अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत चीन व्यापार संबंध
- 04 May 2023
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यह एडिटोरियल 03/05/2023 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘India’s intriguing trade ties with China’’ लेख पर आधारित है। इसमें इस संदर्भ में चर्चा की गई है कि चीन में मंदी के बावजूद भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा उच्च बना हुआ है।
संदर्भ
चीन और अमेरिका के बीच जारी व्यापार युद्ध और कोविड-19 महामारी के बावजूद, वैश्विक माल व्यापार में चीन की भूमिका प्रभावित नहीं हुई है। चीन भारत के लिये आयात का सबसे बड़ा गंतव्य है और कुल भारतीय आयात में इसकी हिस्सेदारी दोगुने से भी अधिक हो गई है। गैर-तेल आयात के लिये चीन पर भारत की निर्भरता 25% या उससे भी अधिक होने का अनुमान है।
- चीन के साथ भारत के व्यापारिक संबंध महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि चीन पिछले 15 वर्षों से भारत के लिये आयात का सबसे बड़ा गंतव्य रहा है। एशियाई देशों के साथ आयात प्रतिस्थापन और मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) के माध्यम से चीन पर निर्भरता कम करने के भारत के प्रयासों के बावजूद भारत के आयात में चीन की हिस्सेदारी समय के साथ बढ़ी ही है। चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे के परिप्रेक्ष्य में भारत को चीन के साथ अपने व्यापारिक संबंधों पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है।
भारत-चीन व्यापारिक संबंध
- चीन से आयात:
- चीन में मंदी और आपूर्ति में व्यवधान के बावजूद भारत के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी में कमी नहीं आई है और वस्तुतः मात्रा की दृष्टि से वर्ष 2021-22 में चीन से भारत का आयात कोविड-पूर्व स्तर से व्यापक रूप से अधिक ही रहा है।
- वर्ष 2020-21 और 2021-22 में, भारत के आयात में चीन की हिस्सेदारी क्रमशः 16.53% और 15.43% के उच्च स्तर तक पहुँच गई, जबकि इन्ही वित्त वर्षों में क्रमशः 6.7% और 7.31% की आयात हिस्सेदारी के साथ यूएई भारत के लिये आयात का दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य रहा।
- कुल गैर-तेल माल के आयात में चीन का प्रभुत्व और भी स्पष्ट है जहाँ गैर-तेल आयात के लिये भारत की चीन पर निर्भरता 25% या उससे अधिक भी हो सकती है।
- आयातित वस्तुएँ:
- भारत चीन से मुख्य रूप से इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं, फार्मास्युटिकल्स एवं अन्य जैविक रसायन और प्लास्टिक की वस्तुओं का आयात करता है।
- चीन से भारत के आयात में इन वस्तुओं की हिस्सेदारी 70% से भी अधिक है।
- चीन को भारत का निर्यात:
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार हाल के वर्षों में चीन को भारत के निर्यात में लगातार वृद्धि हो रही है।
- वित्तीय वर्ष 2020-21 में चीन को भारत का निर्यात 21.2 बिलियन डॉलर का रहा, जो वर्ष 2019-20 में 16.7 बिलियन डॉलर का रहा था।
- निर्यातित वस्तुएँ:
- भारत द्वारा चीन को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में कार्बनिक रसायन, सूती धागे, तांबा और अयस्क शामिल हैं।
- हालाँकि, चीन को भारत का निर्यात अभी भी चीन से इसके आयात की तुलना में पर्याप्त कम है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े व्यापार घाटे की स्थिति बनती है।
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार हाल के वर्षों में चीन को भारत के निर्यात में लगातार वृद्धि हो रही है।
- द्विपक्षीय व्यापार घाटा:
- चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार घाटा वृहत है और इसमें वृद्धि हो रही है। वर्ष 2021-22 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा लगभग 73.3 बिलियन डॉलर था जो वित्त वर्ष 2023 में 100 बिलियन डॉलर को पार कर सकता है।
- चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा पोस्ट-कोविड काल में भारत के कुल माल व्यापार घाटे का 38-40% है।
भारत-चीन के असामान्य व्यापार संबंधों के क्या कारण हैं?
- चीन की घरेलू उपभोग नीति:
- चीन के साथ भारत का बढ़ता व्यापार असंतुलन कुछ विशेष नीतिगत कारणों से असामान्य या जटिल है।
- कोविड संकट के बाद से चीन की जीडीपी विकास दर धीमी हो गई है और उसने अपनी नीतियों को घरेलू उपभोग की ओर अधिक स्थानांतरित कर दिया है।
- हालाँकि इस नीतिगत बदलाव का भारत में चीनी निर्यात पर कोई असर नहीं पड़ा है।
- RCEP से भारत का बाहर निकलना:
- भारत ने कई पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ FTAs पर हस्ताक्षर किये हैं, जहाँ अपेक्षित था कि वे चीन से कुछ बाज़ार हिस्सेदारी ग्रहण करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) से भारत बाहर निकल गया जिससे चीन के अन्य FTA भागीदारों की तुलना में भारत के लिये अलाभ की स्थिति बनती है।
चीन पर भारी आयात निर्भरता का निहितार्थ
- सरकार के दृष्टिकोण से, राजनीतिक और सुरक्षा चुनौतियाँ तब गहरी हो जाती हैं जब राज्य एक अमित्र देश से उत्पादों एवं सेवाओं के आयात पर निर्भर होता है।
- भारत अपने फार्मास्युटिकल उद्योग में उपयोग होने वाले अधिकांश एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स (API) का आयात चीन से करता है। चीनी APIs की कीमत भारतीय बाज़ारों में भारतीय APIs की तुलना में सस्ती है।
- समस्या की गहनता कोविड-19 महामारी के दौरान तब प्रकट हुई जब यात्रा प्रतिबंधों के कारण भारत में चीनी APIs के निर्यात को अस्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया और इसके परिणामस्वरूप भारत को भी APIs के अपने निर्यात में कटौती करनी पड़ी।
- भारत में उत्पादित लगभग 24% कोयला ऊर्जा उन संयंत्रों से प्राप्त होती है जो चीन से आयातित महत्त्वपूर्ण उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं। इसलिये, इसे आवश्यक रूप से रणनीतिक निर्भरता नहीं माना जा सकता है, लेकिन निश्चित रूप से यह सुरक्षा संबंधी चुनौती का एक रूप है।
- जबकि चीन से इस तरह के आयात को सीमित करने या यहाँ तक कि प्रतिबंधित करने की मांग की जा रही है, ऐसा करने पर निजी भारतीय बिजली कंपनियों को उच्च लागत का सामना करना पड़ेगा।
भारत और चीन के बीच व्यापार असंतुलन के लिये उत्तरदायी कारक
- विनिर्माण क्षेत्र में चीन का प्रभुत्व:
- चीन दुनिया के लिये एक विनिर्माण केंद्र (manufacturing hub) बन गया है, जिसके पास एक विशाल औद्योगिक आधार है जो इसे भारत की तुलना में कम लागत पर माल का उत्पादन करने में सक्षम बनाता है।
- इसके कारण, इलेक्ट्रॉनिक सामानों से लेकर वस्त्रों तक, चीन भारत को उत्पादों की एक विस्तृत शृंखला का निर्यात करने में सक्षम हुआ है।
- चीनी वस्तुओं पर भारत की निर्भरता:
- भारत चीनी वस्तुओं पर अत्यधिक निर्भर है, जहाँ यह चीन से उल्लेखनीय मात्रा में कच्चे माल और तैयार उत्पादों का आयात करता है।
- इसमें मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन जैसे मद शामिल हैं।
- नॉन-टैरिफ बाधाएँ:
- भारत और चीन के बीच व्यापार के लिये कई नॉन-टैरिफ बाधाएँ मौजूद हैं, जिनमें जटिल नियामक आवश्यकताएँ, बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघन और व्यापारिक सौदों में पारदर्शिता की कमी आदि शामिल हैं।
- ये बाधाएँ भारतीय व्यवसायों के लिये चीनी बाज़ार तक पहुँच और चीनी फर्मों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन बना सकती हैं।
- इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स:
- भारत की अपर्याप्त अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स सुविधाओं के परिणामस्वरूप निर्यातकों के लिये उच्च लेनदेन लागत की स्थिति बनती है, जिससे भारतीय वस्तुएँ चीनी बाज़ार में कम प्रतिस्पर्द्धी हो जाती हैं।
- मुद्रा विनिमय दर:
- भारतीय रुपए और चीनी युआन के बीच विनिमय दर भी व्यापार असंतुलन में एक भूमिका निभाती है।
- भारतीय रुपया चीनी युआन की तुलना में कमज़ोर रहा है, जो चीनी खरीदारों के लिये भारतीय निर्यात को अधिक महंगा और भारतीय खरीदारों के लिये चीनी आयात को अधिक सस्ता बनाता है।
- यह दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन को और बढ़ा देता है।
आगे की राह
- आयात में विविधता लाना:
- भारत को वियतनाम, दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान और इंडोनेशिया जैसे अन्य देशों से अपने आयात में विविधता लाकर चीनी आयात पर अपनी निर्भरता कम करने की आवश्यकता है।
- निर्यात को बढ़ावा देना:
- भारत चीन को अपना निर्यात बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
- भारत को इंजीनियरिंग वस्तुओं, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्युटिकल्स और रसायनों जैसे उच्च-मूल्य उत्पादों के निर्यात पर ध्यान देना चाहिये।
- इन उत्पादों का उच्च लाभ मार्जिन होता है और इससे भारत की विदेशी मुद्रा आय को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- घरेलू उद्योगों का विकास करना:
- भारत को आयात पर निर्भरता कम करने के लिये अपने घरेलू उद्योगों को विकसित करने की आवश्यकता है। सरकार घरेलू कंपनियों को उन वस्तुओं के निर्माण के लिये वितीय प्रोत्साहन प्रदान कर सकती है जो वर्तमान में आयात किये जाते हैं।
- इससे न केवल व्यापार असंतुलन को कम करने में मदद मिलेगी बल्कि भारत में रोज़गार के अवसर भी सृजित होंगे।
- FTAs की समीक्षा:
- भारत को यह सुनिश्चित करने के लिये अन्य देशों के साथ अपने मुक्त व्यापार समझौतों की समीक्षा करने की आवश्यकता है कि कहीं वे घरेलू उद्योगों को हानि तो नहीं पहुँचा रहे हैं।
- भारत को अपना निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटे को कम करने के लिये चीन के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता संपन्न करने पर भी विचार करना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: चीन के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों का विश्लेषण करें और चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे के कारणों की व्याख्या करें। इस घाटे को कम करने और आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये कौन-से नीतिगत उपाय किये जा सकते हैं?
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