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भारतीय अर्थव्यवस्था

सूक्ष्म सिंचाई क्षेत्र से संबंधित मुद्दे

  • 20 Nov 2021
  • 10 min read

यह एडिटोरियल 19/11/2021 को लाइवमिंट में प्रकाशित ‘An SOS Call from the Indian Micro-Irrigation Industry’ लेख पर आधारित है। इसमें सूक्ष्म सिंचाई उद्योग के समक्ष विद्यमान समस्याओं के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

जल एक दुर्लभ प्राकृतिक संसाधन है और कृषि क्षेत्र के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। सिंचाई के लिये उपलब्ध जल का कुशल उपयोग एक बड़ी चुनौती है। सूक्ष्म सिंचाई (Micro-Irrigation) जैसे तकनीकी नवाचार जल-संसाधन प्रबंधन में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं।    

भारतीय कृषि की संवहनीयता में सूक्ष्म सिंचाई की महत्त्वपूर्ण भूमिका के कई लाभों और व्यापक स्वीकृति के बावजूद, वह उद्योग जो इसके लिये साधन प्रदान करता है, वर्तमान में अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष कर रहा है।

मूल्य नियंत्रण और योजना नामांकन में नौकरशाही की ओर से की जाने वाली देरी, क्षेत्र समीक्षा की कमी और सब्सिडी की प्रतिपूर्ति में देरी आदि ने इस उद्योग को इसके इतने महत्त्व के बावजूद पतन के कगार पर धकेल दिया है।

भारत में जल उपलब्धता और सूक्ष्म सिंचाई

  • घटती जल उपलब्धता: भारत वर्ष 2011 में पहली बार जल की कमी वाले देशों की सूची में शामिल हुआ था।  
    • भारत की प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1,428 किलोलीटर प्रतिवर्ष अनुमानित है।   
      • प्रति व्यक्ति 1,700 किलोलीटर से कम जल की उपलब्धता वाले देश को जल की कमी वाले देश के रूप में गिना जाता है।
    • G-20 अर्थव्यवस्थाओं के बीच भारत सर्वाधिक तेज़ी से सिकुड़ते जल संसाधनों वाले देशों में से एक है।  
  • सूक्ष्म सिंचाई के विषय में: यह सिंचाई की एक आधुनिक विधि है, जिसके द्वारा भूमि की सतह या उप-सतह पर ड्रिपर्स, स्प्रिंकलर, फॉगर्स और अन्य उत्सर्जक के माध्यम से सिंचाई की जाती है। 
    • ‘स्प्रिंकलर इरीगेशन’ (Sprinkler Irrigation) और ‘ड्रिप इरीगेशन’ (Drip Irrigation) आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली दो प्रमुख सूक्ष्म सिंचाई विधियाँ हैं। 
  • सूक्ष्म सिंचाई का महत्त्व:
    • सूक्ष्म सिंचाई 50-90% तक जल उपयोग कुशलता सुनिश्चित करती है।  
    • बाढ़ सिंचाई (Flood Irrigation) की तुलना में इसमें 30-50% (औसतन 32.3%) जल की बचत होती है। 
    • इससे बिजली की खपत में गिरावट आती है। 
    • सूक्ष्म सिंचाई अपनाने से उर्वरकों की बचत होती है। 
    • फलों और सब्जियों की औसत उत्पादकता में वृद्धि होती है। 
    • इससे किसानों की आय में समग्र वृद्धि होती है। 

सूक्ष्म सिंचाई उद्योग के सामने मौजूद चुनौतियाँ

  • सिंचाई की ड्रिप विधि (DMI) के पर्याप्त अंगीकरण का अभाव: ’भारत में सूक्ष्म सिंचाई पर कार्यबल’ (2004) के अनुमान के अनुसार, भारत की कुल ड्रिप सिंचाई क्षमता 27 लाख हेक्टेयर है।   
    • हालाँकि, वर्तमान में ड्रिप सिंचाई के तहत शामिल क्षेत्र सकल सिंचित क्षेत्र का मात्र 4% और इसकी कुल क्षमता (2016-17) का लगभग 15% ही हैं।
    • इसके अलावा, ड्रिप विधि केवल कुछ ही राज्यों तक सिमित है।
  • सिंचाई संबंधी योजनाओं से संबद्ध समस्याएँ:
    • राज्य सरकारों की गैर-ज़िम्मेदारी: अधिकांश भारतीय राज्यों में (गुजरात और तमिलनाडु के प्रमुख अपवाद को छोड़कर) यह योजना वर्ष के केवल कुछ महीनों के लिये ही कार्यान्वित होती है। 
      • धन की उपलब्धता के बावजूद, योजना के आवेदनों को वित्तीय वर्ष के अंत में संसाधित किया जाता है, जिसका उद्देश्य आमतौर पर पूर्व-निर्धारित लक्ष्यों की महज़ पूर्ति करना होता है (जिसे 'मार्च रश' के रूप में जाना जाता है)।
      • इस संकुचित अवसर के परिणामस्वरूप केवल कुछ किसान ही आवेदन कर पाते हैं। 
    • सब्सिडी की प्रतिपूर्ति में देरी: अन्य सब्सिडियाँ (जो प्रत्यक्ष तौर पर लाभार्थियों को हस्तांतरित की जाती हैं) के विपरीत, ड्रिप सिंचाई प्रणाली स्थापित करने के लिये दी जाने वाली सब्सिडी वेंडरों को सम्यक उद्यम के बाद ही हस्तांतरित किया जाता है।
      • सब्सिडी हस्तांतरित करने के लिये इंस्टॉल किये गए सिस्टम की जाँच और परीक्षण की कोई निर्धारित समयरेखा नहीं है।  
  • वित्तीय कठिनाइयाँ: किसानों को प्रायः वित्तीय सेवाओं से आवश्यक सहायता प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।  
    • यह रिपोर्ट सामने आई थी कि सूक्ष्म सिंचाई का निम्न अंगीकरण दर वर्ष 2013-16 की अवधि के दौरान बजट में कमी के कारण थी।
  • बिजली की उपलब्धता: सिंचाई प्रणाली के लिये मुख्य इनपुट ऊर्जा है और बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिये केवल बिजली ही वह व्यवहार्य स्रोत है जो संबंधित कल्याणकारी योजनाओं की उपलब्धता के बावजूद, अभी भी हर किसान की पहुँच से बाहर है।

आगे की राह

  • प्रशासन की भूमिका: किसान द्वारा आवेदन देने से लेकर उसके निष्पादन और भुगतान संवितरण तक प्रत्येक चरण के लिये एक समयरेखा निर्धारित किया जाना चाहिये। इसके साथ ही आवेदनों, अनुमोदनों, कार्य आदेशों और वास्तविक स्थापनाओं की आवधिक समीक्षा पर बल देकर सरकार की निगरानी तंत्र को सुदृढ़ किया जाना आवश्यक है।  
    • सूक्ष्म सिंचाई के लिये सब्सिडी राशि के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण की व्यवस्था की जानी चाहिये जहाँ राशि सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में भेजी जाती हो। 
    • इसके साथ ही, किसानों को उनके फसल चक्र या बुवाई पैटर्न के अनुसार ऐसी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिये सक्षम बनाया जाना चाहिये।  
  • सूक्ष्म सिंचाई के दायरे का विस्तार: ड्रिप सिंचाई पद्धति के लिये पूंजी लागत को उल्लेखनीय रूप से कम किया जाना चाहिये।    
    • गन्ना, केला और सब्जियों जैसी जल-गहन फसलों के लिये एक विशेष सब्सिडी कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है।  
      • जल की कमी और जल की प्रचुरता वाले क्षेत्रों के लिये एक अंतरीय सब्सिडी योजना भी शुरू की जा सकती है।  
    • वर्तमान में, सतही स्रोतों (बाँधों, जलाशयों, आदि) के जल का उपयोग DMI के लिये नहीं किया जाता है। प्रत्येक सिंचाई परियोजना से जल का एक हिस्सा केवल DMI के लिये आवंटित किया जा सकता है।  

निष्कर्ष

कृषि में भविष्य की क्रांति ‘परिशुद्ध खेती’ (Precision Farming) से आएगी। सूक्ष्म सिंचाई, वास्तव में खेती को संवहनीय, लाभदायक और उत्पादक बनाने के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।

'प्रति बूँद, अधिक फसल' (Per Drop More Crop) की प्राप्ति उन्नत और कुशल सिंचाई प्रौद्योगिकियों को लागू करके ही की जा सकती है, और इन्हें केवल तभी विकसित किया जा सकता है जब देरी, विवेकाधीनता और लालफीताशाही को समाप्त कर एक स्वस्थ कारोबारी माहौल सुनिश्चित किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: संवहनीय कृषि में सूक्ष्म सिंचाई के महत्त्व और भारत के सूक्ष्म सिंचाई क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिये उठाए जा सकने वाले कदमों पर चर्चा कीजिये।

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