अंतर्राष्ट्रीय संबंध
समुद्री सुरक्षा
- 01 Oct 2022
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समुद्री सुरक्षा क्या है?
समुद्री सुरक्षा की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है लेकिन यह राष्ट्रीय सुरक्षा, समुद्री पर्यावरण, आर्थिक विकास और मानव सुरक्षा सहित समुद्री क्षेत्र में मुद्दों को वर्गीकृत करता है।
- दुनिया के महासागरों के अलावा, यह क्षेत्रीय समुद्रों, क्षेत्रीय जल, नदियों और बंदरगाहों से भी संबंधित है।
समुद्री सुरक्षा का महत्त्व क्या है?
सामान्य शब्दों में:
- चोरी/डकैती:
- विश्व समुदाय के लिये समुद्री सुरक्षा का अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि समुद्र में समुद्री डकैती से लेकर अवैध अप्रवास और हथियारों की तस्करी तक समुद्री चिंताएँ हैं।
- आतंकी हमले:
- यह आतंकवादी हमलों और पर्यावरणीय आपदाओं के खतरों से भी निपटता है।
- पर्यावरण को नुकसान:
- चूँकि समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र में बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक संचालन होते हैं, इसलिये अनिवार्य रूप से ऐसी घटनाएँ होंगी जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएँगी।
- भारत के लिये:
- राष्ट्रीय सुरक्षा:
- भारत के लिये समुद्री सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है क्योंकि इसकी तटरेखा 7,000 किमी. से अधिक है।
- प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ, समुद्री क्षेत्र में भौतिक खतरों के स्थान पर तकनीकी खतरों ने ले लिया है।
- व्यापार उद्देश्य के लिये:
- भारत का निर्यात और आयात ज्यादातर हिंद महासागर के शिपिंग लेन में बना हुआ है।
- इसलिये 21वीं सदी में भारत के लिये संचार के समुद्री मार्ग (SLOC) की सुरक्षा एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा रहा है।
- भारत का वर्तमान समुद्री सुरक्षा तंत्र क्या है?
- वर्तमान में भारत की तटीय सुरक्षा त्रिस्तरीय संरचना द्वारा नियंत्रित होती है।
- भारतीय नौसेना अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) पर गश्त करती है, जबकि भारतीय तटरक्षक बल (ICG) को 200 समुद्री मील (यानी विशेष आर्थिक क्षेत्र) तक गश्त और निगरानी करना अनिवार्य है।
- इसके साथ ही, राज्य तटीय/समुद्री पुलिस (SCP/SMP) उथले तटीय क्षेत्रों में गश्त करती है।
- SCP का क्षेत्राधिकार तट से 12 समुद्री मील तक है और ICG और भारतीय नौसेना का क्षेत्रीय जल (SMP के साथ) सहित पूरे समुद्री क्षेत्र (200 समुद्री मील तक) पर अधिकार क्षेत्र है।
- समुद्री सुरक्षा के लिये भारत की पहल क्या हैं?
- सभी के लिये सुरक्षा और विकास (SAGAR/सागर) नीति:
- भारत की सागर नीति एक एकीकृत क्षेत्रीय ढांचा है, जिसका अनावरण भारतीय प्रधान मंत्री द्वारा मार्च, 2015 में मॉरीशस की यात्रा के दौरान किया गया था। सागर के स्तंभ हैं:
- हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका।
- भारत IOR में मित्र देशों की समुद्री सुरक्षा क्षमताओं और आर्थिक लचीलेपन को बढ़ाना जारी रखेगा।
- IOR के भविष्य पर अधिक एकीकृत और सहयोगात्मक फोकस, जो इस क्षेत्र के सभी देशों के सतत् विकास की संभावनाओं को बढ़ाएगा।
- IOR में शांति, स्थिरता और समृद्धि की प्राथमिक ज़िम्मेदारी उन लोगों की होगी जो "इस क्षेत्र में रहते हैं"।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन करना:
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS), 1982 के अनुसार, सभी देशों के अधिकारों का सम्मान करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता को बार-बार दोहराया है।
- UNCLOS 1982, जिसे Law of the Sea के नाम से भी जाना जाता है, समुद्री क्षेत्रों को पांच मुख्य क्षेत्रों में विभाजित करता है- आंतरिक जल, प्रादेशिक सागर, सन्निहित क्षेत्र, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ), और उच्च समुद्र।
- डेटा साझा करना:
- वाणिज्यिक नौवहन के खतरों पर डेटा साझा करना समुद्री सुरक्षा बढ़ाने का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- इस संदर्भ में भारत ने वर्ष 2018 में गुरुग्राम में हिंद महासागर क्षेत्र के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संलयन केंद्र (IFC) की स्थापना की।
- IFC को संयुक्त रूप से भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल द्वारा प्रशासित किया जाता है।
- IFC सुरक्षा और सुरक्षा मुद्दों पर समुद्री डोमेन जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से कार्य करता है।
- एंटी पायरेसी ऑपरेशन:
- वर्ष 2007 से सोमालिया के तट से शुरू होने वाले समुद्री डकैती से पश्चिमी हिंद महासागर में शिपिंग के बढ़ते खतरे का सामना करते हुए, भारतीय नौसेना ने सोमालिया के तट पर समुद्री डकैती पर UNSC मेंडेटेड 60-देश संपर्क समूह (UNSC mandated 60-country Contact Group) के हिस्से के रूप में भाग लिया।
- भारत की समुद्री भूमिका में बाधा क्यों है?
- बुनियादी ढांचे की बाधाएँ:
- इसमें न केवल जहाज निर्माण और जहाज की मरम्मत शामिल है बल्कि भारत के तटीय और आंतरिक दोनों क्षेत्रों के एकीकृत विकास के लिये रेल और सड़क नेटवर्क के माध्यम से आधुनिकीकरण और आंतरिक संपर्क भी शामिल है।
- इसमें तटीय नौवहन भी शामिल है। बुनियादी ढांचे की कमी के कारण, भारत भारतीय नौसेना के सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Navy’s Information Fusion Centre-Indian Ocean Region: IFC-IOR) में अंतर्राष्ट्रीय संपर्क अधिकारियों (International Liaison Officers-ILO) की पोस्टिंग को शामिल नहीं कर सकता है।
- न केवल भारत में ILO का होना महत्त्वपूर्ण है, बल्कि यह भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है कि भारतीय नौसेना के अधिकारियों को अन्य देशों में समान केंद्रों पर तैनात किया जाए।
- भारतीय संपर्क अधिकारियों की तैनाती में निरंतर विलंब:
- क्षेत्रीय समुद्री सूचना संलयन केंद्र (Regional Maritime Information Fusion Centre- RMIFC), मेडागास्कर और क्षेत्रीय समन्वय संचालन केंद्र, सेशेल्स में भारतीय नौसेना संपर्क अधिकारियों (Liaison Officers- LO) को तैनात करने का प्रस्ताव दो साल से अधिक समय से लंबित है।
- अबू धाबी में स्ट्रेट ऑफ होर्मुज में यूरोपीय नेतृत्व वाले मिशन (European-led mission in the Strait of Hormuz-EMASOH) में एक LO पोस्ट करने के एक अन्य प्रस्ताव को भी अब तक मंजूरी नहीं मिली है।
- चीन का बढ़ता प्रभुत्व:
- दक्षिण चीन सागर में महत्त्वपूर्ण समुद्री गलियों में चीन का प्रतिगामी व्यवहार संपूर्ण समुद्री सुरक्षा चुनौती का केंद्र है।
- संचार के समुद्री मार्ग हिंद-प्रशांत क्षेत्र की शांति, स्थिरता, समृद्धि और विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- आगे की राह
- समुद्री सुरक्षा पर 5 सूत्री एजेंडा: UNFC द्वारा समुद्री सुरक्षा पर 5 सूत्री एजेंडा को अक्षरश: लागू किया जाना चाहिये। जिसमें शामिल है:
- वैध व्यापार स्थापित करने में बाधाओं के बिना मुक्त समुद्री व्यापार।
- समुद्री विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण और अंतर्राष्ट्रीय कानून के आधार पर ही होना चाहिये।
- ज़िम्मेदारी पूर्ण समुद्री संपर्क को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- गैर-राज्य हितधारकों और प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न समुद्री खतरों का सामूहिक रूप से मुकाबला करने की आवश्यकता है।
- समुद्री पर्यावरण और समुद्री संसाधनों का संरक्षण करें।
- समुद्री सुरक्षा निकाय: रूसी राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक समुद्री सुरक्षा निकाय के निर्माण पर आम सहमति बनाने के प्रयास किए जाने चाहिये।
- UNCLOS: समुद्री सुरक्षा पर बेहतर सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देने के लिये सभी देशों को UNCLOS जैसी वैश्विक संधियों का हिस्सा बनना चाहिये। इससे समुद्री सुरक्षा की एक सामान्य परिभाषा पर सहमत होने में भी मदद मिलेगी।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: समुद्री सुरक्षा बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बनाए रखने के लिये नीति और परिचालन क्षेत्रों में दो सहायक ढांचे की आवश्यकता होती है।
- नियम-कानून आधारित दृष्टिकोण: UNCLOS की परिचालन प्रभावशीलता की समीक्षा करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से नेविगेशन की स्वतंत्रता, समुद्री संसाधनों के सतत दोहन और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान पर इसके प्रावधानों को लागू करने के संबंध में।
- संचार के समुद्री मार्गों को सुरक्षित करना: समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने के लिये महासागरों को पार करने वाले SLOC को सुरक्षित करना केंद्रीय महत्त्व का है।
- इस प्रकार वैश्विक बहस को शांतिपूर्ण तरीकों से मतभेदों को हल करते हुए राज्यों द्वारा SLOC तक समान और अप्रतिबंधित पहुंच सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- निजी क्षेत्र को शामिल करना: समुद्री क्षेत्र में निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका की आवश्यकता है, चाहे वह शिपिंग में हो, नीली अर्थव्यवस्था के माध्यम से सतत् विकास।
- इसके अलावा डिजिटल अर्थव्यवस्था का समर्थन करने वाले महत्त्वपूर्ण पनडुब्बी फाइबर-ऑप्टिक केबल प्रदान करने के लिये समुद्री डोमेन के उपयोग का लाभ उठाया जा सकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रारंभिक परीक्षाQ1. 'ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (D) प्रश्न 2. क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IOR-ARC)' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2015)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (D) मुख्य परीक्षादक्षिण चीन सागर के संबंध में समुद्री क्षेत्रीय विवाद और बढ़ते तनाव पूरे क्षेत्र में नौवहन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की सुरक्षा की आवश्यकता की पुष्टि करते हैं। इस संदर्भ में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (वर्ष 2014) |