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आंतरिक सुरक्षा

समुद्री सुरक्षा: आवश्यकता व महत्त्व

  • 07 Jul 2020
  • 15 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता व महत्त्व से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

वर्तमान में भारत व चीन के मध्य स्थलीय सीमाओं को लेकर तनाव व्याप्त है। यह तनाव उस समय अपने चरम पर पहुँच गया जब गलवान घाटी (Gaalwan Vally) में दोनों देशों के सैनिकों के मध्य सैन्य झड़प में कई सैनिक शहीद हो गए। इस घटना के बाद दोनों देशों के मध्य सैन्य स्तर पर वार्ता जारी है, जिससे शांतिपूर्ण हल निकलने की संभावना है। निश्चित रूप से इस प्रकार की घटना के बाद भारत अपनी सुरक्षा रणनीति का विश्लेषण कर रहा है, यहाँ ध्यान देने की आवश्यकता है कि किसी भी देश के लिये जितनी महत्त्वपूर्ण उसकी स्थलीय सीमाएँ हैं उतनी ही महत्त्वपूर्ण जलीय सीमाएँ हैं।

विशाल भारतीय प्रायद्वीप और इसके चारों ओर फैली हुई द्वीपीय श्रृंखला की सामरिक अवस्थिति के कारण ये क्षेत्र समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का 90 प्रतिशत (मात्रा में) तथा 70 प्रतिशत (मूल्य के आधार पर) समुद्री मार्ग से संचालित होता है। अतः भारत की सुरक्षा रणनीति में समुद्री सुरक्षा एक महत्त्वपूर्ण अवयव है।

भारत का अपना एक समृद्ध समुद्री इतिहास रहा है और समुद्री क्रियाकलापों संबंधी बातों का उल्लेख सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलता हैI भारतीय पुराणों में महासागर, समुद्र और नदियों से जुड़ी हुई ऐसी कई घटनाएँ मिलती हैं जिससे इस बात का पता चलता है कि मानव को समुद्र और महासागर रूपी संपदा से अत्यधिक लाभ हुआ हैI भारतीय साहित्य कला, मूर्तिकला, चित्रकला और पुरातत्व-विज्ञान से प्राप्त कई साक्ष्यों से भारत की समुद्री परंपराओं का अस्तित्व प्रमाणित होता है।     

क्यों आवश्यक है समुद्री सुरक्षा?

  • भारत एक प्रायद्वीपीय देश है जो पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में हिंद महासागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। 
  • भारत अपनी जलीय सीमा पाकिस्तान, मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्याँमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ साझा करता है।  
  • भारत के  उत्‍तर में स्‍थित पाकिस्‍तान से सीमापार आतंकवाद की लगातार गतिविधियों, अधिक सैन्‍य क्षमता प्राप्‍ति और परंपरागत संघर्ष में परमाणु हथियारों का प्रयोग करने के घोषित उद्देश्‍य के कारण उतार-चढ़ाव वाले संबंध बने हुए हैं। वर्ष 2016 में पाकिस्तान ने समुद्र के रास्ते भारत में घुसपैठ कराने का नाकाम प्रयास किया था।
  • भारत की विभिन्न देशों के साथ लंबी जलीय सीमा से कई प्रकार की सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न  होती है। इन चुनौतियों में समुद्री द्वीपों निर्जन स्थानों में हथियार एवं गोला बारूद रखना, राष्ट्रविरोधी तत्त्वों द्वारा उन स्थानों का प्रयोग देश में घुसपैठ करने एवं यहाँ से भागने के लिये करना, अपतटीय एवं समुद्री द्वीपों का प्रयोग आपराधिक क्रियाकलापों के लिये करना, समुद्री मार्गों से तस्करी करना आदि शामिल हैं। 
  • समुद्री तटों पर भौतिक अवरोधों के न होने तथा तटों के समीप महत्त्वपूर्ण औद्योगिक एवं रक्षा संबंधी अवसंरचनाओं की मौजूदगी से भी सीमापार अवैध गतिविधियों में बढ़ोतरी होने की संभावना अधिक होती है।
  • मुंबई हमले के बाद से तटीय, अपतटीय और समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये सरकार ने कई उपाय किये हैं। 

सामुद्रिक चुनौतियाँ 

  • संगठित अपराध- समुद्री रास्तों से हथियारों, नशीले पदार्थों और मानवों तस्करी, संगठित अपराध के रूप में एक बड़ी सामुद्रिक सुरक्षा चुनौती है। वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट, 2020 के अनुसार वैश्विक महामारी COVID-19 के दौरान भी मादक द्रव्यों की तस्करी अनवरत रूप से जारी रही। लॉकडाउन के कारण स्थलीय सीमाओं पर होने वाला आवागमन प्रतिबंधित था परंतु मादक द्रव्यों व  मानव तस्करी समुद्री मार्गों के द्वारा की गई थी।
  • समुद्री डकैती- अरब सागर के क्षेत्र में सोमालियाई लुटेरों से भारतीय व्यापारिक जहाज़ों को सदैव खतरा बना रहता है। कोलाराडो स्थित वन अर्थ फाउंडेशन (One Earth Foundation) की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री डकैती की वजह से दुनियाभर के देशों को प्रतिवर्ष 7 से 12 अरब डॉलर का व्यय करना पड़ता है। इसमें उन्हें दी जाने वाली फिरौती, जहाजों का रास्ता बदलने के कारण हुआ खर्च, समुद्री लुटेरों से लड़ने के लिये कई देशों की तरफ से नौसेना की तैनाती और कई संगठनों के बजट इस अतिरिक्त व्यय में शामिल हैं।

    आतंकवाद- समुद्री मार्ग से आतंकवाद का दंश भी भारत झेल चुका है। 26/11 का मुंबई हमला, भारतीय समुद्री सुरक्षा पर बड़े प्रश्न-चिन्ह पहले ही खड़े कर चुका है।

  • स्वतंत्र नौवहन में बाधा- चीन द्वारा भारतीय सीमा के समीप विकसित किये जा रहे बंदरगाहों ने तनाव की स्थिति उत्पन्न कर दी है, जिसके कारण भविष्य में भारत के लिये स्वतंत्र नौवहन चुनौतीपूर्ण हो सकता है। चीन द्वारा भारत के चारों ओर बंदरगाहों का इस प्रकार विकास उसकी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल (String of Pearls) नीति को दर्शाता है।

स्ट्रिंग ऑफ पर्ल

  • ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ हिंद महासागर क्षेत्र में संभावित चीनी इरादों से संबंधित एक भू-राजनीतिक सिद्धांत है, जो चीनी मुख्य भूमि से सूडान पोर्ट तक फैला हुआ है।
  • वर्ष 2017 में चीन ने जिबूती में अपनी पहली विदेशी सैन्य सुविधा (Overseas Military Facility) शुरू की और वह अपने महत्त्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative-BRI) के हिस्से के रूप में श्रीलंका, बांग्लादेश, म्याँमार और अफ्रीका के पूर्वी तट, तंज़ानिया तथा केन्या में बुनियादी ढाँचे में भी भारी निवेश कर रहा है।
  • इस प्रकार की गतिविधियाँ चीन की भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश को दर्शाती हैं, जिसे ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ कहा जाता है।

समुद्र में अवैध गतिविधि के क्षेत्र

  • समुद्र में अवैध गतिविधियों के लिये दो समुद्री क्षेत्र सबसे ज्यादा बदनाम हैं। पहला क्षेत्र अदन की खाड़ी से पूर्वी अफ्रीका तक और दूसरा क्षेत्र पश्चिमी अफ्रीका में गिनी की खाड़ी तक है। वर्तमान में समुद्र में होने वाली आपराधिक गतिविधियों में सबसे अहम हथियारबंद लुटेरों द्वारा किसी जहाज़ को लूटना है। 
  • इन दोनों ही क्षेत्रों में जहाज़ों को अगवा कर लूट-पाट किया जाता है। इसके साथ ही लोगों को बंधक बनाकर उनसे फिरौती वसूली जाती है। इससे कई देशों को नुकसान पहुँचता है और इसे   विश्व अर्थव्यवस्था के लिये भी खतरा माना जाता है। 
  • अध्ययन से पता चला है कि समुद्री डकैती मूल रूप से अफ्रीका, दक्षिणी पूर्वी एशिया और लैटिन अमेरिका पर असर डालती है। जहाज़ों पर हमले की घटनाएँ कैरेबियाई समुद्र और लैटिन अमेरिका में कम ही होती हैं। 1990 के दशक के दौरान दक्षिणी पूर्वी एशिया में भी समुद्री जहाज़ों पर हमले की हिंसक घटनाएँ होती थी।

भारत की समुद्री सुरक्षा रणनीति से जुड़े प्रमुख अवयव 

  • अवरोध की रणनीति- यह भारतीय सुरक्षा की मूलभूत रणनीति है। संभावित संघर्षों को टालना (अवरोध करना) भारतीय सुरक्षा बलों का प्रमुख उद्देश्य है। इस रणनीति के अंतर्गत भूल-वश भारत की जलीय सीमा में प्रवेश करने वाले जलयानों या नौकाओं को सुरक्षा जाँच के बाद वापस कर दिया जाता है।
  • संघर्ष की रणनीति- भारत के विरुद्ध संघर्ष के दौरान भारतीय सुरक्षा बलों के संसाधनों में वृद्धि इसका उद्देश्य है। इस रणनीति के अंतर्गत युद्ध के दौरान नौसैन्य बलों को पर्याप्त मात्र में रसद सामग्री उपलब्ध कराई जाती है।
  • अनुकूल समुद्री माहौल के लिये रणनीति- इस रणनीति के अंतर्गत शांतिकाल के दौरान भारतीय नौसेना द्वारा की जाने वाली कार्यवाहियाँ शामिल हैं। इसका लक्ष्य मित्र देशों के समुद्री सुरक्षा बलों के मध्य आपसी सहयोग और अंतर्संचालन द्वारा सुरक्षापूर्ण तथा स्थायित्व युक्त माहौल तैयार करना है।
  • तटीय एवं अपतटीय सुरक्षा की रणनीति- इसके अंतर्गत तटीय समुदायों की भागीदारी के माध्यम से सुरक्षा बलों की संचालनीय क्षमता बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाता है। 
    • निगरानी और अंतर-एजेंसी समन्वय- सतर्कता के लिये भारत को बेहतर निगरानी की आवश्यकता है। तटीय राडार श्रृंखलाओं की स्थापना में तेजी लाने और सूचना तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित करने के अलावा केंद्र सरकार को कई एजेंसियों (ओवरलैपिंग क्षेत्राधिकारों के साथ) और प्राधिकरणों में देरी से होने वाली बातचीत से उत्पन्न समन्वय की समस्याओं का समाधान करना चाहिये।
    • विधायी ढाँचे की आवश्यकता- शिपिंग और बंदरगाह दोनो क्षेत्रों को कवर करते हुए भारत के समुद्री बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिये उचित व्यवस्था व प्रक्रियाएँ बनाने हेतु व्यापक कानूनों को लागू किया जाना चाहिये। सरकारी विभागों, पोर्ट ट्रस्ट, राज्य समुद्री बोर्डों, गैर प्रमुख बंदरगाहों और निजी टर्मिनल ऑपरेटरों और अन्य हितधारकों के वैधानिक कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से रेखांकित करने की आवश्यकता है, साथ ही बंदरगाह सुरक्षा के न्यूनतम मानकों के वैधानिक अनुपालन को भी स्पष्ट रूप से रेखांकित करना होगा।
    • राष्ट्रीय वाणिज्यिक समुद्री सुरक्षा नीति दस्तावेज़- समुद्री सुरक्षा हेतु अपनी रणनीतिक दृष्टि को स्पष्ट करने के लिये सरकार को राष्ट्रीय वाणिज्यिक समुद्री सुरक्षा नीति दस्तावेज़ जारी करना होगा। बंदरगाह और शिपिंग बुनियादी ढाँचे, कुशल, समन्वित और प्रभावी कार्रवाई व वाणिज्यिक समुद्री सुरक्षा के लिये एक राष्ट्रीय रणनीति स्पष्ट रूप से बनानी चाहिये।
  • समुद्री सुरक्षा बलों के क्षमता विकास की रणनीति- इसके अंतर्गत तकनीकी उन्नयन के माध्यम से युद्धक क्षमता के विकास पर ध्यान दिया जाता है।
  • नौसैन्य अभ्यास- द्विवार्षिक अभ्यास ‘सागर कवच’ (Sagar Kavach) इसका प्रमुख उदाहरण है जिसे भारतीय नौसेना, भारतीय तटरक्षक बल और तटीय पुलिस द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है।

निष्कर्ष

समुद्री सीमा की सुरक्षा, कारोबार के अहम समुद्री रास्तों, विशेष आर्थिक क्षेत्र और समुद्री संसाधनों का उचित इस्तेमाल होना ज़रूरी है। इसके लिये कानून को सही तरीके से लागू करना आवश्यक है। तमाम देशों के बीच सूचना के आदान-प्रदान को बेहतर बनाने और समुद्री सीमाओं के प्रबंधन को बेहतर करने की जरूरत है। भारत के वैश्विक उत्थान के लिये समुद्री सुरक्षा एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। भारत महासागरीय संसाधनों का लाभ अपने आर्थिक विकास के लिये तभी उठ सकता है, जब उसकी समुद्री सुरक्षा उच्चस्तरीय हो।

प्रश्न- भारतीय सुरक्षा रणनीति में सामुद्रिक सुरक्षा एक उपेक्षित विषय रहा है। समुद्री सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों का उल्लेख करते हुए भारत की समुद्री सुरक्षा रणनीति के प्रमुख अवयवों का विश्लेषण कीजिये।

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