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भारत की बायोमास को-फायरिंग नीति

  • 04 Apr 2023
  • 15 min read

यह एडिटोरियल 31/03/2023 को ‘हिंदू बिज़नेस लाइन’ में प्रकाशित “Time to rake in more biomass in thermal plants” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की ‘बायोमास को-फायरिंग नीति’ के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों और एक सुदृढ़ नियामक ढाँचे की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) के लिये और बिजली क्षेत्र से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (greenhouse gas emissions) को कम करने के लिये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किये हैं। बायोमास को-फायरिंग नीति (Biomass Co-firing Policy) इन लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

  • हालाँकि, यह नीति अभी तक व्यापक रूप से स्वीकार नहीं की गई है, इस तथ्य के बावजूद कि कोयले के आयात की तुलना में बायोमास का उपयोग अभी भी एक सस्ता विकल्प है और सभी ताप विद्युत संयंत्रों के लिये आर्थिक रूप से एक व्यवहार्य विकल्प प्रदान करता है।
  • बिजली संयंत्रों में बायोमास के उपयोग के मामले में राज्य विद्युत उत्पादक कंपनियों और विद्युत नियामक आयोगों की धीमी प्रगति ने विद्युत मंत्रालय को ऐसे उपयुक्त प्रावधानों पर विचार करने के लिये प्रेरित किया है जो ताप ऊर्जा संयंत्रों को ईंधन के रूप में कोयले के साथ-साथ बायोमास का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
  • वर्ष 2021 में ऊर्जा मंत्रालय द्वारा पुनरीक्षित बायोमास को-फायरिंग नीति से ऊर्जा, कोयला, कृषि, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) और पर्यावरण जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
  • इस परिदृश्य में नवीकरणीय ऊर्जा के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये भारत की बायोमास को-फायरिंग नीति से संबद्ध मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है।

‘बायोमास को-फायरिंग’ क्या है और इसका क्या महत्त्व है?

  • परिचय:
    • बायोमास को-फायरिंग कोयला-आधारित ताप संयंत्रों में ईंधन के एक हिस्से को बायोमास से प्रतिस्थापित करने का अभ्यास है।
      • इसके तहत कोयला दहन के लिये डिज़ाइन किये गए बॉयलरों में कोयले और बायोमास का एक साथ दहन किया जाता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये कोयला विद्युत संयंत्रों के आंशिक रूप से पुनर्निर्माण और पुनर्संयोजन की आवश्यकता होगी।
      • को-फायरिंग कुशल एवं स्वच्छ तरीके से बायोमास को बिजली में रूपांतरित करने और बिजली संयंत्रों से होने वाले ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने का एक विकल्प है।
    • बायोमास को-फायरिंग कोयले को डीकार्बोनाइज़ (decarbonize) करने के लिये विश्व स्तर पर स्वीकृत एक लागत-प्रभावी तरीका है।
    • भारत ऐसा देश है जहाँ आमतौर पर बायोमास को खेतों में जला दिया जाता है, जो आसानी से उपलब्ध एक बहुत ही सरल समाधान का उपयोग कर स्वच्छ कोयले की समस्या को हल करने के प्रति उदासीनता को प्रकट करता है।
  • महत्त्व:
    • बायोमास को-फायरिंग फसल अवशेषों या पराली को खुले में जलाने से होने वाले उत्सर्जन को रोकने का एक प्रभावी तरीका है; यह कोयले का उपयोग कर बिजली उत्पादन करने की प्रक्रिया को डीकार्बोनाइज़ भी करता है।
      • कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों में 5-7% कोयले को बायोमास से प्रतिस्थापित करने से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 38 मिलियन टन तक की कमी आ सकती है।
    • यह जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्सर्जन में कटौती करने में मदद कर सकता है, कुछ हद तक कृषि पराली के दहन की बढ़ती समस्या का समाधान कर सकता है, फसल अपशिष्ट के बोझ को कम कर सकता है, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार उत्पन्न कर सकता है।
    • भारत में बायोमास प्रचुर रूप से उपलब्ध है, इसके साथ ही कोल-फायर्ड क्षमता (coal-fired capacity) में तेज़ी से वृद्धि हुई है।

बायोमास को-फायरिंग से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • उपलब्धता:
    • बायोमास की उपलब्धता और गुणवत्ता भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न है।
    • जबकि कुछ क्षेत्रों में बायोमास की प्रचुरता है, अन्य में कमी की स्थिति है।
    • इसके अलावा, बायोमास की गुणवत्ता भी भिन्न-भिन्न होती है, जो इसकी दहन क्षमता और उत्सर्जन को प्रभावित कर सकती है।
      • बायोमास पेलेट्स (Biomass pellets) को विस्तारित अवधि के लिये संयंत्र स्थानों पर संग्रहीत करना कठिन होता है क्योंकि वे शीघ्र ही हवा से नमी ग्रहण कर लेते हैं और को-फायरिंग के लिये अनुपयोगी हो जाते हैं।
      • आमतौर पर 13-14% से कम नमी रखने वाले पेलेट्स का ही कोयले के साथ दहन किया जा सकता है।
  • अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स:
    • बायोमास का परिवहन और भंडारण चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ बुनियादी ढाँचा अपर्याप्त है। इसके लिये विशेष साधनों एवं सुविधाओं की आवश्यकता होती है और इस प्रकार ये बायोमास को-फायरिंग की लागत को बढ़ा सकते हैं।
    • बायोमास को-फायरिंग के लिये बायोमास ग्राइंडर, कन्वेयर और स्टोरेज सिस्टम जैसे विशेष साधनों की आवश्यकता होती है।
    • इसके अतिरिक्त, बायोमास को-फायरिंग को सक्षम करने के लिये मौजूदा बिजली संयंत्रों के पुनर्संयोजन की आवश्यकता होगी।
  • दहन संबंधी विशेषताएँ:
    • बायोमास जीवाश्म ईंधन की तुलना में भिन्न दहन संबंधी विशेषताएँ रखता हैं, जो बिजली संयंत्र संचालकों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती हैं।
    • उदाहरण के लिये, बायोमास में कोयले की तुलना में उच्च नमी मात्रा, निम्न ऊर्जा घनत्व और उच्च राख सामग्री हो सकती है, जो दहन दक्षता एवं उत्सर्जन को प्रभावित कर सकती है।
  • उत्सर्जन:
    • को-फायरिंग ग्रीनहाउस गैसों और अन्य प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम कर सकती है, लेकिन यह नई तरह की उत्सर्जन चुनौतियों को भी उत्पन्न कर सकती है।
    • उदाहरण के लिये, बायोमास दहन से कणिका पदार्थ (Particulate Matter- PM), नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हो सकता है, जो वायु की गुणवत्ता और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
  • लागत:
    • बायोमास को-फायरिंग पारंपरिक जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन की तुलना में अधिक महंगा सिद्ध हो सकता है, विशेष रूप से यदि बिजली संयंत्र में उल्लेखनीय संशोधनों की आवश्यकता पड़े।
    • यह स्थिति बायोमास को-फायरिंग के लिये पवन एवं सौर जैसे अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्द्धा करना चुनौतीपूर्ण बना सकती है।
  • संबंधित पहलें

आगे की राह

  • बिजली संयंत्रों को बायोमास की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करना:
    • बिजली संयंत्रों को बायोमास की स्थिर आपूर्ति एक ऐसी विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला विकसित करके सुनिश्चित की जा सकती है जो बायोमास को स्रोत से संयंत्र तक सुचारू रूप से ले जा सके।
      • बायोमास की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये किसानों, वानिकी कंपनियों या अन्य बायोमास आपूर्तिकर्ताओं के साथ भागीदारी करना संलग्न हो सकता है।
    • बायोमास की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने का दूसरा तरीका यह होगा कि अधिशेष बायोमास पर ध्यान केंद्रित किया जाए; ऐसा बायोमास है जिसका उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिये नहीं किया जा रहा हो।
      • इसमें कृषि अवशेष (जैसे पुआल या मकई डंठल) या वानिकी अवशेष (जैसे शाखाएँ या बुरादे) शामिल हो सकते हैं।
    • अधिशेष बायोमास का उपयोग करके, हम बायोमास के अन्य उपयोगों जैसे कि खाद्य उत्पादन या काग़ज़ उत्पादों के निर्माण के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने से बच सकते हैं।
  • अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स का विकास:
    • बायोमास को-फायरिंग की सफलता के लिये बायोमास के परिवहन, भंडारण और प्रसंस्करण हेतु आवश्यक अवसंरचना एवं लॉजिस्टिक्स का का विकास करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • इसमें नई भंडारण सुविधाओं का निर्माण, परिवहन नेटवर्क का उन्नयन या नई प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों में निवेश करना शामिल हो सकता है।
  • सुदृढ़ नियामक ढाँचा:
    • बायोमास को-फायरिंग नीति को एक सुदृढ़ नीति एवं नियामक ढाँचे द्वारा समर्थित होने की आवश्यकता है जो बायोमास को-फायरिंग के लिये प्रोत्साहन एवं समर्थन प्रदान करता हो।
    • इसके साथ ही, बायोमास के लिये एक बाधारहित, प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार मौजूद हो जो मूल्य और वितरण की उपयुक्तता/निष्पक्षता को सुनिश्चित करे।
  • आवश्यक प्रौद्योगिकी और उपकरण का विकास एवं तैनाती:
    • बायोमास को-फायरिंग की सफलता के लिये प्रौद्योगिकी और उपकरणों का विकास एवं तैनाती महत्त्वपूर्ण है।
    • इसमें विशेष बॉयलर, बर्नर और नियंत्रण प्रणाली विकसित करना (जो बायोमास की अनूठी विशेषताओं को संभाल सके), साथ ही बायोमास सह-फायरिंग को समायोजित करने के लिये मौजूदा उपकरणों को पुनर्संयोजित करना शामिल है।

अभ्यास प्रश्न: पारंपरिक कोयला-संचालित बिजली संयंत्रों में बायोमास को-फायरिंग से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं और इस नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी के व्यापक अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिये उन्हें प्रभावी ढंग से कैसे संबोधित किया जा सकता है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (वर्ष 2019)

  1. कार्बन मोनोआक्साइड
  2. मीथेन
  3. ओज़ोन
  4. सल्फर डाइऑक्साइड

उपर्युक्त में से कौन फसल/बायोमास अवशेषों को जलाने के कारण वातावरण में छोड़े जाते हैं?

 (a) केवल 1 और 2
 (b) केवल 2, 3 और 4
 (c) केवल 1 और 4
 (d) 1, 2, 3 और 4

 उत्तर: (d)

 व्याख्या:

  • बायोमास कार्बनिक पदार्थ है जो पौधों और जानवरों से आता है और यह ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्रोत है। बायोमास में सूर्य से संग्रहित ऊर्जा होती है। प्रकाश संश्लेषण नामक प्रक्रिया में पौधे सूर्य की ऊर्जा को अवशोषित करते हैं। जब बायोमास को जलाया जाता है तो बायोमास में मौजूद रासायनिक ऊर्जा ऊष्मा के रूप में मुक्त होती है।
  • फसल अवशेष और बायोमास जलाने (जंगल की आग) को कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), मीथेन (CH4), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOX) का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है। चावल की फसल के अवशेषों को जलाने से वातावरण में सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर, SO2, NO2 और O3 निकलते हैं।

 अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

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