भारतीय अर्थव्यवस्था
अमेरिकी फेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दर में कटौती और इसके निहितार्थ
- 21 Sep 2024
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प्रिलिम्स के लिये:मुद्रास्फीति, रूस-यूक्रेन संघर्ष, बेरोज़गारी, मंदी, कैरी ट्रेड्स, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, भारतीय रिज़र्व बैंक, मुद्रास्फीति लक्ष्य, फिलिप्स वक्र मेन्स के लिये:भारत जैसे उभरते बाज़ारों पर अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की नीतियों का प्रभाव, मुद्रास्फीति बनाम रोज़गार, वैश्विक आर्थिक रुझानों पर भारत की मौद्रिक नीति प्रतिक्रिया |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूनाइटेड स्टेट्स (US) फेडरल रिज़र्व ने अपनी बेंचमार्क ब्याज दरों में 50 आधार अंकों की कटौती की है जो कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से पहली प्रमुख कटौती है। यह कदम आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए मुद्रास्फीति से निपटने के लिये एक रणनीतिक दृष्टिकोण का संकेत है।
- नोट: अमेरिकी फेडरल रिज़र्व अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अधिकतम रोज़गार, स्थिर कीमतों और मध्यम दीर्घकालिक ब्याज दरों को बढ़ावा देने के लिये देश की मौद्रिक नीति का प्रबंधन करता है।
अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने ब्याज दरों में कटौती क्यों की?
- महामारी के बाद आर्थिक सुधार: कोविड-19 महामारी के बाद फेडरल रिज़र्व ने अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिये ब्याज दरों में कटौती की। हालाँकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों (रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण) सहित विभिन्न कारकों के कारण मुद्रास्फीति बढ़ने पर फेडरल रिज़र्व ने बढ़ती कीमतों की प्रतिक्रया में दरें बढ़ा दीं।
- मुद्रास्फीति में कमी: वर्ष 2023 के मध्य तक मुद्रास्फीति स्थिर (फेडरल रिज़र्व के 2% के लक्ष्य की ओर अग्रसर) होने लगी।
- हाल के रोज़गार आँकड़ों से पता चला है कि उच्च ब्याज दरें रोज़गार पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं, अगस्त 2024 में अमेरिका में बेरोज़गारी दर 4.2% तक बढ़ गई। इससे संभावित मंदी के बारे में चिंताएँ बढ़ गईं जिससे फेडरल रिज़र्व को मूल्य स्थिरता के साथ-साथ रोज़गार सृजन को प्राथमिकता देने की प्रेरणा मिली।
- दोहरा अधिदेश: फेडरल रिज़र्व स्थिर कीमतें बनाए रखने और अधिकतम रोज़गार प्राप्त करने के दोहरे अधिदेश के तहत कार्य करता है। जैसे-जैसे आर्थिक परिदृश्य विकसित हुआ, यह स्पष्ट हो गया कि ब्याज दरों में कटौती से इन उद्देश्यों को संतुलित करने में मदद मिलेगी।
- अमेरिका के लिये निहितार्थ:
- दरों में कटौती करके अमेरिका मुद्रास्फीति के दबाव को संतुलित किया जा सकता है। हालाँकि मुद्रास्फीति में कमी आई है लेकिन केंद्रीय बैंक अपनी लक्षित दर को 2% के आसपास बनाए रखने पर केंद्रित है ताकि अर्थव्यवस्था के लिये "सॉफ्ट लैंडिंग" की कोशिश की जा सके।
- कम ब्याज दरें आमतौर पर व्यक्तियों और व्यवसायों दोनों के लिये ऋण को सस्ता बनाती हैं। बेरोज़गारी बढ़ने के आलोक में फेड, मूल्य स्थिरता के साथ-साथ रोज़गार सृजन को प्राथमिकता दे रहा है।
- ब्याज दरों में कटौती से व्यवसायों की उधारी लागत कम करने में मदद मिल सकती है, जिससे संभावित रूप से आर्थिक संवृद्धि हो सकती है।
मुद्रास्फीति और बेरोज़गारी किस प्रकार संबंधित हैं?
- व्युत्क्रम सहसंबंध: सामान्यतः मुद्रास्फीति और बेरोज़गारी विपरीत रूप से संबंधित हैं- एक के बढ़ने पर दूसरे में कमी आती है।
- कम बेरोज़गारी की अवधि के दौरान मजदूरी में वृद्धि होती है क्योंकि नियोक्ता श्रमिकों को आकर्षित करने के लिये उच्च मजदूरी देते हैं, जिससे अंततः कीमतें बढ़ जाती हैं।
- इसके विपरीत उच्च बेरोज़गारी के समय में मजदूरी में वृद्धि नहीं होती है जिससे मुद्रास्फीति में कमी आती है।
- कम बेरोज़गारी की अवधि के दौरान मजदूरी में वृद्धि होती है क्योंकि नियोक्ता श्रमिकों को आकर्षित करने के लिये उच्च मजदूरी देते हैं, जिससे अंततः कीमतें बढ़ जाती हैं।
- फिलिप्स वक्र: फिलिप्स वक्र (सर्वप्रथम 1950 के दशक में ए.डब्लू. फिलिप्स द्वारा सुझाया गया था) किसी अर्थव्यवस्था की बेरोज़गारी दर और मुद्रास्फीति दर के बीच विपरीत संबंध को दर्शाता है।
- फिलिप्स वक्र से पता चलता है कि कम बेरोज़गारी अवधि के दौरान श्रम की उच्च मांग से मजदूरी में वृद्धि होने से मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।
- इस मॉडल का व्यापक रूप से मौद्रिक नीति में उपयोग किया जाता है (विशेष रूप से मुद्रास्फीति और रोज़गार के स्तर को संतुलित करने में)।
- फिलिप्स वक्र से पता चलता है कि कम बेरोज़गारी अवधि के दौरान श्रम की उच्च मांग से मजदूरी में वृद्धि होने से मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।
फेडरल रिज़र्व की ब्याज दर में कटौती से भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
- उभरते बाज़ारों पर प्रभाव: वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अमेरिका में न्यून ब्याज दर के कारण कैरी ट्रेड के माध्यम से भारत जैसे देशों में निवेश करना अधिक आकर्षक हो गया है।
- कैरी ट्रेड एक ऐसी रणनीति है जिसमें निवेशक (विदेशी संस्थागत निवेशक) अमेरिका (जहाँ ब्याज दरें कम हैं) से पैसा ऋण के रूप में लेते हैं और उसे वहाँ निवेश करते हैं जहाँ दरें अधिक होती हैं, जिससे अंतर पर लाभ मिलता है।
- सीमित प्रभाव: भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि ब्याज दरों में कटौती से पूंजी की डॉलर लागत कम हो सकती है और तरलता में वृद्धि हो सकती है, लेकिन इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये एकमात्र समाधान के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
- विदेशी निवेश में वृद्धि: अमेरिका में कम ब्याज दरें वैश्विक निवेशकों को अमेरिका में ऋण लेने और भारत में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं। यह प्रवाह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) या अमेरिका से ऋण के रूप में हो सकता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अति आवश्यक पूंजी प्रदान करेगा।
- शेयर बाज़ार की धारणा: ब्याज दरों में कटौती ने भारतीय शेयर बाज़ार में निवेशकों के ध्यान को आकर्षित किया है, जो वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद निवेशकों के बीच सकारात्मक अवधारणा को दर्शाता है।
- कच्चे तेल की कीमतें: जब अमेरिकी डॉलर कमज़ोर होता है, तो अन्य मुद्राओं के धारकों के लिये तेल सस्ता हो जाता है, जिससे मांग में वृद्धि होने के साथ ही कीमतों में भी वृद्धि देखने को मिल सकती है।
- तेल की बढ़ी हुई कीमतों से भारत की ऊर्जा आयात लागत बढ़ सकती है और संभवतः भारत में मुद्रास्फीति में पुनः वृद्धि देखी जा सकती है।
- मुद्रा विनिमय दरों पर प्रभाव : भारतीय रुपए समेत अन्य मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर के कमज़ोर होने से भारतीय निर्यातकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जबकि आयातकों को लाभ हो सकता है।
- RBI की प्रतिक्रिया: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) पर ब्याज दरों में कटौती करने का दबाव है, हालाँकि यह फेडरल रिज़र्व की तुलना में अलग मुद्रास्फीति लक्ष्यों और आर्थिक अधिदेशों के तहत कार्य करता है।
- RBI का ध्यान सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि पर अधिक है और वह अमेरिकी बेरोज़गारी आँकड़ों से उतना प्रभावित नहीं होता है।
संघीय टेपरिंग
- फेडरल टेपरिंग से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा फेडरल रिज़र्व धीरे-धीरे अपनी वृहद् स्तरीय परिसंपत्ति क्रय को कम करता है, यह एक मौद्रिक नीति उपकरण है जिसका उपयोग प्रायः आर्थिक संकटों के दौरान किया जाता है।
- इस रणनीति, जो आमतौर पर मात्रात्मक सहजता (QE) से संबंधित है, का उद्देश्य ब्याज दरों को कम करके और वित्तीय बाज़ारों में तरलता बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना है।
- टेपरिंग का उद्देश्य संकट के दौरान प्रदान किये गए कुछ आर्थिक प्रोत्साहन को वापस लेना है, तथा अधिक सामान्यीकृत मौद्रिक नीति की ओर संक्रमण करना है।
भारत की रेपो दर
- RBI ने 50 वीं मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में नीतिगत रेपो दर को 6.50% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है।
- यह निर्णय आर्थिक विकास को समर्थन देते हुए मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने के प्रति समिति के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- MPC का प्राथमिक उद्देश्य मुद्रास्फीति को +/- 2% अंकों की सहनशीलता सीमा के साथ 4.0% की लक्ष्य दर के अनुरूप लाना है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की ब्याज दर में कटौती के भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय सरकारी बॉन्ड प्रतिफल निम्नलिखित में से किससे/किनसे प्रभावित होता है? (2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |