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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR)

  • 03 Oct 2022
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाएँ (NAL)

मेन्स के लिये:

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) का महत्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) ने अपना 81वाँ स्थापना दिवस मनाया।

CSIR:

  • विषय: वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) भारत का सबसे बड़ा अनुसंधान एवं विकास (R&D) संगठन है। CSIR एक अखिल भारतीय संस्थान है जिसमें 37 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, 39 दूरस्थ केंद्रों, 3 नवोन्मेषी परिसरों और 5 इकाइयों का एक सक्रिय नेटवर्क शामिल है।
  • स्थापना: सितंबर 1942
  • मुख्यालय: नई दिल्ली
  • CSIR का वित्तपोषण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा किया जाता है तथा यह सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय के रूप में पंजीकृत है।
  • CSIR अपने दायरे में रेडियो एवं अंतरिक्ष भौतिकी (Space Physics), समुद्र विज्ञान (Oceanography), भू-भौतिकी (Geophysics), रसायन, ड्रग्स, जीनोमिक्स (Genomics), जैव प्रौद्योगिकी और नैनोटेक्नोलॉजी से लेकर खनन, वैमानिकी (Aeronautics), उपकरण विज्ञान (Instrumentation), पर्यावरण अभियांत्रिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी तक की एक विस्तृत विषय शृंखला को शामिल करता है।
    • यह सामाजिक प्रयासों के संबंध में कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण तकनीकी हस्तक्षेप प्रदान करता है जिसमें पर्यावरण, स्वास्थ्य, पेयजल, भोजन, आवास, ऊर्जा, कृषि-क्षेत्र और गैर-कृषि क्षेत्र शामिल हैं।
  • संगठनात्मक संरचना:
    • अध्यक्ष: भारत का प्रधानमंत्री (पदेन अध्यक्ष)
    • उपाध्यक्ष: केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री (पदेन उपाध्यक्ष)
    • शासी निकाय/संचालक मंडल: महानिदेशक (Director General) शासी निकाय का प्रमुख होता है।
      • इसके अतिरिक्त वित्त सचिव (व्यय) इसका पदेन सदस्य होता हैं।
      • अन्य सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है।
    • CSIR सलाहकार बोर्ड: यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के प्रमुख व्यक्तियों का 15 सदस्यीय निकाय है। इसका कार्य शासी निकाय को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संबंधी सलाह या इनपुट्स प्रदान करना है।
      • इसके सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है।
  • उद्देश्य: परिषद का उद्देश्य राष्ट्रीय महत्त्व से संबंधित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान (Scientific and Industrial/Applied Research) करना है। ये इस प्रकार हैं:
    • वैज्ञानिक नवाचार से संबंधित संस्थानों और विशिष्ट शोधकर्त्ताओं के वित्तपोषण सहित भारत में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान का सवर्द्धन, मार्गदर्शन तथा समन्वयन करना।
    • शोध हेतु छात्रवृत्ति और फैलोशिप प्रदान करना।
    • परिषद के तत्त्वावधान में किये गए अनुसंधान के परिणामों का उपयोग देश में उद्योगों के विकास के लिये करना।
    • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान में प्रगति के लिये प्रयोगशालाओं, कार्यशालाओं, संस्थानों तथा संगठनों की स्थापना, रखरखाव एवं प्रबंधन करना।
    • वैज्ञानिक अनुसंधानों संबंधी सूचनाओं के संग्रह और प्रसार के साथ-साथ सामान्य रूप से औद्योगिक मामलों के संबंध में भी सूचनाओं का संग्रह एवं प्रसार करना।
    • शोध पत्रों और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास से संबंधित पत्रिका का प्रकाशन करना।

CSIR की प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • सामरिक क्षेत्र में:
    • दृष्टि ट्रांसमिसोमीटर (Drishti Transmissometer): यह एक स्वदेशी- नवोन्मेषी – लागत प्रभावी दृश्यता मापन प्रणाली है जो विमान चालकों को सुरक्षित लैंडिंग और टेक-ऑफ के लिये दृश्यता संबंधी जानकारी प्रदान करती है तथा सभी एयरपोर्ट श्रेणियों के उपयोग के लिये उपयुक्त है।
    • हेड-अप-डिस्प्ले (Head-Up-Display- HUD): राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रयोगशाला (CSIR-National Aerospace Laboratories- NAL) ने भारतीय हल्के लड़ाकू विमान तेजस के लिये स्वदेशी हेड-अप-डिस्प्ले (HUD) विकसित कर महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
      • HUD विमान की उड़ान और हथियार लक्ष्यीकरण सहित महत्त्वपूर्ण उड़ान युद्धाभ्यास में विमान चालक की सहायता करता है।
    • स्वदेशी गायरोट्रॉन (Gyrotron): CSIR द्वारा परमाणु संलयन रिएक्टर के लिये स्वदेशी गायरोट्रॉन का निर्माण और विकास किया गया है।
      • गायरोट्रॉन एक वैक्यूम इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (Vacuum Electronic Device- VED) है जो उच्च-शक्ति, उच्च-आवृत्ति के THz विकिरण उत्पन्न करने में सक्षम है।
  • ऊर्जा एवं पर्यावरण क्षेत्र में:
    • सोलर ट्री (Solar Tree): इसे CSIR के दुर्गापुर स्थित केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (Central Electrochemical Research Institute- CMERI) प्रयोगशाला द्वारा विकसित किया गया है। यह स्वच्छ बिजली का उत्पादन करने के लिये न्यूनतम स्थान घेरती है।
    • लिथियम-आयन बैटरी: तमिलनाडु स्थित केंद्रीय विद्युत रसायन अनुसंधान संस्थान (Central Electrochemical Research Institute- CECRI), कराईकुडी ने पहले स्वदेशी लि-आयन (Li-ion) निर्माण प्रतिष्ठान की स्थापना की है जिसका रक्षा, सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण, रेलवे और अन्य उच्च-स्तरीय उपयोगों में अनुप्रयोग होता है।
  • कृषि क्षेत्र में:
    • औषधीय एवं सुगंधित पौधे: देश में औषधीय और सुगंधित पौधों की उन्नत खेती नई किस्मों एवं कृषि-प्रौद्योगिकियों के विकास के माध्यम से ही संभव हुई है।
    • सांबा मसूरी चावल प्रजाति: CSIR ने ICAR के साथ मिलकर एक बेहतर बैक्टीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी सांबा मसूरी चावल की किस्म विकसित की है।
    • आर्सेनिक दूषित क्षेत्रों के लिये चावल की किस्म (मुक्ताश्री): चावल की एक किस्म विकसित की गई है जो अनुमेय सीमा के भीतर आर्सेनिक ग्रहण को नियंत्रित करती है।
    • सफेद मक्खी (White-fly) प्रतिरोधी कपास प्रजाति: एक ट्रांसजेनिक कपास की किस्म विकसित की गई जो कि सफेद-मक्खी के लिये प्रतिरोधी है।
  • स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में:
    • कृषि मवेशियों के लिये जेडी टीका (JD Vaccine): भेड़, बकरी, गाय और भैंस को प्रभावित करने वाले फुराव रोग (Johne’s disease- JD) के लिये टीका विकसित कर इसका वाणिज्यिक उपयोग किया जा रहा है ताकि उन्हें रोगों से बचाते हुए दूध और मांस उत्पादन में वृद्धि की जा सके।
    • समयपूर्व जन्म और सेप्सिस रोग से होने वाली मृत्यु के लिये प्लाज़्मा जेल्सोलिन डायग्नोस्टिक किट (Plasma Gelsolin Diagnostic Kit): इसे समयपूर्व जन्म और सेप्सिस के निदान के लिये विकसित किया गया है।
    • GOMED: CSIR द्वारा GOMED (Genomics and other Omics Technologies for Enabling Medical Decision) नामक एक कार्यक्रम विकसित किया गया है जो नैदानिक समस्याओं को हल करने के लिये रोग जीनोमिक्स हेतु एक मंच प्रदान करता है।
  • खाद्य एवं पोषण के क्षेत्र में:
    • क्षीर-स्कैनर (Ksheer-scanner): यह CSIR के केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (Central Electronics Engineering Research Institute- CEERI) का नवोन्मेषी आविष्कार है जो 10 पैसे की लागत पर 45 सेकंड में दूध के मिलावट स्तर एवं मिलावटी पदार्थ का पता लगा सकता है, जिससे दूध व्यापार में सक्रिय मिलावटकर्त्ताओं पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
    • डबल फोर्टिफाइड नमक (Double-Fortified Salt): आयोडीन और आयरन के साथ फोर्टिफाइड नमक का विकास किया गया है जो लोगों में एनीमिया रोग को दूर कर सकता है।
    • मोटापा-रोधी डीएजी तेल (Anti-obesity DAG Oil): यह तेल पारंपरिक ट्राईसिलेग्लिसरोल (triacylglycerol-TAG) के बजाय डियासिलग्लिसरोल (Diacylglycerol- DAG) से समृद्ध है जो मोटापा को रोकता है।
  • जल क्षेत्र में:
    • जल अभावग्रस्त क्षेत्रों के जलवाही स्तर का मापन: हेलिबॉर्न ट्रांजिएंट इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और सर्फेस मैग्नेटिक तकनीक पर आधारित जलवाही स्तर मापन (Aquifer Mapping) राजस्थान (2), बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के छह अलग-अलग भूवैज्ञानिक स्थलों पर किया गया।
    • गंगाजल के विशेष गुणों को समझना: गंगा की जल गुणवत्ता और तलछट विश्लेषण का अध्ययन उन विभिन्न क्षेत्रों में किया जा रहा है, जहाँ से गंगा प्रवाहित होती है।
  • अपशिष्ट से धनोपार्जन (Waste to Wealth):
    • एक्स-रे संरक्षण के लिये अविषाक्त विकिरण परिरक्षण सामग्री: लाल कीचड़/रेड मड (एल्युमीनियम उद्योगों से) और फ्लाई ऐश (थर्मल पावर प्लांट से) जैसे औद्योगिक कचरे का उपयोग कर अविषाक्त विकिरण परिरक्षण सामग्री (Non-toxic Radiation Shielding Materials) का विकास किया गया है, जिसे नैदानिक एक्स-रे कक्ष में अनुप्रयोग हेतु परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board- AERB) की मान्यता प्राप्त है।
    • अपशिष्ट प्लास्टिक से ईंधन: अपशिष्ट प्लास्टिक को गैसोलीन/डीज़ल या एरोमेटिक्स में परिवर्तित करने की प्रक्रिया विकसित की गई है।
  • अमिट स्याही: चुनावों के दौरान मतदाताओं के नाखूनों में इस्तेमाल की जाने वाली अमिट स्याही भी CSIR द्वारा प्रदत्त एक समय-परीक्षणित उपहार है।
    • 1952 में विकसित इस स्याही का उत्पादन सर्वप्रथम परिसर में ही किया गया था। इसके बाद से औद्योगिक क्षेत्र द्वारा इस स्याही का निर्माण किया जा रहा है। इसका निर्यात श्रीलंका, इंडोनेशिया, तुर्की और अन्य लोकतांत्रिक देशों को भी किया जाता है।
  • कौशल विकास: CSIR अपनी अत्याधुनिक अवसंरचना और मानव संसाधनों का उपयोग करते हुए एक संरचित वृहत कौशल विकास पहल पर कार्य कर रहा है।
    • प्रतिवर्ष 5000 से अधिक अभ्यर्थियों को कौशल प्रदान करने के लिये लगभग 30 उच्च तकनीक कौशल/प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किये जा रहे हैं।
    • कौशल विकास कार्यक्रम के दायरे में निम्नलिखित क्षेत्र शामिल हैं: चर्म प्रक्रिया प्रौद्योगिकी; चमड़े के जूते और वस्त्र; जंग से संरक्षण के लिये पेंट तथा कोटिंग्स; इलेक्ट्रोप्लेटिंग एवं धातु परिष्करण; लेड एसिड बैटरी रखरखाव; ग्लास मनके आभूषण / ब्लू पॉटरी; औद्योगिक रखरखाव अभियांत्रिकी; इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT); तथा विनियामक- प्रीक्लिनिकल टॉक्सिकोलॉजी।
  • विमानन: CSIR-राष्ट्रीय अंतरिक्ष (एयरोस्पेस) प्रयोगशालाओं ने 'सारस' (SARAS) नामक एक विमान का डिज़ाइन तैयार किया है।
    • राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाओं और महिंद्रा एयरोस्पेस द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित भारत के पहले स्वदेशी नागरिक विमान NAL NM5 का वर्ष 2011 में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।
  • पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी: CSIR ने विश्व में पहली बार 'पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी' (Traditional Knowledge Digital Library) की स्थापना की है। यह पाँच अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं (अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रेंच, जापानी और स्पेनिश) में उपलब्ध है।
    • CSIR ने पारंपरिक ज्ञान के आधार पर घावों को भरने के लिये हल्दी और कीटनाशक के रूप में नीम के उपयोग के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका में पेटेंट प्रदान किये जाने का विरोध करते हुए इसे चुनौती दी।
  • जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing): CSIR ने 2009 में मानव जीनोम का अनुक्रमण तैयार किया।
  • कम्प्यूटिंग: भारत का पहला समानांतर कंप्यूटर, फ्लोसोल्वर, 1986 में बनाया गया था। फ्लोसोल्वर की सफलता ने देश में अन्य सफल समानांतर कंप्यूटिंग परियोजनाओं जैसे- परम को गति प्रदान की।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया जाता है?   (2009)

(a) साहित्य
(b)  निष्पादन  कला   
(c) विज्ञान
(d) समाज सेवा   

उत्तर: C

  • इस पुरस्‍कार का नाम वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के संस्थापक निदेशक स्‍व. डॉ. (सर) शांति स्‍वरूप भटनागर के नाम पर रखा गया है और यह पुरस्‍कार “शांति स्‍वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्‍कार” के नाम से जाना जाता है।  
  • शांति स्‍वरूप भटनागर (एसएसबी) पुरस्‍कार प्रत्येक वर्ष निम्नांकित क्षेत्रों में उल्‍लेखनीय एवं उत्‍कृष्‍ट मूल अथवा अनुप्रयुक्‍त अनुसंधान हेतु प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार के तहत 500000 ूरुपए की राशि प्रदान की जाती है, य क्षेत्र हैं- (i) जैव विज्ञान (ii) रसायन विज्ञान (iii) पृथ्‍वी,वायुमंडल,महासागर एवं ग्रहीय विज्ञान (iv) इंजीनियरी विज्ञान (v) गणित (vi) चिकित्‍सा विज्ञान एवं (vii) भौतिक विज्ञान
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के किसी भी क्षेत्र में अनुसंधानरत, कोई भी भारतीय नागरिक, जिसकी आयु पुरस्‍कार वर्ष के पूर्ववर्ती वर्ष में 31 दिसम्‍बर को 45 वर्ष तक हो। भारत के विदेशी नागरिक (OCI) और भारत में काम करने वाले भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) भी पात्र है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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