GDP की गणना और आधार वर्ष

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में GDP की गणना और आधार वर्ष पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) देश में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की गणना के लिये आधार वर्ष को 2011-12 से बदलकर 2017-18 करने पर विचार कर रहा है। मुख्य सांख्यिकीविद् के अनुसार, इस कार्य को उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (CES) और उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) के बाद जल्द-से-जल्द किया जाएगा। गौरतलब है कि GDP का उपयोग मुख्यतः किसी देश के विकास को मापने के लिये एक पैमाने के रूप में किया जाता है। देश की वृद्धि दर की गणना करते समय अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति जानने के लिये आधार वर्ष का प्रयोग किया जाता है। विदित हो वर्तमान में भारत 2011-12 को आधार वर्ष के रूप में प्रयोग कर रहा है।

क्या होता है आधार वर्ष?

  • आधार वर्ष एक प्रकार का बेंचमार्क होता है जिसके संदर्भ में राष्ट्रीय आँकड़े जैसे- सकल घरेलू उत्पाद (GDP), सकल घरेलू बचत और सकल पूंजी निर्माण आदि की गणना की जाती है।
  • सकल घरेलू उत्पाद या GDP का आशय किसी देश में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य से होता है। विदित है कि GDP मुख्यतः 2 प्रकार की होती है: (1) नॉमिनल GDP और (2) वास्तविक GDP।
    • नॉमिनल GDP: यह चालू कीमतों (वर्तमान वर्ष की प्रचलित कीमत) में व्यक्त सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को मापता है।
    • वास्तविक GDP: नॉमिनल GDP के विपरीत यह किसी आधार वर्ष की कीमतों पर व्यक्त की गई सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को बताता है।
  • आधार वर्ष की कीमतें स्थिर मानी जाती हैं, जबकि चालू वर्ष की कीमतों में परिवर्तन संभव होता है।
  • सामान्यतः आधार वर्ष एक प्रतिनिधि वर्ष होता है और उसके चुनाव के समय ध्यान रखा जाता है कि उस वर्ष में कोई बड़ी आर्थिक व प्राकृतिक घटना, जैसे- बाढ़, सूखा या भूकंप आदि न घटित हुई हो।
  • आधार वर्ष का चुनाव करते समय यह भी ध्यान रखा जाता है वह चालू वर्ष के निकट ही हो, ताकि अर्थव्यवस्था की सही स्थिति का आकलन किया जा सके। गौरतलब है कि इस आवश्यकता का ध्यान रखते हुए देश में प्रत्येक 7 से 10 वर्षों में आधार वर्ष को बदला जाता है।
  • सामान्यतः आधार वर्ष में परिवर्तन से देश के GDP के आकार में भी सीमांत वृद्धि होती है।

आधार वर्ष के प्रयोग का इतिहास

  • भारत में राष्ट्रीय आय का पहला अनुमान केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) द्वारा वर्ष 1956 में प्रकाशित किया गया था, उल्लेखनीय है कि इसमें 1948-49 को आधार वर्ष के रूप प्रयोग किया गया था।
  • आँकड़ों की उपलब्धता की स्थिति में सुधार के साथ-साथ गणना की कार्यप्रणाली में बदलाव किये गए। इस समय तक CSO अर्थव्यवस्था में कार्यबल का अनुमान लगाने के लिये राष्ट्रीय जनगणना में जनसंख्या के आँकड़ों पर निर्भर रहता था, इसी के कारण आधार वर्ष भी उन वर्षों से मेल खाता था जिनमें जनगणना आँकड़े जारी होते थे, जैसे-1970-71, 1980-81 आदि।
  • इसके पश्चात् CSO ने पाया कि कार्यबल के आकार पर जनगणना आँकड़ों की अपेक्षा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के आँकड़े अधिक सटीक हैं और NSS के आँकड़ों के आधार पर आकलन किया जाने लगा।
  • ज्ञातव्य है कि इस प्रणाली को वर्ष 1999 में शुरू किया गया था जब आधार वर्ष को 1980-81 से संशोधित कर 1993-94 कर दिया गया था।

आधार वर्ष में परिवर्तन की आवश्यकता

  • प्रत्येक अर्थव्यवस्था में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं और इन परिवर्तनों का देश के वृद्धि एवं विकास पर काफी प्रभाव पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार, अर्थव्यवस्था के भीतर होने वाले इन्हीं संरचनात्मक परिवर्तनों (जैसे- GDP में सेवाओं की बढ़ती हिस्सेदारी) को प्रतिबिंबित करने के लिये आकलन के आधार वर्ष को समय-समय पर संशोधित करने की आवश्यकता होती है।
  • इसके अलावा GDP की गणना के लिये आधार वर्ष में बदलाव का एक अन्य उद्देश्य वर्तमान परिस्थिति के अनुकूल सटीक आर्थिक आँकड़े एकत्रित करना भी होता है। क्योंकि सटीक आँकड़ों के अभाव में अर्थव्यवस्था के अंतर्गत कल्याणकारी योजनाओं का निर्माण संभव नहीं हो पाता है।
  • वर्ष 2011-12 पर आधारित GDP वर्तमान आर्थिक स्थिति को सही ढंग से प्रदर्शित नहीं करती है वहीं नए आधार वर्ष की शृंखला के संबंध में जानकारों का मानना है कि यह संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रीय खाते के दिशा-निर्देशों-2018 (United Nations Guidelines in System of National Accounts-2018) के अनुरूप होगी।
  • गौरतलब है कि दुनिया के विभिन्न देश आधार वर्ष को संशोधित करने हेतु अलग-अलग मानकों का प्रयोग करते हैं।

आधार वर्ष का विवाद

  • ध्यातव्य है कि आखिरी बार वर्ष 2015 में आधार वर्ष में संशोधन किया गया था जिसके बाद विगत चार वर्षों में आकलन की पद्धति और डेटा के कारण वर्तमान GDP संबंधी आँकड़े विवादास्पद बने हुए हैं।
  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही की GDP वृद्धि दर 5 प्रतिशत पर पहुँच गई है, जबकि इस विषय पर कुछ स्वतंत्र शोधकर्त्ताओं का अनुमान है कि बीते कुछ वर्षों में देश की GDP 0.36 प्रतिशत से 2.5 प्रतिशत अधिक अनुमानित की गई है।
  • इसी प्रकार अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की मुख्य अर्थशास्त्री, गीता गोपीनाथ के अकादमिक शोध पत्र ने देश की विकास दर पर विमुद्रीकरण के प्रतिकूल प्रभाव को दर्शाया था। फिर भी वर्ष 2016-17 में देश की आधिकारिक GDP में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो एक दशक में सबसे अधिक है।
  • कई अर्थशास्त्रियों के अनुसार, यह समस्या आकलन की पद्धति और निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र के योगदान का अनुमान लगाने में प्रयोग होने वाले आँकड़े में निहित है।
  • गौरतलब है कि CSO अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के योगदान का अनुमान लगाने के लिये कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के आँकड़ों पर निर्भर रहता है और कई अर्थशास्त्रियों ने मंत्रालय के आँकड़ों को अविश्वसनीय कहा है। इसलिये यह संभव है कि निजी क्षेत्र के उत्पादन को वास्तविकता से अधिक मापा गया हो।
    • निजी क्षेत्र देश की GDP के लगभग एक-तिहाई हिस्से के लिये ज़िम्मेदार है।
  • बीते वर्ष राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा किये गए अध्ययन में सामने आया था कि कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की सक्रिय कंपनियों (Active Companies) की सूची में तकरीबन 42 प्रतिशत कंपनियों को ट्रैक नहीं किया जा सका।

निष्कर्ष

2017-18 को आधार वर्ष के रूप में मानने का प्रस्ताव स्वागत योग्य कदम है, हालाँकि वर्तमान GDP आकलन की कार्यप्रणाली और डेटा संबंधी विवादों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। आधार वर्ष में परिवर्तन के बाद भी संदेह तब तक बना रहेगा जब तक कि आकलन की कार्यप्रणाली में सुधार नहीं किया जाएगा और आँकड़ों की विश्वसनीयता सुनिश्चित नहीं की जाएगी। वर्तमान समस्याओं के मद्देनज़र GDP कार्यप्रणाली की समीक्षा करने के लिये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का एक स्वतंत्र आयोग स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया है।

प्रश्न: आधार वर्ष क्या है? इसमें संशोधन की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।