बाघ संरक्षण का महत्व
संदर्भ:
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्री ने बाघ जनगणना पर ‘स्टेटस ऑफ टाइगर्स को-प्रीडेटर्स एंड प्रे इन इंडिया’ (Status of Tigers Co-predators and Prey in India) नामक एक रिपोर्ट जारी की है। गौरतलब है कि 20वीं शताब्दी की शुरुआत के बाद से ही दुनिया भर में बाघों की आबादी में तेज़ी से गिरावट देखी गई है, हालाँकि वर्तमान में बाघ संरक्षण के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब बाघों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है।
प्रमुख बिंदु:
- वर्तमान में विश्व के बाघों की आबादी का 70% भारत में है।
- वर्ष 2006-2018 के मध्य देश में बाघों की संख्या में 6% की वार्षिक वृद्धि देखी गई है।
- केंद्र सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट बाघ अभ्यारण्य (231) में देश में सबसे अधिक बाघों की आबादी पाई गई।
- गौरतलब है कि वर्ष 2014 की बाघ जनगणना में भी जिम कॉर्बेट बाघ अभ्यारण्य में देश की सर्वाधिक बाघ आबादी (215) पाई गई थी।
- बाघों की संख्या के मामले में दूसरे स्थान पर कर्नाटक का नागरहोल टाइगर रिज़र्व (127), तीसरे स्थान पर बांदीपुर टाइगर रिज़र्व (126) और बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व (104) तथा काजीरंगा टाइगर रिज़र्व (104)।
- बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये हर वर्ष 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- प्रथम विश्व बाघ दिवस का आयोजन वर्ष 2010 में ‘सेंट पीटर्सबर्ग बाघ शिखर सम्मेलन’ (St. Petersburg Tiger Summit) के दौरान किया गया था।
सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा (St. Petersburg Declaration) :
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अन्य आँकड़े:
- इस रिपोर्ट के अनुसार, देश में बाघों की आबादी के मामले में पहले स्थान पर मध्यप्रदेश (526), दूसरे स्थान पर कर्नाटक (524), उत्तराखंड (442) तीसरे और महाराष्ट्र (312) तथा तमिलनाडु (264) क्रमशः चौथे और पाँचवें स्थान पर रहे।
बाघ संरक्षण का की आवश्यकता :
- खाद्य श्रृंखला में बाघ शीर्ष के जीवों में से एक है जिस पर पूरा पारिस्थितिकी तंत्र निर्भर करता है। पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने के लिये बाघों का संरक्षण बहुत ही आवश्यक है।
- बाघ एक अम्ब्रेला स्पीशीज़ (umbrella species) है, अतः इसके संरक्षण के माध्यम से ‘अनगुलेट्स’ (Ungulates) अर्थात खुर वाले जीव, परागणकारी जीव और अन्य छोटे जानवरों की कई अन्य प्रजातियों का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सकता है।
- पिछले 100 वर्षों में वैश्विक स्तर पर बाघों की आबादी में भारी गिरावट देखने को मिली है और कई क्षेत्रों में बाघों की आबादी पूर्णतयः समाप्त हो चुकी है।
- IUCN रेड लिस्ट में बाघ को 'संकटग्रस्त' की सूची में रखा गया है।
बाघ संरक्षण:
- वर्ष 1969 में नई दिल्ली में आयोजित ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ’ (The International Union for Conservation of Nature- IUCN) की 10 वीं आम सभा में बाघों की घटती आबादी का मुद्दा उठाया गया।
- वर्ष 1970 के दशक में केंद्र सरकार की तरफ से बाघों के संरक्षण के प्रति एक मज़बूत राजनीतिक प्रतिबद्धता देखने को मिली और सरकार द्वारा वन्य जीव संरक्षण अधिनियम का मसौदा प्रस्तुत किया गया।
- इसके परिणामस्वरूप देश के विभिन्न हिस्सों में राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिज़र्वों की स्थापना की गई।
- राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिज़र्वों की स्थापना के माध्यम से वन्य जीवों के संरक्षण हेतु विशेष प्रावधान किये गए जो देश के सामान्य वनों में संभव/उपलब्ध नहीं थे।
- इसी दौरान सरकार द्वारा 'प्रोज़ेक्ट टाइगर' जैसे कुछ बड़े प्रयास शुरू किये गए।
लाभ:
- बाग़ संरक्षण की परियोजनाओं से संबंधित क्षेत्रों के पारिस्थितिकी तंत्र (स्वच्छ जल, भूमि उर्वरता में सुधार आदि) में महत्त्वपूर्ण सुधार देखने को मिला है।
- आजीविका: बाघों की संख्या बढ़ने और टाइगर रिज़र्वों के बेहतर प्रबंधन से पर्यावरण पर्यटन को बढ़ावा मिला है और ऐसे बहुत से लोगों को रोज़गार के नए विकल्प उपलब्ध हुए जिनकी पारंपरिक आजीविका, संरक्षण परियोजनाओं से प्रभावित हुई थी।
- संरक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिज़र्वों में वृक्षों की संख्या में वृद्धि से पर्यावरण में उत्सजित कार्बन को कुछ सीमा तक कम करने में सहायता प्राप्त हुई है।
प्रोज़ेक्ट टाइगर:
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चुनौतियाँ:
- अवैध शिकार: लंबे समय से बाघों का शिकार शक्ति प्रदर्शन के लिये किया जाता रहा है, साथ ही बाघों के शरीर के प्रत्येक हिस्से का बाज़ार में अच्छा मूल्य प्राप्त होता है। अतः व्यक्तिगत और कारणों से बड़े पैमाने पर बाघों का शिकार किया जाता है।
- मानव-प्रकृति संघर्ष: जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिक विकास और अनियंत्रित शहरीकरण के कारण वन्य जीवों के प्रवास क्षेत्र का लगातार ह्रास हो रहा है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में बाघों की संख्या में वृद्धि तो हुई है परंतु प्राकृतिक प्रवास स्थान के क्षरण के कारण बाघों को बहुत ही छोटे से क्षेत्र में सीमित रहना पड़ता है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर भारत और दक्षिण के कुछ राज्यों में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है परंतु पूर्वोत्तर भारत और देश के कुछ अन्य हिस्सों में बाघों की आबादी में गिरावट देखी गई है।
- गौरतलब है कि वर्तमान में भारत के तीन टाइगर रिज़र्वों (मिज़ोरम का दंपा अभ्यारण्य, पश्चिम बंगाल का बुक्सा अभ्यारण्य और झारखंड के पलामू अभ्यारण्य) में एक भी बाघ नहीं है।
- हाल के वर्षों में सरकार ने वन्य क्षेत्रों में विनिर्माण परियोजनाओं के लिये ‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’ (Environmental Impact Assessment-EIA) से जुड़ी मंज़ूरी देने की प्रक्रिया को आसान कर दिया है, जिसके कारण वन्य क्षेत्रों के निकट औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है
- टाइगर रिज़र्वों के बीच संपर्क मार्गों की स्थिति का ठीक न होना भी एक बड़ी चुनती है, बाघों के संरक्षण के लिये देश के अलग-अलग हिस्सों से बाघों की आबादी के बीच जीन पूल का हस्तानान्तरण बहुत ही आवश्यक है।
आगे की राह:
- देश में बाघ आबादी के संरक्षण और उनके सुरक्षित भविष्य के लिये टाइगर रिज़र्वों को जोड़ने हेतु आरक्षित बाघ गलियारों का निर्माण या सड़क या रेल परियोजनाओं के लिये भूमिगत मार्गों का निर्माण किया जाना चाहिये।
- वन्य क्षेत्रों के निकट किसी भी परियोजना की शुरुआत के लिये ‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’ (Environmental Impact Assessment-EIA) के साथ अन्य पहलुओं की व्यापक जाँच की जानी चाहिये।
- बाघों के संरक्षण के प्रयासों में कानूनी प्रावधानों और तकनीकी विशेषज्ञता के साथ स्थानीय लोगों का भी सहयोग बहुत महत्त्वपूर्ण है।
- अतः सरकार को संरक्षण योजनाओं से प्रभावित (आवासीय स्थानान्तरण, भूमि अधिग्रहण या अन्य कारण से आजीविका पर प्रभाव) समुदायों उचित मुआवज़े के साथ रोज़गार उपलब्ध करने के प्रयास करना चाहिये, जिससे वनों पर लोगों की निर्भरता को कम किया जा सके।
- जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के वर्षों में हो रहे प्राकृतिक बदलावों को देखते हुए बाघ संरक्षण परियोजनाओं में भविष्य की चुनौतियों के अनुरूप आवश्यक बदलाव करना होगा।
अभ्यास प्रश्न: पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में बाघों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए सरकार द्वारा बाघ संरक्षण के प्रयासों और इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये।