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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इज़राइल-बहरीन शांति समझौता

  • 19 Oct 2020
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये

द अब्राहम एकॉर्ड, तीन नकारात्मक सिद्धांत, सिक्स डे वॉर

मेन्स के लिये

इज़राइल-बहरीन शांति समझौता और इसके निहितार्थ, अरब-इज़राइल संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इज़राइल और बहरीन ने औपचारिक रूप से राजनयिक संबंध स्थापित कर लिये हैं। ध्यातव्य है कि बहरीन ने सितंबर माह में इज़राइल के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने की घोषणा की थी।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि बहरीन, इज़राइल के साथ संबंध स्थापित करने वाला अरब जगत का चौथा देश बन गया है। इससे पूर्व अगस्त माह में इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात ने ऐतिहासिक 'द अब्राहम एकॉर्ड (The Abraham Accord) के तहत पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की थी। 
  • वहीं इससे पूर्व मिस्र ने वर्ष 1979 में तथा जॉर्डन ने वर्ष 1994 में इज़राइल के साथ शांतिपूर्ण संबंध स्थापित किये थे।

इज़राइल-बहरीन शांति समझौता

  • इस समझौते के अनुसार, बहरीन और इज़राइल एक-दूसरे के देश में अपने दूतावास स्थापित करने के साथ-साथ पर्यटन, व्यापार, स्वास्थ्य और सुरक्षा समेत कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ावा देंगे।
  • इस दौरान इज़राइली पक्ष ने कहा कि इज़राइल, बहरीन के विदेश मंत्रालय के साथ सहयोग करेगा और दोनों देशों के राजनयिकों को वीज़ा संबंधी आवश्यकताओं में छूट प्रदान की जाएगी। 

कारण

  • यद्यपि सऊदी अरब, जो कि अरब जगत का एक महत्त्वपूर्ण देश है, ने स्पष्ट कहा है कि वह इज़राइल के साथ संबंध स्थापित करने के पक्ष में नहीं है, किंतु अधिकांश विश्लेषक मानते हैं कि सऊदी अरब के बिना बहरीन और इज़राइल के बीच किसी भी प्रकार का कोई भी समझौता पूरा नहीं हो सकता है। 
  • इस तरह ईरान और सऊदी अरब के बीच बढ़ती क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता को इस राजनयिक घटनाक्रम का एक प्रमुख कारण माना जा सकता है।
    • ईरान-सऊदी अरब विवाद: धार्मिक मतभेद के कारण अस्तित्व में आए एक दशक पूर्व विवाद, जिसमें ईरान स्वयं को शिया मुस्लिम शक्ति और सऊदी अरब स्वयं को सुन्नी मुस्लिम शक्ति के रूप में देखता है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2011 में अरब स्प्रिंग की शुरुआत के दौरान सऊदी अरब ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों को दबाने के लिये बहरीन में अपने सैनिक भेजे थे। जानकार मानते हैं कि इस समझौते से बहरीन को अपनी राजशाही सत्ता बनाए रखने में काफी मदद मिलेगी।

समझौते के निहितार्थ 

  • यद्यपि विशेषज्ञ मानते हैं कि अरब जगत के देशों के साथ इज़राइल के संबंध इस क्षेत्र में शांति स्थापित नहीं कर सकते हैं, किंतु यह समझौता इज़राइल और अरब जगत के संबंधों को एक नया रूप देने की दिशा में काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
  • इज़राइल और बहरीन के बीच हुए समझौते को ‘स्थायी सुरक्षा तथा समृद्धि की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम बताया जा रहा है।

अरब जगत और इज़राइल के संबंध 

  • वर्ष 1948 में यहूदियों ने स्वतंत्र इज़राइल की घोषणा कर दी और इज़राइल एक देश बन गया, इसके परिणामस्वरूप आस-पास के अरब राज्यों (इजिप्ट, जॉर्डन, इराक और सीरिया) ने इज़राइल पर आक्रमण कर दिया। युद्ध के अंत में इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना के आदेशानुसार प्राप्त भूमि से भी अधिक भूमि पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  • इसके पश्चात् दोनों देशों के मध्य संघर्ष तेज़ होने लगा और वर्ष 1967 में प्रसिद्ध ‘सिक्स डे वॉर’ (Six-Day War) हुआ, जिसमें इज़राइली सेना ने गोलन हाइट्स, सिनाई प्रायद्वीप, वेस्ट बैंक तथा पूर्वी येरुशलम को भी अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया।
  • इसके बाद अरब देशों ने खार्तूम में आयोजित बैठक में ‘तीन नकारात्मक सिद्धांत’ (Three Nos)’ का प्रस्ताव पेश किया जिसके अंतर्गत ‘इज़राइल के साथ कोई शांति नहीं, इज़राइल के साथ कोई वार्ता नहीं और इज़राइल को किसी प्रकार की मान्यता नहीं’ का प्रावधान था।
    • हालाँकि इस सिद्धांत को दरकिनार करते हुए मिस्र तथा जॉर्डन ने इज़राइल के साथ संबंध स्थापित कर लिये।
  • वर्ष 2000 में दूसरा इंतिफादा (Intifida) अर्थात सैन्य संघर्ष हुआ, इसमें इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच हिंसा शुरू हो गई, जिसके बाद अरब जगत और इज़राइल के बीच संबंध और भी खराब हो गए।
  • हालाँकि बीते कुछ वर्षों में अरब जगत और इज़राइल के संबंधों में काफी हद तक सुधार दिखाई दे रहा है। इज़राइल के साथ संबंध स्थापित करने में मुख्यतः वे देश शामिल हैं, जो ईरान को एक बड़े खतरे के रूप में देखते हैं।
    • वर्ष 2015 में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने अबू धाबी अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (International Renewable Energy Agency) में इज़राइल को शामिल होने की अनुमति दी थी।
    • गाज़ा में हमास (Hamas) के प्रभुत्त्व वाले क्षेत्र में संघर्ष विराम के लिये कतर ने इज़राइल के साथ मिलकर कार्य किया है।
    • वर्ष 2018 में इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ओमान की यात्रा की थी।

अरब जगत और इज़राइल के संबंधों का महत्त्व

  • अरब जगत के लिये
    • इज़राइल के साथ संबंध स्थापित करने वाले खाड़ी देशों के लिये इज़राइल इस क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका की घटती भूमिका के विरुद्ध एक बचाव की तरह है।
    • साथ ही अरब जगत के देशों के लिये इज़राइल, आधुनिक तकनीक के साथ आर्थिक तौर पर समृद्ध एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार हो सकता है।
  • इज़राइल के लिये
    • इज़राइल के लिये खाड़ी देशों के साथ संबंध स्थापित करना, इस क्षेत्र में अपने अलगाव को कम करने का एक प्रयास है। इसके अलावा इज़राइल अरब देशों के साथ संबंध स्थापित कर ‘अरब बनाम इज़राइल’ के युद्ध को ‘अरब बनाम ईरान’ युद्ध के रूप में परिवर्तित करना चाहता है।

भारत की भूमिका

  • हाल के वर्षों में भारत और खाड़ी देशों के संबंधों में बहुत सुधार देखने को मिला है, साथ ही इज़राइल के साथ भी रक्षा सहित कई अन्य क्षेत्रों में भारत ने बड़ी साझेदारी की है।  
  • खाड़ी क्षेत्र के देश, ऊर्जा (खनिज तेल) और प्रवासी कामगारों हेतु रोज़गार की दृष्टि से भारत के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। इस समझौते से क्षेत्र में स्थिरता के प्रयासों को बल मिलेगा जो भारत के लिये एक सकारात्मक संकेत है।   
  •  इस समझौते से खाड़ी क्षेत्र के देशों में भारत की राजनीतिक पकड़ और अधिक मज़बूत होगी।   

आगे की राह

  • माना जा रहा है कि इस समझौते के कारण खाड़ी क्षेत्र के अन्य देश भी संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन का अनुसरण कर इज़राइल के साथ संबंध स्थापित करने पर विचार कर सकते हैं। 
  • इस क्षेत्र में स्थायी शांति के लिये शिया और सुन्नी तथा फारसियों (Persian) एवं अरब के बीच संतुलन को बनाए रखना बहुत ही आवश्यक होगा।
  • भारत को इस क्षेत्र के उभरते बाज़ार में अपने हस्तक्षेप को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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