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‘सक्रिय दवा सामग्री’ के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश

  • 23 Mar 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

सक्रिय दवा सामग्री 

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में COVID-19 की महामारी के कारण चीन से आयात की जाने वाली ‘सक्रिय दवा सामग्री’ (Active Pharmaceutical Ingredient-API) की आपूर्ति प्रभावित होने के बाद सरकार ने अन्य देशों में भारतीय मिशनों/दूतावासों को API के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करने के निर्देश दिये हैं। 

मुख्य बिंदु:

  • भारत  में आयात होने वाली कुल थोक दवाओं का 70% चीन से आयात किया जाता है। 
  • ध्यातव्य है कि चीन में COVID-19 की महामारी के कारण चीन से आयात की जाने वाली सक्रिय दवा सामग्री (API) की आपूर्ति बाधित हुई है।

‘सक्रिय दवा सामग्री’

(Active Pharmaceutical Ingredient-API):

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, किसी रोग के उपचार, रोकथाम अथवा अन्य औषधीय गतिविधि के लिये आवश्यक दवा के निर्माण में प्रयोग होने वाले पदार्थ या पदार्थों के संयोजन को ‘सक्रिय दवा सामग्री’ के नाम से जाना जाता है।

  • चीन से आयात की जाने वाली कुल सक्रिय दवा सामग्री (API) का 18% चीन के हुबेई (Hubei) प्रांत से आता है।    
  • रसायन और उर्वरक मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017-19 के बीच एंटीबायोटिक दवाओं के लिये चीन से आयात की जाने वाली API की मात्रा में दोगुनी वृद्धि हुई है।    
  • हाल ही में विदेश व्यापार महानिदेशालय (Directorate General of Foreign Trade- DGFT) देश में API की कमी को देखते हुए 13 ऐसे API और उनसे तैयार दवाइयों के निर्यात पर रोक लगा दी है।
  • निर्यात के लिये प्रतिबंधित दवाओं में पैरासीटामाॅल, विटामिन बी-6, विटामिन बी-12, प्रोजे़स्टेराॅन, ऐसीक्लोविर आदि शामिल हैं।

API के अन्य स्रोत और उनकी चुनौतियाँ: 

  • भारत में चीन के अतिरिक्त कुछ अन्य देशों जैसे- हाॅन्गकाॅन्ग, जापान, बेल्जियम, फ्राँस, अमेरिका, इटली, थाईलैंड और नीदरलैंड आदि से भी API का आयात किया जाता है।
  • हालाँकि वर्तमान में इटली के साथ विश्व के कई अन्य देश COVID-19 की महामारी से गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं, ऐसे में ये देश आने वाले कुछ दिनों तक भारत की आवश्यकता के अनुरूप API का निर्यात करने में सक्षम नहीं होंगे।
  • इसके अतिरिक्त ये देश केवल मधुमेह-रोधी (Anti-diabetic) और उच्च रक्तदाब रोधी (Anti-hypertension) जैसी दवाइयों के उत्पादन लिये आवश्यक API उपलब्ध करने में ही सक्षम होंगे।

भारत सरकार के प्रयास: 

  • भारत सरकार द्वारा API के लिये चीन पर भारत की निर्भरता को कम करने हेतु वर्ष 2015 में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (Department of Health Research-DHR) के सचिव वी. एम. कटोच. की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। 
  • समिति ने अपनी रिपोर्ट में API की आपूर्ति के लिये अन्य देशों पर भारत की निर्भरता को कम करने हेतु देश में API के उत्पादन को बढ़ावा मेगा फूड पार्क की स्थापना करने का सुझाव दिया था। 
  • वर्ष 2020 में ही देश में API के स्टॉक की उपलब्धता की समीक्षा करने के लिये रसायन और उर्वरक मंत्रालय के औषध विभाग (Department of Pharmaceuticals- DoP) के तहत एक पैनल का गठन किया गया है।  
  • API के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश हेतु भारत सरकार की पहल के बाद 6 देशों में भारतीय मिशनों/दूतावासों ने संभावित आपूर्तिकर्त्ताओं की सूची निर्यात संवर्द्धन परिषदों (Export Promotion Councils) से साझा की है। 

अन्य प्रयास:  

  • भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (Indian Pharmaceutical Alliance -IPA) महासचिव के अनुसार, API पर निर्भरता के मामले में एंटीबायोटिक्स और विटामिन जैसे किण्वन आधारित उत्पादों (Fermentation-Based Products) का मुद्दा प्रमुख है, जिन पर चीन का प्रभुत्त्व है।
  • आने वाले दिनों में फार्मास्युटिकल क्षेत्र में देश की सभी कंपनियाँ चीन के अलावा अन्य देशों में API के वैकल्पिक स्रोतों की जाँच करेंगी, यह पहल आपूर्ति शृंखला के विकेंद्रीकरण और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिये बहुत ही आवश्यक है।  
  • IPA महासचिव के अनुसार, भारत को API के उत्पादन में आत्मनिर्भरता विकसित करनी होगी और भारत सरकार द्वारा फार्मास्युटिकल क्षेत्र की कंपनियों के लिये पर्यावरण मंज़ूरी की तेज़ प्रक्रिया की पहल इस दिशा में एक सही कदम है। 

निष्कर्ष: पिछले कुछ वर्षों से वैश्विक स्तर पर फार्मास्युटिकल क्षेत्र में दवाइयों के उत्पादन में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, इसके साथ ही भारत इस क्षेत्र में एक बड़ा निर्यातक भी बन गया है। परंतु वर्तमान में भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों को दवाइयों के उत्पादन में आवश्यक रसायनों और API के लिये अन्य देशों (विशेषकर चीन) पर निर्भर रहना पड़ता है। API की आपूर्ति के स्रोतों को विकेंद्रीकृत करने से भविष्य में विषम परिस्थितियों में भी API की निर्बाध आपूर्ति को सुनिश्चित किया जा सकेगा। API के उत्पादन के लिये स्थानीय क्षमता के विकास से दवाइयों की लागत में कमी आएगी और भविष्य में इस क्षेत्र में भी व्यावसायिक अवसरों का लाभ उठाया जा सकेगा।    

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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