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कृषि

काबुली चने की जलवायु-प्रतिरोधी प्रकृति

  • 02 May 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हुए एक शोध में ऐसे कारकों का पता चला है जो यह बताते हैं कि काबुली चने में गर्म और शुष्क जलवायु को भी सहन करने की क्षमता होती है।

प्रमुख बिंदु

  • यह शोध अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध -शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (International Crops Research Institute for the Semi-Arid Tropics- ICRISAT) के मार्गदर्शन में एक अंतर्राष्ट्रीय टीम द्वारा किया गया।
  • इस अध्ययन के तहत काबुली चने में ताप अनुकूलन हेतु उत्तरदायी चार मुख्य जीन्स तथा शुष्क परिस्थितियों के अनुकूलन के लिये तीन जीन्स चिह्नित किये गए।
  • यह अध्ययन 45 देशों के चने की 429 प्रजातियों के पूर्ण जीनोम अनुक्रमण किया गया।
  • अध्ययन के अनुसार, काबुली चने की उत्पत्ति मूल रूप से भूमध्य/दक्षिण-पश्चिम एशिया में हुई थी उसे बाद में दक्षिण एशिया में भी उगाया जाने लगा।
  • काबुली चने की यह किस्म लगभग दो सदी पहले भारत में अफगानिस्तान से आई थी।
  • इस अध्ययन में चने की आनुवंशिक विविधता और उसमें सुधार पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।

लाभ

  • जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है इसलिये ताप और सूखा स्थिति सहन करने में सक्षम चने की यह किस्म किसानों के लिये वरदान साबित हो सकती है।
  • सामान्यतः भारत में चने की फसल सितंबर-अक्तूबर में बोई जाती है तथा जनवरी-फरवरी में इसकी कटाई होती है।

काबुली चना

  • काबुली चना प्रोटीन का अच्छा स्रोत माना जाता है। इसमें आवश्यक एमिनो अम्ल पाए जाते है तथा वसा की मात्रा बहुत कम होती है। यह फसल पर्यावरण में नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में भी सहायक होती है।
  • इसकी लगभग 90% खेती दक्षिण एशिया और भारत में होती है।
  • भारत चने का सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ ही, इसका सबसे बड़ा आयातक भी है।
  • वर्तमान में चने की फसल कई प्रमुख बीमारियों और कीटों के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं और यदि फसल को अत्यधिक तापमान या सूखे का सामना करना पड़े तो पैदावार में गिरावट आ सकती है।
  • वैश्विक स्तर पर हर साल औसतन 70% चने की फसल बर्बाद हो जाती है।
  • साधारणतः चने की फसल ठंड के मौसम के अनुकूल होती है। ऐसे में अगर तापमान बढ़ता है तो फसल को नुकसान पहुँचेगा।

अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसलअनुसंधान संस्थान

  • अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (International Crops Research Institute for the Semi-Arid Tropics-ICRISAT) एक गैर-लाभकारी, गैर-राजनीतिक संगठन है जो एशिया और उप-सहारा अफ्रीका के शुष्क इलाकों में कृषि के विकास हेतु अनुसंधान करता है।
  • इसकी स्थापना 1972 में की गई तथा इसका मुख्यालय हैदराबाद, तेलंगाना राज्य में स्थित हैं। इसकी दो अन्य क्षेत्रीय शाखाएँ भी हैं जो नैरोबी (केन्या) और बमाको (माली) में स्थित हैं।
  • ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ शुष्क जलवायु के लिये उपयुक्त छह अत्यधिक पौष्टिक फसलों पर शोध करता है, जिन्हें स्मार्ट फूड भी कहा जाता है। जैसे- काबुली चना, अरहर, बाजरा, रागी, चारा और मूँगफली।
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