सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जनगणना तथा सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना के बीच तुलना एवं उनसे संबंधित चिंताओं के बारे में चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

सामाजिक आबादी के बारे में लोगों को जानकारी देना, उसका वर्णन करना और समझाना एवं यह पता लगाना कि लोगों की पहुँच का स्तर क्या है, यह न केवल सामाजिक विज्ञानियों के लिये बल्कि नीति निर्माताओं और सरकार के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। इस संबंध में भारत की जनगणना इस तरह के सबसे बड़े आयोजनों में से एक है जिसके माध्यम से भारतीय आबादी से संबंधित जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक जानकारी एकत्र की जाती है। हालाँकि जनगणना के आलोचक इसे डेटा संग्रह का एक प्रयास और शासन की तकनीक के रूप में मानते हैं, लेकिन एक जटिल समाज की विस्तृत और व्यापक समझ के लिये यह पर्याप्त रूप से उपयोगी नहीं है। इस संदर्भ में वर्ष 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (Socio-Economic and Caste Census- SECC) आयोजित की गई थी, लेकिन इसके अपने अन्य मुद्दे हैं।

जनगणना, SECC और दोनों में अंतर:

जनगणना:

  • भारत में जनगणना की शुरुआत औपनिवेशिक शासन के दौरान वर्ष 1881 में हुई।
  • जनगणना का आयोजन सरकार, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और अन्य लोगों द्वारा भारतीय जनसंख्या से संबंधित आँकड़े  प्राप्त करने, संसाधनों तक पहुँचने, सामाजिक परिवर्तन, परिसीमन से संबंधित आँकड़े आदि का उपयोग करने के लिये किया जाता है।
  • 1940 के दशक की शुरुआत में वर्ष 1941 की जनगणना के लिये भारत के जनगणना आयुक्त ‘डब्ल्यू. डब्ल्यू. एम यीट्स’ ने कहा था कि जनगणना एक बड़ी, बेहद मज़बूत अवधारणा है लेकिन विशेष जाँच के लिये यह एक अप्रशिक्षित साधन है।"

सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना:

  • वर्ष 1931 के बाद इसे पहली बार आयोजित किया गया था।
  • SECC का आशय ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक भारतीय परिवार से उनके बारे में निम्न स्थितियों के बारे में पता करना है-
    • आर्थिक स्थिति पता करना ताकि केंद्र और राज्य के अधिकारियों को वंचित वर्गों के क्रमचयी और संचयी संकेतकों की एक शृंखला प्राप्त हो सके, जिसका उपयोग प्रत्येक प्राधिकरण द्वारा एक गरीब या वंचित व्यक्ति को परिभाषित करने के लिये किया जा सकता है।
    • इसका अर्थ प्रत्येक व्यक्ति से उसका विशिष्ट जातिगत नाम पूछना है, जिससे सरकार को यह पुनर्मूल्यांकन करने में आसानी हो कि कौन से जाति समूह आर्थिक रूप से सबसे खराब स्थिति में थे और कौन बेहतर थे।
  • SECC में व्यापक स्तर पर ‘असमानताओं के मानचित्रण’ की क्षमता है।

जनगणना और SECC के बीच अंतर:

  • जनगणना भारतीय आबादी का एक समग्र चित्र प्रस्तुत करती है, जबकि SECC राज्य द्वारा सहायता के योग्य लाभार्थियों की पहचान करने का एक उपाय है।
  • वर्ष 1948 के जनगणना अधिनियम के तहत सभी आँकड़ों को गोपनीय माना जाता है, जबकि SECC की वेबसाइट के अनुसार, “SECC में दी गई सभी व्यक्तिगत जानकारी का उपयोग कर सरकारी विभाग परिवारों को लाभ पहुँचाने और/या प्रतिबंधित करने के लिये स्वतंत्र हैं।

SECC से जुड़ी विभिन्न चिंताएँ:

  • जातिगत जनगणना का प्रभाव: जातिगत  जनगणना में एक भावनात्मक तत्त्व निहित होता है जिसके राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव होते हैं।
    • इस बात पर चिंता जताई गई है कि जातिगत गणना किसी जाति की पहचान को मज़बूत बनाने में मदद कर सकती है।
    • इन शंकाओं के कारण SECC के जारी होने के लगभग एक दशक बाद इसके आँकड़ों की बड़ी मात्रा जारी नहीं की गई या कई भागों में जारी की गई।
  • जाति की परिस्थितिजन्य विशेषता: भारत में जाति कभी भी वर्ग या अभाव के संदर्भ में एक प्रतिनिधि के रूप में नहीं रही है, यह एक विशिष्ट प्रकार के अंतःस्थापित भेदभाव को बढ़ावा देती है जो प्रायः वर्ग स्थानांतरण को प्रोत्साहित करता है। 

आगे की राह:

  • मौजूदा आँकड़ों का उपयोग: हालाँकि SECC की अपनी बड़ी चिंताएँ हैं, परंतु जनगणना में एकत्रित डेटा को अन्य बड़े डेटासेटों से जोड़ा जा सकता है जिससे राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण सरकारों को SECC के इच्छित लाभों से संबंधित जानकारी देने में सहायता कर सकता है। 
  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण उन मुद्दों को कवर करता है जो जनगणना में शामिल नहीं होते हैं- जैसे कि- मातृ स्वास्थ्य, भूमि और संपत्ति के स्वामित्व की जानकारी, उपभोग व्यय, रोज़गार की प्रकृति जो कि अधिक व्यापक विश्लेषण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • डिजिटल विकल्प: अतनु बिस्वास जैसे सांख्यिकीविद् बताते हैं कि दुनिया भर में जनगणना अभियान महत्त्वपूर्ण बदलावों से गुज़र रहे हैं, जो सटीक, तेज़ और लागत प्रभावी डिजिटल तरीकों को नियोजित करने का प्रयास करते हैं।
    • हालाँकि डिजिटल विकल्प और जनगणना कार्यों से जुड़े आँकड़ों को विभिन्न स्रोतों के साथ जोड़ना समावेशी और गैर-भेदभावपूर्ण है, परंतु डेटा की संवेदनशील प्रकृति को ध्यान में रखा जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

हालाँकि जनगणना अधिकारी पारदर्शिता की नीति के एक भाग के रूप में कार्यप्रणाली पर दस्तावेज़ प्रस्तुत करते हैं, फिर भी जनगणना और SECC के कार्यकर्त्ताओं के साथ-साथ जनगणना और SECC के अधिकारियों के बीच घनिष्ठ और निरंतर जुड़ाव की आवश्यकता है, क्योंकि जनगणना और SECC शासन के साथ-साथ शैक्षणिक हित से संबंधित प्रक्रियाएँ हैं। 

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) जनगणना संबंधी आँकड़े प्राप्त करने के लिये जनगणना से बेहतर उपाय है। हालाँकि इसकी अपनी अलग चिंताएँ हैं। चर्चा करें।