पश्चिम एशिया: बदलता परिदृश्य
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में पश्चिमी एशिया के साथ भारत-चीन संबंधों से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
भारत और चीन के बीच वर्ष 1962 के युद्ध के बाद से लेकर लद्दाख के गलवान क्षेत्र में आपसी झड़प के बाद भारत और चीन संबंधों के लिये वर्ष 2020 एक विभाजनकारी वर्ष साबित हुआ है। वर्तमान में नई दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंध अत्यंत शिथिल अवस्था में हैं। दोनों देशों से संबंधित पिछले कुछ महीनों की घटनाओं को देखें तो न केवल भारत बल्कि चीन की विदेश नीति में भी व्यापक बदलाव आया है।
सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy):
- सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) किसी राष्ट्र के अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने और अन्य राष्ट्रों द्वारा किसी भी तरीके से बाधित किये बिना अपनी पसंदीदा विदेश नीति को अपनाने की क्षमता को दर्शाता है।
- यह वह स्थिति है जो उस राष्ट्र को उन दबावों का विरोध करने में सक्षम बनाती है जो अन्य राष्ट्रों द्वारा अपनी नीति या हितों को बदलने के लिये बाध्य करते हैं।
- भारत के पूर्व विदेश सचिव ‘विजय गोखले’ के अनुसार, सामरिक स्वायत्तता की नीति नेहरूवादी युग की गुटनिरपेक्ष नीति की सोच से बहुत अलग है। उन्होंने कहा कि गुटनिरपेक्ष नीति ‘मुद्दों’ पर आधारित है न कि वैचारिक है।
पश्चिमी एशिया में भारत-चीन की भूमिका:
- पश्चिमी एशिया में सऊदी अरब, ईरान और इज़राइल जैसे तीन राजनीतिक ध्रुवों के साथ आपसी संबंधों में संतुलन बनाने के साथ-साथ पश्चिमी एशियाई क्षेत्र के बहुस्तरीय संघर्षों और राजनीतिक दांवपेंचों में शामिल हुए बिना बीजिंग और नई दिल्ली ने 'गुट निरपेक्ष' विचारधारा के समान संस्करणों को नियोजित किया है।
- रणनीतिकारों के अनुसार, एक समय ऐसा भी आया जब तेल उत्पादक संघों के खिलाफ प्रमुख तेल आयातकों (ज्यादातर विकासशील एशियाई अर्थव्यवस्थाएँ) के हितों को बढ़ावा देने के लिये 'इम्पोर्टर्स ओपेक' (Importers OPEC) के गठन के लिये प्रमुख विकासशील अर्थव्यवस्थों को सुझाव दिये गए थे। जिसमें भारत और चीन जैसे देश साथ मिलकर अहम भूमिका निभा सकते थे।
वैश्विक परिदृश्य में भू-राजनीतिक बदलाव के परिणाम:
- हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में भू-राजनीतिक बदलावों के मद्देनज़र अमेरिका-चीन संबंधों में गिरावट, वर्ष 2019-20 में चीन से शुरू हुई COVID-19 महामारी, भारत-चीन के मध्य लद्दाख संकट ने प्रमुख राष्ट्रों को अपने भू-राजनीतिक दृष्टिकोण में बदलाव लाने के लिये मजबूर किया।
- चूँकि भारत खाड़ी क्षेत्र में अपनी संतुलित कूटनीति को अपनाए हुए है परिणामतः सऊदी अरब और यूएई द्वारा भारतीय तटों पर मल्टी बिलियन डॉलर निवेश की आगामी घोषणाएँ केवल भारत की आर्थिक वास्तविकताओं को प्रदर्शित करती हैं।
- वर्ष 2014 में NDA सरकार के सत्ता में आने के बाद से पश्चिम एशिया में भारत का दायरा बढ़ गया है।
- पिछले कुछ वर्षों में शक्तिशाली एवं तेल-समृद्ध खाड़ी राष्ट्रों ने पश्चिमी देशों के बजाय अन्य देशों (जैसे- भारत) में निवेश हेतु विकल्पों की तलाश करनी शुरू की ताकि उनकी स्वयं की सामरिक स्थिति मज़बूत हो।
- परिणामतः भारत ने खाड़ी राष्ट्रों (अबूधाबी व रियाद) के साथ अपने संबंधों को मज़बूत किया है।
- सऊदी अरब वर्तमान में भारत का चौथा (चीन, अमेरिका और जापान के बाद) सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। भारत और सऊदी अरब का द्विपक्षीय व्यापार लगभग 28 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है।
- भारत अपनी कुल आवश्यकता का लगभग 18% खनिज तेल सऊदी अरब से आयात करता है, साथ ही सऊदी अरब भारत के लिये ‘तरल पेट्रोलियम गैस’ या एलपीजी (LPG) का एक बड़ा स्त्रोत है।
- परिणामतः भारत ने खाड़ी राष्ट्रों (अबूधाबी व रियाद) के साथ अपने संबंधों को मज़बूत किया है।
- वहीँ भारत-इज़राइल संबंध तेज़ी से आगे बढ़े हैं किंतु अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत-ईरान संबंधों में शिथिलता आई।
चीन के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण है ‘पश्चिमी एशिया’:
- बदलते वैश्विक परिदृश्य में पश्चिम एशियाई क्षेत्र चीन के लिये दो दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण साबित हुआ।
1. चीन ने खाड़ी देशों की इस सोच को भुनाने की कोशिश की है कि ‘’अमेरिकी सुरक्षा नेटवर्क निरपेक्ष नहीं है और उन्हें दूसरे देशों में भी निवेश करने के बारे में सोचना चाहिये।’’
- उल्लेखनीय है कि वर्तमान में चीन आर्थिक और सैन्य दृष्टि से संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है। अतः चीन खाड़ी देशों के लिये वैकल्पिक निवेश स्थान के रूप में उभर सकता है।
- वर्ष 2016 में चीन ने विंग लूंग (Loong) ड्रोन संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को बेचा, यह अमेरिकी MQ-9 ’रीपर’ (Reaper) ड्रोन की एक प्रति है जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका ने बेचने से इनकार कर दिया था।
- वर्ष 2015 में, सऊदी अरब चीन का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश था। बीजिंग ने रियाद को मध्यवर्ती श्रेणी की बैलिस्टिक मिसाइल और DF-21 बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली भी बेची है।
2. सऊदी अरब जैसे खाड़ी देश भले ही पेट्रो डॉलर आधारित अर्थव्यवस्था में बदलाव की कोशिश कर रहे हों किंतु कुछ विकासशील राष्ट्रों द्वारा अपनी आर्थिक प्रणालियों में सुधार के कारण आने वाले दशक में ये राष्ट्र (जैसे- चीन एवं भारत) तेल के बड़े आयातक साबित होगें। जो खाड़ी देशों के लिये बड़े तेल बाज़ार के रूप में उभरेंगे।
- वर्ष 2016 में शी जिनपिंग ने सबसे शक्तिशाली मुस्लिम राष्ट्रों (ईरान, सऊदी अरब और मिस्र) की यात्रा की। आर्थिक दृष्टिकोण से ये देश चीन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- चीन दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। चीन के संदर्भ में वर्ष 2014 में आयातित तेल की मांग 6 मिलियन बैरल प्रतिदिन से बढ़कर वर्ष 2035 तक 13 मिलियन बैरल प्रतिदिन हो जाने की उम्मीद है।
- किंतु अमेरिका-सऊदी अरब संबंधों के मद्देनज़र चीन ऊर्जा आपूर्ति के लिये पूरी तरह से सऊदी अरब पर बहुत अधिक निर्भर नहीं होना चाहता है परिणामतः चीन ने ईरान के साथ अपने संबंधों प्रगाढ़ किया है और दोनों देशों के बीच मज़बूत रक्षा सहयोग भी कायम है।
- चीन की पश्चिम एशियाई नीति तीन सिद्धांतों पर आधारित है:
- सुरक्षित ऊर्जा आपूर्ति
- तैयार माल के लिये बाज़ारों का विस्तार
- निवेश के अवसर खोजना
खाड़ी क्षेत्र में अहम भूमिका निभाने की ओर चीन:
- हाल के वर्षों में ईरान परमाणु समझौते के मद्देनज़र चीन, पश्चिम एशियाई क्षेत्र से संबंधित वैश्विक कूटनीति में अधिक सक्रिय रहा है, सीरियाई संघर्ष के मद्देनज़र संयुक्त राष्ट्र में वीटो करके मज़बूत स्थिति प्रकट करना और यहाँ तक कि अपनी सैन्य ताकत (भूमध्य सागर में रूस के साथ नौसेना अभ्यास) को प्रदर्शित करना शुरू कर दिया है।
- यह पश्चिम एशिया में एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में कार्य करने की चीन की इच्छा में बड़े बदलावों के अनुरूप है।
- हालाँकि, खाड़ी क्षेत्र में बीजिंग की हालिया भूमिका सूक्ष्म नहीं हैं। सितंबर, 2020 में एक रिपोर्ट ‘ईरान और चीन के बीच 25-वर्ष की समझ’ (25-year Understanding B/W Iran and China) में $400 बिलियन के व्यापार पर प्रकाश डाला गया है जिसमें बताया गया कि बीजिंग ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान परमाणु समझौते को रद्द करने का सबसे अधिक लाभ उठाया।
- विश्लेषकों का मानना है कि चीन अब पश्चिम एशिया में एक निष्क्रिय भूमिका के बजाय एक सक्रिय भूमिका निभाने को तैयार है। वह ‘विकास के माध्यम से शांति’ जैसी अवधारणाओं की बजाय ‘निवेश एवं प्रभाव’ (Investment and Influence) जैसा एक वैकल्पिक मॉडल पेश करने के लिये तैयार है।
- हाल ही में चीनी विदेश मंत्री ने ईरानी विदेश मंत्री के साथ एक व्यक्तिगत मुलाकात के दौरान खाड़ी क्षेत्र में तनाव को दूर करने के लिये एक ‘नए फोरम’ के गठन का सुझाव दिया जो पश्चिमी नेतृत्त्व वाले पारिस्थितिक तंत्र जो दशकों से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, का एक विकल्प हो।
- किंतु अभी यह देखा जाना बाकी है कि खाड़ी क्षेत्र में चीन इतने आक्रामक तरीके से समर्थन करते हुए सत्ता के ध्रुवों के बीच संतुलन कैसे बनाता है?
आगे की राह:
- यूएई और बहरीन के साथ इज़राइल के हालिया शांति समझौते ने खाड़ी क्षेत्र में स्थिरता की संभावना को बढ़ा दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि सऊदी अरब की सहमति के बगैर बहरीन इस समझौते के लिये आगे नहीं बढ़ सकता।
- हाल के वर्षों में अरब देशों में बड़े आर्थिक और राजनीतिक बदलाव देखने को मिले हैं, वर्तमान में खाड़ी क्षेत्र के अधिकाँश देशों ने खनिज तेल और इस्लामिक कट्टरपंथ से हटकर एक आधुनिक एवं प्रगतिशील देश के रूप में स्वयं को प्रकट करने का प्रयास किया है। भारत को इस क्षेत्र के उभरते बाज़ार में अपने हस्तक्षेप को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये।
- क्वाड (QUAD) के गठन के साथ वर्तमान समय में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र भू-राजनीति के केंद्र में है किंतु पश्चिमी एशियाई क्षेत्र भी विश्व के प्रमुख राष्ट्रों को अपनी विदेश नीति की नए सिरे से समीक्षा करने को प्रोत्साहित किया है।
अभ्यास प्रश्न: सामरिक स्वायत्तता को परिभाषित करते हुए पश्चिम एशियाई क्षेत्र में भारत-चीन की भूमिका का उल्लेख कीजिये।