भारतीय अर्थव्यवस्था
वैश्विक ऋण प्रवृत्ति एवं निहितार्थ
- 28 Sep 2023
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक ऋण प्रवृत्ति एवं निहितार्थ, ऋण, मंदी, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) मेन्स के लिये:वैश्विक ऋण प्रवृत्ति एवं निहितार्थ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस (IIF) के अनुसार, वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही में वैश्विक ऋण बढ़कर 307 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया है।
- पिछले दशक से वैश्विक ऋण लगभग 100 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर बढ़ गया है। इसके अलावा लगातार सात तिमाहियों से उच्च गिरावट के बाद एक बार फिर से वैश्विक ऋण बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के हिस्से के रूप में 336% पर पहुँच गया है।
वैश्विक ऋण:
- परिचय:
- वैश्विक ऋण का तात्पर्य सरकारों के साथ-साथ निजी व्यवसायों और व्यक्तियों द्वारा लिये गए ऋण से है।
- सरकारें विभिन्न व्ययों को पूरा करने के लिये ऋण लेती हैं जिन्हें वे कर एवं अन्य राजस्व के माध्यम से पूरा करने में असमर्थ रहती हैं।
- सरकारें पूर्व में लिये गए ऋण पर ब्याज भुगतान हेतु भी ऋण ले सकती हैं।
- निजी क्षेत्र मुख्य रूप से निवेश हेतु ऋण लेता है।
- ऋण वृद्धि के प्रमुख भागीदार:
- वर्ष 2023 की पहली छमाही में अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और फ्राँस जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की वैश्विक ऋण वृद्धि में 80% से अधिक की भागीदारी देखी गई।
- चीन, भारत और ब्राज़ील जैसी उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में भी इस अवधि के दौरान पर्याप्त ऋण वृद्धि देखी गई।
- वैश्विक ऋण में वृद्धि के कारण:
- आर्थिक विकास, जनसंख्या विस्तार और सरकारी खर्च में वृद्धि के कारण ऋण लेने की आवश्यकता बढ़ गई है। आर्थिक मंदी के दौरान सरकारें आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के साथ लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु ऋण लेती हैं।
- वर्ष 2023 की पहली छमाही के दौरान कुल वैश्विक ऋण में USD10 ट्रिलियन तक की वृद्धि हुई। ऐसा बढ़ती ब्याज दरों के कारण हुआ, जिससे ऋण की मांग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना रहती है।
- लेकिन समय के साथ ऋण स्तर में वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है क्योंकि विश्व भर के देशों में कुल धन आपूर्ति आमतौर पर हर साल लगातार बढ़ती है।
बढ़ता वैश्विक ऋण चिंता का कारण क्यों है?
- ऋण स्थिरता और राजकोषीय असंतुलन:
- बढ़ते ऋण के कारण इसकी स्थिरता को लेकर चिंताएँ पैदा हो सकती हैं। यदि किसी देश का ऋण उसकी अर्थव्यवस्था की तुलना में तेज़ी से बढ़ता है, तो ऐसे में ऋण चुकाना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- ऋण का उच्च स्तर देश के वित्तीय स्वास्थ्य पर दबाव डाल सकता है, जिससे राजस्व का प्रमुख हिस्सा ब्याज भुगतान में खर्च होता है। इससे आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढाँचे एवं सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के लिये धन की उपलब्धता कम हो जाती है।
- आर्थिक अनुकूलन में कमी:
- उच्च ऋण स्तर के कारण आर्थिक मंदी से प्रभावी ढंग से निपटने की सरकार की क्षमता सीमित हो सकती है। इससे मंदी के दौरान प्रोत्साहन उपायों को लागू करना मुश्किल हो जाता है।
- यदि सरकार का ऋण बोझ काफी अधिक हो जाए तो अत्यधिक ऋण मंदी का कारण बन सकता है। इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता खर्च एवं व्यावसायिक निवेश के साथ समग्र आर्थिक विकास में कमी आ सकती है।
- वित्तीय प्रणालीगत जोखिम:
- वित्तीय प्रणाली में ऋण की उच्च सांद्रता प्रणालीगत जोखिम की समस्या उत्पन्न कर सकती है, विशेष रूप से यदि ऋण कुछ प्रमुख संस्थानों के पास केंद्रित हो। यदि एक बड़ा उधारकर्त्ता विफल हो जाता है, तो इससे घटनाओं की एक शृंखला शुरू हो सकती है, जो संपूर्ण वित्तीय प्रणाली की स्थिरता के साथ समझौते का कारण बन सकता हैI
- वैश्विक वित्तीय बाज़ार आपस में जुड़े हुए हैं, साथ ही एक क्षेत्र का ऋण संकट तेज़ी से दूसरे क्षेत्र में संकट का कारण बन सकता है। यदि किसी प्रमुख अर्थव्यवस्था को गंभीर ऋण समस्या का सामना करना पड़ता है तब इस तरह के अंतर्संबंध वैश्विक वित्तीय संकट की संभावना को और अधिक बढ़ा देते है।
- वर्ष 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट, जिसके पश्चात् आसान ऋण नीतियों के कारण आर्थिक उछाल देखा गया। अत्यधिक निजी ऋण स्तर जो प्राय: आर्थिक संकट से पहले देखा जाता है, भविष्य के संकटों को रोकने के लिये विवेकपूर्ण ऋण प्रथाओं और वास्तविक बचत के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
- वर्ष 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट, जिसके पश्चात् आसान ऋण नीतियों के कारण आर्थिक उछाल देखा गया। अत्यधिक निजी ऋण स्तर जो प्राय: आर्थिक संकट से पहले देखा जाता है, भविष्य के संकटों को रोकने के लिये विवेकपूर्ण ऋण प्रथाओं और वास्तविक बचत के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
- ब्याज दरों पर प्रभाव:
- जैसे-जैसे ऋण का स्तर बढ़ता है, सरकारों को नए ऋण पर उच्च ब्याज दरों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे ऋण का बोझ बढ़ सकता है।
- बढ़ी हुई ब्याज दरों से व्यवसायों तथा व्यक्तियों के लिये ऋण लेने की लागत भी बढ़ सकती है, जिससे निवेश और उपभोग में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- डिफॉल्ट और मुद्रास्फीति की संभावना:
- चरम मामलों में उच्च ऋण स्तर के बोझ से दबी सरकार अपने दायित्वों के आधार पर डिफॉल्टर हो सकती है, जिससे वित्तीय बाज़ारों में विश्वास की हानि हो सकती है, साथ ही वैश्विक आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
- ऋण प्रबंधन के प्रयास में सरकारें मुद्रास्फीतिकारी उपायों का सहारा ले सकती हैं, अपनी मुद्राओं का अवमूल्यन कर सकती हैं, साथ ही ऋण के वास्तविक मूल्य को भी कम कर सकती हैं। हालाँकि इस दृष्टिकोण से वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं एवं व्यवसायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
ऋण की वृद्धि को रोकने के लिये उपाय:
- G-20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की बैठक के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा वैश्विक ऋण संरचना को बढ़ाने के लिये संभावित कार्रवाइयों और तरीकों पर चर्चा की गई।
- ऋण समाधान एवं पुनर्गठन:
- वैश्विक ऋण मुद्दों का निष्पक्ष, वस्तुनिष्ठ और गहन विश्लेषण करना आवश्यक है। इस विश्लेषण से ऋण पुनर्गठन निर्णयों का मार्गदर्शन होना चाहिये, जिसमें संभावित ऋण कटौती अथवा स्थिरता एवं निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये ऋण पर घाटे को स्वीकार करना शामिल है।
- वित्तीय संरचना को सुदृढ़ करना:
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय ढाँचे को मज़बूत करने के लिये विशेषकर ऋण समाधान के क्षेत्र में तत्काल सुधार लागू करना।
- इसमें ऋण पुनर्गठन के लिये ढाँचे को विस्तृत करना, ऋण-संबंधी लेन-देन में पारदर्शिता को बढ़ावा देना तथा ऋण समाधान तंत्र की दक्षता एवं प्रभावशीलता में सुधार करना भी शामिल है।
- कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं का समर्थन:
- तीव्र आर्थिक तनाव और सीमित नीतिगत अंतराल का सामना कर रहे विकासशील तथा कम आय वाले देशों पर ध्यान केंद्रित करना।
- उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं तथा परिस्थितियों के अनुरूप लक्षित वित्तीय सहायता, ऋण राहत, अथवा पुनर्गठन तंत्र प्रदान करना।
- ऋण समाधान एवं पुनर्गठन:
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- वैश्विक वित्तीय सुरक्षा जाल:
- आर्थिक झटकों एवं संकटों का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिये वैश्विक वित्तीय सुरक्षा जाल को मज़बूत और बेहतर बनाना। इसमें ऋण देने हेतु तंत्र को अधिक अनुकूलित करना, धन का तेज़ी से वितरण सुनिश्चित करने के साथ ज़रूरतमंद देशों की वित्तीय सहायता तक पहुँच बढ़ाना शामिल है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सहकारिता:
- व्यापक समाधान विकसित करने के लिये राष्ट्रों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और वित्तीय संस्थानों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना। ऋण चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये बहुपक्षीय प्रयास से समन्वित कार्रवाई, ज्ञान साझाकरण और संसाधनों के संयोजन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है।
- वैश्विक वित्तीय सुरक्षा जाल:
निष्कर्ष:
- आर्थिक स्थिरता और सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये वैश्विक ऋण प्रबंधन के एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- बढ़ते वैश्विक ऋण से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिये ऋण स्तर की निगरानी करना, विवेकपूर्ण राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों को लागू करने के साथ अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणालियों को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।
- ऋण संचय और आर्थिक विकास के मध्य सही संतुलन बनाना दीर्घकालिक आर्थिक समृद्धि के लिये आवश्यक है।