विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत में BioE3 नीति और जैव प्रौद्योगिकी
- 02 Sep 2024
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प्रिलिम्स के लिये:BioE3 नीति, विज्ञान धारा, नेट जीरो कार्बन अर्थव्यवस्था, सर्कुलर बायोइकोनॉमी, पर्यावरण के लिये जीवनशैली, जीन थेरेपी, स्टेम सेल, गोल्डन राइस, बायोरेमेडिएशन, कार्बन फुटप्रिंट, राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन, बायोटेक-किसान योजना, अटल जय अनुसंधान बायोटेक मिशन, वन हेल्थ कंसोर्टियम मेन्स के लिये:भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र, भारत के लिये जैव प्रौद्योगिकी का महत्त्व, भारत में जैव प्रौद्योगिकी के विकास में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रस्ताव ‘उच्च प्रदर्शन जैव विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोज़गार के लिये जैव प्रौद्योगिकी (BioE3) नीति’ को मंज़ूरी दी।
- BioE3 नीति के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की तीन योजनाओं को मिलाकर एक योजना बना दी है, जिसे विज्ञान धारा कहा गया है, जिसका वित्तीय परिव्यय वर्ष 2025-26 तक 10,579 करोड़ रुपए है।
BioE3 नीति क्या है?
- परिचय: BioE3 का उद्देश्य उच्च प्रदर्शन वाले जैव-विनिर्माण को बढ़ावा देना है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में जैव-आधारित उत्पादों का उत्पादन शामिल है।
- यह नीति व्यापक राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप है, जैसे 'नेट जीरो' कार्बन अर्थव्यवस्था प्राप्त करना और सर्कुलर बायोइकोनॉमी के माध्यम से सतत् विकास को बढ़ावा देना।
- उद्देश्य: BioE3 नीति अनुसंधान एवं विकास (R&D) और उद्यमिता में नवाचार पर ज़ोर देती है, बायोमैन्युफैक्चरिंग, Bio-AI हब व बायोफाउंड्रीज की स्थापना करती है, जिसका उद्देश्य भारत के कुशल जैव प्रौद्योगिकी कार्यबल का विस्तार करना है, जो 'पर्यावरण के लिये जीवनशैली' कार्यक्रमों के साथ संरेखित है तथा पुनर्योजी जैव अर्थव्यवस्था मॉडल के विकास को लक्षित करता है।
- BioE3 नीति का उद्देश्य जैव विनिर्माण केंद्रों की स्थापना के माध्यम से विशेष रूप से टियर-II और टियर-III शहरों में महत्त्वपूर्ण रोज़गार सृजन करना है।
- ये केंद्र स्थानीय बायोमास का उपयोग कर क्षेत्रीय आर्थिक विकास और समतामूलक विकास को बढ़ावा देंगे।
- नीति में ज़िम्मेदार जैव प्रौद्योगिकी विकास सुनिश्चित करते हुए भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिये नैतिक जैव सुरक्षा और वैश्विक नियामक संरेखण पर भी ज़ोर दिया गया है।
- BioE3 नीति का उद्देश्य जैव विनिर्माण केंद्रों की स्थापना के माध्यम से विशेष रूप से टियर-II और टियर-III शहरों में महत्त्वपूर्ण रोज़गार सृजन करना है।
- BioE3 नीति की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं
- जैव-आधारित रसायन और एंज़ाइम: पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये उन्नत जैव-आधारित रसायनों और एंज़ाइमों का विकास।
- कार्यात्मक खाद्य पदार्थ और स्मार्ट प्रोटीन: पोषण एवं खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिये कार्यात्मक खाद्य पदार्थों और स्मार्ट प्रोटीन में नवाचार।
- प्रिसिजन बायोथेरेप्यूटिक्स: स्वास्थ्य सेवा परिणामों को बेहतर बनाने के लिये सटीक चिकित्सा और बायोथेरेप्यूटिक्स को आगे बढ़ाना।
- जलवायु लचीला कृषि: जलवायु परिवर्तन के लिये लचीले कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- कार्बन कैप्चर और उपयोग: विभिन्न उद्योगों में कुशल कार्बन कैप्चर और इसके उपयोग के लिये प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
- भविष्य के समुद्री और अंतरिक्ष अनुसंधान: जैव विनिर्माण में नई सीमाओं का पता लगाने के लिये समुद्री और अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान का विस्तार करना।
विज्ञान धारा योजना क्या है?
- पृष्ठभूमि: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) देश में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार गतिविधियों के आयोजन, समन्वय तथा संवर्धन हेतु नोडल विभाग के रूप में कार्य करता है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से संबंधित तीन प्रमुख केन्द्रीय क्षेत्र योजनाएँ-संस्थागत एवं मानव क्षमता निर्माण, अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास व परिनियोजन, जो DST द्वारा कार्यान्वित थी, को एक एकीकृत योजना ‘विज्ञान धारा’ में विलय कर दिया गया है।
- उद्देश्य और लक्ष्य: तीनों योजनाओं को एक ही योजना में विलय करने से निधि उपयोग की दक्षता में सुधार होगा और विभिन्न उप-योजनाओं/कार्यक्रमों के बीच समन्वय स्थापित होगा।
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विज्ञान धारा योजना का उद्देश्य देश में अनुसंधान एवं विकास का विस्तार करना तथा पूर्णकालिक समकक्ष (FTE) शोधकर्त्ताओं की संख्या में वृद्धि करना है।
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केंद्रित हस्तक्षेप से लिंग समानता प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी।
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विज्ञान धारा के अंतर्गत सभी कार्यक्रम विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के 5-वर्षीय लक्ष्यों के अनुरूप हैं तथा इनका उद्देश्य वर्ष 2047 तक विकसित भारत अर्थात "विकसित भारत 2047" के व्यापक दृष्टिकोण को ध्यान में रखना है।
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BioE3 नीति को पूरक बनाना: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थागत बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना और महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन पूल का विकास करना।
- बुनियादी अनुसंधान, टिकाऊ ऊर्जा, जल आदि क्षेत्र में उपयोग योग्य अनुसंधान को बढ़ावा देता है।
- स्कूल से लेकर उद्योग स्तर तक नवाचारों का समर्थन करता है और शिक्षा, सरकार एवं उद्योगों के बीच सहयोग बढ़ाता है।
जैव प्रौद्योगिकी क्या है?
- परिचय: जैव प्रौद्योगिकी एक ऐसा क्षेत्र है, जो जीवविज्ञान को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ता है, सेलुलर और बायोमॉलिक्यूलर प्रक्रियाओं का प्रयोग करके ऐसे उत्पाद एवं प्रौद्योगिकी बनाता है, जो हमारे जीवन को बेहतर बनाते हैं तथा हमारे ग्रह की सुरक्षा करते हैं।
- लाभ:
- स्वास्थ्य सेवा में प्रगति: मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी (रेड बायोटेक) उन्नत दवाओं, टीकों और उपचारों के विकास को सक्षम बनाता है, जिसमें व्यक्तिगत चिकित्सा, जीन थेरेपी और लक्षित कैंसर उपचार शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त जैसा कि कोविड-19 महामारी द्वारा प्रदर्शित किया गया है, यह टीकों के निर्माण को गति देता है। स्टेम सेल अनुसंधान और ऊतक इंजीनियरिंग क्षतिग्रस्त ऊतकों एवं अंगों को पुनर्जीवित करने की क्षमता प्रदान करते हैं, जिससे उन रोगों के उपचार के नए मार्ग खुलते हैं जिन्हें लाइलाज माना जाता था।
- कृषि सुधार: कृषि जैव प्रौद्योगिकी (ग्रीन बायोटेक) के तहत पादप वर्ग में आनुवंशिक संशोधन और इंजीनियरिंग शामिल है, जो कीटों, बीमारियों एवं अनावृष्टि जैसे पर्यावरणीय तनावों के प्रति अधिक प्रतिरोधी फसल किस्मों का उत्पादन कर सकते हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा में सुधार होता है।
- बायोटेक उन्नत पोषण प्रोफाइल वाली फसलों के विकास की अनुमति देता है, जैसे कि गोल्डन राइस, जो कुपोषण से निपटने के लिये विटामिन A से भरपूर होता है।
- पर्यावरणीय स्थिरता: जैव प्रौद्योगिकी के तहत तेल रिसाव, भारी धातुओं और प्लास्टिक जैसे प्रदूषकों (बायोरेमेडिएशन) को साफ करने के लिये सूक्ष्मजीवों का प्रयोग किया जाता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्भरण करने और पर्यावरणीय क्षति को कम करने में मदद मिलती है।
- औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी (व्हाइट बायोटेक) जैव प्रौद्योगिकी को औद्योगिक प्रक्रियाओं में लागू करती है, जैसे जैव ईंधन, जैव प्लास्टिक और बायोडिग्रेडेबल पदार्थों का उत्पादन।
- यह पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने और स्वच्छ उत्पादन विधियों के माध्यम से स्थिरता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- जैव प्रौद्योगिकी नवाचार अपशिष्ट पदार्थों को रीसाइकिल और अपसाइकिल करने में मदद करते हैं, परिपत्र अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं तथा लैंडफिल को कम करते हैं।
- औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी (व्हाइट बायोटेक) जैव प्रौद्योगिकी को औद्योगिक प्रक्रियाओं में लागू करती है, जैसे जैव ईंधन, जैव प्लास्टिक और बायोडिग्रेडेबल पदार्थों का उत्पादन।
- आर्थिक विकास: जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान, विकास और विनिर्माण क्षेत्रों में रोज़गार सृजित करके आर्थिक विकास को गति देता है।
- जैव प्रौद्योगिकी में निवेश करने वाले देश अत्याधुनिक नवाचारों में अग्रणी हैं, जिससे उन्हें वैश्विक बाज़ारों और व्यापार में प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त मिलती है।
- जलवायु परिवर्तन शमन: कुछ जैव प्रौद्योगिकी वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर उसका उपयोग कर सकती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है।
- जैव प्रौद्योगिकी स्वच्छ जैव ईंधन के उत्पादन में सहायता करती है, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करती है और कार्बन फूटप्रिंट्स को कम करती है।
- सामग्रियों में नवाचार: जैव प्रौद्योगिकी जैव-आधारित फाइबर और उच्च-प्रदर्शन जैव-कंपोज़िट सहित नवीन सामग्रियों की इंजीनियरिंग को सक्षम बनाती है, जिनका फैशन से लेकर एयरोस्पेस तक के उद्योगों में अनुप्रयोग किया जा सकता है।
- स्वास्थ्य सेवा में प्रगति: मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी (रेड बायोटेक) उन्नत दवाओं, टीकों और उपचारों के विकास को सक्षम बनाता है, जिसमें व्यक्तिगत चिकित्सा, जीन थेरेपी और लक्षित कैंसर उपचार शामिल हैं।
भारत में बायोटेक्नोलॉजी की वर्तमान स्थिति क्या है?
- बायोटेक्नोलॉजी हब: भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष 12 बायोटेक्नोलॉजी गंतव्यों में शुमार है। कोविड-19 महामारी ने भारत में बायोटेक्नोलॉजी के विकास को गति दी, जिससे टीके, नैदानिक परीक्षण और चिकित्सा उपकरणों में प्रगति हुई।
- वर्ष 2021 में भारत में बायोटेक स्टार्टअप पंजीकरण की रिकॉर्ड संख्या देखी गई, जिसमें 1,128 नई प्रविष्टियाँ शामिल थीं, जो वर्ष 2015 के बाद से सबसे अधिक है। वर्ष 2022 तक बायोटेक स्टार्टअप की कुल संख्या 6,756 तक पहुँच गई, जिसके वर्ष 2025 तक 10,000 तक पहुँचने की उम्मीद है।
- बायोइकोनॉमी: भारत की बायोइकोनॉमी में व्यापक वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2014 में 10 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 130 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक हो गई है, जिसके वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- बायोफार्मा भारत की बायो-इकोनॉमी का सबसे बड़ा हिस्सा है, जो इसके कुल मूल्य का 49% है, जिसका अनुमान 39.4 बिलियन अमरीकी डॉलर है। अनुमानतः वर्ष 2025 तक टीकाकरण बाज़ार 252 बिलियन रुपए (USD 3.04 बिलियन) का हो जाएगा।
- जैव संसाधन: भारत की विशाल जैवविविधता, विशेष रूप से हिमालय क्षेत्र में और 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा जैव प्रौद्योगिकी में महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है।
- डीप-सी मिशन का उद्देश्य समुद्र के नीचे की जैवविविधता का पता लगाना है।
- सरकारी पहल:
- अनुप्रयुक्त जैव प्रौद्योगिकी में हाल ही में अनुसंधान एवं विकास उपलब्धियाँ:
- ADVIKA काबुली चने (Chickpea) की किस्म: सूखे की स्थिति में बीज के वज़न और उपज में वृद्धि के साथ अनावृष्टि-सहिष्णु चने की किस्म विकसित की गई।
- एक्सेल ब्रीड सुविधा: लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) में अत्याधुनिक स्पीड ब्रीडिंग सुविधा, फसल सुधार कार्यक्रमों को गति प्रदान करती है।
- स्वदेशी टीके: भारत ने कई अग्रणी टीके विकसित किये जिनमें चतुर्भुज मानव पेपिलोमा वायरस (qHPV) वैक्सीन, ZyCoV-D (DNA वैक्सीन) शामिल है और इसके अतिरिक्त GEMCOVAC-OM, एक mRNA-आधारित ओमिक्रॉन बूस्टर पेश किया गया।
- जीन थेरेपी: हीमोफीलिया A के लिये भारत के पहले जीन थेरेपी क्लिनिकल परीक्षण को मंज़ूरी मिली।
- नई रुधिर बैग प्रौद्योगिकी: बेंगलुरु के inStem के शोधकर्त्ताओं ने विशेष शीट बनाई, जो संगृहीत लाल रक्त कोशिकाओं को नुकसान से बचाती है।
- यह तकनीक बेहतर रुधिर बैग बनाने और आधान के दौरान समस्याओं को कम करने में मदद कर सकती है।
- ADVIKA काबुली चने (Chickpea) की किस्म: सूखे की स्थिति में बीज के वज़न और उपज में वृद्धि के साथ अनावृष्टि-सहिष्णु चने की किस्म विकसित की गई।
- भविष्य का दृष्टिकोण:
- बायोटेक्नोलॉजी उद्योग वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने वाला है और वर्ष 2030 तक इसके 300 बिलियन अमरीकी डॉलर तक बढ़ने की संभावना है।
- इस क्षेत्र से वर्ष 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 3.3-3.5% योगदान मिलने की उम्मीद है।
- डायग्नोस्टिक और मेडिकल उपकरणों के बाज़ार में उल्लेखनीय वृद्धि होने का अनुमान है साथ ही चिकित्सीय क्षेत्र से वर्ष 2025 तक जैव-आर्थिक गतिविधि में 15 बिलियन अमरीकी डॉलर सृजन होने की उम्मीद है।
- बायोटेक इनक्यूबेटरों के विस्तार और स्टार्टअप्स के लिये समर्थन से स्वास्थ्य, कृषि एवं औद्योगिक प्रक्रियाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में आगे विकास एवं नवाचार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- बायोटेक्नोलॉजी उद्योग वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने वाला है और वर्ष 2030 तक इसके 300 बिलियन अमरीकी डॉलर तक बढ़ने की संभावना है।
भारत में जैव प्रौद्योगिकी के लिये चुनौतियाँ क्या हैं?
- रणनीतिक रोडमैप विकास: जैव प्रौद्योगिकी के लिये एक व्यापक रणनीतिक रोडमैप का अभाव है जो प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्रों और उद्योग-विशिष्ट अनुसंधान एवं विकास आवश्यकताओं को रेखांकित करता हो।
- फसल सुधार और चिकित्सा विज्ञान में महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को हरित और श्वेत क्रांति के समान क्रांति की आवश्यकता है।
- जैव-नेटवर्किंग: जैव-प्रौद्योगिकी व्यवसायों के बीच संपर्क बढ़ाने, बौद्धिक संपदा अधिकारों को संबोधित करने तथा जैव-सुरक्षा एवं जैव-नैतिकता सुनिश्चित करने के लिये प्रभावी जैव-नेटवर्किंग की आवश्यकता है।
- मानव संसाधन: जैव प्रौद्योगिकी में विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में अधिक विशिष्ट मानव संसाधनों की आवश्यकता है।
- विनियामक बोझ: जैव प्रौद्योगिकी हेतु भारत का विनियामक वातावरण जटिल और धीमा है, विशेष रूप से आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) के लिये।
- अनुमोदन प्रक्रिया बहुत जटिल है, जिसमें अनेक एजेंसियाँ तथा जेनेटिक मैनिपुलेशन पर समीक्षा समिति (Review Committee on Genetic Manipulation- RCGM) शामिल हैं, जिसके कारण क्षेत्राधिकार में अतिव्यापन होता है और देरी होती है।
- वित्तपोषण और निवेश: यद्यपि जैव प्रौद्योगिकी उद्योग भागीदारी कार्यक्रम (Biotechnology Industry Partnership Programme- BIPP) के तहत जैव प्रौद्योगिकी परियोजनाओं के लिये सरकारी वित्तपोषण उपलब्ध है, फिर भी उच्च जोखिम वाले अग्रणी अनुसंधान को समर्थन देने हेतु और अधिक निवेश की आवश्यकता है।
- IT एकीकरण और डेटा प्रबंधन: जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान को डेटा प्रबंधन के लिये व्यापक आईटी समर्थन की आवश्यकता होती है, जिसमें डेटा एकीकरण और तकनीकी मानकों की स्थापना से संबंधित चुनौतियाँ भी शामिल हैं।
जैव प्रौद्योगिकी विकास हेतु केस स्टडी के रूप में हैदराबाद
- हैदराबाद ने 700 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश प्राप्त किया है और इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचना है, जो जैव प्रौद्योगिकी के लिये महत्त्वपूर्ण वित्तीय समर्थन को दर्शाता है।
- जीनोम वैली, मेडटेक पार्क और फार्मा सिटी जैसी प्रमुख बुनियादी परियोजनाएँ चल रही हैं, जो हैदराबाद के बायोटेक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ा रही हैं।
- हैदराबाद में जीवन विज्ञान क्षेत्र ने हाल के वर्षों में 4,50,000 से अधिक नौकरियाँ उत्पन्न की हैं, जिससे महत्त्वपूर्ण आर्थिक विकास में योगदान मिला है।
- वैश्विक वैक्सीन उत्पादन में तेलंगाना का योगदान एक तिहाई है और हैदराबाद को विश्व की वैक्सीन राजधानी माना जाता है। साथ ही राज्य भारत के दवा उत्पादन में लगभग 35% योगदान देता है।
- हैदराबाद अन्य वैश्विक बाज़ारों की तुलना में किफायती मानव संसाधन और कम अचल संपत्ति लागत प्रदान करता है, जिससे बायोटेक कंपनियाँ यहाँ आकर्षित होती हैं।
आगे की राह
- जैव प्रौद्योगिकी में कुशल कार्यबल विकसित करने के लिये बायोटेक औद्योगिक प्रशिक्षण कार्यक्रम (Biotech Industrial Training Programme- BITP) जैसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार करना।
- बायोटेक स्टार्टअप और शुरुआती चरण की कंपनियों में उद्यम पूंजी निवेश को प्रोत्साहित करें। संसाधन जुटाने तथा नवाचार में तेजी लाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा दें।
- सहायक नीतियों और प्रोत्साहनों को तैयार करना तथा उन्हें लागू करना महत्त्वपूर्ण होगा। नीतियों को बायोटेक फर्मों को आकर्षित करने और बनाए रखने के लिये विनियामक व्यवस्था को सुव्यवस्थित कर लाभ तथा सब्सिडी पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
- प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजना जैसी पहलों का लाभ उठाना। रणनीतिक साझेदारी और निवेश के माध्यम से वैश्विक बाज़ार में उपस्थिति और ब्रांड पहचान बनाने पर ध्यान केंद्रित करना।
- जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित वैश्विक पहलों जैसे कि ग्लोबल अलायंस फॉर जीनोमिक्स एंड हेल्थ और वैश्विक गठबंधन तथा प्लांट बायोटेक्नोलॉजी के अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Association of Plant Biotechnology- IAPB) में सक्रिय रूप से भाग लें। वैश्विक बाज़ारों में जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों तथा सेवाओं के निर्यात का समर्थन करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. BioE3 नीति भारत के राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ इसके संरेखण और भारत में जैव प्रौद्योगिकी कैसे विकसित हुई है, इस पर चर्चा कीजिये। चुनौतियों का समाधान करने के लिये संभावित समाधान सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. पीड़कों को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं, जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होगीं?(2021) प्रश्न. किसानों के जीवन मानकों को उन्नत करने के लिये जैव-प्रौद्योगिकी किस प्रकार सहायता कर सकती हैं? (2019) प्रश्न. क्या कारण है कि हमारे देश में जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्यधिक सक्रियता है? इस सक्रियता ने बायोफार्मा के क्षेत्र को कैसे लाभ पहुँचाया है? (2018) |