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भारतीय अर्थव्यवस्था

MPC ने रेपो रेट को अपरिवर्तित रखा

  • 12 Apr 2024
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंकिंग क्षेत्र और NBFC, संप्रभु/सॉवरेन हरित बॉण्ड, मौद्रिक नीति समिति, राजकोषीय नीति, रेपो रेट, मुद्रास्फीति

मेन्स के लिये:

राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति में ब्याज दर का महत्त्व

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने अपनी बैठक में ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखने के लिये मतदान किया, जबकि रेपो रेट 6.5% पर है।

समिति ने ऋण की वापसी (withdrawal of accommodation) पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया।

नोट:

  • ऋण मौद्रिक नीति: एक ऋण रुख (stance) का अर्थ है कि केंद्रीय बैंक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये धन आपूर्ति का विस्तार करने के लिये तैयार है
  • ऋण नीति की वापसी का अर्थ है प्रणाली में धन की आपूर्ति में कमी, जिससे मुद्रास्फीति पर नियंत्रण किया जा सकेगा।

MPC बैठक के परिणाम क्या हैं?

  • RBI ने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा अनुमानित 7.6% वृद्धि के मुकाबले वित्तीय वर्ष 2025 के लिये GDP वृद्धि का अनुमान 7% पर बरकरार रखा है।
    • इसने वित्तीय वर्ष 25 की पहली तिमाही में 7.1%, Q2 में 6.9 प्रतिशत और Q3 और Q4 में 7% की वृद्धि का अनुमान लगाया है।
  • MPC ने तरलता समायोजन सुविधा (LAF) के तहत नीति आधारित रेपो रेट को 6.50% और स्थायी जमा सुविधा (SDF) को 6.25% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया।
  • MPC विकास के उद्देश्य का समर्थन करते हुए मुद्रास्फीति को +/- 2% के बैंड के भीतर 4% लक्ष्य के साथ संरेखित करने के लिये प्रतिबद्ध है।

ब्याज दरें अपरिवर्तित रखने के क्या कारण हैं?

  • खाद्य मुद्रास्फीति:
    • उच्च खाद्य मुद्रास्फीति हेडलाइन मुद्रास्फीति को उच्च रखती है, भले ही भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति में व्यापक आधार पर कमी देखी गई है।
    • वैश्विक अनिश्चितताओं और अल-नीनो के प्रभाव के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में अनिश्चितताएँ, चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
    • अगले वर्ष सामान्य मानसून के अनुमान के साथ-साथ रबी की फसल के बाज़ार में आने से भी खाद्य कीमतों पर दबाव कम होगा।
    • हालाँकि सब्ज़ियों, दालों और मसालों की कीमतों के दबाव के कारण खाद्य एवं पेय पदार्थों की मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है।
  • त्योहार का मौसम:
    • त्योहार के मौसम में बढ़ी हुई मांग और त्योहार के दिनों में खपत बढ़ने के कारण बाज़ार में तरलता को बढ़ावा मिलेगा।
  • कच्चे तेल की कीमतें और इनपुट लागत:
    • कच्चे तेल की कीमतें कम हो गई हैं, लेकिन क्षेत्रीय संघर्ष और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के कारण वैश्विक अनिश्चितता के कारण परिदृश्य अनिश्चित बना हुआ है।
  • लचीली आर्थिक गतिविधि:
    • भारतीय अर्थव्यवस्था ने विभिन्न कारकों से उत्पन्न अनिश्चितताओं और चुनौतियों के बावजूद लचीलापन प्रदर्शित किया है।
    • इसके चलते बेंचमार्क दरों को बनाए रखने का निर्णय लिया गया, जो संभावित आघातों को झेलने की अर्थव्यवस्था की क्षमता में विश्वास को दर्शाता है।
  • पिछली नीति रेपो दर में वृद्धि:
    • मौद्रिक नीति समिति ने स्वीकार किया कि पिछली नीतिगत रेपो दर वृद्धि अभी भी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की प्रक्रिया में है।
  • मुद्रास्फीति जोखिम प्रबंधन:
    • दरों को अपरिवर्तित रखना स्थिति पर बारीकी से नज़र रखने और मुद्रास्फीति दबाव बढ़ने की स्थिति में तुरंत कार्रवाई करने हेतु तैयार रहने के लिये एक आवश्यक उपाय हो सकता है।

मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण क्या है?

  • परिचय:
    • इसके तहत भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रास्फीति दर के लिये एक लक्ष्य निर्धारित करता है और इसे प्राप्त करने के लिये मौद्रिक नीति उपकरणों का उपयोग करता है।
    • भारत में मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण एक मौद्रिक नीति ढाँचा है जिसे वर्ष 2016 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा अपनाया गया था।
    • वर्तमान में RBI का प्राथमिक उद्देश्य 4% मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करना है। RBI के पास +/- 2% का एक सुविधा क्षेत्र है जिसके भीतर मुद्रास्फीति बनी रहनी चाहिये। इसका अर्थ है कि RBI का लक्ष्य मुद्रास्फीति दर को 2% से 6% के बीच रखना है।
  • सीमाएँ:
    • अवसंरचनात्मक बाधाएँ: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण, आपूर्ति-पक्ष या संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने में प्रभावी नहीं हो सकता है जिससे अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है जैसे कि अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, जिससे उच्च मुद्रास्फीति हो सकती है।
    • विनिमय दर में उतार-चढ़ाव: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण से विनिमय दर में उतार-चढ़ाव हो सकता है (विशेष रूप से खुली अर्थव्यवस्था वाले देशों में), क्योंकि ब्याज दरों में परिवर्तन से पूंजी प्रवाह और विनिमय दरें प्रभावित हो सकती हैं।
    • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं (विशेष रूप से समाज के कमज़ोर लोगों पर), क्योंकि ब्याज दरों में परिवर्तन से रोज़गार, आय और अन्य आर्थिक पहलू प्रभावित हो सकते हैं।
    • सटीक आँकड़ो की उपलब्धता: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण हेतु मुद्रास्फीति और अन्य व्यापक आर्थिक पहलुओं से संबंधित सटीक आँकड़ो की आवश्यकता होती है। जो भारत सहित सभी देशों में उपलब्ध नहीं हो सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. रेपो दर को अपरिवर्तित रखने के कारणों एवं मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण में मौद्रिक नीति समिति की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2015) 

  1. बैंक दर 
  2. खुला बाज़ार परिचालन
  3. सार्वजनिक ऋण 
  4. सार्वजनिक राजस्व

उपर्युक्त में से कौन-सा/से मौद्रिक नीति का/के घटक है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 2
(d) केवल 1, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. यदि आर.बी.आई. प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता अनुपात को घटाकर उसे अनुकूलित करना
  2. सीमांत स्थायी सुविधा दर को बढ़ाना
  3. बैंक दर को घटाना और रेपो दर को भी घटाना

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. क्या आप सहमत हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने हाल ही में V-आकार के पुरुत्थान का अनुभव किया है? कारण सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। (2021)

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