जैव विविधता और पर्यावरण
वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि और इसके प्रभाव: WMO
- 15 Feb 2023
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:WMO, जलवायु संकट, ग्लोबल वार्मिंग, तटीय पारिस्थितिक तंत्र। मेन्स के लिये:वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि और इसके प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की “वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि और इसके प्रभाव” रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर भारत, चीन, बांग्लादेश एवं नीदरलैंड समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देश हैं।
- समुद्र के स्तर में वृद्धि लगभग सभी महाद्वीपों के कई बड़े शहरों के अस्तित्व के लिये खतरा है।
- इनमें शंघाई, ढाका, बैंकॉक, जकार्ता, मुंबई, मापुटो, लागोस, काहिरा, लंदन, कोपेनहेगन, न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स, ब्यूनस आयर्स और सैंटियागो शामिल हैं।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- मौजूदा स्थिति और अनुमान:
- वर्ष 2013 और 2022 के बीच वैश्विक औसत समुद्र-स्तर 4.5 मिमी./वर्ष था और वर्ष 1971 के बाद से ही मानवीय गतिविधियों को इस वृद्धि का मुख्य कारक माना जाता रहा है।
- वर्ष 1901 और 2018 के बीच वैश्विक औसत समुद्र-स्तर में 0.20 मीटर की वृद्धि हुई।
- वर्ष 1901 और 1971 के बीच 1.3 मिमी./वर्ष।
- वर्ष 1971 और 2006 के बीच 1.9 मिमी./वर्ष
- वर्ष 2006 से 2018 के बीच 3.7 मिमी./वर्ष।
- यदि ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाता है, तब भी समुद्र के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- समुद्र स्तर के संदर्भ में एक डिग्री का हर अंश मायने रखता है। यदि तापमान में 2 डिग्री की वृद्धि होती है, तो स्तर में यह वृद्धि दोगुनी हो सकती है तथा तापमान में और वृद्धि होने से समुद्र के स्तर में तेज़ी से वृद्धि उसी के अनुरूप होगी।
- वर्ष 2013 और 2022 के बीच वैश्विक औसत समुद्र-स्तर 4.5 मिमी./वर्ष था और वर्ष 1971 के बाद से ही मानवीय गतिविधियों को इस वृद्धि का मुख्य कारक माना जाता रहा है।
- समुद्र स्तर की वृद्धि में योगदानकर्त्ता:
- तापीय विस्तार ने वर्ष 1971-2018 के दौरान समुद्र के जल स्तर में 50% की वृद्धि दर्ज की है, जिसका कारण है- ग्लेशियरों की बर्फ में 22%का नुकसान, आइसशीट में 20% का नुकसान और भूमि-जल भंडारण में 8% की गिरावट।
- वर्ष 1992-1999 और वर्ष 2010-2019 के मध्य बर्फ की परत के नुकसान की दर चार गुना बढ़ गई। वर्ष 2006-2018 के दौरान वैश्विक स्तर पर समुद्र के स्तर में वृद्धि के लिये एक साथ आइसशीट और ग्लेशियर का बड़े पैमाने पर नुकसान इसके प्रमुख कारक रहे।
- प्रभाव:
- 2-3 डिग्री सेल्सियस के मध्य निरंतर उष्मन स्तर पर ग्रीनलैंड और पश्चिम अंटार्कटिक की बर्फ की चादरें लगभग पूरी तरह से और अपरिवर्तनीय रूप से कई सहस्राब्दियों में विलुप्त हो जाएंगी, जिससे समुद्र के जल स्तर में कई मीटर की वृद्धि होने की संभावना है।
- समुद्र के स्तर में वृद्धि से तटीय पारिस्थितिक तंत्र और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, भूजल लवणीकरण, बाढ़ तथा तटीय बुनियादी ढाँचे को नुकसान होने की आशंका है जो आजीविका, बस्तियों, स्वास्थ्य, कल्याण, भोजन, विस्थापन एवं जल सुरक्षा व सांस्कृतिक मूल्यों के लिये जोखिम का कारण बन सकता है।
भारत के लिये परिदृश्य:
- समुद्र के स्तर में वृद्धि की दर:
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, पिछली शताब्दी (1900-2000) के दौरान भारतीय तट के साथ समुद्र का स्तर लगभग 1.7 मिमी./वर्ष की दर से औसतन बढ़ रहा था।
- समुद्र के स्तर में 3 सेंटीमीटर की वृद्धि से समुद्र 17 मीटर तक अंतर्देशीय हो सकता है। भविष्य में 5 सेमी./दशक की दर से समुद्र का विस्तार एक शताब्दी में 300 मीटर भूमि पर हो सकता है।
- भारत अधिक संवेदनशील है:
- भारत समुद्र स्तर में वृद्धि के बढ़ते प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील है।
- हिंद महासागर के स्तर में आधी वृद्धि जल के आयतन में विस्तार के कारण होती है क्योंकि महासागर तेज़ी से गर्म हो रहा है।
- ग्लेशियर के पिघलने का उतना अधिक योगदान नहीं है।
- सतह के गर्म होने के मामले में हिंद महासागर सबसे तेज़ी से गर्म होने वाला महासागर है।
- प्रभाव:
- भारत हमारी तटरेखा के साथ जटिल चरम घटनाओं का सामना कर रहा है। समुद्र के गर्म होने से अधिक नमी एवं गर्मी के कारण चक्रवात तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
- बाढ़ की घटनाएँ इसलिये भी बढ़ जाती हैं क्योंकि तूफान के बढ़ने से समुद्र स्तर में दशक-दर-दशक तेज़ी से वृद्धि हो रही है।
- चक्रवातों के कारण पहले की तुलना में अधिक बारिश हो रही है। सुपर साइक्लोन अम्फान (2020) के कारण बड़े पैमाने पर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो रही है और खारे जल से दसियों किलोमीटर अंतर्देशीय क्षेत्र जलमग्न हो गया।
- समय के साथ सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियाँ सिकुड़ सकती हैं तथा खारे जल के प्रसार के साथ बढ़ते समुद्र स्तर से उनके विशाल डेल्टा का बड़ा हिस्सा निर्जन होने की संभावना देखी जा रही है।
सिफारिशें:
- जलवायु संकट को संबोधित करने तथा असुरक्षा के मूल कारणों के प्रति हमारी समझ को व्यापक बनाने की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने और पूर्व चेतावनी प्रणाली में सुधार के लिये ज़मीनी स्तर पर लचीलेपन के प्रयासों को सक्रिय रूप से समर्थन देना अनिवार्य है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO):
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) 192 देशों की सदस्यता वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है।
- भारत, विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य देश है।
- इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुई है, जिसे वर्ष 1873 के वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस के बाद स्थापित किया गया था।
- 23 मार्च, 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुसमर्थन द्वारा स्थापित WMO, मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), जल विज्ञान तथा इससे संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान हेतु संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी है।
- WMO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
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