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जैव विविधता और पर्यावरण

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972

  • 20 Apr 2023
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, प्रोजेक्ट टाइगर, CITES

मेन्स के लिये:

वन्यजीव संरक्षण, वन्यजीव संरक्षण का महत्त्व, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की  सफलता और इससे संबद्ध चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?   

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 ने अपनी स्थापना के 51 वर्ष पूरे कर लिये हैं और इन वर्षों में यह कई लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करने में सफल रहा है। इस अधिनियम ने देश के विविध वन्यजीवों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972:

  • परिचय: 
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, जंगली जानवरों, पौधों तथा उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
    • यह अधिनियम उन पौधों और जानवरों की अनुसूचियों को भी सूचीबद्ध करता है जिन्हें सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर की सुरक्षा तथा निगरानी प्रदान की जाती है।
    • वन्यजीव अधिनियम ने CITES (वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन) में भारत के प्रवेश को सरल बना दिया था।
    • इससे पहले जम्मू-कश्मीर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के दायरे में नहीं आता था। लेकिन अब पुनर्गठन अधिनियम के परिणामस्वरूप भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है।
  • वन्यजीव अधिनियम हेतु संवैधानिक प्रावधान:
    • 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के तहत वन एवं वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया था।
    • संविधान के अनुच्छेद 51A(g) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्त्तव्य होगा।
    • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 48A, यह आज्ञापित करता है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार और देश के वनों तथा वन्य जीवन की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
  • अधिनियम के तहत अनुसूचियाँ:  
    • अनुसूची I: 
      • इसमें उन लुप्तप्राय प्रजातियों को शामिल किया गया है जिन्हें सर्वाधिक संरक्षण की आवश्यकता है
      • इस अनुसूची के तहत किसी भी कानून के ल्लंघन की स्थिति में व्यक्ति को सबसे कठोर दंड दिया जा सकता है।
      • इस अनुसूची के तहत शामिल प्रजातियों का पूरे भारत में शिकार करने पर प्रतिबंध है, सिवाय ऐसी स्थिति के जब वे मानव जीवन के लिये खतरा हों अथवा वे ऐसी बीमारी से पीड़ित हों, जिससे ठीक होना संभव नहीं है।
      • अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध कुछ जानवरों में कृष्ण मृग (काला हिरण), हिम तेंदुआ (स्नो लेपर्ड), हिमालयी भालू और एशियाई चीता शामिल हैं।
    • अनुसूची II: 
      • इस सूची के अंतर्गत आने वाले जानवरों को भी उनके संरक्षण के लिये उच्च सुरक्षा प्रदान की जाती है, जिसमें उनके व्यापार पर प्रतिबंध आदि शामिल हैं।
      • अनुसूची II के तहत सूचीबद्ध कुछ जानवरों में असमिया मकाक, हिमालयी काला भालू (Himalayan Black Bear) और भारतीय नाग (Indian Cobra) शामिल हैं।
    • अनुसूची III व IV: 
      • जानवरों की वे प्रजातियाँ, जो संकटग्रस्त नहीं हैं उन्हें अनुसूची III और IV के अंतर्गत शामिल किया गया है।
      • इसमें प्रतिबंधित शिकार वाली संरक्षित प्रजातियाँ शामिल हैं, लेकिन किसी भी उल्लंघन के लिये दंड पहली दो अनुसूचियों की तुलना में कम है।
      • अनुसूची III के तहत संरक्षित जानवरों में चीतल (Spotted Deer), भड़ल/हिमालयी नीली भेड़ (Blue Sheep), लकड़बग्घा और सांभर (Deer) शामिल हैं।
      • अनुसूची IV के तहत संरक्षित जानवरों में राजहंस (Flamingo), खरगोश, बाज़, किंगफिशर, मैगपाई और हॉर्सशू क्रैब शामिल हैं।
    • अनुसूची V: 
      • इस अनुसूची में ऐसे जंतु शामिल हैं जिन्हें वर्मिन/परोपजीवी कहा जाता है (छोटे जंगली जीव जो रोग का परिसंचरण करते हैं तथा पौधों एवं भोज्य पदार्थों को नष्ट कर देते हैं)। इन जानवरों का शिकार किया जाता है।
      • इसमें जंगली जानवरों की केवल चार प्रजातियाँ शामिल हैं: कौवे, फल चमगादड़, चूहा और मूषक।
    • अनुसूची VI: 
      • यह एक निर्दिष्ट पौधों की कृषि में नियमन प्रदान करता है और इस पर स्वामित्त्व, इसकी बिक्री और परिवहन को नियंत्रित करता है।
      • निर्दिष्ट पौधों की कृषि और व्यापार दोनों ही निपुण प्राधिकारी की पूर्व अनुमति से ही किये जा सकते हैं।
      • अनुसूची VI के तहत संरक्षित पौधों में बेडडोम्स साइकैड/Beddomes’ Cycad (भारतीय मूल का पौधा), ब्लू वांडा/Blue Vanda (नीला ऑर्किड), रेड वांडा/Red Vanda (लाल ऑर्किड), कुथ/Kuth (Saussurea Lappa), स्लिपर ऑर्किड (Paphiopedilum Spp.) और पिचर प्लांट (Nepenthes Khasiana) शामिल हैं।
  • अधिनियम के तहत गठित निकाय: 
    •  राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife- NBWL):
      • NBWL सभी वन्यजीव संबंधी मुद्दों की समीक्षा करने और राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों में तथा उसके आसपास परियोजनाओं को मंजूरी देने वाला शीर्ष संगठन है।
    •  राज्य वन्यजीव बोर्ड (State Board for Wildlife- SBWL): 
      • राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के मुख्यमंत्री इस बोर्ड के अध्यक्ष होते हैं।
    • केंद्रीय जैविक उद्यान/ चिड़ियाघर प्राधिकरण (Central Zoo Authority):  
      • केंद्रीय जैविक उद्यान प्राधिकरण में अध्यक्ष और एक सदस्य-सचिव सहित कुल 10 सदस्य होते हैं। 
        • प्राधिकरण चिड़ियाघरों को मान्यता प्रदान करता है और देश भर के चिड़ियाघरों को विनियमित करने का कार्य भी करता है।
      • यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिड़ियाघरों के मध्य जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों के स्थानांतरण के लिये मानदंड और नियम स्थापित करता है।
    • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA): 
      • टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद बाघ संरक्षण को सुदृढ़ करने के लिये वर्ष 2005 में NTCA का गठन किया गया था।
      • केंद्रीय पर्यावरण मंत्री NTCA का अध्यक्ष होता है और राज्य का  पर्यावरण मंत्री इसका उपाध्यक्ष होता है। 
      • केंद्र सरकार NTCA की सिफारिशों पर किसी क्षेत्र को बाघ अभयारण्य घोषित करती है।
    • वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (Wildlife Crime Control Bureau- WCCB):  
      • इस अधिनियम के तहत देश में संगठित वन्यजीव अपराध से निपटने के लिये WCCB के गठन हेतु प्रावधान किया गया।
  • अधिनियम के तहत संरक्षित क्षेत्र: 
    • अधिनियम के तहत पाँच प्रकार के संरक्षित क्षेत्र हैं: अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, संरक्षण रिज़र्व, सामुदायिक रिज़र्व और टाइगर रिज़र्व 
  • अधिनियम में किये गए महत्त्वपूर्ण संशोधन: 
    • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 1991:  
      • इस अधिनियम ने वन्यजीव संबंधी अपराधों के लिये दंड और ज़ुर्माने को और सशक्त किया तथा लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के प्रावधानों को भी प्रस्तुत किया।
    • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2002:  
    • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2006: 
      • यह संशोधन मानव-वन्यजीव संघर्ष के मुद्दे से संबंधित था तथा इसमें बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन एवं सुरक्षा हेतु एक राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के गठन हेतु प्रावधान किया गया था।
      • इसने वन्यजीव संबंधी अपराधों से निपटने के लिये बाघ एवं अन्य लुप्तप्राय प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो (Tiger and Other Endangered Species Crime Control Bureau) के गठन का भी प्रावधान किया।
    • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2022: 
      • अधिनियम कानून के तहत संरक्षित प्रजातियों को बढ़ाने और CITES को लागू करने का प्रस्ताव करता है।
      • अनुसूचियों की संख्या घटाकर चार कर दी गई है: 
        • अनुसूची I में उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्राप्त पशु प्रजातियों को शामिल किया गया है।
        • अनुसूची III में सुरक्षा के कम स्तर वाली पशु प्रजातियों को शामिल किया गया है।
        • अनुसूची III संरक्षित पौधों की प्रजातियों के लिये है।
        • अनुसूची IV CITES के तहत सूचीबद्ध प्रजातियों के लिये।
      • अधिनियम 'धार्मिक या किसी अन्य उद्देश्य' के लिये हाथियों के उपयोग की अनुमति देता है। 

WPA, 1972 के तहत वन्यजीव विकास की पहलें:

  • बाघ संरक्षण परियोजना:
    • बाघों की आबादी के संरक्षण के लिये बाघ संरक्षण परियोजना। वर्ष 1973 में प्रारंभ  की गई यह परियोजना अभी भी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मदद से चल रही है।
  • प्रोजेक्ट एलीफेंट:
    • हाथियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिये वर्ष 1992 में केंद्र सरकार द्वारा प्रोजेक्ट एलीफेंट लॉन्च किया गया था।
    • अधिनियम के तहत कुल 88 गलियारों की पहचान की गई थी। 
  • वन्यजीव गलियारे:
    • वन्यजीव गलियारे संरक्षित क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं और मानव बस्तियों में हस्तक्षेप किये बिना जानवरों की आवाजाही की अनुमति देते हैं। हाल ही में भारत के पहले शहरी वन्यजीव गलियारे की योजना नई दिल्ली और हरियाणा के मध्य बनाई जा रही है। गलियारा असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य के पास है, ताकि तेंदुए और अन्य वन्यजीवों को सुरक्षित मार्ग प्रदान किया जा सके।

WPA, 1972 में चुनौतियाँ: 

  • जागरूकता का अभाव:
    • यह अधिनियम 50 से अधिक वर्षों से लागू होने के बावजूद प्रभावी रूप से आम जनता तक नहीं पहुंँच पाया है। बहुत से लोग अभी भी वन्यजीव संरक्षण के महत्त्व और इससे संबंधित कानूनों से अनभिज्ञ हैं।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष: 
    • मानव आबादी में वृद्धि और वन्यजीव आवासों के अतिक्रमण के साथ मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि हुई है। इससे अक्सर वन्यजीवों की हत्या होती है, जो WPA के तहत अवैध है।
  • अवैध वन्यजीव व्यापार:
    • भारत ने अवैध वन्यजीव व्यापार में महत्त्वपूर्ण वृद्धि देखी है, जो देश के वन्यजीवों के लिये एक बड़ा खतरा है। कड़े कानूनों के बावजूद वन्यजीव उत्पादों का अवैध शिकार और अवैध व्यापार जारी है।
  • समन्वय का अभाव:
    • अक्सर वन विभाग और अन्य सरकारी एजेंसियों जैसे- पुलिस, सीमा शुल्क और राजस्व विभागों के मध्य समन्वय की कमी होती है।
      • इससे WPA को प्रभावी ढंग से लागू करना और अवैध वन्यजीव व्यापार पर नियंत्रण लगाना मुश्किल हो जाता है।
  • अपर्याप्त दंड: 
    • WPA के तहत वन्यजीव अपराधों के लिये दंड एक निवारक के रूप में कार्य करने के लिये पर्याप्त कठोर नहीं है। अपराधियों पर प्रभाव डालने के लिये ज़ुर्माना और सज़ा  अक्सर बहुत कम होती है।
  • सामुदायिक भागीदारी का अभाव:
    • स्थानीय समुदायों की भागीदारी के बिना संरक्षण के प्रयास सफल नहीं हो सकते। हालांँकि वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों में अक्सर सामुदायिक भागीदारी की कमी देखी जाती है।
  • जलवायु परिवर्तन: 
    • जलवायु परिवर्तन वन्यजीव आवासों के लिये एक महत्त्वपूर्ण खतरा है और इससे मौजूदा वन्यजीवों के लिये खतरा पैदा होने की संभावना है। WPA को वन्यजीवों और उनके आवासों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को ध्यान में रखना चाहिये।

निष्कर्ष:

  • WPA 1972, 50 से अधिक वर्षों से अस्तित्त्व में है लेकिन यह कई चुनौतियों का सामना करता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार, सिविल सोसाइटी और जनता के ठोस प्रयास की आवश्यकता होगी। प्रभावी प्रवर्तन, सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता बढ़ाने वाले अभियान कुछ ऐसे कदम हैं जो भारत के वन्यजीवों तथा उनके आवासों की रक्षा के लिये उठाए जा सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. यदि किसी पौधे की विशिष्ट जाति को वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम, 1972 की अनुसूची VI में रखा गया है, तो इसका क्या तात्पर्य है? (2020)

(a) उस पौधे की खेती करने के लिये लाइसेंस की आवश्यकता है।
(b) ऐसे पौधे की खेती किसी भी परिस्थिति में नहीं हो सकती।
(c) यह एक आनुवंशिकत: रूपांतरित फसली पौधा है।
(d) ऐसा पौधा आक्रामक होता है और पारितंत्र के लिये हानिकारक होता है।

उत्तर: (a) 

स्रोत: द हिंदू

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