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डेली न्यूज़

  • 05 Dec, 2024
  • 84 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

BRICS राष्ट्रों द्वारा वैकल्पिक मुद्रा पर विचार

प्रिलिम्स के लिये:

16वाँ BRICS शिखर सम्मेलन, ग्लोबल साउथ, SWIFT नेटवर्क, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, भारतीय रिज़र्व बैंक, भारत-UAE स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली

मेन्स के लिये:

वैश्विक व्यापार और वित्त पर डी-डॉलरीकरण का प्रभाव, भारतीय मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरण, भारत से संबंधित और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह एवं समझौते, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

अक्टूबर 2024 में 16वें BRICS शिखर सम्मेलन में BRICS देशों ने व्यापार में स्थानीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने या अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के क्रम में एक नई BRICS मुद्रा के संबंध में चर्चा की।

  • इसकी प्रतिक्रिया में अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यदि BRICS देश वैश्विक रिज़र्व मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर के स्थान पर किसी मुद्रा को अपनाते हैं तो उन पर 100% तक आयात शुल्क लगाया जा सकता है।
  • भारत ने अमेरिका के साथ मज़बूत आर्थिक संबंधों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराने के साथ इस बात पर बल दिया कि उसका अमेरिकी डॉलर को कमज़ोर करने का कोई लक्ष्य नहीं है।

BRICS देश वैकल्पिक मुद्राओं पर विचार क्यों कर रहे हैं?

  • लेन-देन लागत में कमी: स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने से अन्य मध्यस्थ विदेशी मुद्राओं की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी, जिससे लेन-देन लागत कम होने के साथ BRICS देशों के बीच व्यापार और भी अधिक सुलभ हो सकेगा।
  • डॉलर का प्रभुत्व: वर्तमान में वैश्विक व्यापार का 90% से अधिक अमेरिकी डॉलर द्वारा होता है। अमेरिकी डॉलर पर अधिक निर्भरता से देश अमेरिकी मौद्रिक नीतियों से काफी प्रभावित होते हैं। 
    • इससे देशों की अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक अस्थिरता पैदा होने से यह देश अपनी या अन्य मुद्राओं का उपयोग करके अपनी अर्थव्यवस्था पर अधिक नियंत्रण प्राप्त करने हेतु प्रेरित होते हैं।
    • कई BRICS देश (विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के देश) डॉलर जैसी प्रमुख मुद्राओं को पाने के लिये संघर्षरत रहते हैं, जिससे उनकी वस्तुओं का आयात करने, ऋण चुकाने एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है। 
      • स्थानीय मुद्राओं के उपयोग से न केवल इन चुनौतियों से निपटा जा सकेगा बल्कि स्थानीय बाज़ारों के बीच संवृद्धि एवं व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
  • राजनीतिक प्रेरणाएँ: स्थानीय मुद्राओं पर विचार करने का एक प्रमुख कारण अमेरिका द्वारा लगाए गए वित्तीय प्रतिबंधों के प्रभाव से बचना है।
    • उदाहरण के लिये, अमेरिका ने रूस और ईरान को SWIFT (सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन) नेटवर्क से प्रतिबंधित किया है, जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन की प्रमुख प्रणाली है, जिसके कारण इन देशों को व्यापार बनाए रखने हेतु विकल्प तलाशने पड़े हैं।
    • अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम होने से इन देशों को वैश्विक व्यापार में अधिक संप्रभुता प्राप्त होने के साथ बाहरी आर्थिक दबावों के प्रति इनकी संवेदनशीलता में कमी आएगी।
  • भू-राजनीतिक कारण: ब्राज़ील और रूस जैसे देश युआन तथा रूबल जैसी मुद्राओं को बढ़ावा देकर (यहाँ तक ​​कि एकीकृत BRICS मुद्रा पर विचार करके) अमेरिकी हस्तक्षेप से बचने हेतु प्रयासरत हैं।
    • जैसे-जैसे चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ बढ़ रही हैं, ये कई देशों के लिये प्रमुख व्यापारिक साझेदार बन रहे हैं। यह बदलाव व्यापार हेतु वैकल्पिक मुद्राओं के उपयोग को प्रेरित करता है।

स्थानीय मुद्राओं में व्यापार

  • चीन का दृष्टिकोण: चीन ने द्विपक्षीय मुद्रा स्वैप समझौतों के माध्यम से अपनी मुद्रा के उपयोग को बढ़ावा दिया है, जैसा कि इथियोपिया के साथ चीन के व्यापार में देखा गया है।
    • द्विपक्षीय मुद्रा स्वैप समझौते का आशय दो केंद्रीय बैंकों के बीच एक वित्तीय अनुबंध से है जिसके तहत एक मुद्रा की एक निश्चित राशि को दूसरी मुद्रा की समान राशि के साथ विनिमय किया जाता है।
    • चीन के वस्तु विनिमय व्यापार मॉडल के तहत अफ्रीकी देशों के साथ स्थानीय मुद्राओं के बदले वस्तुओं के आदान-प्रदान को प्राथमिकता देकर पारंपरिक मुद्राओं का उपयोग हतोत्साहित होता है। 
      • इन मुद्राओं का उपयोग उन देशों से सामान खरीदने के लिये किया जाता है, जिन्हें वापस चीन को निर्यात कर दिया जाता है, जिससे इसके मुद्रा अंतर्राष्ट्रीयकरण प्रयासों को समर्थन मिलता है।
  • दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीका की मुद्रा (दक्षिण अफ्रीकी रैंड) का नामीबिया, बोत्सवाना, लेसोथो और एस्वातिनी द्वारा अपनी मुद्राओं के साथ उपयोग करने से न केवल आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलता है बल्कि इन देशों की अमेरिकी डॉलर या यूरो पर निर्भरता भी कम होती है।
  • भारत-रूस: अमेरिकी प्रतिबंधों की प्रतिक्रिया में भारत और रूस द्वारा अपनी स्थानीय मुद्राओं (रुपए एवं रूबल) को प्रोत्साहन देने के साथ 90% द्विपक्षीय व्यापार अब इन मुद्राओं या वैकल्पिक मुद्राओं में किया जाता है।

अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता में कमी से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • चीनी प्रभुत्व: अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम होने से चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभुत्व को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं। चीन वैश्विक व्यापार में, खासतौर पर रूस और अन्य ब्रिक्स देशों के साथ, युआन के इस्तेमाल को बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है।
    • BRICS में, चीन की प्रमुख अर्थव्यवस्था असंगत प्रभाव उत्पन्न कर सकती है, जो संभावित रूप से भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे अन्य सदस्यों के हितों को प्रभावित कर सकती है, जो बहुध्रुवीय वित्तीय प्रणाली चाहते हैं।
  • कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: BRICS मुद्रा या स्थानीय मुद्राओं को अपनाने में चुनौतियाँ हैं, जैसा कि भारत-रूस व्यापार में देखा गया है, जहाँ अमेरिकी प्रतिबंधों से संबंधित बैंकिंग चिंताएँ बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन को प्रभावित करती हैं।
    • BRICS की कई मुद्राओं का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे स्थानीय मुद्राओं के साथ व्यापार की प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
    • जो देश आयात की तुलना में निर्यात अधिक करते हैं, उन्हें व्यापार के लिये विदेशी मुद्राएँ संचित करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है, जिससे स्थानीय मुद्राओं का उपयोग कठिन हो जाता है।
  • तरलता संबंधी मुद्दे: अमेरिकी डॉलर का व्यापक रूप से उपयोग (तरलता का अधिक होना) किया जाता है। वैकल्पिक मुद्राएँ उतनी तरलता प्रदान नहीं कर सकती हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करना अधिक कठिन हो जाएगा।
  • अस्थिरता और विनिमय दर जोखिम: डॉलर से दूर जाने के दौरान, देशों को विनिमय दर में अस्थिरता का अनुभव हो सकता है। 
    • यह बात खासतौर पर उन देशों के लिये है, जिनके वित्तीय बाज़ार पूर्णत: स्थापित नही हैं। ऐसी अस्थिरता वाणिज्य, निवेश और पूंजी प्रवाह को बाधित कर सकती है, जिससे आर्थिक अनिश्चितता और बढ़ सकती है।

BRICS आयात पर 100% अमेरिकी टैरिफ के संभावित प्रभाव क्या हैं?

  • वैश्विक व्यापार पर प्रभाव: ऐसे टैरिफ BRICS देशों को इंट्रा-ब्लॉक व्यापार को बढ़ाने के लिये मज़बूर कर सकते हैं, जिससे डी-डॉलराइज़ेशन में तेज़ी आएगी। 
  • गैर-अमेरिकी बाज़ारों में आयात विविधीकरण से वैश्विक व्यापार प्रणालियों पर अमेरिकी प्रभाव कम हो सकता है।
    • इससे ऑस्ट्रेलियाई डॉलर, चीनी युआन (रेनमिनबी) और अन्य गैर-परंपरागत आरक्षित मुद्राओं में वृद्धि हो सकती है, जो बहुध्रुवीय वैश्विक वित्तीय प्रणाली की ओर क्रमिक कदम को दर्शाता है।
      • इस परिवर्तन से अमेरिकी ‘फाइनेंशियल लीवरेज’ कम हो जाता है, लेकिन उभरती मुद्राओं के बीच प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि हो सकती है।
  • अमेरिका पर प्रभाव: BRICS देशों से आयात पर 100% टैरिफ लगाने से आयात की लागत में वृद्धि होने के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचेगा। 
    • अमेरिका में व्यापार मार्गों में बदलाव देखने को मिल सकता है, जिससे आयात संभवतः तीसरे पक्ष के देशों में स्थानांतरित हो सकता है। इससे घरेलू विनिर्माण में वृद्धि किये बिना अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिये लागत बढ़ सकती है।
    • BRICS देश अमेरिकी वस्तुओं पर अपने टैरिफ लगाकर जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं, जिससे व्यापार तनाव मेमे वृद्धि होगी तथा वैश्विक व्यापार गतिशीलता प्रभावित होगी।
    • अमेरिकी आर्थिक प्रभुत्व व्यापार में डॉलर की केंद्रीय भूमिका से उत्पन्न हुआ है। वैकल्पिक मुद्राओं को अपनाने से इसका वित्तीय प्रभाव कम हो सकता है, जिससे अमेरिका को विविधतापूर्ण वैश्विक प्रणाली को अपनाने के लिये मज़बूर होना पड़ सकता है।

BRICS

क्षेत्रीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने हेतु भारत ने कौन-सी पहल की हैं?

  • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण: वर्ष 2022 में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये, विशेष रूप से रूस जैसे देशों के साथ भारतीय रुपए में चालान और भुगतान की अनुमति प्रदान की गई। 
    • यह कदम अमेरिकी प्रतिबंधों के जवाब में उठाया गया था, जिसका उद्देश्य डॉलर पर निर्भरता कम करना था।
    • UPI जैसी डिजिटल भुगतान प्रणालियों का उद्देश्य रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना है।

  • द्विपक्षीय व्यापार समझौते: भारत सक्रिय रूप से द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर संवाद कर रहा है, जिसमें स्थानीय मुद्राओं के उपयोग के प्रावधान शामिल हैं, जैसे कि भारत-यूएई स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली।
    • यह रणनीतिक कदम आर्थिक स्वायत्तता बढ़ाने और अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है।
  • विदेशी मुद्रा भंडार: RBI यूरो और येन जैसी अन्य प्रमुख मुद्राओं को शामिल करके अपने विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता ला रहा है, तथा अमेरिकी डॉलर के हिस्से को कम कर रहा है।

आगे की राह:

  • भारत की संतुलित कूटनीति: भारत ने अमेरिकी डॉलर को कमज़ोर न करने का निर्णय लिया है। हालाँकि भारत को सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) को अपनाने के साथ यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) के अंतर्राष्ट्रीयकरण जैसी पहलों को बढ़ावा देना जारी रखना चाहिये। 
    • इसके अलावा भारत को BRICS देशों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वित्तीय सुधार उसके दीर्घकालिक आर्थिक हितों के अनुरूप हों। इसके साथ ही BRICS देशों में भारतीय निर्यात को प्रोत्साहित करके व्यापार असंतुलन को दूर करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
  • डिजिटल भुगतान समाधान: मुद्रा मांग को कुशलतापूर्वक संतुलित करने, लागत कम करने और स्थानीय मुद्रा व्यापार की सफलता सुनिश्चित करने के लिये एक विश्वसनीय, डिजिटल भुगतान प्रणाली आवश्यक है।
  • वृद्धिशील प्रगति: जटिलताओं को देखते हुए, क्रमिक दृष्टिकोण सबसे अधिक व्यवहार्य प्रतीत होता है। देशों को स्थानीय मुद्राओं में कुछ व्यापार करके शुरुआत करनी चाहिये, धीरे-धीरे सिस्टम का विस्तार करने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे और विश्वास का निर्माण करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: वैश्विक वित्त को नया आकार प्रदान करने में BRICS की भूमिका पर ध्यान केंद्रित करते हुए 'डी-डॉलराइज़ेशन' के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। भारत के लिये चुनौतियों और अवसरों का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015)

(a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना
(b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना

उत्तर: (c)


प्रश्न. BRICS के रूप में ज्ञात देशों के समूह के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. BRICS का पहला शिखर सम्मेलन वर्ष 2009 में रिओ डी जेनेरियो में हुआ था। 
  2. दक्षिण अफ्रीका BRICS समूह में शामिल होने वाला अंतिम देश था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 न ही 2

उत्तर: (b)


भारतीय अर्थव्यवस्था

WIPO विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक रिपोर्ट 2024

प्रिलिम्स के लिये:

WIPO, बौद्धिक संपदा, राष्ट्रीय IPR (बौद्धिक संपदा अधिकार) नीति 2016, भौगोलिक टैग, कॉपीराइट, मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा

मेन्स के लिये:

बौद्धिक संपदा अधिकार, एक मज़बूत IPR पारिस्थितिकी तंत्र की भूमिका और महत्त्व,

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत ने बौद्धिक संपदा (IP) क्षेत्र में वैश्विक रूप से अग्रणी देश के तौर पर मज़बूत स्थिति बना ली है। विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा जारी विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक (WIPI) रिपोर्ट 2024 के अनुसार पेटेंट, ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिज़ाइनों के लिये वैश्विक शीर्ष 10  देशों में स्थान प्राप्त किया है।

  • रिपोर्ट में  बौद्धिक संपदा (IP) फाइलिंग करने संबंधी वैश्विक रुझानों को रेखांकित किया गया है, जो आर्थिक चुनौतियों के बावजूद नवाचार के प्रति लचीलेपन को दर्शाता है। यह वृद्धि मुख्य रूप से चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और भारत में निवासियों द्वारा संचालित थी। 

WIPO क्या है?

  • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) संयुक्त राष्ट्र की सबसे पुरानी विशेष एजेंसियों में से एक है, जिसकी स्थापना वर्ष 1967 में रचनात्मक गतिविधि को बढ़ावा देने और वैश्विक स्तर पर बौद्धिक संपदा के संरक्षण हेतु की गई थी। यह 26 अंतर्राष्ट्रीय संधियों का प्रशासन करता है और इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विटज़रलैंड में है। 
    • WIPO के 193 सदस्य देश हैं। 
  • भारत वर्ष 1975 में WIPO में शामिल हुआ। भारत IPR से संबंधित निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण WIPO-प्रशासित अंतर्राष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों का भी सदस्य है:
    • पेटेंट प्रक्रिया के प्रयोजनों के लिये सूक्ष्मजीवों को पेटेंट प्रक्रिया के एक भाग के रूप में मान्यता देने के लिये बुडापेस्ट संधि, 2001
    • औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन, 1998
    • साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न कन्वेंशन, 1928
    • पेटेंट सहयोग संधि, 1998
    • चिह्नों के अंतर्राष्ट्रीय पंजीकरण से संबंधित मैड्रिड समझौते से संबंधित प्रोटोकॉल, 2013
    • एकीकृत सर्किट के संबंध में बौद्धिक संपदा पर वाशिंगटन संधि
    • ओलंपिक प्रतीक के संरक्षण पर नैरोबी संधि, 1983
    • फोनोग्राम के उत्पादकों के फोनोग्राम के अनधिकृत दोहराव के विरुद्ध संरक्षण के लिये कन्वेंशन, 1975
    • दृष्टिबाधित व्यक्तियों और मुद्रण दिव्यंगजन व्यक्तियों द्वारा प्रकाशित कार्यों तक पहुँच को सुगम बनाने के लिये मारकेश संधि, 2016। 
  • डब्ल्यूआईपीओ द्वारा प्रकाशित रिपोर्टें:

विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक, 2024 में भारत का प्रदर्शन कैसा रहा है?

  • पेटेंट में वृद्धि: भारत ने वर्ष 2023 में शीर्ष 20 देशों में पेटेंट आवेदनों में सबसे तेज़ वृद्धि दर्ज की, जो दोहरे अंकों की वृद्धि का लगातार पाँचवाँ वर्ष है। पेटेंट आवेदनों के लिये भारत विश्व स्तर पर छठे स्थान पर है।
  • औद्योगिक डिजाइन: वर्ष 2018 और 2023 के बीच पेटेंट और औद्योगिक डिजाइन आवेदन दोगुने से अधिक हो गए। 
    • शीर्ष तीन क्षेत्र- वस्त्र एवं सहायक उपकरण, उपकरण एवं मशीनें, तथा स्वास्थ्य एवं सौंदर्य प्रसाधन - सभी डिज़ाइन फाइलिंग का लगभग आधा हिस्सा बनाते हैं।
  • पेटेंट-जीडीपी अनुपात: भारत के पेटेंट-जीडीपी अनुपात, जो पेटेंट गतिविधि के आर्थिक प्रभाव का एक माप है, में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो आर्थिक विस्तार के साथ-साथ IP गतिविधियों में वृद्धि को दर्शाता है।
  • ट्रेडमार्क: भारत ट्रेडमार्क फाइलिंग में वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है, जिसमें लगभग 90% फाइलिंग घरेलू संस्थाओं द्वारा की गई है। प्रमुख क्षेत्रों में स्वास्थ्य (21.9%), कृषि (15.3%) और वस्त्र (12.8%) शामिल हैं। 
    • भारत का ट्रेडमार्क कार्यालय विश्व में सक्रिय पंजीकरणों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या रखता है। 
  • भौगोलिक संकेत: 
    • भारत (530) में कम GI लागू हैं, क्योंकि इसके GI को अंतर्राष्ट्रीय समझौतों द्वारा संरक्षण नहीं प्राप्त है। इसके विपरीत चीन, जर्मनी, हंगरी और चेक गणराज्य जैसे देशों में उनके क्षेत्रों में GI लागू होने की संख्या काफी अधिक है।
    • हंगरी और चेक गणराज्य लिस्बन प्रणाली के पक्षकार हैं।
    • ब्राज़ील (92.4%), चीन (96.2%), भारत (93.6%), तुर्की (99.8%), और वियतनाम (91.5%) में 90% से अधिक GI राष्ट्रीय GI थे।

IP, पेटेंट, ट्रेडमार्क, GI और औद्योगिक डिज़ाइन क्या हैं?

  • बौद्धिक संपदा: इसमें मानव बुद्धि की अमूर्त रचनाएँ, मुख्य रूप से कॉपीराइट, पेटेंट और ट्रेडमार्क शामिल हैं। 
  • बौद्धिक संपदा के महत्त्व को पहली बार औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन (1883) और साहित्यिक तथा कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न कन्वेंशन (1886) में मान्यता दी गई थी। दोनों संधियों को विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा प्रशासित किया जाता है।
  • इन अधिकारों को मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद-27 में उल्लिखित किया गया। 

पेटेंट:

  • पेटेंट किसी आविष्कार के लिये दिया गया एक विशेष अधिकार है। यह आविष्कारकों को उनके आविष्कारों की कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
    • पेटेंटधारी को उसके आविष्कार पर एक सीमित समयावधि के लिये उसके आविष्कार को पूर्णतया व्यक्त करने के बाद प्राप्त होता है जिससे दूसरों को उस पेटेंटकृत उत्पाद या प्रक्रिया के बनाने, इस्तेमाल करने, बिक्री करने, आयात करने या उसकी सहमति के बिना इन उद्देश्यों से उसका उत्पादन करने से रोका जा सकता है।  

ट्रेडमार्क:

  • ट्रेडमार्क एक संकेत है जो एक उद्यम की वस्तुओं या सेवाओं को अन्य उद्यमों से अलग करने में सक्षम है। 
    • ट्रेडमार्क पंजीकरण, पंजीकृत ट्रेडमार्क के उपयोग के लिये एक विशेष अधिकार प्रदान करता है, जिसका अर्थ है कि ट्रेडमार्क का उपयोग विशेष रूप से उसके ऑनर/स्वामी द्वारा किया जा सकता है, या भुगतान के बदले में उपयोग हेतु किसी अन्य पक्ष को लाइसेंस दिया जा सकता है। 

औद्योगिक डिज़ाइन:

  • औद्योगिक डिज़ाइन से तात्पर्य किसी उत्पाद के सजावटी या सौंदर्यपरक पहलुओं से है, जिसमें आकार और विन्यास जैसी 3D विशेषताएँ या चित्र, पैटर्न, रेखाएँ और रंग जैसी 2D तत्त्व शामिल हैं।
    • पंजीकृत औद्योगिक डिज़ाइन के ऑनर को यह अधिकार है कि वह तीसरे पक्ष को ऐसी वस्तुओं के निर्माण, विक्रय या आयात से रोके, जिनमें ऐसा डिज़ाइन हो, जो संरक्षित डिज़ाइन की प्रतिलिपि हो, या वस्तुतः प्रतिलिपि हो, जब ऐसे कार्य वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिये किये जाते हैं। 

भौगोलिक संकेत:

  • भौगोलिक संकेत (GI) एक ऐसा संकेतक है जो किसी वस्तु को एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने के रूप में पहचान प्रदान करता है तथा उसमें एक निश्चित गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या अन्य विशेषता होती है जो अनिवार्यतः उस भौगोलिक उत्पत्ति के लिये ज़िम्मेदार होती है। 

Geographical_Indication

नवप्रवर्तन को बढ़ावा देने के लिये भारत की पहल क्या हैं?

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भारत की बौद्धिक संपदा वृद्धि के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ क्या हैं?

  • आर्थिक सशक्तीकरण: बढ़ी हुई IP फाइलिंग (IP Filings) से नवाचारों की सुरक्षा के माध्यम से स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मकता और आर्थिक विकास में वृद्धि हो सकती है।
  • रोज़गार सृजन: IP क्षेत्र के विकास से बौद्धिक संपदा से संबंधित अनुसंधान, विकास और कानूनी सेवाओं में नए रोज़गार के अवसर पैदा होने की संभावना है।
  • वैश्विक स्थिति: जैसे-जैसे भारत अपने बौद्धिक संपदा ढाँचे को मज़बूत कर रहा है वैसे-वैसे वैश्विक नवाचार केंद्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा बढ़ने के साथ विदेशी निवेशक आकर्षित हो रहे हैं।

भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित चुनौतियाँ एवं आगे की राह क्या है?

भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित चुनौतियाँ

आगे की राह

प्रशासनिक विलंब: IP पंजीकरण, पेटेंट अनुमोदन एवं विवाद समाधान में जटिल नौकरशाही प्रक्रियाओं से नवाचार में बाधा आती है।

सुव्यवस्थित प्रक्रियाएँ: विलंब को कम करने एवं कुशल पेटेंट तथा ट्रेडमार्क फाइलिंग सुनिश्चित करने के लिए IP संबंधित प्रक्रियाओं को डिजिटल एवं त्वरित बनाना चाहिये

बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में सीमित जागरूकता: कई उद्यमियों, विशेषकर MSMEs एवं अनौपचारिक क्षेत्रों में बौद्धिक संपदा की सुरक्षा के महत्त्व के संबंध में जानकारी का अभाव है।

जन जागरूकता अभियान: IP साक्षरता को बढ़ावा देने हेतु स्टार्टअप, MSMEs एवं शैक्षणिक संस्थानों को लक्षित करते हुए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने चाहिये।

कमज़ोर R&D पारिस्थितिकी तंत्र: भारत को अपने नवाचार परिदृश्य में कमज़ोर R&D पारिस्थितिकी तंत्र के कारण चुनौतियों (जिसमें कम निवेश एवं जागरूकता, उद्योग तथा सरकार के बीच सीमित सहयोग शामिल है) का सामना करना पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त स्टार्टअप को सीमित समर्थन, वित्तीय संसाधनों तक पहुँच की कमी, मार्गदर्शन एवं नवाचार हेतु आवश्यक बुनियादी ढाँचे की कमी बनी हुई है।

अनुसंधान एवं विकास निवेश को बढ़ावा देना: नवाचार परिदृश्य को मज़बूत करने हेतु, क्रॉस-सेक्टोरल नवाचारों एवं स्वदेशी प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के वित्तपोषण को बढ़ाकर अनुसंधान एवं विकास संबंधी निवेश को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त अनुदान, इनक्यूबेशन सेंटर एवं मेंटरशिप कार्यक्रम प्रदान करके एक समग्र स्टार्टअप इकोसिस्टम बनाने से सभी क्षेत्रों में स्टार्टअप को सशक्त बनाया जा सकता है।

वैश्विक बाज़ारों तक सीमित पहुँच: भारतीय नवप्रवर्तकों को जटिल एवं महंगी वैश्विक फाइलिंग प्रक्रियाओं के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बौद्धिक संपदा की सुरक्षा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: वैश्विक IP संधियों में भागीदारी बढ़ाने के साथ भारतीय संस्थाओं द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट दाखिल करने के क्रम में सब्सिडी प्रदान करनी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में भारत की सफलता के प्रमुख चालक क्या हैं और ये इसके सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (नेशनल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसी)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. यह दोहा विकास एजेंडा और TRIPS समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराती है।  
  2. औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों के  विनियमन के लिये केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय पेटेंट अधिनियम के अनुसार, किसी बीज को बनाने की जैव प्रक्रिया को भारत में पेटेंट कराया जा सकता है।  
  2. भारत में कोई बौद्धिक संपदा अपील बोर्ड नहीं है।  
  3. पादप किस्में भारत में पेटेंट कराए जाने के पात्र नहीं हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. वैश्वीकृत संसार में बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्त्व हो जाता है और वे मुकद्दमेबाज़ी का एक स्रोत हो जाते हैं। कॉपीराइट, पेटेंट और व्यापार गुप्तियों के बीच मोटे तौर पर विभेदन कीजिये। (2014)


शासन व्यवस्था

भारत में लाभोन्मुख अनुसंधान तथा अनुसंधान एवं विकास संबंधी चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक नवाचार सूचकांक 2024, लार्ज लैंग्वेज मॉडल, चैट GPT, विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक 2024, हरित हाइड्रोजन, राष्ट्रीय क्वांटम मिशन, 5G तकनीक, विज्ञान धारा योजना, राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (RVP)

मेन्स के लिये:

भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियाँ, वैज्ञानिक अनुसंधान का व्यावसायीकरण, भारत में अनुसंधान और विकास की स्थिति 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

मई 2024 में गूगल डीपमाइंड (Google DeepMind) ने प्रोटीन संरचनाओं के पूर्वानुमान हेतु एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) टूल, अल्फाफोल्ड 3 जारी किया। अपने पिछले ओपन-सोर्स संस्करणों के विपरीत, अल्फाफोल्ड 3 के सभी कोड को रोक दिया गया था, जिससे वैज्ञानिकों को इसकी कार्यप्रणाली को पूरी तरह से समझने या इसके परिणामों को दोहराने से रोका जा सका।

  • इस निर्णय से वैज्ञानिक अनुसंधान में लाभोन्मुख वित्तपोषण (लाभ चाहने वाले निवेशक) के बढ़ते प्रभाव, पारदर्शिता और बौद्धिक संपदा संरक्षण के बीच तनाव उत्पन्न होने तथा भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियों पर प्रकाश डालने के संबंध में चर्चा शुरू हो गई है।

व्यावसायीकरण वैज्ञानिक अनुसंधान को कैसे प्रभावित करता है?

  • सकारात्मक प्रभाव:
    • वित्तपोषण और संसाधन: लाभ-प्राप्त करने वाली कंपनियाँ अनुसंधान को वित्तपोषण प्रदान करती हैं, उन्नत सुविधाओं तक पहुँच प्रदान कर नवाचार को बढ़ावा देती हैं, तथा भारत बायोटेक के इंट्रानेजल वैक्सीन जैसे फार्मास्युटिकल परीक्षणों में देखा गया है।
    • तीव्र विकास: व्यावसायिक प्रोत्साहन से प्रौद्योगिकी विकास में तेज़ी आती है, तथा शिक्षा जगत और उद्योग जगत के बीच सहयोग से CRISPR जैसी जीन संपादन प्रौद्योगिकियों में सफलता मिलती है, जिससे चिकित्सा एवं कृषि में प्रगति होती है।
    • व्यावहारिक अनुप्रयोग: वाणिज्यिक समर्थन के साथ अनुसंधान अक्सर वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों पर केंद्रित होता है, जिससे चिकित्सा संबंधी सफलता या  चैट GPT जैसे नए लार्ज लैंग्वेज मॉडल (large language models- LLM) के विकास जैसे ठोस लाभ प्राप्त होते हैं।
  • नकारात्मक प्रभाव:
    • अनुसंधान तक पहुँच में वैश्विक असमानता: समृद्ध संस्थानों को प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त प्राप्त है, जबकि कम वित्तपोषित शोधकर्त्ताओं को नवाचार संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
      • सीमित ओपन-सोर्स उपकरण कम संसाधन वाले परिवेश में पहुँच में बाधा डालते हैं।
    • शिक्षा जगत और उद्योग जगत के बीच अस्पष्ट रेखाएँ: निगमों तथा विश्वविद्यालयों के बीच बढ़ते सहयोग खुलेपन एवं स्वतंत्रता के पारंपरिक शैक्षणिक मानदंडों को चुनौती देते हैं।
      • कंपनियाँ अक्सर प्रतिबंधित खोजों को वैध बनाने के लिये अकादमिक मंचों का उपयोग करती हैं, जिससे निष्पक्षता तथा नैतिक प्रथाओं के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • विश्वास और वैज्ञानिक अखंडता: कार्यप्रणाली का ओपन साझाकरण मज़बूत परीक्षण तथा वैज्ञानिक परिणामों में विश्वास सुनिश्चित करता है, जबकि विवरण को रोके रखने से एक "ब्लैक बॉक्स" बनता है, जो वैज्ञानिक प्रगति की विश्वसनीयता और अपनाने से समझौता कर सकता है।
    • नैतिक चिंताएँ: वाणिज्यिक दबाव कभी-कभी अनैतिक प्रथाओं को बढ़ावा दे सकता हैं, जैसे बौद्धिक संपदा (Intellectual Property- IP) पेटेंट का शोषण करना, सार्वजनिक भलाई की अपेक्षा में लाभ को प्राथमिकता देना या अनुसंधान की अखंडता से समझौता करना।

वाणिज्यिक हितों के साथ पारदर्शिता को किस प्रकार संतुलित किया जा सकता है?

  • एंटरप्राइज़ संस्करणों के साथ ओपन-सोर्स मॉडल: शोधकर्त्ता उद्योग उपयोग हेतु उन्नत अनुप्रयोगों का व्यावसायीकरण करने के क्रम में मूलभूत खोजों को खुले तौर पर साझा कर सकते हैं (उदाहरण के लिये, मालिकाना हक को ध्यान में रखते हुए एल्गोरिदम को खुले तौर पर साझा किया जा सकता है)।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने से शोधकर्त्ताओं को उद्योग संसाधनों का लाभ उठाते हुए पारदर्शिता बनाए रखने में मदद मिलती है, जिसमें कंपनियाँ व्यापक शोध हेतु अप्रतिबंधित वित्तपोषण उपलब्ध कराने के साथ विशिष्ट वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिये बौद्धिक संपदा सुरक्षा सुरक्षित रखने पर ध्यान केंद्रित करती हों।
  • उत्प्रेरक के रूप में सरकारी वित्तपोषण: सरकारी वित्तपोषण में वृद्धि के कारण निजी प्रायोजकों पर निर्भरता कम होने से अधिक पारदर्शी अनुसंधान संभव हो पाता है।
  • IP ​​कानून और गोपनीयता: वाणिज्यिक संरक्षण एवं वैज्ञानिक खुलेपन के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये IP कानूनों में सुधार करने से नवाचार को सक्षम बनाया जा सकता है।
    • आवश्यक वाणिज्यिक उत्पादों (जैसे, कोविड-19 टीके) के लिये सब्सिडी से भी बौद्धिक संपदा संरक्षण को बनाए रखते हुए इस क्षेत्र में सामर्थ्य सुनिश्चित किया जा सकता है।
    • नीति निर्माताओं को बौद्धिक संपदा अधिकारों में खुलेपन को संतुलित करने के साथ पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये दिशानिर्देश स्थापित करने चाहिये।
  • पारदर्शिता के लिये पुरस्कार: पारदर्शिता को प्राथमिकता देने वाले वैज्ञानिकों को संस्थागत समर्थन एवं वित्तपोषण मिलना चाहिये।

भारत में अनुसंधान एवं विकास (R&D) का वर्तमान परिदृश्य क्या है?

  • वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII): 133 अर्थव्यवस्थाओं के बीच GII 2024 में भारत का 39वाँ स्थान जैव प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष अन्वेषण, क्वांटम प्रौद्योगिकी एवं नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास के संदर्भ में देश की बढ़ती प्राथमिकता को रेखांकित करता है।
  • विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक (WIPI): WIPI 2024 के अनुसार, भारत पेटेंट के लिये आवेदन करने में 6वें स्थान पर है, जो नवाचार में प्रगति को दर्शाता है।
  • वैज्ञानिक प्रकाशन: वर्ष 2022 तक भारत वैज्ञानिक प्रकाशनों एवं स्कॉलर आउटपुट में विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है (भारत का अनुसंधान आउटपुट वर्ष 2017 से 2022 के बीच 54% बढ़ा है), जो वैश्विक अनुसंधान में इसकी बढ़ती उपस्थिति को दर्शाता है।
  • जैव प्रौद्योगिकी: भारत ने कोवैक्सिन जैसे स्वदेशी टीकों के विकास के साथ कोविड-19 महामारी के दौरान अपनी अनुसंधान एवं विकास क्षमता का प्रदर्शन किया है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा (विशेष रूप से सौर और हरित हाइड्रोजन) प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, जिसमें कायमकुलम फ्लोटिंग सौर ऊर्जा संयंत्र जैसी अग्रणी परियोजनाएँ शामिल हैं।
  • क्वांटम और सुपरकंप्यूटिंग प्रौद्योगिकियाँ: भारत राष्ट्रीय क्वांटम मिशन और PARAM सिद्धि-AI सुपरकंप्यूटर के विकास जैसी पहलों के साथ क्वांटम प्रौद्योगिकियों एवं सुपरकंप्यूटिंग के क्षेत्र में भी प्रगति कर रहा है।
  • दूरसंचार: भारत की अपनी 5G प्रौद्योगिकी (5Gi) एवं भारत 6G परियोजना, भारत को दूरसंचार अनुसंधान में अग्रणी के रूप में स्थापित कर रही है।

भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • कम बजट आवंटन: भारत में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 1% से भी कम हिस्सा (जो अमेरिका (2.8%) और चीन (2.1%) जैसे वैश्विक औसत से बहुत कम है) अनुसंधान एवं विकास पर खर्च होता है। इससे अनुसंधान अवसंरचना के विकास में बाधा आती है तथा उच्च प्रभाव वाली अनुसंधान क्षमता सीमित हो जाती है।
  • समावेशिता के मुद्दे: सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं और लैंगिक असमानताओं के कारण भारत की अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों में समावेशिता का अभाव रहा है। 
    • उदाहरण के लिये विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है तथा उन्हें अनुसंधान के अवसरों तक पहुँचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। 
      • इससे न केवल प्रतिभा पूल सीमित होता है बल्कि अनुसंधान एवं नवाचार में बाधा आती है।
  • शिक्षा प्रणाली: भारत की शिक्षा प्रणाली में अनुसंधान एवं विकास की प्रगति कम Ph.D नामांकन और अपर्याप्त अनुसंधान परियोजना निगरानी के कारण बाधित है।
    • रट कर सिखने की शिक्षा (Rote Learning) पर ध्यान तथा शैक्षणिक एवं उद्योग की आवश्यकताओं के बीच विसंगति, अनुसंधान कौशल के विकास में बाधा डालती है।
  • गुणवत्ता बनाम मात्रा: भारत में कई शोध पत्र प्रकाशित होते हैं, लेकिन कम उद्धरण दर के कारण उनकी गुणवत्ता चिंता का विषय है।
  • प्रतिभा पलायन: भारत एक बड़े पैमाने पर "प्रतिभा पलायन (Brain Drain)" का सामना कर रहा है, जहाँ शीर्ष शोधकर्त्ता बेहतर अवसरों की तलाश में विदेश जा रहे हैं। 
    • भारत में प्रति दस लाख लोगों पर 216.2 शोधकर्त्ता हैं, जो चीन (1200) और अमेरिका (4300) से बहुत कम है, क्योंकि यहाँ कम वेतन, सीमित वित्तपोषण और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण अनुसंधान एवं विकास संबंधी प्रतिस्पर्द्धा में बाधा आ रही है।
  • अनुसंधान को प्रौद्योगिकी में परिवर्तित करना: भारत मौलिक अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने, अविकसित उद्योग-अकादमिक संबंधों और अकुशल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रणालियों के कारण मौलिक अनुसंधान को सफल प्रौद्योगिकियों में परिवर्तित करने के लिये संघर्ष करता है।

अनुसंधान एवं विकास से संबंधित भारत की पहल

आगे की राह:

  • वित्तीय सहायता: निजी क्षेत्र के निवेश, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), कर प्रोत्साहन और नवाचार समूहों की स्थापना के माध्यम से शैक्षिक संस्थानों में अनुसंधान के लिये स्थायी वित्तपोषण को प्रोत्साहित करना।
  • प्रतिभा पलायन की समस्या का समाधान: उत्कृष्ट कर्मियों को बनाए रखने के लिये "प्रतिकूल प्रतिभा पलायन/रिवर्स ब्रेन ड्रेन" पहल लागू करना तथा प्रतिस्पर्धात्मक रूप से भुगतान करना।
  • शिक्षा: बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान में निवेश बढ़ाने के लिये सरकारी धन का पुनः आवंटन, साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के उचित कार्यान्वयन से उच्च शिक्षा में अनुसंधान एवं नवाचार के लिये अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिलेगा।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार और नवप्रवर्तन संस्कृति में सुधार: उद्योग-अकादमिक संबंधों के कमज़ोर होने के कारण भारत के पेटेंट के उपयोग में कमी आती है। 
    • बौद्धिक संपदा अधिकार और विश्वविद्यालयों में अनुसंधान को बढ़ावा देकर अनुसंधान और व्यावहारिक अनुप्रयोगों के बीच के अंतर को कम किया जा सकता है।
  • लैंगिक समावेशिता को बढ़ावा देना: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (STEM) में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये विज्ञान ज्योति योजना, तथा पोषण के माध्यम से ज्ञान सहभागिता अनुसंधान उन्नयन (KIRAN) जैसे कार्यक्रमों एवं नीतियों को लागू करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: अनुसंधान एवं विकास में भारत की प्रगति के आलोक में वैज्ञानिक अनुसंधान में सार्वजानिक कल्याण के साथ व्यावसायिक हितों को संतुलित करने के अवसरों और चुनौतियों के बारे में चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न.1 राष्ट्रीय नवप्रवर्तक प्रतिष्ठान-भारत (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन इंडिया- एन.आई.एफ.) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. NIF केंद्र सरकार के अधीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था है। 
  2. NIF अत्यंत उन्नत विदेशी वैज्ञानिक संस्थाओं के सहयोग से भारत की प्रमुख (प्रीमियर) वैज्ञानिक संस्थाओं में अत्यंत उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान को मज़बूत करने की एक पहल है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


प्रश्न. 2 निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया जाता है? (2009)

(a) साहित्य 
(b) प्रदर्शन  
(c) विज्ञान 
(d) समाज सेवा

उत्तर: (c)


भारतीय अर्थव्यवस्था

अंतर्राष्ट्रीय ऋण रिपोर्ट 2024

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय ऋण रिपोर्ट 2024, वैश्विक ऋण रुझान और निहितार्थ, ऋण, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA)। 

मेन्स के लिये:

वैश्विक ऋण रुझान और निहितार्थ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी विश्व बैंक की "अंतर्राष्ट्रीय ऋण रिपोर्ट 2024" में विकासशील देशों के लिये बढते ऋण संकट पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें वर्ष 2023 में दो दशकों में उच्चतम ऋण सेवा स्तर अंकित होगा, जो बढ़ती ब्याज दरों और आर्थिक चुनौतियों से प्रेरित है।

  • इसके अतिरिक्त इससे पहले जून, 2024 में UNCTAD की एक रिपोर्ट, "ए वर्ल्ड ऑफ डेट 2024: ए ग्रोइंग बर्डन टू ग्लोबल प्रॉसपेरिटी" ने विश्व को प्रभावित करने वाले गंभीर वैश्विक ऋण संकट पर प्रकाश डाला।

अंतर्राष्ट्रीय ऋण रिपोर्ट, 2024 के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

बढ़ता ऋण स्तर:

  • निम्न और मध्यम आय वाले देशों (विकासशील या LMIC) का कुल बाह्य ऋण वर्ष 2023 के अंत तक रिकॉर्ड 8.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो वर्ष 2020 से 8% की वृद्धि को दर्शाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA) - पात्र देशों का बाह्य ऋण लगभग 18% बढ़कर 1.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
    • वर्ष 1960 में स्थापित IDA एक विश्व बैंक समूह की संस्था है, जो कम आय और खराब ऋण पात्रता वाले विश्व के अति निर्धन देशों को रियायती ऋण और अनुदान प्रदान करती है।

बढ़ती ऋण सेवा लागत:

  • वर्ष 2023 में LMIC को ऋण सेवा लागत (मूलधन और ब्याज भुगतान) में रिकॉर्ड 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का खर्च उठाना पड़ा, जिसमें ब्याज भुगतान 33% बढ़कर 406 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जिससे राष्ट्रीय बजट पर भारी दबाव पड़ा।
  • ब्याज भुगतान में तीव्र वृद्धि ने स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश को कम कर दिया है, जिससे विकास संबंधी चुनौतियाँ और बढ़ गई हैं।

उधारी में वृद्धि:

  • वर्ष 2023 में आधिकारिक लेनदारों से ऋण पर ब्याज दरें दोगुनी होकर 4% से अधिक हो जाएँगी, जबकि निज़ी लेनदारों की दरें बढ़कर 6% हो जाएँगी, जो 15 वर्षों में उच्चतम स्तर है।
    • ब्याज दरों में इस वृद्धि से विकासशील देशों पर वित्तीय बोझ काफी बढ़ गया, जिससे उसकी ऋण को चुकाने में चुनौतियाँ बढ़ गई हैं।

निज़ी और आधिकारिक लेनदारों की भूमिका:

  • जैसे-जैसे वैश्विक ऋण की स्थिति खराब होती गई, निज़ी ऋणदाताओं ने IDA देशों को ऋण देना कम कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप नवीन ऋणों की तुलना में  ऋण चुकौती में 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई।
  • इसके विपरीत विश्व बैंक जैसे बहुपक्षीय ऋणदाताओं ने इन अर्थव्यवस्थाओं को ऋण भुगतान से प्राप्त राशि से 51 बिलियन अमेरिकी डॉलर अधिक प्रदान करके सहायता प्रदान की।

IDA-पात्र देशों पर प्रभाव:

  • IDA-पात्र देशों को वर्ष 2023 में गंभीर वित्तीय तनाव का सामना करना पड़ा, ऋण भुगतान में 96.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान करना पड़ा, जिसमें रिकॉर्ड-उच्च ब्याज लागत में 34.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल थे - जो वर्ष 2014 की तुलना में 4 गुना अधिक था। 
  • औसतन, उनकी निर्यात आय का लगभग 6% ब्याज भुगतान में चला जाता है, कुछ का आवंटन 38% तक होता है।

वैश्विक ऋण 

  • यह विश्व भर में सरकारों, व्यवसायों और व्यक्तियों द्वारा लिये गए कुल ऋण को संदर्भित करता है, जिसमें सार्वजनिक और निजी ऋण दोनों शामिल हैं ।
    • सार्वजनिक ऋण: यह सरकार द्वारा घरेलू और विदेशी ऋणदाताओं को दिया जाने वाला ऋण है। इसे आमतौर पर बाॅण्ड, ट्रेजरी बिल या अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से ऋण जारी करके वित्तपोषित किया जाता है।
    • निजी ऋण: यह व्यवसायों और व्यक्तियों द्वारा बैंकों, ऋणदाताओं एवं वित्तीय संस्थानों को दिये जाने वाले ऋण से संबंधित है। इसमें बंधक, कॉर्पोरेट बाॅण्ड, छात्र ऋण और क्रेडिट कार्ड ऋण शामिल हैं।

UNCTAD विश्व ऋण रिपोर्ट, 2024 के अनुसार वैश्विक ऋण संकट की स्थिति क्या है?

  • वैश्विक सार्वजनिक ऋण में तीव्र वृद्धि: वैश्विक ऋण, जिसमें परिवारों, व्यवसायों और सरकारों द्वारा लिया गया ऋण शामिल है, वर्ष 2024 में 315 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 3 गुना है। 
    • कोविड-19 महामारी, खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतें, जलवायु परिवर्तन, तथा धीमी विकास दर और बढ़ती बैंक ब्याज दरों के कारण सुस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था  जैसे कारकों के कारण सार्वजनिक ऋण तेजी से बढ़ रहा है।
  • ऋण वृद्धि में क्षेत्रीय असमानताएँ: विकासशील देशों का सार्वजनिक ऋण, जो 29 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है (वैश्विक ऋण का 30%, जो वर्ष 2010 में 16% था), विकसित देशों की तुलना में दोगुनी तेज़ी से बढ़ रहा है।
  • ऋण सेवा और जलवायु पहल पर प्रभाव: लगभग 50% विकासशील देश अब अपने सरकारी राजस्व का कम से कम 8% ऋण के लिये आवंटित करते हैं, यह आँकड़ा पिछले दशक में दोगुना हो गया है।
    • वर्तमान में, विकासशील देश जलवायु पहलों (2.1%) की तुलना में ऋण चुकौती (2.4%) पर सकल घरेलू उत्पाद का अधिक प्रतिशत व्यय करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। 
    • पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये, वर्ष 2030 तक जलवायु निवेश को सकल घरेलू उत्पाद के 6.9% तक बढ़ाना होगा।
  • आधिकारिक विकास सहायता (ODA) में बदलाव: ODA, जो विकासशील देशों में आर्थिक विकास और कल्याण का समर्थन करता है, में उल्लेखनीय गिरावट आ रही है और अब ऋण सहायता का 34% है, जो वर्ष 2012 में 28% था, जिससे ऋण का भार बढ़ रहा है। 
    • ऋण राहत निधि वर्ष 2012 में 4.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर वर्ष 2022 में 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर रह गई है, जिससे विकासशील देशों के लिये ऋण प्रबंधन की स्थिति और खराब हो गई है।

नोट: 

  • आधिकारिक विकास सहायता (ODA) से तात्पर्य गरीब देशों के विकास को समर्थन देने के लिये दाता देशों द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता से है। 
    • विश्व बैंक का एक अंग, अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (ODA) ढाँचे के भीतर एक प्रमुख बहुपक्षीय संस्था है। यह दुनिया के सबसे गरीब देशों को अनुकूल शर्तों के साथ रियायती ऋण और अनुदान प्रदान करता है, इस प्रकार इन देशों में विकास प्रयासों का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • विश्व बैंक का एक अंग, अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA), ODA ढाँचे के भीतर एक प्रमुख बहुपक्षीय संस्था है। यह विश्व के सबसे गरीब देशों को अनुकूल शर्तों के साथ रियायती ऋण और अनुदान प्रदान करता है, इस प्रकार इन देशों में विकास प्रयासों का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • वर्ष 2020 में शुरू किये गए और पेरिस क्लब के सहयोग से G20 द्वारा समर्थित ऋण उपचार के लिये G20 कॉमन फ्रेमवर्क का उद्देश्य अस्थिर ऋण स्तरों से जूझ रहे है, निम्न-आय वाले देशों (LIC) को संरचनात्मक सहायता प्रदान करना है।
  • वर्ष 2020 में शुरू किया गया और पेरिस क्लब तथा G20 द्वारा अनुमोदित, ऋण उपचार के लिये G-20 कॉमन फ्रेमवर्क का उद्देश्य निम्न आय वाले देशों (LIC) को संरचनात्मक सहायता प्रदान करना है, जो असहनीय ऋण स्तरों से जूझ रहे हैं।
    • यह ढाँचा LIC के सामने आने वाली गंभीर ऋण चुनौतियों से निपटने के लिये एक समन्वित और व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो कोविड-19 महामारी के कारण और भी गंभीर हो गई हैं।

वैश्विक ऋण संकट को कम करने के लिये क्या उपाय किये गए हैं?

  • ऋण प्रबंधन और वित्तीय विश्लेषण प्रणाली (DMFAS) कार्यक्रम: DMFAS कार्यक्रम UNCTAD द्वारा कार्यान्वित किया गया है जो विकासशील देशों को उनके ऋण प्रबंधन प्रथाओं में सुधार करने में सहायता करता है। 
    • यह डेब्ट रिकॉर्डिंग, जोखिम मूल्यांकन और बातचीत को बढ़ाने के लिये प्रशिक्षण एवं तकनीकी सहायता प्रदान करता है, जिससे सतत् ऋण प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है साथ ही भविष्य के ऋण संकटों को रोका जा सकता है।
  • अत्यधिक ऋणग्रस्त गरीब देश (HIPC) पहल:
    • HIPC को और IMF द्वारा वर्ष 1996 में लॉन्च किया गया था। यह विश्व के सबसे गरीब देशों, जो अस्थिर ऋण का सामना कर रहे हैं, को ऋण राहत और कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करता है पात्रता सख्त मानदंडों जैसे सुधारों के ट्रैक रिकॉर्ड और गरीबी न्यूनीकरण रणनीति पत्र (PRSP) के विकास पर आधारित है। 
    • इस कार्यक्रम को पूरा करने वाले देशों को ऋण-सेवा राहत और अतिरिक्त वित्तीय संसाधन प्राप्त होंगे। 
    • वर्ष 2005 में शुरू की गई बहुपक्षीय ऋण राहत पहल (MDRI) HIPC पहल का पूरक है, जो देशों को सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करती है । 
      • उदाहरण के लिये, सोमालिया ने दिसंबर, 2023 में कार्यक्रम पूरा करने के बाद ऋण भुगतान में 4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत की।
  • वैश्विक संप्रभु ऋण गोलमेज सम्मेलन (GSDR) :
    • GSDR ऋणी देशों और आधिकारिक तथा निजी ऋणदाताओं को एक साथ लाता है, जिसका उद्देश्य ऋण स्थिरता और ऋण पुनर्गठन चुनौतियों तथा उनके समाधान के तरीकों पर प्रमुख हितधारकों के बीच साझा समझ का निर्माण करना है।
    • इसकी सह-अध्यक्षता IMF, विश्व बैंक और G-20 द्वारा की जाती है

आगे की राह 

  • समावेशी शासन
    • निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में निम्न आय वाले देशों की भागीदारी बढ़ाना यह सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि उनकी आवाज़ सुनी जाए। संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास कार्यालय द्वारा जोर दिये जाने के अनुसार, ऋण संकट को रोकने हेतु वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही आवश्यक है।
  • आकस्मिक वित्तपोषण
    • आपातकालीन वित्तीय सहायता प्रदान करने में IMF की अहम भूमिका है। वर्ष 2019 की IMF रिपोर्ट में प्रस्तावित विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights- SDR) तक पहुँच बढ़ाने जैसे उपाय संकट के समय विकासशील देशों के भंडार  वृद्धि में मदद कर सकते हैं।
  • असंवहनीय ऋण का प्रबंधन
    • मौजूदा ऋण पुनर्गठन ढाँचे जैसे कि ऋण उपचार के लिये G20 कॉमन फ्रेमवर्क को मज़बूत करने की आवश्यकता है। 
      • संकट के दौरान ऋण भुगतान निलंबन हेतु स्वचालित प्रावधानों को शामिल करने से अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर करने हेतु लचीलापन प्राप्त हो सकता है।
  • सतत् वित्तपोषण को बढ़ाना
    • बहुपक्षीय विकास बैंकों (Multilateral Development Banks- MDB) को सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के लिये दीर्घकालिक वित्तपोषण पर अधिक ध्यान केंद्रित करने हेतु परिवर्तित किया जाना चाहिये। स्वच्छ ऊर्जा जैसी सतत् परियोजनाओं के लिये निजी निवेश को आकर्षित करना और विशेष रूप से विकासशील देशों के लिये सहायता और जलवायु वित्त से संबंधित प्रतिबद्धताओं को पूरा करना भी आवश्यक है।

निष्कर्ष

विश्व बैंक की अंतर्राष्ट्रीय ऋण रिपोर्ट 2024 विकासशील देशों के सामने अपने ऋण के प्रबंधन में आने वाली चुनौतियों की एक स्पष्ट छवि प्रस्तुत करती है। निष्कर्ष बहुपक्षीय समर्थन की तत्काल आवश्यकता और ऋण डेटा में बेहतर पारदर्शिता को रेखांकित करते हैं ताकि सतत् आर्थिक विकास सुनिश्चित किया जा सके। जैसे-जैसे ये देश अपनी वित्तीय चुनौतियों से निपटते हैं, ऋण चुकौती को आवश्यक विकास प्राथमिकताओं के साथ संतुलित करने के लिये आवश्यक सहायता प्रदान करने में बहुपक्षीय संस्थानों की भूमिका तेज़ी से महत्त्वपूर्ण होती जाती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

वैश्विक ऋण संकट को बढ़ावा देने वाले कारक क्या हैं? विकसित और विकासशील दोनों देश इस समस्या का प्रभावी ढंग से समाधान करने तथा इसे प्रबंधित करने के लिये संभावित उपायों का आकलन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. राजकोषीय दायित्व और बजट प्रबंधन (एफ.आर.बी.एम.) समीक्षा समिति के प्रतिवेदन में सिफारिश की गई है कि वर्ष 2023 तक केंद्र एवं राज्य सरकारों को मिलाकर ऋण-जी.डी.पी. अनुपात 60% रखा जाए जिसमें केंद्र सरकार हेतु यह 40% तथा राज्य सरकारों के लिये 20% हो।
  2. राज्य सरकारों के जी.डी.पी. के 49% की तुलना में केन्द्र सरकार के लिए जी.डी.पी. का 21% घरेलू देयतायें हैं।
  3. भारत के संविधान के अनुसार यदि किसी राज्य के पास केंद्र सरकार की बकाया देयतायें हैं तो उसे कोई भी ऋण लेने से पहले केंद्र सरकार से सहमति लेना अनिवार्य है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: c


मेन्स:

प्रश्न: 12. उतर-उदारीकरण अवधि के दौरान, बजट निर्माण के संदर्भ में लोक व्यय प्रबंधन भारत सरकार के समक्ष एक चुनौती है। इसको स्पष्ट कीजिये। (2019)


शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी 2.0

प्रिलिम्स के लिये:

आवास वित्त कंपनियाँ (HFCs), प्राथमिक ऋण संस्थान (PLI), प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी 2.0 (PMAY-U 2.0), ब्याज सब्सिडी योजना (ISS),  

मेन्स के लिये:

किफायती आवास उपलब्ध कराने में वित्तीय संस्थानों की भूमिका, PMAY के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ, PMAY-U 2.0 के कार्यान्वयन को बढ़ाने की रणनीतियाँ

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 14 नवंबर, 2024 को आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs- MoHUA) ने राष्ट्रीय आवास बैंक (National Housing Bank- NHB) के साथ साझेदारी के साथ नई दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी 2.0 (PMAY-U 2.0) तथा इसकी ब्याज सब्सिडी योजना (Interest Subsidy Scheme- ISS) पर केंद्रित एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया।

PMAY-U 2.0 में मुख्य विषय क्या हैं?

  • PMAY-U 2.0 का उद्देश्य: PMAY-U 2.0 1 सितंबर 2024 से पाँच वर्षों में शहरी क्षेत्रों में किफायती आवास के लिये राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों/PLI के माध्यम से 1 करोड़ शहरी गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
  • विधवाओं, एकल महिलाओं, विकलांग व्यक्तियों, वरिष्ठ नागरिकों, ट्रांसजेंडरों, अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों, अल्पसंख्यकों और अन्य कमज़ोर वर्गों को प्राथमिकता दी जाएगी। 
  • इसमें सफाई कर्मी, स्ट्रीट वेंडर (पीएम स्वनिधि योजना), कारीगर (प्रधानमंत्री-विश्वकर्मा योजना), आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता, निर्माण श्रमिक, झुग्गी/चॉल निवासी और अन्य चिह्नित समूहों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
  • कार्यशाला में भागीदारी: कार्यशाला में विभिन्न बैंकों, आवास वित्त कंपनियों (Housing Finance Companies- HFC) और प्राथमिक ऋण संस्थानों (Primary Lending Institutions- PLI) के 250 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिन्होंने सफल कार्यान्वयन के लिये आवश्यक सहयोगात्मक प्रयास पर बल दिया।
  • PMAY-U 2.0 की मुख्य विशेषताएँ:
    • इस योजना में चार खंड शामिल हैं, जो लाभार्थियों को पात्रता के आधार पर चयन करने की सुविधा प्रदान करते हैं।
    • ISS वर्टिकल आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (Economically Weaker Sections- EWS), निम्न आय वर्ग (Low-Income Groups- LIG) और मध्यम आय वर्ग (Middle-Income Groups- MIG) को आवास ऋण पर ब्याज सब्सिडी प्रदान करता है।
    • PMAY-U 2.0 के अंतर्गत सरकारी सहायता प्रति इकाई 2.50 लाख तक होगी।

Four_Verticals_of_PMAY(U)

  • वित्तीय संस्थाओं की भूमिका: सरकार ने बैंकों और आवास वित्त कंपनियों से वर्ष 2047 तक "सभी के लिये आवास" के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में इस सुधारात्मक यात्रा में सक्रिय रूप से भाग लेने का आह्वान किया, जो भारत के विकसित राष्ट्र बनने के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

प्रधानमंत्री आवास योजना क्या है?

इस योजना के निम्नलिखित दो घटक हैं:

  • प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G):
    • शुभारंभ: वर्ष 2022 तक “सभी के लिये आवास” के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये, पूर्ववर्ती ग्रामीण आवास योजना इंदिरा आवास योजना (IAY) को 1 अप्रैल 2016 से केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) में पुनर्गठित किया गया।
    • संबंधित मंत्रालय: ग्रामीण विकास मंत्रालय। 
    • स्थिति: राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने लाभार्थियों को 2.85 करोड़ आवास स्वीकृत किये हैं और मार्च 2023 तक 2.22 करोड़ आवास पूरे हो चुके हैं।
    • उद्देश्य: मार्च 2022 के अंत तक सभी ग्रामीण परिवारों को बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्का आवास उपलब्ध कराना, जो बेघर हैं या कच्चे या जीर्ण-शीर्ण आवासों में रह रहे हैं । 
      • गरीबी रेखा से नीचे (BPL) जीवन यापन करने वाले ग्रामीण लोगों को आवास इकाइयों के निर्माण तथा मौजूदा अनुपयोगी कच्चे मकानों के उन्नयन में पूर्ण अनुदान के रूप में सहायता प्रदान करना। 
    • लाभार्थी: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, मुक्त बंधुआ मज़दूर और गैर-अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग, युद्ध में मारे गए रक्षा कर्मियों की विधवाएँ या उनके निकट संबंधी, पूर्व सैनिक और अर्द्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त सदस्य, विकलांग व्यक्ति और अल्पसंख्यक। 
    • लाभार्थियों का चयन: सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011, ग्राम सभा और जियो-टैगिंग जैसे तीन-चरणीय सत्यापन के माध्यम से। 
    • लागत साझाकरण: मैदानी क्षेत्रों के मामले में केंद्र और राज्य 60:40 के अनुपात में लागत साझा करते हैं, तथा पूर्वोत्तर राज्यों, दो हिमालयी राज्यों और जम्मू-कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र के मामले में 90:10 के अनुपात में लागत साझा करते हैं। 
      • केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख सहित अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के मामले में केंद्र 100% लागत वहन करता है।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना - शहरी (PMAY-U): 
    • शुभारंभ: 25 जून 2015 को प्रारंभ की गई इस योजना का उद्देश्य वर्ष 2022 तक शहरी क्षेत्रों में सभी के लिये आवास उपलब्ध कराना है। 
    • कार्यान्वयनकर्त्ता: आवास एवं शहरी मामलों का मंत्रालय 
    • स्थिति: कुल 118.64 लाख मकान स्वीकृत किये गए हैं तथा 88.02 लाख से अधिक मकान बनकर तैयार हो चुके हैं/लाभार्थियों को वितरित किये जा चुके हैं।
    • विशेषताएँ: 
      • पात्र शहरी गरीबों के लिये पक्का मकान सुनिश्चित करके झुग्गीवासियों सहित शहरी गरीबों के बीच शहरी आवास की कमी को दूर करना।
      • मिशन में संपूर्ण शहरी क्षेत्र शामिल है, जिसमें सांविधिक शहर, अधिसूचित योजना क्षेत्र, विकास प्राधिकरण, विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण, औद्योगिक विकास प्राधिकरण या राज्य विधान के तहत शहरी नियोजन और विनियमन के कार्य सौंपे गए प्राधिकरण शामिल हैं। 
      • मिशन महिला सदस्यों के नाम पर या संयुक्त नाम पर मकान का स्वामित्व प्रदान करके महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देता है। 
  • योजना चार खंडों में क्रियान्वित की गई: 
    • निजी भागीदारी के माध्यम से संसाधन के रूप में भूमि का उपयोग करके मौजूदा झुग्गी निवासियों का यथास्थान पुनर्वास।
    • डेब्ट लिंक्ड सब्सिडी: आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS), निम्न आय समूह (LIG) और मध्यम आय समूह (MIG-I और MIG-II) के लोग घर खरीदने या बनाने के लिये क्रमशः 6 लाख रुपए, 9 लाख रुपए और 12 लाख रुपए तक के आवास ऋण पर 6.5%, 4% और 3% की ब्याज सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं।
    • लाभार्थी-नेतृत्व वाली व्यक्तिगत आवास निर्माण/संवर्द्धन: EWS श्रेणियों के पात्र परिवारों को व्यक्तिगत घरों के निर्माण या सुधार के लिये प्रति EWS आवास 1.5 लाख रुपए तक की केंद्रीय सहायता दी जाती है।

PMAY-U2.0 के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ क्या हैं?

  • किफायती आवास तक पहुँच: PMAY-U2.0 से शहरी गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के लिये किफायती आवास तक पहुँच में उल्लेखनीय वृद्धि होने और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार होने की उम्मीद है।
  • आर्थिक बढ़ावा: यह कार्यक्रम घर के स्वामित्व को प्रोत्साहित करके आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है, जिससे अधिक निर्माण परियोजनाएँ शुरू होंगी तथा आवास उद्योग में रोज़गार का सृजन होगा।
  • सामाजिक समावेशन: यह पहल हाशिये पर पड़े समुदायों को आवास समाधान प्रदान करके सामाजिक समानता को बढ़ावा देती है, इस प्रकार समावेशी शहरी विकास में योगदान देती है।
  • शहरी बुनियादी ढाँचे पर प्रभाव: बेहतर आवास से बेहतर शहरी बुनियादी ढाँचे का निर्माण हो सकता है, क्योंकि अधिक परिवारों को बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच प्राप्त होगी, जिससे समग्र शहरी नियोजन प्रयासों में योगदान मिलेगा।

PMAY-U 2.0 के कार्यान्वयन की संभावित वृद्धि में कौन-सी रणनीतियाँ हैं?

  • निगरानी तंत्र को मज़बूत करना: आवास संबंधी परियोजनाओं की प्रगति पर नज़र रखने और सब्सिडी का समय पर वितरण सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत निगरानी प्रणाली स्थापित करना।
  • जन जागरूकता अभियान: योजना के लाभों और आवेदन प्रक्रियाओं के बारे में संभावित लाभार्थियों को शिक्षित करने के लिये जागरूकता कार्यक्रम शुरू करना, जिससे व्यापक भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
  • वित्तीय संस्थानों के लिये क्षमता निर्माण: बैंकों और आवास संबंधी वित्त कंपनियों के कर्मचारियों को PMAY-U 2.0 की बारीकियों पर प्रशिक्षण प्रदान करना, जिससे ये आवेदकों की प्रभावी रूप से सहायता कर सकें।
  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: एक एकीकृत वेब पोर्टल के माध्यम से प्रौद्योगिकी का उपयोग करना, जो आवेदन प्रक्रियाओं को सरल बनाता है, स्थिति अद्यतन को ट्रैक करता है, और हितधारकों के बीच संचार की सुविधा प्रदान करता है।
  • राज्य सरकारों के साथ सहयोग: आवास संबंधी लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने की दिशा में प्रयासों को संरेखित करने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: प्रधानमंत्री आवास योजना - शहरी 2.0 भारत में सतत् शहरी विकास प्राप्त करने में किस प्रकार योगदान देती है। चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. दीपक पारिख समिति अन्य चीज़ों के साथ-साथ निम्नलिखित में से किस एक उद्देश्य के लिये गठित की गई थी? (2009)

(a) कुछ अल्पसंख्यक समुदायों की वर्तमान सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का अध्ययन के लिये
(b) बुनियादी ढाँचे के विकास के वित्तपोषण के लिये उपाय सुझाने के लिये
(c) आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों के उत्पादन पर नीति तैयार करने के लिये
(d) केंद्रीय बजट में राजकोषीय घाटे को कम करने के उपाय सुझाने के लिये

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से गैर-वित्तीय ऋण में  क्या शामिल है? (2020)

  1. परिवारों का बकाया गृह ऋण
  2. क्रेडिट कार्ड पर बकाया राशि
  3. राजकोषीय बिल (ट्रेजरी बिल)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मुख्य परीक्षा:

Q. भारत में शहरी जीवन की गुणवत्ता की संक्षिप्त पृष्ठभूमि के साथ 'स्मार्ट सिटी कार्यक्रम' के उद्देश्यों और रणनीति को पेश कीजिये। (2016)

Q. भारत में शहरीकरण की तीव्र प्रक्रिया से उत्पन्न विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर चर्चा कीजिये। (2013)


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