लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

भूगोल

विद्युत क्षेत्र में सुधार

  • 21 Jun 2021
  • 9 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 19/06/2021 को 'द इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित लेख “Band-aid for power” पर आधारित है। इसमें भारत में विद्युत क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ 

पिछले साल कोविड -19 महामारी के दौरान भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत बिजली क्षेत्र के लिये एक राहत पैकेज की घोषणा की थी। इस राहत पैकेज की घोषणा, डिस्कॉम की अक्षमता के कारण बिजली क्षेत्र से जुड़ी पूरी श्रृंखला पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव से बचाने के लिये, की गई थी। 

  • यह पहली बार नहीं है जब केंद्र सरकार ने डिस्कॉम की सहायता करने और बिजली के वितरण से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिये कदम बढ़ाया है (इससे पूर्व में UDAY/उदय योजना)। हालाँकि बार-बार हस्तक्षेप के बाद भी अंतिम परिणाम यह है कि डिस्कॉम वित्त की कमी से जुझ रही है और पुन: राहत पैकेज की ज़रूरत है। 
  • इससे बिजली क्षेत्र से जुड़ी प्रमुख संरचनात्मक समस्याएँ उजागर होती हैं, भारत में एक स्थायी बिजली क्षेत्र के लिये जिनका समाधान किया जाना चाहिये। 

विद्युत क्षेत्र से संबद्ध चुनौतियाँ 

  • AT&C से होने वाली हानि: सकल तकनीकी और वाणिज्यिक (Aggregate technical and commercial-AT&C) हानियाँ खराब या अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे से या बिजली की चोरी या बिलों के भुगतान नहीं होने के कारण होती हैं। उदय योजना (UDAY) के तहत वर्ष 2019 तक इन नुकसानों को कम कर 15 प्रतिशत तक लाने की परिकल्पना की थी। हालाँकि उदय डैशबोर्ड के आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में अखिल भारतीय स्तर पर AT&C से नुकसान 21.7 प्रतिशत है। 
  • लागत-राजस्व अंतर: डिस्कॉम की लागत (आपूर्ति की औसत लागत) और राजस्व (प्राप्त औसत राजस्व) के मध्य अंतर अभी भी अधिक है। यह बिजली दरों में नियमित संशोधन के अभाव के कारण है। 
  • सार्वभौमिक विद्युतीकरण का प्रभाव: विडंबना यह है कि सार्वभौमिक विद्युतीकरण सुनिश्चित करने के लिये सरकार के दवाब ने अक्षमता को बढावा देने में योगदान दिया है। विद्युतीकरण के लक्ष्य को पूरा करने के लिये जैसे-जैसे घरेलू कनेक्शन बढ़ाए जाते हैं, लागत संरचनाओं में बदलाव होता है, और वितरण नेटवर्क (ट्रांसफॉर्मर, तार, आदि) को बढ़ाने की भी आवश्यकता होती है। इसके साथ ही घाटा बढ़ना तय है। 
  • महामारी का आर्थिक नतीजा: महामारी के  कारण औद्योगिक और वाणिज्यिक उपयोगकर्त्ताओं की मांग में गिरावट के साथ (जिसका उपयोग अन्य उपभोक्ताओं को क्रॉस-सब्सिडी के लिये किया जाता है) राजस्व में गिरावट आई है, जिससे डिस्कॉम का वित्तीय तनाव बढ़ गया है। 
  • निवेश में गिरावट: डिकॉम की खराब वित्तीय स्थिति के कारण, बिजली क्षेत्र (विशेषकर निजी क्षेत्र द्वारा) में नए निवेश कम हो रहे हैं। 
  • ऊर्जा का प्रधान स्रोत जीवाश्म ईंधन: देश के उत्पादन का 80% हिस्सा कोयला, प्राकृतिक गैस और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन पर आधारित तापीय बिजली है। इसके अलावा, भारत में अधिकांश संयंत्र (Plant) पुराने और अक्षम हैं। 

सौभाग्य योजना:

  • सौभाग्य योजना का शुभारंभ ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण सुनिश्चित करने के लिये किया गया था।
  • इस योजना के तहत केंद्र सरकार से 60% अनुदान राज्यों को दिया गया, जबकि राज्यों ने अपने कोष से 10% धन खर्च किया और शेष 30% राशि बैंकों ने बतौर ऋण के रूप में प्रदान की।
  • विशेष राज्यों के लिये केंद्र सरकार द्वारा योजना का 85% अनुदान दिया गया, जबकि राज्यों को अपने पास से केवल 5% धन ही लगाना था और शेष 10% राशि बैंकों ने बतौर ऋण के रूप में प्रदान की।
  • ऐसे सभी चार करोड़ निर्धन परिवारों को बिजली कनेक्शन प्रदान किया गया जिनके पास उस वक्त कनेक्शन नहीं था।
  • इस योजना का लाभ गाँव के साथ-साथ शहर के लोगों को भी प्रदान किया गया।
  • केंद्र सरकार द्वारा बैटरी सहित 200 से 300 वाट क्षमता का सोलर पावर पैक दिया गया, जिसमें हर घर के लिये 5 LED बल्ब, एक पंखा भी शामिल था।
  • बिजली के इन उपकरणों की देख-रेख 5 सालों तक सरकार अपने खर्च पर करेगी।
  • बिजली कनेक्शन के लिये 2011 की सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना को आधार माना गया था। जो लोग इस जनगणना में शामिल नहीं थे, उन्हें 500 रुपए में कनेक्शन दिया गया और इसे 10 किश्तों में वसूला जाएगा।
  • सभी घरों को बिजली पहुँचाने के लिये प्री-पेड मॉडल अपनाया गया था।

आगे की राह 

  • सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाना: उच्च औद्योगिक/वाणिज्यिक टैरिफ और क्रॉस-सब्सिडी के कार्यान्वयन ने औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों की प्रतिस्पर्द्धा की क्षमता को प्रभावित किया है। इस प्रकार क्रॉस-सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाने एवं इसके प्रभावी प्रवर्तन को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। 
  • AT&C से होने वाली हानि को कवर करना: बिजली की मांग के प्रबंधन के लिये, कृषि को आपूर्ति की जाने वाली बिजली की 100% मीटरिंग-नेट मीटरिंग, स्मार्ट मीटर एवं मीटरिंग शुरू करना आवश्यक है। प्रशुल्क संरचना में निष्पादन आधारित प्रोत्साहनों (Performance Based Incentives) को शामिल करने की भी आवश्यकता है। 
  • हरित ग्रिड: कुसुम योजना कृषि में बिजली सब्सिडी मॉडल के लिये एक उपयुक्त विकल्प प्रदान करती है। इस योजना का उद्देश्य कृषि के लिये सौर पंपों के उपयोग को बढ़ावा देना और यह प्रावधान करता है कि स्थानीय डिस्कॉम को किसान से अधिशेष बिजली खरीदनी चाहिये। 
  • सीमा पार व्यापार: सरकार को मौजूदा/आगामी पीढ़ी की परिसंपत्तियों का उपयोग करने के लिये सीमा पार बिजली व्यापार को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने की जरूरत है। सार्क विद्युत ग्रिड सही दिशा में एक कदम है। 

निष्कर्ष 

डिस्कॉम की अक्षमता से निपटने के लिये राष्ट्रीय बिजली वितरण कंपनी की अवधारणा को आगे बढ़ाया जा रहा है। हालाँकि प्रणालीगत एवं आधारभूत ढाँचे की चुनौतियों को संबोधित किये बिना, डिस्कॉम की वित्तीय और परिचालन स्थिति में एक स्थायी बदलाव मुश्किल है। 

अभ्यास प्रश्न: भारत में विद्युत क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों के बारे में चर्चा कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2