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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    सार्वजनिक ऋण से क्या समझते हैं? इसके प्रबंधन के उद्देश्यों की चर्चा कीजिये और बताएँ कि ऋण प्रबंधन को मौद्रिक नीति एवं केन्द्रीय बैंक के सीमा-क्षेत्र से बाहर करना क्यों विवेकपूर्ण है?

    05 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • सार्वजनिक ऋण का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • सार्वजनिक ऋण प्रबंधन के उद्देश्यों की चर्चा करें।
    • ऋण प्रबंधन को मौद्रिक नीति एवं केन्द्रीय बैंक के सीमा-क्षेत्र से अलग करने के लाभों को बताएँ।

    सार्वजनिक ऋण भारत सरकार द्वारा लिये गए समस्त उधारी को प्रदर्शित करता है। इसके अंतर्गत ट्रेज़री बिल, बाज़ार ऋण, रिज़र्व बैंक द्वारा जारी विशेष ऋण प्रतिभूतियाँ यथा आंतरिक ऋण और बकाया बाह्य ऋण शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि भविष्य निधि, छोटी बचतें, आरक्षित निधियाँ तथा जमाओं को इसके तहत नहीं शामिल किया जाता है। सरकार द्वारा ये ऋण सामान्य तौर विकासात्मक गतिविधियों को पूरा करने के लिये, बज़ट घाटे को पूरा करने के लिये और युद्ध जैसे असाधारण स्थितियों से निपटने के लिये आम जनता से लिये  जाते हैं।

    ऋण प्रबंधन के उद्देश्य:

    • जब सरकार आम जनता से ऋण लेती है तो ऐसे में लोगों के पास उपलब्ध सीमित उत्पादक पूंजी सार्वजनिक ऋण में  तब्दील होकर कई बार अनुत्पादक हो जाती है जो दीर्घकाल में विकास को हतोत्साहित कर सकती है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र की उधारी से आम लोगों के पैसे की कमी हो जाती है। इसके कारण बाज़ार में ब्याज दर में वृद्धि होने की आशंका हो जाती है। अतः सार्वजनिक ऋण का प्रबंधन क्राउडिंग आउट के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिये मददगार साबित हो सकता है।
    • सरकार जब सार्वजनिक क्षेत्रों से लिये गए ऋण के बदले ब्याज प्रदान करती है, तो इस देय ब्याज की अदायगी के लिये सरकार उच्च कराधान का सहारा लेती है। ऐसे में ऋण प्रबंधन कर-प्रणाली को सरल और दक्ष बना सकती है।
    • सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन के माध्यम से व्यष्टि अर्थशास्त्री संकेतकों जैसे राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति और चालू खाता घाटा को कम करने में मदद मिल सकती है।   

    ऋण प्रबंधन को मौद्रिक नीति एवं केन्द्रीय बैंक के सीमा क्षेत्र से अलग करने की आवश्यकता:

    • वर्तमान में सार्वजनिक ऋण के अंतर्गत बाह्य ऋण का प्रबंधन वित्त मंत्रलय द्वारा और आंतरिक ऋण का प्रबंधन RBI द्वारा किया जाता है। यदि इसका प्रबंधन किसी विशेषीकृत या पेशेवर संस्था द्वारा हो तो यह अधिक समावेशी साबित हो सकता है।  
    • वर्तमान में ब्याज दरों को कम रखने और सरकारी प्रतिभूतियों से उच्च रिटर्न अर्जित करने, इन दोनों ही के कार्यों के लिये RBI ज़िम्मेदार है। ऐसे में हितों के संघर्ष से बचने के लिये ऋण प्रबंधन को केन्द्रीय बैंक की परिधि से अलग करना ज़रूरी है।
    • यह कदम सरकारी प्रतिभूतियों के लिये बाज़ार में तरलता और पहुँच को भी सुगम बनाएगी। साथ ही यह सरकारी प्रतिभूतियों के कैप्टिव बायर्स के रूप में अनुसूचित बैंकों के उपयोग की प्रथा को रोकेगी।

    उल्लेखनीय है कि ऋण प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिये वित्त मंत्रालय द्वारा एक सार्वजनिक ऋण प्रबंधन प्रकोष्ठ स्थापित करने का निर्णय किया गया है। इसे दो वर्षों के अंदर एक स्वतंत्र  और सांविधिक ऋण प्रबंधन एजेंसी के रूप में अपग्रेड किया जाएगा।

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