डेली न्यूज़ (15 Jan, 2025)



सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक विवाह पर पुनर्विचार की याचिका खारिज

प्रिलिम्स के लिये:

समलैंगिक विवाह, धारा 377, भारतीय दंड संहिता (IPC), समलैंगिकता, LGBTQ समुदाय, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, संविधान पीठ

मेन्स के लिये:

समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से भारतीय समाज के सामाजिक ताने-बाने एवं प्रगति पर प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) की 5 सदस्यीय पीठ ने हाल ही में अपने फैसले में अक्तूबर 2023 के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें समलैंगिक विवाह को वैध बनाना अस्वीकार किया गया था। 

  • अक्तूबर 2023 के फैसले में भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने समलैंगिक विवाहों की संवैधानिक वैधता के खिलाफ 3:2 बहुमत से फैसला दिया।

समलैंगिक विवाह क्या है?

  • परिचय:
    • समलैंगिक विवाह से तात्पर्य सामान लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह (अर्थात दो पुरुषों के बीच या दो महिलाओं के बीच विवाह) से है।
  • भारत में वैधता: भारत में समान लिंग वाले विवाह को मान्यता नहीं दी गई है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 2023: सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने फैसला सुनाया कि विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 समान-लिंग वाले युगलों पर लागू नहीं होता है और कहा कि इस पर कानून बनाना संसद और राज्य विधानमंडल का कार्य है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान के तहत विवाह करना कोई मूल अधिकार नहीं है।
    • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने समान लिंग वाले युगलों के लिये अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के तहत लिव-इन पार्टनर के समान प्रदत्त समान लाभ प्राप्त करने के अधिकार को बरकरार रखा है।

समलैंगिक विवाह की मान्यता पर वैश्विक स्थिति

  • वर्ष 2024 तक अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और फ्राँस सहित विश्व के 30 से अधिक देशों ने समलैंगिक विवाह को वैध कर दिया है।
  • नीदरलैंड वर्ष 2001 में नागरिक विवाह कानून में संशोधन करके समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वाला पहला देश था।
  • ताइवान, एशिया का पहला देश था जिसने समलैंगिक विवाह को वैध बनाया।
  • ईरान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब एवं ब्रुनेई जैसे कई देश न केवल समलैंगिक विवाहों पर प्रतिबंध लगाते हैं बल्कि इसके लिये यहाँ मृत्युदंड या शारीरिक दंड सहित कठोर दंड का भी प्रावधान है।

विशेष विवाह अधिनियम (SMA) 1954 क्या है?

  • परिचय:
    • SMA, 1954 भारत में विभिन्न धर्मों या जातियों के बीच विवाह के लिये विधिक ढाँचा प्रदान करता है।
    • इसके द्वारा सिविल विवाहों का विनियमन किया जाता है, जहाँ धार्मिक प्राधिकारियों के बजाय राज्य, विवाह को मान्यता देता है।
  • प्रयोज्यता: 
    • SMA भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध सहित सभी धर्मों के लोगों पर लागू होता है।
    • SMA, 1954 के तहत विदेशी भी भारत में अपने विवाह का पंजीकरण करा सकते हैं, यदि दोनों पक्षों के पास वैध पासपोर्ट हों और विवाह नोटिस दाखिल करने से पहले कम से कम एक पक्ष ने भारत में न्यूनतम 30 दिन तक निवास किया हो।
  • प्रमुख प्रावधान:
    • विवाह मान्यता: यह अधिनियम विवाहों के पंजीकरण, विधिक मान्यता प्रदान करने तथा उत्तराधिकार, विरासत एवं सामाजिक सुरक्षा लाभ जैसे अधिकार प्रदान करने की सुविधा प्रदान करता है।
    • नोटिस की आवश्यकता: धारा 5 के अनुसार, संबंधित पक्षों को ज़िले के विवाह अधिकारी को लिखित नोटिस देना होगा, जिसमें कम से कम एक पक्ष नोटिस देने से पहले कम से कम 30 दिनों तक ज़िले में निवास कर रहा हो। 
      • धारा 7 के अनुसार नोटिस प्रकाशित होने के 30 दिनों के अंदर विवाह पर आपत्तियाँ दर्ज़ की जा सकती हैं।
    • आयु सीमा: SMA के तहत विवाह की न्यूनतम आयु पुरुषों के लिये 21 वर्ष तथा महिलाओं के लिये 18 वर्ष है।

समलैंगिक विवाह के पक्ष में क्या तर्क हैं?

  • समानता और मानवाधिकार: समान लिंग वाले युगलों को विवाह करने के अधिकार से वंचित करना इन्हें द्वितीय श्रेणी का दर्जा प्रदान करता है, जो अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सम्मेलनों के तहत  मूल अधिकारों का उल्लंघन है।
    • UDHR द्वारा विवाह के अधिकार को मूल मानवाधिकार माने जाने के साथ समानता एवं सम्मान पर बल दिया गया है। भारत में कार्यकर्त्ताओं का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के अनुरूप है।
  • साथ में रहने का मूल अधिकार: लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2006 और शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ, 2018 जैसे निर्णयों में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत साथ में रहने को मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी है, जिससे सरकार पर समान लिंग वाले युगलों के बीच संबंधों को विधिक रूप से मान्यता देने का दबाव पड़ा।
  • विधिक और आर्थिक लाभ: समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से विवाह से संबंधित कानूनी एवं आर्थिक लाभ, उत्तराधिकार अधिकार तथा सामाजिक सुरक्षा लाभों तक समान पहुँच मिलती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत: समलैंगिक विवाह 30 से अधिक देशों में विधिक है, जो वैश्विक मानवाधिकार सिद्धांतों के अनुरूप है।

समलैंगिक विवाह के विपक्ष में तर्क क्या हैं?

  • धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ: कई धार्मिक और सांस्कृतिक समूह इस बात पर बल देते हैं कि विवाह पुरुष तथा महिला के बीच होना चाहिये तथा उनका तर्क है कि विवाह को पुनर्परिभाषित करना उनके आधारभूत मूल्यों और मान्यताओं को चुनौती देने के समान है।
  • प्राकृतिक व्यवस्था के विरुद्ध: कुछ लोग समलैंगिक विवाह का इस आधार पर विरोध करते हैं कि विवाह का प्राथमिक उद्देश्य संतानोत्पत्ति (जिसे समलैंगिक युगल पूरा नहीं कर सकते) है, इस प्रकार इससे प्राकृतिक व्यवस्था का खंडन होता है।
  • कानूनी और विनियामक चुनौतियाँ: इससे संबंधित संभावित कानूनी जटिलताओं के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गई हैं, जैसे कि उत्तराधिकार में आवश्यक समायोजन और संपत्ति कानून, जिसमें जटिल विधिक परिवर्तन शामिल हो सकते हैं।
  • गोद लेने संबंधी मुद्दे: जब समलैंगिक युगल बच्चों को गोद लेने का विकल्प चुनते हैं तो उन्हें सामाजिक कलंक, भेदभाव का सामना (विशेष रूप से भारतीय समाज में) करना पड़ सकता है तथा इससे बच्चे के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भारत में LGBTQIA+ और उनके अधिकार

  •  LGBTQIA+ एक संक्षिप्त शब्द है जो समलैंगिक (Lesbian/Gay), उभयलिंगी (Bisexual), ट्रांसजेंडर (Transgender), क्वीर(Queer), इंटरसेक्स (Intersex) और अलैंगिक (Asexual) का प्रतिनिधित्व करता है।
  • ‘+’ कई अन्य पहचानों का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें अभी भी खोजा और समझा जा रहा है। यह परिवर्णी शब्द लगातार विकसित हो रहा है और इसमें गैर-बाइनरी तथा पैनसेक्सुअल जैसे अन्य शब्द भी शामिल हो सकते हैं।
  • भारत में LGBTQIA+ की मान्यता:
    • 2014: सर्वोच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक फैसले में ट्रांसजेंडरों को तीसरे लिंग के तौर पर मान्यता दी। (राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ, जिसे आमतौर पर NALSA निर्णय के नाम से जाना जाता है)।
    • 2018 (नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ): एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाली धारा 377 को रद्द कर दिया।
    • 2019: उभयलिंगी व्यक्ति ( अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 पारित किया गया, जो कानूनी मान्यता प्रदान करता है और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव पर रोक लगाता है।
    • 2022: अगस्त 2022 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक युगलों और समलैंगिक संबंधों को शामिल करने के लिये परिवार की परिभाषा का विस्तार किया।
    • 2023: अक्तूबर 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की याचिकाओं को खारिज कर दिया।

आगे की राह

  • विधिक सुधार: SMA, 1954 में संशोधन करके समलैंगिक युगलों को विषमलैंगिक युगलों के समान अधिकार एवं विधिक लाभ प्रदान किये जा सकेंगे। 
    • वैकल्पिक रूप से समलैंगिक व्यक्तियों के लिये समान अधिकार सुनिश्चित करने के क्रम में अनुबंध-आधारित समझौते शुरू किये जा सकते हैं।
  • संवाद एवं सहभागिता: धार्मिक और सांस्कृतिक नेतृत्वकर्त्ताओं के साथ सहभागिता करने से पारंपरिक मान्यताओं एवं समलैंगिक संबंधों पर विकसित दृष्टिकोणों के बीच के अंतराल को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • न्यायिक नेतृत्व में सुधार: LGBTQIA+ समुदाय समलैंगिक विवाह को प्रतिबंधित करने वाले मौजूदा कानूनों को न्यायालयों में चुनौती दे सकता है, जिससे संभवतः इसकी मान्यता के लिये कानूनी प्रेरणा मिल सकती है।
  • सहयोग: समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिये LGBTQIA+ समुदाय, सरकार, नागरिक समाज एवं धार्मिक नेताओं सहित सभी हितधारकों के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि एक समावेशी समाज का निर्माण किया जा सके, जहाँ सभी को समान अधिकार प्राप्त हों।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

Q. भारत में समलैंगिक विवाह के वैधीकरण के साथ इससे संबंधित विमर्श पर चर्चा कीजिये। इस मुद्दे में  शामिल विधिक तथा सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने का संभावित तरीका क्या हो सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार की रक्षा करता है? (2019)

(a) अनुच्छेद 19
(b) अनुच्छेद 21
(c) अनुच्छेद 25
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे की जाँच कीजिये। (2017)


विद्युत वितरण कंपनियों का निजीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, विद्युत वितरण कंपनियाँ (DISCOM), समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक (AT&C) घाटे, UDAY योजना, एकीकृत विद्युत विकास योजना (IPDS)

मेन्स के लिये:

विवेकपूर्ण राजकोषीय व्यवस्था के लिये विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMs) में सुधार का महत्त्व

स्रोत: फाइनेंशियल एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

दिसंबर 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार दारा चंडीगढ़ में विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOM) का निजीकरण किये जाने की योजना का समर्थन करते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा।

विद्युत वितरण कंपनियों के निजीकरण की क्या आवश्यकता है?

  • उच्च AT&C घाटा: किये गए सुधारों के बावजूद भी भारत का कुल तकनीकी और वाणिज्यिक (AT&C) घाटा वित्त वर्ष 2024 में 17.6% के उच्च स्तर पर बना रहा, जो विद्युत चोरी और बिना बिल की विद्युत आपूर्ति जैसे मुद्दों को दर्शाता है जो लंबे समय से बने हुए हैं। 
    • ये घाटे DISCOMs की वित्तीय स्थिति को कमज़ोर करते हैं और बुनियादी ढाँचे में निवेश करने की उनकी क्षमता भी सीमित होती है।
  • प्रणालीगत अक्षमताएँ: 87% की बिलिंग दक्षता और 97.3% की संग्रहण दक्षता निरंतर बनी परिचालन अक्षमता को दर्शाता है।
    • इस अंतराल से राजस्व सृजन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे DISCOM पर वित्तीय दबाव बढ़ता है।
  • निरंतर बढ़ता वित्तीय दबाव: आपूर्ति की औसत लागत (ACS) और औसत प्राप्ति योग्य राजस्व (ARR) के बीच का अंतर वित्त वर्ष 2022 में 33 पैसे प्रति यूनिट से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 55 पैसे प्रति यूनिट हो गया।
    • इस अंतराल से कंपनियों का ऋण बढ़ता है जिससे वे राज्य सब्सिडी पर निर्भर हो जाते हैं।
  • राज्यों पर सब्सिडी का बोझ: भारत के विद्युत वितरण क्षेत्र में वित्तीय घाटा वित्त वर्ष 2022 में 44,000 करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में लगभग 79,000 करोड़ रुपए हो गया।
    • यह निर्भरता विद्युत क्षेत्र में अस्थिर वित्तीय प्रबंधन को दर्शाती है।
  • विद्युत की बढ़ती मांग और लागत: वित्त वर्ष 23 में विद्युत की मांग में 8% की तीव्र वृद्धि, महंगे कोयले के आयात पर निर्भरता और उच्च विनिमय मूल्यों के कारण औसत विद्युत खरीद लागत 71 पैसे/किलोवाट घंटा बढ़ गई। 
    • संरचनात्मक परिवर्तनों के बिना, इन बढ़ती लागतों से सार्वजनिक क्षेत्र की DISCOM के लिये वित्तीय अस्थिरता और बढ़ सकती है।
  • निजी मॉडलों की प्रमाणित सफलता: दिल्ली में, निजीकरण के कारण AT&C घाटे में उल्लेखनीय कमी आई, जो वर्ष 2002 में 50% से अधिक था और बाद में एकल अंक के स्तर पर आ गया, जिससे यह उजागर हुआ कि परिचालन में सुधार हो सकता है।
    • निजीकरण के कारण दिल्ली सरकार को वार्षिक रूप से लगभग 1,200 करोड़ रुपए की बचत हुई, जो पूर्व में दिल्ली विद्युत बोर्ड पर खर्च होता था।
  • वर्तमान सार्वजनिक क्षेत्र सुधारों की अप्रभावीता: UDAY योजना जैसी सरकारी पहलों से घाटे में कमी लाने या परिचालन दक्षता में सुधार करने में सीमित सफलता प्राप्त हुई है।
    • पेशेवर प्रबंधन, आधुनिक प्रौद्योगिकियों और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी को आवश्यक माना जाता है।

DISCOM के निजीकरण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • निजीकरण के प्रति कर्मचारियों का प्रतिरोध: सार्वजनिक क्षेत्र की DISCOM कंपनियों के कर्मचारी प्रायः नौकरी छूटने, प्रतिकूल सेवा शर्तों और छंटनी के डर से निजीकरण का विरोध करते हैं।
    • दिल्ली की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना जैसे अनुभव नौकरी की सुरक्षा और वित्तीय स्थिति को लेकर कर्मचारियों की चिंताओं को उजागर करते हैं।
  • जटिल विधिक और विनियामक परिवेश: विद्युत अधिनियम, 2003 के अनुपालन, पूर्ण निजीकरण पर अनिश्चितता और अस्पष्ट सुधार विकल्पों के कारण चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • उदाहरण के लिये, चंडीगढ़ में विधिक चुनौतियों के कारण यह चिंता उत्पन्न हुई कि क्या निजी बोलीदाता ने सभी वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति की, जिसके कारण प्रक्रिया में देरी हुई।
  • उपभोक्ताओं के लिये टैरिफ संबंधी चिंताएँ: निजीकरण के बाद, परिचालन लागत और बुनियादी ढाँचे में निवेश को कवर करने के लिये प्रायः टैरिफ बढ़ाना आवश्यक हो जाएगा, जिससे उपभोक्ताओं के विरोध की संभावना बढ़ जाती है।
    • लागत वसूली की आवश्यकता और सामर्थ्य के बीच संतुलन स्थापित करना नियामकों और निजी क्षेत्र के लिये एक गंभीर चुनौती है।
  • संक्रमणकालीन समर्थन का अभाव: 1990 के दशक में ओडिशा की निजीकरण विफलता एक उदाहरण है, जहाँ पर्याप्त वित्तीय और परिचालन संक्रमणकालीन समर्थन के अभाव के कारण वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हुए।
    • ओडिशा के विपरीत, दिल्ली की सफलता का श्रेय 3,450 करोड़ रुपए की संक्रमणकालीन निधि को दिया जा सकता है, जिससे DISCOM को प्रारंभिक परिचालन संबंधी बाधाओं का प्रबंधन करने में सहायता मिली।

राज्य DISCOM की सहायता हेतु सरकार की क्या कार्यनीति है?

  • योजनाएँ:
    • उज्ज्वल DISCOM एश्योरेंस योजना (UDAY): वित्तीय रूप से संकटग्रस्त DISCOM को संरक्षण प्रदान करने के लिये वर्ष 2015 में शुरू की गई UDAY योजना से राज्यों को कम ब्याज़ वाले बॉन्ड के रूप में 75% देनदारियाँ लेने की अनुमति प्रदान कर उनके ऋण में कमी आई है।
      • इसका लक्ष्य स्मार्ट मीटरिंग और चोरी में कमी जैसे उपायों के माध्यम से AT&C घाटे और बिलिंग दक्षता में सुधार करना था। 
    • संशोधित वितरण क्षेत्र योजना (RDSS): 5 वर्ष की अवधि (वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2025-26) के लिये 3,03,758 करोड़ रुपए के बजट के साथ प्रस्तुत की गई।
      • इस योजना का उद्देश्य समग्र देश में AT&C घाटे में 12 से 15% की कमी लाना और 2024-25 तक ACS और ARR के बीच के अंतर को खत्म करना है।
    • एकीकृत विद्युत विकास योजना (IPDS): शहरी विद्युत वितरण अवसंरचना को मज़बूत करने के लिये शुरू की गई इस योजना का लक्ष्य विश्वसनीयता में सुधार, तकनीकी घाटे को कम करना और शहरी क्षेत्रों में बेहतर ग्राहक सेवा सुनिश्चित करना है
  • अन्य उपाय:
    • एकीकृत रेटिंग: DISCOM की एकीकृत रेटिंग, जो प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है, से परिचालन और वित्तीय मापदंडों का मूल्यांकन किया जाता है, जिससे अकुशलताओं की पहचान करने और जवाबदेही को प्रोत्साहित करने में मदद मिलती है।
      • DISCOM की एकीकृत रेटिंग के 12वें संस्करण में AT&C घाटे में कमी और बेहतर भुगतान चक्र जैसे सुधारों पर प्रकाश डाला गया।

Discom_Rating

  • वित्तीय सहायता और सब्सिडी: वित्त वर्ष 2023 के दौरान, राज्य सरकारों ने बुक की गई टैरिफ सब्सिडी का 108% वितरित किया, जिससे DISCOM द्वारा घाटे की स्थिति में भी परिचालन जारी रखना सुनिश्चित किया गया।
    • दिल्ली जैसे मामलों में, निजीकरण के बाद परिचालन को स्थिर करने में 3,450 करोड़ रुपए का संक्रमणकालीन वित्तपोषण सहायक रहा।
  • विनियामक सुधार: विलंबित भुगतान अधिभार नियमों के अंतर्गत देय दिनों की संख्या घटाकर 126 दिन और प्राप्य दिनों की संख्या घटाकर 119 दिन कर दिया है, जिससे DISCOM पर चलनिधि संबंधी दबाव कम हो गया है।
    • ये नियम उत्पादन एवं पारेषण कंपनियों को समय पर भुगतान के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
  • केंद्र शासित प्रदेशों (UT) में निजीकरण: केंद्र सरकार ने केंद्र शासित प्रदेशों की DISCOM के निजीकरण की पहल की, जिसमें दादरा और नागर हवेली और दमन और दीव 2022 में पहले राज्य रहे।
    • चंडीगढ़ और पुद्दुचेरी में हुई प्रगति, प्रतिरोध और मुकदमों के बावजूद जारी प्रयासों को दर्शाती है।

आगे की राह

  • सहयोगात्मक हितधारक सहभागिता: सरकारों को चिंताओं का समाधान करने और आम सहमति बनाने के लिये कर्मचारियों, उपभोक्ताओं और राजनीतिक समूहों को शामिल करना चाहिये, ताकि सुचारु परिवर्तन सुनिश्चित हो सके।
    • पेंशन देयता साझाकरण जैसे सुरक्षा उपायों के बारे में स्पष्ट संचार से प्रतिरोध को कम किया जा सकता है।
  • नियामक सुदृढ़ीकरण: राज्य विद्युत नियामक आयोगों को पारदर्शी टैरिफ निर्धारण लागू करने, दक्षता को प्रोत्साहित करने और उपभोक्ता हितों की रक्षा करने के लिये सशक्त बनाया जाना चाहिये।
  • क्रमिक टैरिफ युक्तिकरण: टैरिफ समायोजन की विधि चरणबद्ध होनी चाहिये तथा लागत वसूली सुनिश्चित करते हुए सुभेद्य उपभोक्ताओं का सामर्थ्य बनाए रखने के लिये के लिये सब्सिडी प्रदान की जानी चाहिये।
  • बुनियादी ढाँचे का उन्नयन: सेवा वितरण में सुधार और घाटे को कम करने के लिये ग्रिडों का आधुनिकीकरण, स्मार्ट मीटरिंग शुरू करना और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • चरणबद्ध विधि से खुदरा प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना: यद्यपि पूर्ण निजीकरण प्रभावी है, लेकिन चरणबद्ध तरीके से खुदरा प्रतिस्पर्द्धा की संभावना खोजने से उपभोक्ताओं को विकल्प मिल सकता है और समय के साथ सेवा की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
  • सर्वोत्तम प्रथाओं से सीख लेना: सफल (दिल्ली) और असफल (ओडिशा) दोनों मॉडलों से सीख लेकर सर्वोत्तम प्रथाओं का क्रियान्वन करने से निजीकरण के लिये प्रभावी नीतियाँ और रूपरेखा तैयार करने में मदद मिल सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में DISCOM के निजीकरण को आवश्यक बनाने वाले प्रमुख कारक और चुनौतियाँ क्या हैं और प्रणालीगत सुधार से किस प्रकार इनका समाधान किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा सरकार की एक योजना 'उदय'(UDAY) का उद्देश्य है? (2016)

(a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्टअप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
(b) वर्ष 2018 तक देश के हर घर में विद्युत पहुँचाना।
(c) कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को समय के साथ प्राकृतिक गैस, परमाणु, सौर, पवन और ज्वारीय विद्युत संयंत्रों से बदलना।
(d) विद्युत वितरण कंपनियों के बदलाव और पुनरुद्धार के लिये वित्त प्रदान करना।

उत्तर: (d)


भारत का जीनोमिक डेटा सेट

प्रिलिम्स के लिये:

जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट, संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, बायोटेक-प्राइड दिशानिर्देश, इंडिजेन परियोजना

मेन्स के लिये:

BioE3, भारत का जैव प्रौद्योगिकी विकास और नवाचार, जैव अर्थव्यवस्था, जीनोम अनुक्रमण

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

भारत ने नई दिल्ली में जीनोम इंडिया डेटा कॉन्क्लेव में जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (GIP) के तहत भारतीय जीनोमिक डेटा (IGD) सेट तथा डेटा प्रोटोकॉल के आदान-प्रदान के लिये फ्रेमवर्क (FeED) और भारतीय जैविक डेटा केंद्र (IBDC) पोर्टल जैसे ढाँचे के शुभारंभ के साथ ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की।

  • ये पहल भारत को जीनोमिक्स में अग्रणी बनाने के साथ वैश्विक शोधकर्त्ताओं की जीनोम नमूनों तक पहुँच बढ़ाने तथा जीनोमिक डेटा में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने पर केंद्रित है।

जीनोम इंडिया डेटा कॉन्क्लेव की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • भारतीय जीनोमिक डेटा सेट: इसमें एक व्यापक भारतीय जीनोमिक डेटा सेट शुरू किया गया, जिसमें 10,000 संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण (WGS) नमूने शामिल हैं, जिन्हें भारतीय जैविक डेटा केंद्र (IBDC) में संग्रहित किया गया है, जो जीवन विज्ञान डेटा के लिये भारत का पहला राष्ट्रीय भंडार है।
    • यह डेटासेट अब विश्व भर के शोधकर्त्ताओं के लिये उपलब्ध है, जो जीनोमिक्स अनुसंधान एवं वैयक्तिक चिकित्सा में प्रगति को समर्थन प्रदान करता है।
    • IBDC पोर्टल आनुवंशिक डेटा तक निर्बाध पहुँच की सुविधा प्रदान करने पर केंद्रित है।
  • FeED प्रोटोकॉल: FeED, बायोटेक-PRIDE (डेटा एक्सचेंज के माध्यम से अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देना) दिशानिर्देशों के तहत उच्च गुणवत्ता वाले जीनोमिक डेटा के नैतिक, पारदर्शी तथा सुरक्षित साझाकरण को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
  • जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट: जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के नेतृत्व में जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (GIP) के महत्त्व पर बल देते हुए, यह पहल भारत की आनुवंशिक विविधता का एक व्यापक डेटाबेस प्रदान करती है।

बायोटेक-PRIDE दिशानिर्देश

  • DBT द्वारा वर्ष 2021 में जारी "बायोटेक-PRIDE दिशानिर्देश" भारत में अनुसंधान समूहों के बीच जैविक डेटा के आदान-प्रदान को सक्षम बनाने पर केंद्रित हैं। 
    • ये ज्ञान साझा करने, बेहतर एकीकरण, निर्णय लेने तथा न्यायसंगत पहुँच सुनिश्चित करने के लिये ढाँचा प्रदान करते हैं। 
    • ये साझाकरण को बढ़ावा देने के साथ अनुसंधान में सार्वजनिक निवेश के लाभ को अधिकतम करने पर केंद्रित हैं।
  • इन दिशानिर्देशों के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी हरियाणा के क्षेत्रीय जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (RCB) स्थित भारतीय जैविक डाटा केंद्र (IBDC) की है।
    • बायोटेक-प्राइड दिशानिर्देशों के तहत, मौजूदा डेटासेट को IBDC से जोड़ा जाएगा, जिससे बायो-ग्रिड का निर्माण होगा। 
      • यह बायो-ग्रिड जैविक आँकड़ों के लिये एक राष्ट्रीय भंडार के रूप में कार्य करेगा जिससे सुरक्षा, मानक और गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए इसके आदान-प्रदान को सक्षम किया जा सकेगा तथा स्पष्ट डेटा एक्सेस प्रोटोकॉल स्थापित किया जा सकेगा।
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा स्थापित RCB जैव प्रौद्योगिकी शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रशिक्षण पर केंद्रित है। 
      • इसे वर्ष 2016 में राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान के रूप में मान्यता दी गई है। RCB स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने के लिये नवाचार को बढ़ावा देने के साथ कुशल मानव संसाधन विकसित करने पर केंद्रित है।

जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट क्या है?

  • परिचय: GIP वर्ष 2020 में DBT द्वारा शुरू की गई एक प्रमुख पहल है, जिसका उद्देश्य भारत की आनुवंशिक विविधता की मैपिंग करना है। 
  • इसका उद्देश्य भारत के विविध जनसंख्या समूहों के जीनोम को अनुक्रमित एवं विश्लेषित करना है जिससे देश की अद्वितीय आनुवंशिक संरचना के बारे में जानकारी मिल सके।
  • उद्देश्य: स्वास्थ्य, रोग प्रवृत्ति तथा जनसंख्या-विशिष्ट लक्षणों का अध्ययन करने के क्रम में आधारभूत आनुवंशिक मैपिंग तैयार करना।
  • दायरा: GIP के पहले चरण में 99 जातीय समूहों के 10,000 व्यक्तियों के जीनोम को अनुक्रमित किया जाना शामिल है। दीर्घकालिक योजनाओं का लक्ष्य इसे 1 मिलियन जीनोम तक बढ़ाना है।
  • GIP का दूसरा चरण कैंसर, मधुमेह एवं दुर्लभ बीमारियों से ग्रस्त व्यक्तियों के जीनोम अनुक्रमण पर केंद्रित है।
  • इससे रोगग्रस्त जीनोम की स्वस्थ जीनोम से तुलना करके इन स्थितियों से संबंधित जीन की पहचान करने में मदद मिलेगी।
  • भारत के लिये महत्त्व: 4,600 से अधिक विशिष्ट जनसंख्या समूहों के साथ, भारत की आनुवंशिक विविधता अद्वितीय है।
  • इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारतीय लोगों से संबंधित विशिष्ट आनुवंशिक कारकों का पता लगाना है, जैसे दुर्लभ रोग एवं MYBPC3 जैसे उत्परिवर्तन (जो शीघ्र हृदयाघात से संबंधित हैं), जो वैश्विक डेटाबेस में नहीं मिलते हैं।

जीनोम अनुक्रमण

  • डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड: DNA में आनुवंशिक जानकारी संग्रहित रहती है। यह सभी जीवों की वृद्धि, विकास एवं क्रियाप्रणाली का आधार है।
    • DNA, कुंडलित आकार का एक डबल-स्ट्रैंडेड अणु है जिसे डबल हेलिक्स के नाम से जाना जाता है।
    • DNA का प्रत्येक स्ट्रैंड न्यूक्लियोटाइड से बना होता है, जिसमें एक फॉस्फेट अणु, एक डीऑक्सीराइबोज शर्करा तथा एक नाइट्रोजन युक्त क्षार शामिल होता है।
  • जीनोम: जीनोम किसी कोशिका में DNA अनुदेशों का संपूर्ण समुच्चय है। मनुष्यों में, यह गुणसूत्रों के 23 युग्म से मिलकर बना होता है। 
    • मानव जीनोम की एक प्रति में DNA के लगभग 3 अरब क्षारक युग्म होते हैं, जो इन 23 गुणसूत्रों में वितरित होते हैं। 
    • जीनोम में व्यक्ति के विकास और कार्यप्रणाली से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी होती है।
  • जीन: यह आनुवंशिकता की मूल इकाइयाँ हैं जो माता-पिता से संतति में हस्तांतरित होती हैं। ये DNA अनुक्रमों से बने होते हैं और कोशिका केंद्रक के भीतर गुणसूत्रों पर विशिष्ट स्थानों पर व्यवस्थित होते हैं।
  • जीनोम अनुक्रमण: इसमें डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) में न्यूक्लियोटाइड बेस {एडेनिन (A), साइटोसिन (C), गुआनिन (G), और थाइमिन (T)} के क्रम का अध्ययन शामिल है।
    • यह प्रक्रम किसी व्यक्ति की आनुवंशिक संरचना को समझने में मदद करता है तथा उसके गुणों, स्वास्थ्य जोखिमों और संभावित रोगों के संबंध में जानकारी प्रदान करता है।
    • जीनोम अनुक्रमण किसी विशेष जीन, खंड या जीनोम के छोटे भाग पर केंद्रित हो सकता है।
  • संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण (WGS): इसमें एक ही बार में किसी जीव के संपूर्ण जीनोम को अनुक्रमित करना शामिल है, जिसमें उसके सभी जीन और गैर-कोडिंग अंश (संपूर्ण DNA अनुक्रम) शामिल हैं। 
  • WGS किसी जीव के आनुवंशिक पदार्थ का पूर्ण एवं व्यापक प्रतिचित्रण उपलब्ध कराता है।

Gene_Editing_and_Gene_Sequencing

स्वदेशी जीनोमिक डेटा के प्रमुख लाभ क्या हैं?

  • व्यक्तिगत चिकित्सा: भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को वन साइज़ फिट्स ऑल के दृष्टिकोण के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें उपचार के दौरान प्रायः जनसंख्या की आनुवंशिक विविधता को ध्यान में नहीं रखा जाता है।
    • स्वदेशी जीनोमिक डेटा (IGD) भारत की जनसांख्यिकी के लिये अनुकूलित स्वास्थ्य देखभाल समाधान सक्षम करता है, जिससे उपचार की प्रभावशीलता और परिणामों में सुधार होता है।
  • जैवअर्थव्यवस्था विकास: IGD से भारत की बढ़ती जैवअर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, जो 2014 में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई है। 
  • अग्रणी देश के रूप में भारत की स्थापना: भारत जैवप्रौद्योगिकी में विश्व स्तर पर 12वें स्थान पर तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तीसरे स्थान पर है।
    • वर्ष 2023 में 8,500 से अधिक बायोटेक स्टार्टअप्स के साथ सबसे अधिक वैक्सीन उत्पादक के रूप में, भारत वैश्विक जैवअर्थव्यवस्था का नेतृत्व करने की ओर अग्रसर है। 
    • जीनोमिक नवाचार के केंद्र के रूप में भारत की स्थापना के साथ IGD से विदेशी डेटाबेस पर निर्भरता कम होती है। 
  • उन्नत आनुवंशिक साधन: IGD क्षेत्रीय आनुवंशिक विविधताओं के लिये विशिष्ट जीनोमिक साधनों और नैदानिक ​​परीक्षणों के निर्माण की सुविधा प्रदान करता है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल में सटीकता में सुधार होता है।
  • कृषि और पर्यावरण अनुसंधान: यह उन आनुवंशिक विविधता के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है जिनसे फसल प्रजनन, रोग प्रतिरोध और पर्यावरणीय संधारणीयता में सुधार किया जा सकता है।

जैवप्रौद्योगिकी विकास संबंधी भारत की अन्य पहलें कौन-सी हैं?

विश्व की जीनोमिक परियोजनाएँ

  • मानव जीनोम परियोजना, जो कि अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा वित्तपोषित एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है, के अंतर्गत विश्व का पहला पूर्ण मानव जीनोम अनुक्रम था जो वर्ष 2003 में संपन्न हुआ था।
  • यूरोपीय संघ की '1+ मिलियन जीनोम' (1+MG) पहल का उद्देश्य संपूर्ण यूरोप में जीनोमिक और नैदानिक ​​डेटा की सुरक्षित पहुँच प्रदान करना, रोग की रोकथाम में सुधार के लिये अनुसंधान, स्वास्थ्य नीति तथा व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल में सहायता करना है।
  • अर्थ बायोजीनोम प्रोजेक्ट (EBP) वैश्विक पहल है, जिसका उद्देश्य पृथ्वी पर सभी ज्ञात यूकेरियोटिक प्रजातियों के जीनोम को अनुक्रमित और सूचीबद्ध करना है। इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना को भारत, चीन और अमेरिका का समर्थन प्राप्त है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत की आनुवंशिक विविधता और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के संदर्भ में जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (GIP) का क्या महत्त्व है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में, प्रायः समाचारों में आने वाले ‘जीनोम अनुक्रमण (जीनोम सीक्वेंसिंग)’ की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017)

  1. विभिन्न फसली पौधों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है। 
  2. यह तकनीक फसली पौधों की नई तकनीकों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने में मदद करती है।
  3.  इसका प्रयोग फसलों में पोषी-रोगाणु संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


वन अधिकार अधिनियम, 2006 पर जनजातीय मंत्रालय के निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006, बाघ अभयारण्य, वनवासी, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), लघु वनोपज (MFP), वनमित्र 

मेन्स के लिये:

वन अधिकार अधिनियम, चुनौतियाँ और उपाय।

स्रोत: इंडियन एक्प्रेस 

चर्चा में क्यों?

जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने राज्यों को बाघ अभयारण्यों में वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया है। 

जनजातीय मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी निर्देश की मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • वन अधिकार अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करना: मंत्रालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वन में रहने वाले समुदायों को वन अधिकार अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत उनके अधिकारों की कानूनी मान्यता के बिना बेदखल नहीं किया जा सकता ।
    • यह कदम विशेष रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में वनवासी समुदायों से अवैध बेदखली की शिकायतों के बाद उठाया गया है। 
  • पुनर्वास के लिये सहमति: FRA की धारा 4(2) सुरक्षा उपाय प्रदान करती है, जिसके तहत पुनर्वास के लिये ग्राम सभाओं की लिखित रूप में स्वतंत्र, सूचित सहमति प्राप्त करना अनिवार्य है। कानून में उन क्षेत्रों में बसने के अधिकार भी दिये गए हैं, जहाँ निवास करने का प्रस्ताव है।
    • राज्यों को बाघ अभ्यारण्यों में स्थित आदिवासी गाँवों तथा उनके वन अधिकार दावों की स्थिति का विवरण देते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी ।
    • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने बाघ अभयारण्यों में 591 गाँवों को स्थानांतरित करने के लिये समयसीमा भी मांगी है, जिससे संरक्षण और सामुदायिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाने को लेकर बहस तेज़ हो गई है।
  • शिकायत निवारण तंत्र: राज्यों को वन क्षेत्रों से बेदखली से संबंधित शिकायतों और शिकायतों को निपटाने के लिये शिकायत निवारण प्रणालियाँ स्थापित करने का निर्देश दिया गया है।

वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 क्या है?

  • इसके बारे में: इसे वन में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों (ST) और अन्य पारंपरिक वन निवासियों (OTFD) को आधिकारिक रूप से वन अधिकारों को मान्यता प्रदान करने के लिये अधिनियमित किया गया था, जो अपने अधिकारों के औपचारिक दस्तावेज़ीकरण के बिना पीढ़ियों से इन वनों में रह रहे हैं। 
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक वन प्रबंधन प्रथाओं के परिणामस्वरूप इन लोगों के साथ हुए अतीत के अन्याय की भरपाई करना है, जिसमें भूमि के साथ उनके घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभकारी संबंधों की उपेक्षा की गई थी।
    • भूमि तक स्थायी पहुँच और वन संसाधनों के उपयोग को सक्षम करके, जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देकर तथा उन्हें अवैध रूप से बेदखली एवं विस्थापन से बचाकर इन समुदायों को सशक्त बनाना।
  • प्रावधान: 
    • स्वामित्व अधिकार: इसके अंतर्गत लघु वन उपज (MFP) पर स्वामित्व का प्रावधान किया गया है और साथ ही वन उपज के संग्रह, उपयोग और निपटान की भी अनुमति प्रदान की गई है।
      • MFP से तात्पर्य वनस्पति मूल के सभी गैर-काष्ठ वन उत्पादों से है, जिसमें बाँस, झाड़-झंखाड़, स्टंप और बेंत शामिल हैं।
    • सामुदायिक अधिकार: इसमें निस्तार (सामुदायिक वन संसाधन का एक प्रकार) जैसे पारंपरिक उपयोग अधिकार शामिल हैं।
    • पर्यावास अधिकार: आदिम जनजातीय समूहों और पूर्व-कृषि समुदायों के उनके परंपरागत पर्यावासों के अधिकारों की रक्षा करता है।
    • सामुदायिक वन संसाधन (CFR): यह समुदायों को परंपरागत रूप से संरक्षित वन संसाधनों की रक्षा, पुनर्जनन और स्थायी प्रबंधन करने में सक्षम बनाता है।
      • यह अधिनियम सरकार द्वारा प्रबंधित लोक कल्याण परियोजनाओं के लिये वन भूमि के उपयोग की सुविधा प्रदान करता है, जो ग्राम सभा की स्वीकृति के अधीन है।

वन अधिकार अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन में क्या चुनौतियाँ हैं? 

  • व्यक्तिगत अधिकारों की मान्यता का अभाव: वन अधिकार अधिनियम के तहत व्यक्तिगत अधिकारों की मान्यता का वन विभाग की ओर से प्रतिरोध किया जाता है, जो वन संसाधनों पर इनके व्यक्तिगत नियंत्रण के समक्ष एक चुनौती है। 
    • असम में, झूम खेती की प्रथाओं से अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया जटिल हो जाती है जबकि महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले में अधिकारों की मान्यता में प्रगति के बावजूद सामुदायिक वन भूमि का वनेत्तर उद्देश्यों के लिये प्रयोग किये जाने का खतरा बना हुआ है, जिससे अप्रभावी कार्यान्वयन का पता चलता है।
  • तकनीकी मुद्दे: वनमित्र जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के कार्यान्वयन में अनुपयुक्त इंटरनेट कनेक्टिविटी और जनजातीय क्षेत्रों में कम साक्षरता दर के कारण गंभीर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे अधिकार के दावों के सुचारू प्रसंस्करण को सुविधाजनक बनाना कठिन हो जाता है।
  • परस्पर विरोधी कानून: FRA का भारतीय वन अधिनियम, 1927 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 जैसे अधिनियमों से मेल नहीं है। इस विसंगति से अस्पष्टता की स्थिति उत्पन्न होती है, क्योंकि अधिकारी FRA के आदेशों के स्थान पर परंपरागत वन प्रशासन को प्राथमिकता देते हैं।
  • उच्च अस्वीकृति दर: प्रायः बिना स्पष्ट स्पष्टीकरण अथवा पुनः अपील का अवसर दिये गए बिना कई दावों का उचित दस्तावेज़ों या साक्ष्यों के अभाव के कारण खारिज़ कर दिया जाता हैं। इससे वैध दावेदारों के पास कोई विकल्प नहीं रह जाता। 
  • ग्राम सभाओं का निम्न प्रदर्शन: ग्रामसभा में प्रायः अपनी ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से निभाने की क्षमता, संसाधन और प्रशिक्षण का अभाव होता है।
    • वनवासी समुदायों के स्थानीय संभ्रांत वर्ग का सामान्यतः निर्णय लेने की प्रक्रियाओं पर अधिक प्रभाव होता है जिससे लाभों पर उनका एकाधिकार हो जाता है और हाशिए पर स्थित समूह अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।
  • निष्कासन और विकास संघर्ष: वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के बावजूद, खनन, बांध और राजमार्ग जैसी बृहद स्तर की विकास परियोजनाओं के परिणामस्वरूप अक्सर वन में निवास करने वाले समुदायों का निष्कासन हो जाता है। 

आगे की राह

  • प्रतिरोध का समाधान: सामूहिक रूप से अधिकारों का दावा करने, वन विभागों के साथ संवाद को बढ़ावा देने और संधारणीय प्रबंधन और सशक्तीकरण के लिये FRA उद्देश्यों के साथ संरक्षण को संरेखित करने के लिये किसान उत्पादक संगठनों (FPO) जैसे जनजातीय या वनवासी निकायों का गठन किया जाना चाहिये। 
  • भारतीय वन अधिनियम, 1927 जैसे मौजूदा कानूनों में संशोधन किया जाना चाहिये, ताकि वन अधिकार अधिनियम के साथ संघर्ष कम हो और स्पष्ट, सहकारी शासन सुनिश्चित हो।
  • तकनीकी क्षमताओं में सुधार: जनजातीय क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ाने के साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म से संबंधित प्रशिक्षण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • व्यापक क्षमता निर्माण के लिये डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देते हुए प्रक्रिया को अधिक उपयोगकर्त्ता-अनुकूल बनाने के क्रम में दस्तावेज़ीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाना चाहिये।
  • विकास और सामुदायिक अधिकारों में संतुलन: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि बड़े पैमाने की विकास परियोजनाएँ सामुदायिक अधिकारों तथा वन समुदायों एवं जैवविविधता की रक्षा के लिये धारणीय प्रथाओं को एकीकृत करने पर केंद्रित हों।
  • सह-प्रबंधन मॉडल को बढ़ावा देकर संरक्षण एवं सामुदायिक सशक्तीकरण के बीच संघर्ष को दूर करने के लिये रूपरेखा स्थापित करनी चाहिये।
    • समावेशी निर्णय-प्रक्रिया: यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ग्राम सभाओं में निर्णय-प्रक्रिया समावेशी हो तथा महिलाओं एवं निम्न जातियों जैसे हाशिये पर स्थित समूहों की लाभों तक समान पहुँच हो।
  • जागरूकता बढ़ाना एवं क्षमता निर्माण: वन-निवासी समुदायों को वन अधिकार अधिनियम के तहत उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिये व्यापक जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिये।
    • प्रभावी निर्णय निर्माण के साथ हाशिये पर स्थित समूहों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिये इनके प्रशिक्षण के साथ ग्राम सभाओं की क्षमता निर्माण पर ध्यान देना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: वन अधिकार अधिनियम (FRA) को लागू करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। सरकार जैवविविधता संरक्षण एवं वनवासी समुदायों के अधिकारों के बीच संतुलन किस प्रकार सुनिश्चित कर सकती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है?

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय मामलों का मंत्रालय

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय वन अधिनियम, 1927 में हाल में हुए संशोधन के अनुसार, वन निवासियों को वनक्षेत्रों में उगाने वाले बाँस को काट गिराने का अधिकार है।
  2.  अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अनुसार, बाँस एक गौण वनोपज है।
  3.  अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 वन निवासियों को गौण वनोपज के स्वामित्व की अनुमति देता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


रिकॉर्ड ग्लोबल वार्मिंग और भारत पर इसका प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO), पेरिस समझौता, भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), आर्कटिक क्षेत्र, अल्बेडो प्रभाव, हिमालय, पार्टिकुलेट मैटर, एयरोसोल, सौर विकिरण, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, सूखा, हीट वेव्स, कोल्ड वेव्स, वनाग्नि, पारिस्थितिकी तंत्र, मिशन मौसम।  

मेन्स के लिये:

विश्व और भारत में ग्लोबल वार्मिंग की वर्तमान स्थिति, ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के उपाय।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने पुष्टि की है कि वर्ष 2024 सबसे गर्म वर्ष रहा है। पिछला दशक (वर्ष 2015-2024) सबसे गर्म रहा है। 

  • IMD के अनुसार, भारत में तापमान वृद्धि वैश्विक औसत तापमान वृद्धि से कम है।
  • हालांकि, इस बात पर चिंता बनी हुई है कि वैश्विक जलवायु मॉडल भारत में हो रहे परिवर्तनों को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करते हैं जिससे जलवायु अवलोकन एवं प्रभाव आकलन क्षमताओं में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।

WMO के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • रिकॉर्ड वैश्विक तापमान: वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर औसत सतही तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों (1850-1900 अवधि) से 1.55°C अधिक रहा है, जो निर्धारित आधार रेखा से 1.5°C अधिक तापमान वाला पहला वर्ष है।
  • महासागरीय ऊष्मा: महासागरीय जल के ऊपरी 2000 मीटर द्वारा रिकॉर्ड 16 ज़ेटाजूल ऊष्मा अवशोषित की गई, जो वर्ष 2023 के कुल वैश्विक विद्युत उत्पादन का लगभग 140 गुना है।
    • ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न अतिरिक्त ऊष्मा का लगभग 90% भाग महासागर में संग्रहित हो जाता है।
  • तापमान आकलन: यद्यपि वर्ष 2024 का तापमान 1.5°C के स्तर से अधिक हो गया फिर भी WMO ने आश्वासन दिया है कि पेरिस समझौते के लक्ष्य बरकरार रहेंगे।
    • पेरिस समझौता UNFCCC के तहत एक कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक समझौता है जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य शामिल है।
  • भारत में तापमान वृद्धि: भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार वर्ष 2024 में भारत का तापमान सामान्य से 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा लेकिन वैश्विक औसत 1.55 डिग्री सेल्सियस से कम है।
    • IMD के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2024 में भारत का तापमान वर्ष 1901-1910 के औसत से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। 

नोट: IPCC की छठी रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व -औद्योगिक काल से भूमि के तापमान में 1.59°C तथा महासागरों के तापमान में 0.88°C की वृद्धि हुई है।

भारत में कम तापमान वृद्धि के पीछे क्या कारण हैं?

  • भौगोलिक स्थिति: वैश्विक तापमान में वृद्धि उच्च अक्षांशों पर (विशेष रूप से ध्रुवों के पास) अधिक ध्यान देने योग्य रही है, जिसका कारण वायु परिसंचरण प्रणालियों के माध्यम से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से ऊष्मा का स्थानांतरण है तथा यह तथ्य भी है कि उच्च अक्षांशों पर पहले से ही तापमान कम होता है।
    • भारत, भूमध्य रेखा के पास उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित है, जहाँ इस प्रकार की भौगोलिक घटनाएँ नहीं होती हैं।
  • एल्बिडो प्रभाव: आर्कटिक क्षेत्र में, निम्न एल्बिडो प्रभाव के कारण तापमान में वृद्धि होती है, जिससे वहाँ की बर्फ पिघलती है, यह बर्फ से ढकी सतहों की तुलना में अधिक ऊष्मा को रोकती है, जो सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करती हैं।
    • भारत में बर्फ पर एल्बिडो प्रभाव हिमालयी क्षेत्रों तक ही सीमित है।
  • एरोसोल और प्रदूषण: सौर ऊर्जा को अंतरिक्ष में वापस बिखेरने की अपनी क्षमता के कारण, पार्टिकुलेट मैटर और एरोसोल का शीतलन प्रभाव होता है। इसके अतिरिक्त, एरोसोल बादलों के निर्माण में सहायता करते हैं, जो सूर्य के प्रकाश को अंतरिक्ष में वापस परावर्तित करने में सहायता करते हैं।
    • भारत में पार्टिकुलेट मैटर और एरोसोल के कारण वायु प्रदूषण बढ़ने से तापमान में वृद्धि में कमी आने का एक छोटा सा अनपेक्षित परिणाम सामने आया है।
  • ऊँचाई में भिन्नताएँ : भारत का भू-भाग एक समान नहीं है, तथा विभिन्न क्षेत्रों में तापमान वृद्धि में स्पष्ट भिन्नताएँ पाई जाती हैं। 
    • स्थानीय जलवायु और भूगोल के कारण कुछ क्षेत्रों में अधिक तापमान वृद्धि देखी जाती है, लेकिन राष्ट्रीय औसत तापमान वृद्धि कम रहती है।

ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित अन्य निष्कर्ष:

  • अत्यधिक गर्मी: भारत, चीन, इंडोनेशिया, नाइजीरिया और बांग्लादेश वर्ष 2020 में अत्यधिक गर्मी के संपर्क में रहने वाले शीर्ष पाँच देश थे।
    • वर्ष 1995 से वर्ष 2020 तक, व्यापार के कारण अत्यधिक गर्मी का वैश्विक जोखिम 89% बढ़कर 221.5 बिलियन व्यक्ति-घंटे से 419.0 बिलियन व्यक्ति-घंटे हो गया।
  • असंगत जोखिम: निम्न-मध्यम आय और निम्न आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ वैश्विक स्तर पर अधिक गर्मी के जोखिम का क्रमशः 53.7% और 18.3% हिस्सा हैं, जबकि वैश्विक श्रम क्षतिपूर्ति में इनका योगदान केवल 5.7% और 1% है।
    • वर्ष 2020 में, जर्मनी में प्रति व्यक्ति केवल 28.1 घंटे अत्यधिक गर्मी रही है, तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में 260.9 घंटे थे, जबकि थाईलैंड और नाइजीरिया जैसे देशों में यह आँकड़ा बहुत अधिक था (क्रमशः प्रति व्यक्ति 1319.5 और 1186.8 घंटे)।

वैश्विक तापमान के परिणाम क्या हैं?

  • समुद्र स्तर में वृद्धि: वर्ष 1880 के बाद से वैश्विक समुद्र स्तर में लगभग 8 इंच की वृद्धि हुई है तथा यह अनुमान है कि 2100 तक इसमें कम-से-कम एक फुट की वृद्धि होगी, जिससे तटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाएंगे, समुदाय विस्थापित होंगे, तथा पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होगा।
    • महासागर महत्त्वपूर्ण मात्रा में CO2 अवशोषित करते हैं, जिससे अम्लता में वृद्धि होती है जिससे समुद्री जीवन प्रभावित होता है।
  • सूखा और उष्ण लहरें: सूखा और गर्म लहरें तीव्र होने की संभावना है, जबकि शीत लहरें कमज़ोर पड़ने की संभावना है।
    • गर्मी और लम्बे समय तक सूखे के कारण वनाग्नि का समय बढ़ गया।
  • जैवविविधता का ह्रास: बढ़ते तापमान और बदलते मौसम के कारण पारिस्थितिकी तंत्र बाधित हो रहा है, जिससे कई प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ रहा है।
  • संबंधित प्रभाव: विषम मौसम के कारण खाद्य उत्पादन बाधित होता है, जिससे खाद्यान्नों का अभाव और कीमतों में वृद्धि होती है, जबकि बढ़ते तापमान के कारण वायु की गुणवत्ता प्रभावित होती है, गर्मी से होने वाले रोग बढ़ते हैं और रोगों का संचरण होता है।

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भारत ग्लोबल वार्मिंग का बेहतर नियंत्रण कैसे कर सकता है?

  • मौसम केंद्रों का विस्तार: भारत को अपने मौसमी संबंधी केंद्रों का विस्तार करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, वर्ष 2047 के लिये विकसित भारत विज़न के तहत प्रत्येक प्रमुख पंचायत में केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि सटीक जलवायु आकलन के लिये वास्तविक समय के आँकड़े एकत्र किये जा सकें।
  • कंप्यूटिंग क्षमताओं का वर्द्धन: भारत को बेहतर आपदा प्रबंधन, कृषि पूर्वानुमान और जलवायु आघात सहनीय कार्यनीतियों हेतु जलवायु डेटा को संसाधित करने के उद्देश्य से उन्नत कंप्यूटिंग तथा बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिये।
  • नियमित प्रभाव आकलन: भारत को समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन जैसे उभरते जलवायु जोखिमों पर नज़र रखने के लिये भारत-विशिष्ट जलवायु परिवर्तन प्रभाव आकलन करने की आवश्यकता है।
  • मिशन मौसम: मिशन मौसम का सुदृढ़ीकरण किया जाना चाहिये तथा मौसम के बेहतर पूर्वानुमान के लिये, विशेष रूप से तटीय और पर्वतीय क्षेत्रों में, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रणालियों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • मिशन मौसम का उद्देश्य चरम मौसम की घटनाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पूर्वानुमान करने और उनका शमन करने की भारत की क्षमता का वर्द्धन करना है।
  • स्थानगत प्रभाव अध्ययन: भारत को स्थानगत अध्ययनों में निवेश करने की आवश्यकता है जो लक्षित अनुकूलन रणनीतियों और नीतिगत हस्तक्षेपों के लिये हिमालय, तटीय क्षेत्रों और शहरी केंद्रों जैसे विभिन्न क्षेत्रों द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट जलवायु चुनौतियों को प्रतिबिंबित करें।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) क्या है?

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसमें 192 सदस्य देश शामिल हैं।
    • भारत विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य देश है।
  • इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (आईएमओ) से हुई, जिसे 1873 के वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कांग्रेस के बाद स्थापित किया गया था
  • इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुई है, जिसे वर्ष 1873 के वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस के बाद स्थापित किया गया था।
  • 23 मार्च 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुसमर्थन द्वारा स्थापित WMO, मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), परिचालन जल विज्ञान तथा इससे संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान हेतु संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी बन गई है।
  • WMO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।

आगे की राह 

  • छह-क्षेत्रीय दृष्टिकोण: ऊर्जा, उद्योग, कृषि, वन, परिवहन और निर्माण क्षेत्रों में उत्सर्जन में कमी लाने के लिये संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यनीति का अंगीकरण किया जाना चाहिये।
  • पुनर्वनीकरण और वनरोपण: कार्बन सिंक तैयार किये जाने के उद्देश्य से वनरोपण किया जाना चाहिये, जो वायुमंडल से CO₂ को अवशोषित करते हैं। 
  • जैवविविधता और कार्बन भंडारण क्षमता को बनाए रखने के लिये क्षीण हो चुके वनों का  जीर्णोद्धार करना तथा मौजूदा वनों की रक्षा की जानी चाहिये। 
  • ऊर्जा दक्षता: ऊर्जा कुशल साधनों, भवनों और औद्योगिक प्रक्रियाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • ऊर्जा उपयोग को अनुकूलित करने के लिये कड़े ऊर्जा मानकों का क्रियान्वन किया जाना चाहिये और स्मार्ट प्रौद्योगिकियों को अपनाने की आवश्यकता है।
  • संधारणीय कृषि: जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों जैसे संधारणीय सिंचाई तकनीक, सूखा-रोधी फसल किस्में और कृषि वानिकी का अंगीकरण किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. उन कारकों की विवेचना कीजिये जिनके कारण वैश्विक तापमान बढ़ रहा है और विश्लेषण कीजिये कि वैश्विक औसत की तुलना में भारत के तापमान में अपेक्षाकृत कम बढ़ोतरी क्यों होती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन से सही हैं? (2019)

  1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।   
  2. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरी ध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।    
  3. वायुमंडल में मीथेन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 


प्रश्न. “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा शुरू की गई थी? (2018) 

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल 
(b) UNEP सचिवालय 
(c) UNFCCC सचिवालय 
(d) विश्व मौसम विज्ञान संगठन

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017)