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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

15वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन

  • 25 Jan 2024
  • 23 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ब्रिक्स, ब्रिक्स में नए सदस्य, भारत-चीन, भारत-रूस

मेन्स के लिये:

ब्रिक्स में भारत की भूमिका, ब्रिक्स के विस्तार का प्रभाव, बहुपक्षीय संस्थानों का महत्त्व

संदर्भ क्या है?

जोहान्सबर्ग में 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में, एक उल्लेखनीय विस्तार हुआ क्योंकि ब्रिक्स समूह, जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे, ने छह अतिरिक्त देशों को निमंत्रण देकर इसका विस्तार किया।

  • नए आमंत्रित देशों में पश्चिम एशिया से ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE), अफ्रीका से मिस्र तथा इथियोपिया एवं लैटिन अमेरिका से अर्जेंटीना शामिल हैं। 

ब्रिक्स क्या है?

  • ब्रिक्स दुनिया की पाँच अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह के लिये एक संक्षिप्त शब्द (Abbreviation) है।
  • वर्ष 2001 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओ'नील ने ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन की चार उभरती अर्थव्यवस्थाओं का वर्णन करने के लिये BRIC शब्द गढ़ा।
  • वर्ष 2006 में BRIC विदेश मंत्रियों की पहली बैठक के दौरान इस समूह को औपचारिक रूप दिया गया था।
  • दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को BRIC में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया था, जिसके बाद इस समूह ने संक्षिप्त नाम BRICS अपनाया।
    • शिखर सम्मेलन के बाद जारी जोहान्सबर्ग घोषणा, 2023 में अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को 1 जनवरी, 2024 से पूर्ण सदस्य बनने के लिये आमंत्रित किया गया था।
  • ब्रिक्स विश्व के पाँच सबसे बड़े विकासशील देशों को एक साथ लाता है, जो वैश्विक आबादी का 41%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 24% तथा वैश्विक व्यापार का 16% प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • वर्ष 2009 से ही ब्रिक्स सदस्य देश वार्षिक शिखर बैठकें आयोजित कर रहे हैं।

15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के परिणाम क्या हैं?

  • बहुपक्षवाद और सुधार की पुनः पुष्टि:
    • ब्रिक्स नेताओं ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया जिसमें बहुपक्षवाद, अंतर्राष्ट्रीय विधि और सतत् विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संस्थानों को विकासशील देशों की आवश्यकताओं के प्रति अधिक प्रतिनिधिक एवं उत्तरदायी बनाने के लिये उनमें सुधार की आवश्यकता के प्रति भी अपना समर्थन व्यक्त किया।
  • सदस्यता और प्रभाव का विस्तार:
    • ब्रिक्स नेताओं ने ‘फ्रेंड्स ऑफ ब्रिक्स’ बैठक में भाग लेने के लिये अफ्रीका और वैश्विक दक्षिण (Global South) के 15 देशों को आमंत्रित कर समूह की सदस्यता के विस्तार का समर्थन किया।
  • विस्तार का पहला चरण:
    • छह देशों—अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को ब्रिक्स में शामिल होने का निमंत्रण प्राप्त हुआ। 
    • उल्लेखनीय है कि 40 से अधिक देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा प्रकट की है।
  • साझा मुद्रा:  
    • ब्रिक्स के नेताओं ने अपने देशों के भीतर व्यापार और निवेश के लिये साझा मुद्रा के संभावित विकास की जाँच करने का निर्णय लिया है।
    • उन्होंने अपने वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों को ऐसी मुद्रा की व्यवहार्यता एवं लाभों का अध्ययन करने का कार्य सौंपा है, जो अमेरिकी डॉलर तथा अन्य प्रमुख मुद्राओं पर उनकी निर्भरता को कम कर सके।
  • अंतरिक्ष सहयोग:
    • भारतीय प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स देशों के भीतर एक अंतरिक्ष अन्वेषण संघ के गठन का सुझाव दिया। यह प्रस्ताव इसलिये महत्त्व रखता है क्योंकि भारत हाल ही में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन गया है। शिखर सम्मेलन के दौरान दक्षिण अफ्रीका के चीन के नेतृत्व वाले अंतरिक्ष कार्यक्रम में शामिल होने के बावजूद, यह अंतरिक्ष के लिये ब्रिक्स कंसोर्टियम में उसकी भागीदारी में बाधा नहीं डालता है।
  • क्षेत्रीय और वैश्विक चिंताओं को संबोधित करना: 

कौन-से क्षेत्रीय विकास ब्रिक्स सदस्यता के विस्तार को प्रभावित कर रहे हैं?

  • स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण:
    • सऊदी अरब और UAE दोनों को विशेष रूप से वर्ष 2020 से सक्रिय रूप से स्वतंत्र विदेश नीति प्रक्षेप पथ को आगे बढ़ाने के लिये मान्यता दी गई है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे बाहरी प्रभावों से प्रभावित होने के बजाय अपनी संप्रभुता पर ज़ोर देने और अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेने के उनके प्रयासों को इंगित करता है।
  • कतर पर पाबंधियों की समाप्ति: 
    • जनवरी 2021 में कतर पर पाबंधियों की समाप्ति करने का सऊदी अरब का निर्णय भी इस संबंध में एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जाता है। इसके परिणामस्वरूप खाड़ी क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव आया, जहाँ इसने क्षेत्रीय विवादों को सुलझाने और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार लाने की इच्छा का संकेत दिया।
  • ईरान-UAE संबंध: 
  • ब्रिक्स और ईरान: 
    • ब्रिक्स में ईरान को शामिल करने से क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग और विशेष रूप से चाबहार बंदरगाह के माध्यम से कनेक्टिविटी परियोजनाओं के पुनरुद्धार के अवसर मिलते हैं, जिसमें भारत सक्रिय रूप से शामिल है। इस कदम से क्षेत्र में अधिक सहयोग और एकीकरण को बढ़ावा मिल सकता है।
  • ब्रिक्स के विस्तार के कारण:
    • वैश्विक प्रभाव के लिये चीन की रणनीतिक चाल
    • साझा उद्देश्य के लिये समान विचारधारा वाले देशों के बीच व्यापक संलग्नता
    • अन्य समूहों में सीमित विकल्प/अवसर
    • पश्चिम विरोधी भावना और वैश्विक दक्षिण की एकता

शामिल किये गए नए ब्रिक्स सदस्यों का भू-रणनीतिक महत्त्व:

  • ऊर्जा संसाधन:
    • सऊदी अरब और ईरान जैसे पश्चिम एशियाई देशों का नए सदस्यों के रूप में शामिल होना उनके पर्याप्त ऊर्जा संसाधनों के कारण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। सऊदी अरब एक प्रमुख तेल उत्पादक देश है और इसके तेल उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा चीन व भारत जैसे ब्रिक्स देशों को जाता है।
      • प्रतिबंधों का सामना करने के बावजूद ईरान ने अपने तेल उत्पादन और निर्यात में वृद्धि की है, जो मुख्य रूप से चीन की ओर निर्देशित है। यह ब्रिक्स सदस्यों के बीच ऊर्जा सहयोग और व्यापार के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
  • ऊर्जा आपूर्तिकर्त्ताओं का विविधीकरण:
    • रूस चीन और भारत के लिये तेल का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्त्ता रहा है। नए सदस्यों के शामिल होने के साथ रूस अपने ऊर्जा निर्यात के लिये अतिरिक्त बाज़ार की तलाश कर रहा है, जो ब्रिक्स के भीतर विविधिकृत ऊर्जा स्रोतों की क्षमता को दर्शाता है।
  • रणनीतिक भौगोलिक उपस्थिति:
    • मिस्र और इथियोपिया ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ तथा लाल सागर में रणनीतिक अवस्थिति रखते हैं, जो महत्त्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों के निकट होने के कारण अत्यधिक भू-रणनीतिक महत्त्व के क्षेत्र हैं। उनकी उपस्थिति इस क्षेत्र में ब्रिक्स के भू-राजनीतिक महत्त्व को बढ़ाती है।
  • लैटिन अमेरिकी आर्थिक प्रभाव:
    • लैटिन अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में अर्जेंटीना के प्रवेश से ब्रिक्स समूह के आर्थिक प्रभाव की वृद्धि हुई है। लैटिन अमेरिका ऐतिहासिक रूप से वैश्विक शक्तियों के लिये रुचि का क्षेत्र रहा है और अर्जेंटीना का समावेश दुनिया के इस हिस्से में ब्रिक्स की उपस्थिति को सुदृढ़ करता है।

ब्रिक्स के साथ भागीदारी में भारत की क्या बाधाएँ हैं?

  • बदलते वैश्विक गठबंधन: भू-राजनीतिक गतिशीलता के विकास और परिवर्तन के साथ ब्रिक्स के कुछ सदस्य समूह के बाहर के देशों या संगठनों के साथ भी घनिष्ठ संबंध की तलाश कर सकते हैं। यह वैश्विक मंच पर ब्रिक्स की एकजुटता और सामूहिक सौदेबाज़ी की शक्ति को प्रभावित कर सकता है।
  • बहुपक्षीय मंचों पर समन्वय: जबकि ब्रिक्स संयुक्त राष्ट्र (UN) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) सहित वैश्विक शासन संस्थानों में सुधार का लक्ष्य रखता है, सदस्य देश इन सुधारों के प्रति प्रायः अलग-अलग प्राथमिकताएँ तथा दृष्टिकोण रखते हैं।
  • चीन के उदय की चुनौतियों से निपटना: चीन के प्रभुत्व के कारण भारत को अपनी सुरक्षा और हितों के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियों तथा खतरों का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से सीमा विवाद, समुद्री सुरक्षा, व्यापार असंतुलन, प्रौद्योगिकी प्रतिस्पर्धा और मानवाधिकारों के संबंध में।
  • लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा: भारत को अपनी स्वायत्तता या संप्रभुता से समझौता किये बिना पश्चिमी मानक अपेक्षाओं से संबंधित चुनौतियों से निपटना होगा।
  • ब्रिक्स गतिशीलता को संतुलित करना: भारत को चीन और रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना होगा, जिन्हें पश्चिम द्वारा तेज़ी से रणनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के रूप में देखा जा रहा है।
  • द्विपक्षीय मतभेदों को प्रबंधित करना: भारत चीन और पाकिस्तान के साथ अनसुलझे सीमा विवाद तथा रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता की स्थिति रखता है, जो ब्रिक्स के साथ उसके संबंधों को प्रभावित करती है। भारत अफगानिस्तान, ईरान और हिंद-प्रशांत जैसे मुद्दों पर भी रूस से भिन्न विचार रखता है।
  • रूस की विश्वसनीयता का मूल्यांकन: यूक्रेन युद्ध में रूस की भागीदारी और चीन के साथ उसके गठबंधन ने भी भारत में अपने इस पारंपरिक साझेदार की विश्वसनीयता तथा साख को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
  • विविध सुरक्षा चिंताएँ: ब्रिक्स के सदस्य देशों में आतंकवाद और क्षेत्रीय संघर्षों से लेकर साइबर खतरों तक विविध सुरक्षा चिंताएँ हैं। इन चिंताओं को दूर करने और संयुक्त सुरक्षा पहलों के समन्वय के लिये सतर्क संवाद की आवश्यकता है।
  • व्यापार असंतुलन का समाधान: चीन के साथ भारत के लगातार व्यापार घाटे (trade deficit) की स्थिति ने आर्थिक संलग्नता की निष्पक्षता को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं। यह व्यापार असंतुलन ब्रिक्स के अंदर भारत के आर्थिक हितों पर दबाव डाल सकता है और इसकी समग्र आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
  • समानता के सिद्धांतों को सुनिश्चित करना:
    • विस्तार के बाद चिंता का विषय यह है कि क्या ब्रिक्स का मूलभूत पहलू, जो कि समानता है, बाधित हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप कोई देश, विशेष रूप से चीन जैसे आर्थिक रूप से प्रभावशाली देश अन्य शामिल देशों को प्रभावित कर सकता है।
    • हालाँकि यह संभावना है कि समानता तथा आम सहमति से निर्णय लेने का सिद्धांत बना रहेगा, जिससे किसी एक देश के लिये प्रभुत्व स्थापित करना कठिन होगा। BRICS बैंक द्वारा ऋण देने की प्रथाओं को सदस्य देशों के बीच समान व्यवहार के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जाता है।
    • इसका मुख्य दोष सदस्य देशों की बढ़ती संख्या के साथ आम सहमति तक पहुँचने की चुनौती है किंतु विकासशील एवं उभरते देशों के रूप में उनके साझा हितों को देखते हुए इस चुनौती का निवारण किया जा सकता है।
  • दीर्घस्थाई चुनौतियों का समाधान: वैश्विक एकता के व्यापक सिद्धांत के बावजूद BRICS ढाँचे के भीतर बाधाएँ मौजूद हैं। इसका उद्देश्य अल्प प्रतिनिधित्व वाले देशों, विशेषकर ग्लोबल साउथ में, के साथ सफलताओं को साझा करने का है, जिससे संबंधी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
    • उदाहरणार्थ BRICS विकास बैंक सदस्य देशों में आवश्यक महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं के लिये अपर्याप्त पूंजी की समस्या का सामना कर रहा है जो कि मुख्यतः 11 अन्य देशों में विस्तार के कारण हुआ है।
    • इसके अतिरिक्त, आंतरिक विभाजन, जैसे कि भारत-चीन सीमा विवाद तथा संघर्षों में रूस की भागीदारी, सहयोगात्मक प्रयासों को प्रभावित करती है। भारत व चीन में विकास दर की वृद्धि अन्य देशों से बेहतर है जिससे सदस्य देशों के बीच आर्थिक असमानताएँ बढ़ रही हैं जो एक और बाधा उत्पन्न करती हैं।
    • इन बाधाओं का समाधान करने के लिये सर्वसम्मति, एक साझा दृष्टिकोण एवं विविध आर्थिक विकास के समक्ष आने वाली समस्याओं का निवारण करने की प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।

भारत अपने लाभ के लिये BRICS मंच का उपयोग किस प्रकार कर सकता है?

  • वैश्विक शासन दर्शन को अपनाना: उभरती वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिये समन्वित वैश्विक कार्रवाइयों की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की सुरक्षा करना, अंतर्राष्ट्रीय मामलों में सार्वभौमिक भागीदारी सुनिश्चित करना, नियमों का निर्माण तथा साझा विकास परिणाम सुनिश्चित करना भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • व्यापक परामर्श, संयुक्त योगदान एवं साझा लाभों हेतु भागीदारी, वैश्विक शासन में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने हेतु उभरते बाज़ारों एवं विकासशील देशों के साथ एकता व सहयोग को बढ़ावा दिये जाने के उद्देश्य के साथ भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि BRICS द्वारा एक वैश्विक शासन दर्शन का अंगीकरण किया जाए।
  • सार्वभौमिक सुरक्षा का सर्थन करना: भारत को सार्वभौमिक सुरक्षा में सक्रिय रूप से योगदान देने वाले BRICS देशों का समर्थन करना चाहिये। दूसरों की सुरक्षा का हनन कर अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देने से तनाव एवं जोखिम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। प्रत्येक देश की सुरक्षा सुनिश्चित करना व सम्मान करना तथा संघर्ष की स्थिति में वार्ता को प्रोत्साहन देना एवं एक संतुलित, प्रभावी क्षेत्रीय सुरक्षा तंत्र को बढ़ावा देना अत्यावश्यक है।
  • समूह के भीतर सहयोग को बढ़ावा देना: भारत को BRICS में चीन के प्रभुत्व को कम करने, संतुलित आंतरिक गतिशीलता को बढ़ावा देने तथा विविधीकरण की तत्काल आवश्यकता पर बल देने की दिशा में कार्य करना चाहिये। प्रत्येक सदस्य को भविष्य में निरंतर प्रासंगिकता के लिये अवसरों व सीमाओं का आकलन करना चाहिये।
  • आर्थिक योगदान सुनिश्चित करना: BRICS देशों को साझा विकास में सक्रिय रूप से योगदान देना चाहिये। बढ़ते डी-वैश्वीकरण तथा एकपाक्षिक प्रतिबंधों के समाधान हेतु आपूर्ति शृंखला, ऊर्जा, खाद्यान तथा  वित्तीय लचीलेपन में पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग बढ़ाना आवश्यक है। OECD के समान एक संस्थागत अनुसंधान विंग की स्थापना विकासशील विश्व के अनुरूप समाधान प्रदान कर सकती है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रशासन को बढ़ाना: अपनी क्षमता का उपयोग कर BRICS देशों को सामूहिक रूप से विकासशील देशों के पक्ष में वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन को आगे बढ़ाना चाहिये। भारत का 'वन अर्थ, वन हेल्थ' दृष्टिकोण सार्वजनिक स्वास्थ्य में बहुपक्षीय सहयोग का समर्थन करता है। BRICS वैक्सीन अनुसंधान और विकास केंद्र का उपयोग करना, संक्रामक रोगों के लिये प्रारंभिक चेतावनी तंत्र बनाना एवं वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन सहयोग के लिये उच्च गुणवत्ता वाले सार्वजनिक उत्पाद प्रदान करना आवश्यक है।

निष्कर्ष:

द्विपक्षीय मुद्दों पर आम सहमति बनाना महत्त्वपूर्ण है, इसके लिये अलग से वार्ता करने की आवश्यकता है। मतभेदों को स्वीकार करते हुए यह समझना आवश्यक है कि बहुपक्षीय मंच विभिन्न नियमों के तहत कार्य करते हैं। प्रधानमंत्री की BRICS शिखर सम्मेलन की टिप्पणियों से प्रेरित होकर, BRICS में हो रहे विस्तार से अन्य बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार लाना चाहिये। विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तथा सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, WTO, WHO एवं अन्य में सुधार की आवश्यकता पर बल देता है। भारत के अनुसार BRICS विस्तार 21वीं सदी के आवश्यक बदलावों के लिये एक मॉडल प्रदान करेगा किंतु सुधार में विफलता इन संस्थानों को अप्रभावी बना सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. समाचारों में देखे जाने वाले शब्द 'डिजिटल सिंगल मार्केट स्ट्रैटेजी' पद किसे निर्दिष्ट करता है? (2017) 

(a) आसियान 
(b) ब्रिक्स' 
(c) यूरोपियन यूनियन 
(d) जी-20 

उत्तर: (c) 


मेन्स:

प्रश्न. भारत ने हाल ही में न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर बैंक (AIIB) का संस्थापक सदस्य बनने के लिये हस्ताक्षर किये हैं। इन दोनों बैंकों की भूमिका किस प्रकार भिन्न होगी? भारत के लिये इन दोनों बैंकों के रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (2012)

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