत्रों में आगे की प्रक्रिया या अन्वेषण के खिलाफ सिफारिश की है।

भारत के लिये लिथियम का महत्त्व: 

  • लिथियम एक नरम, चाँदी सदृश श्वेत क्षारीय धातु है जिसमें उच्च अभिक्रियाशीलता, कम घनत्व और उत्कृष्ट विद्युत रासायनिक गुण होते हैं।
    • यह विभिन्न खनिजों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है और इसका लिथियम धातु या इसके यौगिकों में निष्कर्षण तथा परिष्कृत किया जाता है।
  • भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का संकल्प लिया है, जिसके लिये EV बैटरी और नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण प्रणालियों में लिथियम एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में आवश्यक है।
    • भारत को वर्ष 2030 तक 27 गीगावाट ग्रिड-स्केल बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों की आवश्यकता है, जिसके लिये भारी मात्रा में लिथियम की आवश्यकता होगी।
    • विश्व आर्थिक मंच ने EV और रिचार्जेबल बैटरी की बढ़ती मांग के कारण वैश्विक स्तर पर लिथियम की कमी की चेतावनी दी है, जिसकी खपत का अनुमान वर्ष 2050 तक 2 बिलियन तक पहुँचने का है। विश्व की लिथियम आपूर्ति दबाव में है, जिसका 54% भंडार अर्जेंटीना, बोलीविया और चिली में है।
  • हरित प्रौद्योगिकियों और ऊर्जा भंडारण में लिथियम की भूमिका इसे एक महत्त्वपूर्ण संसाधन बनाती है क्योंकि देश जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने तथा हरित ऊर्जा संक्रमण का लक्ष्य रखते हैं। 
  • भारत अपनी ज़रूरत का 70-80% लिथियम और 70% लिथियम-आयन चीन से आयात करता है, जिसमें दोनों देशों के बीच तनाव जारी रहने पर इसके विकास और घरेलू उद्योगों को जोखिम में डाल सकता है।

भारत में लिथियम के निष्कर्षण और निवेश में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • निष्कर्षण चुनौतियाँ: हार्ड रॉक पेग्माटाइट अयस्क/निक्षेप से लिथियम निष्कर्षण कठिन है, जिसके लिये विशेष तकनीक और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। पेग्माटाइट अयस्कों से लिथियम निष्कर्षण में कई जटिल और महँगे प्रसंस्करण चरण शामिल हैं।
    • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: लिथियम निष्कर्षण, विशेष रूप से खुली खदान उत्खनन के माध्यम से, पारिस्थितिकी क्षति और प्रदूषण सहित पर्यावरण पर काफी प्रभाव डाल सकता है। इन प्रभावों को कम करने के लिये उचित प्रबंधन और शमन उपायों की आवश्यकता है।
    • परिवहन: जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले जैसे दूर-दराज़ के क्षेत्रों में, परिवहन और रसद के लिये अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण कुशल निष्कर्षण में बाधा हो सकती है जिससे लागत बढ़ सकती है।
    • नवोदित उद्योग: भारत का लिथियम क्षेत्र अभी भी विकसित हो रहा है, जिसमें कार्यात्मक खनन और प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचा स्थापित करने के लिये पर्याप्त समय की आवश्यकता है।
    • प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे की कमी: चीन वर्तमान में लिथियम प्रसंस्करण क्षेत्र पर हावी है, जो वैश्विक बाज़ार का 65% प्रबंधन करता है। भारत इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में अच्छी तरह से स्थापित नहीं है। 
    • सीमित घरेलू विशेषज्ञता: विदेशों में खनन परिसंपत्तियों के विकास में भारत का सीमित अनुभव और लिथियम उत्खनन में इसकी अपरिपक्व विशेषज्ञता घरेलू परियोजनाओं को गति देने में चुनौतियों का कारण बनती है।
  • निवेश संबंधी चुनौतियाँ: संसाधनों के लिये संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क वर्गीकरण (UNFC) पर आधारित भारत के वर्तमान खनिज रिपोर्टिंग मानक, वैश्विक स्तर पर उपयोग किये जाने वाले खनिज भंडार अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टिंग मानकों (CRIRSCO) के लिये समिति के साथ संरेखित नहीं हैं।
    • UNFC मानकों में आर्थिक व्यवहार्यता का व्यापक रूप से आकलन करने के लिये आवश्यक विवरण का अभाव है।
    • स्थानीय तनाव: जातीय और धार्मिक तनाव निवेश को आकर्षित करने व संसाधन विकास का प्रबंधन करने के प्रयासों को जटिल बना सकते हैं। पिछले संघर्ष और चल रही हिंसा इस क्षेत्र को विशेष रूप से अस्थिर बनाती है।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा और निर्भरता: चीन वैश्विक लिथियम-आयन बैटरी निर्माण क्षमता के 77% को नियंत्रित करता है जो भारत सहित अन्य देशों, जो चीनी आपूर्ति पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहते हैं, के लिये एक रणनीतिक चुनौती उत्पन्न करता है।
      • निवेशकों के पास वैश्विक खनन बाज़ार में कई अवसर हैं। यदि अन्य क्षेत्र अधिक आकर्षक या कम जोखिम वाले अवसर प्रदान करते हैं, तो निवेशक J&K लिथियम ब्लॉक जैसे क्षेत्रों की तुलना में उन्हें प्राथमिकता दे सकते हैं।

आगे की राह

  • विदेशी विशेषज्ञता को आकर्षित करना: लिथियम उत्खनन और प्रसंस्करण में विशेषज्ञता वाली विदेशी कंपनियों को आकर्षित करना भारत की घरेलू लिथियम अन्वेषण एवं खनन गतिविधियों को गति देने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
  • लिथियम ट्रायंगल से सबक: बोलीविया, चिली और अर्जेंटीना, जहाँ विश्व के सबसे बड़े लिथियम भंडार हैं, से मूल्यवान सबक ली जानी चाहिये। चिली और बोलीविया ने राज्य-नियंत्रित या विनियमित लिथियम निष्कर्षण प्रक्रियाओं को लागू किया है।
    • इन देशों में हाल की पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियाँ सुदृढ़ नियामक ढाँचों तथा सामुदायिक सहभागिता के महत्त्व को रेखांकित करती हैं।
    • लिथियम उत्खनन के तहत निष्कर्षण से लेकर बैटरी प्रबंधन तक पूरे प्रक्रम में संधारणीय सिद्धांतों को एकीकृत करने की आवश्यकता है।
  • स्थानीय भागीदारी: लिथियम अन्वेषण की योजनाओं में स्थानीय समुदायों को शामिल करना और उन्हें रोज़गार के अवसरों के लिये प्राथमिकता देना चाहिये। हालाँकि कृषि, पशुपालन और पर्यटन पर व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
  • सरकारी प्रोत्साहन: उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं सहित सरकारी पहलों का उद्देश्य इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को बेहतर बनाना और महत्त्वपूर्ण खनिज क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करना है, जो ओला इलेक्ट्रिक और रिलायंस न्यू एनर्जी जैसी प्रमुख कंपनियों की रुचि को आकर्षित कर सकता है।
  • आगामी अन्वेषण: अतिरिक्त अन्वेषण संसाधन के बारे में अधिक स्पष्टता प्रदान कर सकती है और संभावित रूप से लिथियम भंडार को निवेशकों के लिये अधिक आकर्षक बना सकती है। हालाँकि इस दृष्टिकोण में समय और अतिरिक्त निवेश शामिल है।
  • सरकार द्वारा शुरू किया गया विकास: सरकार के लिये एक अन्य विकल्प यह है कि वह खान और खनिज (विकास और विनियमन) (MMDR) अधिनियम के तहत अनुमति के अनुसार सीधे सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी के माध्यम से पूर्वेक्षण या खनन कार्य करे। यह दृष्टिकोण निजी निवेशकों की रुचि की कमी के बावजूद लिथियम ब्लॉक के विकास को सुनिश्चित कर सकता है। 
  • व्यापार की शर्तों को आसान बनाना: खनन विनियमों में संशोधन और इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस से भारत के लिथियम उद्योग के विकास का समर्थन करने की उम्मीद है।
    • वैश्विक बाज़ारों तक उचित पहुँच सुनिश्चित करने और लिथियम आपूर्ति शृंखला में भारत के हितों की रक्षा करने वाले व्यापार समझौतों पर वार्ता की जानी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. हाल के घटनाक्रमों और असफलताओं पर विचार करते हुए भारत में लिथियम संसाधनों के प्रबंधन एवं दोहन में चुनौतियों तथा अवसरों का मूल्यांकन कीजिये।

प्रश्न. चीन से लिथियम आयात पर भारत की निर्भरता उसके सामरिक और आर्थिक हितों को कैसे प्रभावित करती है? इस निर्भरता को कम करने के उपाय सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

Q. निम्नलिखित में से धातुओं का कौन-सा युग्म क्रमशः सबसे हल्की और सबसे भारी धातु का वर्णन करता है? (2008)

(a) लिथियम और पारा
(b) लिथियम और ऑस्मियम
(c) एल्युमिनियम और ऑस्मियम
(d) एल्युमिनियम और पारा

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • हल्की धातुएँ कम परमाणु भार वाली होती हैं, जबकि भारी तत्त्वों का आमतौर पर उच्च परमाणु भार होता है।
  • ऑस्मियम एक कठोर धात्विक तत्त्व है जिसमें सभी ज्ञात तत्त्वों का घनत्व सबसे अधिक होता है। ऑस्मियम का परमाणु भार 190.2 u है और इसका परमाणु क्रमांक 76 है।
  • लिथियम का परमाणु क्रमांक 3 और परमाणु भार 6.941u सबसे हलकी ज्ञात धातु है।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मेन्स: 

प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021)

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