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राइट-टू-रिपेयर

  • 22 Jul 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राइट-टू-रिपेयर, ई-कचरा, मरम्मत के अधिकार पर समिति

मेन्स के लिये:

ई-कचरे का पर्यावरणीय प्रभाव, मरम्मत के अधिकार का दायरा, बढ़ती एकाधिकार वाली कंपनियों का मुकाबला कैसे करें, सरकार की पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उपभोक्ता मामलों के विभाग ने घोषणा की कि उसने राइट-टू-रिपेयरपर व्यापक ढाँचा विकसित करने के लिये अतिरिक्त सचिव निधि खरे की अध्यक्षता में समिति का गठन किया है।

राइट-टू-रिपेयर:

  • परिचय:
    • ‘राइट-टू-रिपेयर’ एक ऐसे अधिकार अथवा कानून को संदर्भित करता है, जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को अपने स्वयं के उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत करना और उन्हें संशोधित करने की अनुमति देना है, जहाँ अन्यथा ऐसे उपकरणों के निर्माता उपभोक्ताओं को केवल उनके द्वारा प्रस्तुत सेवाओं के उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
      • जब ग्राहक कोई उत्पाद खरीदते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि उनके पास उस वस्तु पर पूर्ण स्वामित्व हो जाता है, जिसके लिये उपभोक्ताओं को मरम्मत हेतु निर्माताओं द्वारा आसानी से और उचित लागत पर उत्पाद की मरम्मत और संशोधन करने में सक्षम होना चाहिये।
    • ‘राइट-टू-रिपेयर’ का विचार मूल रूप से अमेरिका से उत्पन्न हुआ था, जहाँ ‘मोटर व्हीकल ओनर्स राइट-टू-रिपेयर एक्ट, 2012’ किसी भी व्यक्ति को वाहनों की मरम्मत करने में सक्षम बनाने के लिये वाहन निर्माताओं के लिये सभी आवश्यक दस्तावेज़ और जानकारी प्रदान करना अनिवार्य बनाता है।
  • प्रस्तावित ढाँचा:
    • इस नियामक ढांचे के तहत निर्माताओं के लिये अपने उत्पाद विवरण को ग्राहकों के साथ साझा करना अनिवार्य होगा ताकि वे मूल निर्माताओं पर निर्भर रहने के बजाय स्वयं या तीसरे पक्ष द्वारा उनकी मरम्मत करा सकें।
    • कानून का उद्देश्य मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) और तीसरे पक्ष के खरीदारों तथा विक्रेताओं के बीच व्यापार में सामंजस्य स्थापित करने में मदद करना है, साथ ही इस प्रकार नए रोज़गार का सृजन भी करना है।
  • वैश्विक स्थिति:
    • अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ सहित दुनिया भर के कई देशों में मरम्मत के अधिकार को मान्यता दी गई है।
    • अमेरिका में संघीय व्यापार आयोग ने निर्माताओं को अनुचित प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को दूर करने का निर्देश दिया है और उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिये कहा है कि उपभोक्ता स्वयं या किसी तीसरे पक्ष की एजेंसी द्वारा मरम्मत करा सकें।
  • संभावित लाभ:
    • यह छोटी मरम्मत की दुकानों के लिये व्यापार को बढ़ावा देने में मदद करेगा, जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
    • यह इलेक्ट्रिक कचरे (e-waste) के विशाल ढेर को कम करने में मदद करेगा।
    • इससे उपभोक्ताओं का पैसा बचेगा।
    • यह उपकरणों के जीवन काल, रखरखाव, पुन: उपयोग, उन्नयन, पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करके चक्रीय अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों में योगदान देगा।
  • कार्यान्वयन हेतु प्रस्तावित क्षेत्र:
    • कृषि उपकरण
    • मोबाइल फोन/टैबलेट
    • उपभोक्ता के लिये टिकाऊ वस्तुएँ
    • ऑटोमोबाइल/ऑटोमोबाइल उपकरण

राइट-टू-रिपेयर की आवश्यकता:

  • आमतौर पर निर्माता अपने डिज़ाइन सहित स्पेयर पार्ट्स पर मालिकाना नियंत्रण बनाए रखते हैं, रिपेयर प्रक्रियाओं पर इस तरह का एकाधिकार ग्राहक के "चुनने के अधिकार" का उल्लंघन करता है।
  • कई उत्पादों के वारंटी कार्ड में उल्लेख किया जाता है कि गैर-मान्यता प्राप्त संगठनों रिपेयर कराने की स्थिति में ग्राहक वारंटी लाभ से वंचित हो जाएंगे।
  • कंपनियाँ मैनुअल के प्रकाशन से भी बचती हैं जो उपयोगकर्त्ताओं को आसानी से रिपेयर करने में मदद कर सकती हैं।
  • तकनीकी सेवा/उत्पाद कंपनियाँ मैनुअल, स्कीमैटिक्स और सॉफ्टवेयर अपडेट के लिये पूर्ण ज्ञान एवं पहुँच प्रदान नहीं करती हैं।
  • निर्माता "नियोजित अप्रचलन" की संस्कृति को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
    • यह एक ऐसी प्रणाली है जिसके तहत किसी भी गैजेट का डिज़ाइन ऐसा होता है कि वह एक विशेष समय तक ही रहता है और उस विशेष अवधि के बाद उसे अनिवार्य रूप से बदलना पड़ता है।
    • एक उत्पाद जिसकी मरम्मत नहीं की जा सकती है या नियोजित अप्रचलन के अंतर्गत आता है अर्थात।
    • कृत्रिम रूप से सीमित उपयोगी जीवन वाले उत्पाद को डिजाइन करना
    • न केवल ई-कचरा बन जाता है बल्कि उपभोक्ताओं को किसी मरम्मत के अभाव में नए उत्पाद खरीदने के लिए मजबूर करता है ताकि इसका पुन: उपयोग किया जा सके।
    • एक उत्पाद जिसकी मरम्मत नहीं की जा सकती है या नियोजित अप्रचलन के तहत आता है यानी कृत्रिम रूप से सीमित उजीवनकाल के लिये उपयोगी उत्पाद को डिज़ाइन करना न केवल ई-कचरा को बढ़ाएगा बल्कि उपभोक्ताओं को रिपेयर करने की अपेक्षा नए उत्पाद खरीदने के लिये मज़बूर करेगा।
  • भारत ने हाल ही में LiFE आंदोलन (पर्यावरण के लिये जीवन शैली) की अवधारणा शुरू की है।
    • इसमें विभिन्न उपभोक्ता उत्पादों के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण की अवधारणा शामिल है।
    • राइट-टू-रिपेयर, लाइफ मूवमेंट के तहत लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा।

आगे की राह

  • नैदानिक उपकरणों सहित सेवा संबंधी उपकरणों को व्यक्तियों सहित तीसरे पक्ष को उपलब्ध कराए जाने चाहिये ताकि मामूली गड़बड़ियों के मामले में उत्पाद की रिपेयरिंग की जा सके।
    • ‘राइट-टू-रिपेयर’ कानून भारत जैसे देश में विशेष रूप से मूल्यवान हो सकता है, जहाँ सेवा नेटवर्क अक्सर असमान (Spotty) होते हैं और अधिकृत कार्यशालाएँ कम होने के साथ ही दूर के इलाकों में होती हैं।
      भारत मेंअनौपचारिक रिपेयरिंग क्षेत्र की स्थिति मज़बूत है।
    • लेकिन अगर इस तरह के कानून को अपनाया जाता है तो मरम्मत और रखरखाव सेवाओं की गुणवत्ता में काफी सुधार हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू

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